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किशनगढ के नवनिर्मित रतनलाल कंवरलाल अन्तर्राज्य बस अड्डा के बाहर आर.के.समूहः द्वारा निर्माणधीन आचार्य भगवन विधासागर संयम कीर्ति स्तम्भ लगभग तैयार।
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ये है श्री अनंतराज वासवंदी... #mustRead • #share
ऐसे शख्स जिनका तमिलनाडू की जैन संस्कृति को बचाने में इतना योगदान है कि उसकी बराबरी हम किसी से नहीं कर सकते। हमारे आचार्यो ने प्रेरणा देकर सम्राटो से,श्रेष्ठियो से,जिनभक्तो से हजारो साल पूर्व तमिलनाडू के गाँव-नगर में जिनालय बनवाए तमिलनाडू का एक भी गाँव शायद ही बचा हो जिसमे जैन मन्दिर नहीं हो,पर आज समय के फेर में हमारे साधर्मी हमसे दूर हो गए,हमारे जिनालय बदल दिए गए हमारी मूर्तियाँ कन्वर्ट कर दी गई, आज वह जंगलो में पड़ी है,अन्य धर्मियो के मंदिरो में काल्पनिक देवता बनकर शोभायमान है। समाज सभ्य व धनिक है पर इस ओर ध्यान नहीं देती.....
श्री अनंतराज ने बीड़ा उठाया उस पुरानी विरासत को बचाने का, 77 वर्ष की उम्र में भी यह व्यक्ति रोज तमिलनाडू की यात्रा पर निकलते है जहाँ कही मूर्ति मिल जाए उसका संरक्षण करते है, कई बार इन्होंने अजैन लोगो से बहुत कुछ सुना भी,पर हार नहीं मानी, अपने निजी पैसे से मंदिर बनवाए आज भी अनंतराज जी का अभियान जारी है, हम तमिलनाडू की जैन संस्कृति को बचाने के लिए अपना समय नहीं दे सकते पर अनंतराज जी का सहयोग कर उस विरासत को बचा तो सकते है,हम आर्थिक सहयोग भी दे सकते है। हम जब भी तमिलनाडू की यात्रा पर जाए एक बार अनंतराज वासवंदी जी से जरुर बात करे ताकि वह हमे तमिलनाडू की जैन संस्कृति के महत्वपूर्ण क्षेत्रो से अवगत करा सके, हमारा एक प्रयास धर्म,संस्कृति की रक्षा में सहायक हो सकता है।
एक बार जैन समाज के इन कार्यकर्ता से बात कर इनका हौसला जरुर बढाए...
श्री अनंतराज वासवंदी(जैन)- 9486810858
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#आचार्यविद्यासागर जी के 5 शिष्य मुनि वीरसागर जी, मुनि प्रणम्यसागर जी, मुनि चंद्रसागर जी, मुनि धवलसागर जी, मुनि विशालसागर जी @ #दिल्ली मॉडल टाउन में विराजित हैं!!! today exclusive photograph.. 🙂
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News in Hindi
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#रत्नकरण्ड_श्रावकाचार के छठे श्लोक में आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने हमें वीतराग के लक्षण बतलाये हैं।
#आचार्य_भगवन्_कहते_हैं कि जिस देव के भूख, प्यास, बुढापा, रोग, जन्म, मरण, भय, घमण्ड, राग- द्वेष - मोह और आश्चर्य, अरति, खेद, निद्रा, चिन्ता, शोक, स्वेद(पसीना) ये अठारह दोष नहीं होते हैं वही वीतराग देव कहे जाते हैं।
कहा भी है
जनम- जरा- तिरखा क्षुधा - विस्मय- आरत- खेद,
रोग- शोक- मद- मोह- भय- निद्रा- चिन्ता - स्वेद।
राग- द्वेष अरु मरण जुत, ये अष्टादश दोष,
नहीं होत अरहन्त के, सो छवि लायक मोष।।
केवली भगवान को हम संसारी जीवों के समान कवलाहार कभी नहीं होता है।उनको कवलाहार मानना घोर मिथ्यात्व है।यदि हम अरहन्त के कवलाहार मानेंगे तो " क्षुधा" दोष का सद्भाव मानना पड़ेगा।जहाँ भूख है वहाँ अठारह दोषों का सद्भाव है क्योंकि सारे संसार की उथल पुथल एक पेट की भूख मिटाने के लिए ही है।जहाँ अठारह दोष हैं वहाँ वीतरागता नहीं आ सकती और जो वीतरागी नहीं है वह कभी भी सच्चा देव नहीं हो सकता - हमारे द्वारा वन्दनीय- पूजनीय नहीं हो सकता।
केवली अरहन्त भगवान के" नोकर्म" आहार है।उनके शुद्ध परिणामों के निमित्त से निरन्तर शुद्ध पुद्गल वर्णनाएँ आती रहती हैं जो नोकर्म रूप शरीर की स्थिति बनाने में सहायक बनती हैं।
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