07.03.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 07.03.2018

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07-03-2018 Sindhikela, Balangir, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

सौभाग्यशाली सिंधीकेला दूसरी बार महातपस्वी के चरणरज से हुआ पावन

  • आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को तपस्या के माध्यम से चेतना के शोधन का बताया मंत्र

07.03.2018 सिंधीकेला, कालाहांडी (ओड़िशा)ः

जब किसी की पुण्याई का उदय होता है तो संतों का समागमन होता है और कोई क्षेत्र, जगह, नगर अथवा गांव या शहर का सौभाग्य जागृत होता है तो वहां संतों के चरण कई बार टिक जाते हैं। ऐसा ही सौभाग्यशाली नगर बना बलांगीर जिले का सिंधीकेला। जहां केवल तीन दिनों के भीतर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, अहिंसा यात्रा प्रणेता जैसे महासंत के दूसरी बार चरणरज पड़े तो सिंधीकेला अपनी किस्मत पर इतरा उठा। ऐसा सौभाग्य केवल सिंधीकेला का ही नहीं, यहां रहने वाले श्रद्धालुओं के श्रद्धा-भक्ति का प्रतिफल प्रतीत हो रहा था जो बुधवार को एकबार पुनः आचार्यश्री अपने एक दिवसीय प्रवास के लिए पधारे।

बुधवार को प्रातः आचार्यश्री कालाहांडी जिले के बोर्डा से लगभग पन्द्रह किलोमीटर का विहार कर पुनः बलांगीर जिले के सिंधीकेला नगर की सीमा में प्रवेश किया तो सिंधीकेला के श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर पहुंच गया। वातावरण को जयघोषों से गुंजित करते श्रद्धालु अपने आस्था को मुखरित कर रहे थे। वे अपने आराध्य के पुनरागमन से अतिशय आह्लादित थे, मानों उनकी वर्षों की प्यास को बुझाने पुनः महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधारे थे। दोगुने उत्साह व उल्लास के साथ भव्य जुलूस के साथ सिंधीकेलावासी अपने आराध्य को लेकर नगर स्थित अग्रवाल जैन तेरापंथ भवन पधारे।

भवन परिसर में ही बने वीतराग समवसरण के पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि धर्म के तीन प्रकार बताए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप। धर्म का तीसरा आयाम तपस्या है। तपस्या के माध्यम से चेतना का शोधन किया जा सकता है। आत्मा से चिपके हुए पूर्व कर्मबंध रूपी कचरे को बाहर निकालने में निर्जरा सहायक होती है और वह निर्जरा तपस्या से प्राप्त होती है। तपस्या के माध्यम से आत्मा निर्मल बनती है। जिस प्रकार साबुन-पानी के द्वारा कपड़े को साफ किया जाता है उसी प्रकार आत्मा को साफ करने के लिए निर्जरा के माध्यम से साफ और निर्मल बनती है। आत्मा को निर्मल बनाने का साधन है तपस्या। सघन बादलों को तेज हवा तितर-बितर कर देती है, उसी प्रकार तपस्या कर्मों के सघन बंध को छिन्न-भिन्न कर देता है।

तपस्या के माध्यम से आत्मा पूर्ण स्वरूप निखरता है। आदमी को अपने जीवन में समता की साधना और तपस्या करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने प्रसंगवश रामचन्द्रजी के समत्व भाव का वर्णन करते हुए लोगों को विषम परिस्थितियों में भी सम रहने की पावन प्रेरणा प्रदान की।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त सिंधीकेला व चांदोतारा के श्रद्धालुओं को अपने श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) भी प्रदान की। यह अवसर मानों सिंधीकेला व चांदोतारा के श्रद्धालुओं के जीवन का अमूल्य क्षण था।
अपने आराध्य के अभिनन्दन में सिंधीकेला महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती पुष्पादेवी जैन, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री राजेश जैन नन्हीं बालिका निधि जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इसके उपरान्त सिंधीकेला सभा, युवक परिषद, महिला मंडल और कन्या मंडल के सदस्यों ने सामूहिक रूप में गीत का संगान किया। समणी विपुलप्रज्ञाजी गीत के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवन्दना की।

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