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#प्रश्न: बिना छने पानी की एक बूँद में कितने जीव होते हैं?
#उत्तर: बिना छने पानी की एक बूँद में 36450 जीव रहते हैं।
#प्रश्न: छने पानी की मर्यादा कितनी होती है?
#उत्तर: छने पानी की मर्यादा ४८ मिनट की होती है।
#प्रश्न: देवता कितने प्रकार के होते हैं?
#उत्तर: देवता नौ प्रकार के होते हैं:
(1) अरिहंत (2) सिद्ध
(3) आचार्य (4) उपाध्याय (5)साधु (6) जिन धर्म (7)जिन आगम (8)जिन चैत्य (9) जिन चैत्यालय।
#प्रश्न: जिन धर्म किसे कहते हैं?
#उत्तर: अरिहंत भगवान् के द्वारा कहे गए धर्म को जिन धर्म कहते हैं।
#प्रश्न: जिन आगम किसे कहते हैं?
#उत्तर: जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए और आचार्य श्री द्वारा लिखे गये शास्त्र को जिन आगम कहते हैं।
#प्रश्न: जिन चैत्य किसे कहते हैं?
#उत्तर: जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा को जिन चैत्य कहते हैं।
#प्रश्न: जिन चैत्यालय किसे कहते हैं?
#उत्तर: जिन मंदिर को जिन चैत्यालय कहते हैं या जहां जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा विराजमान हो उसे जिन चैत्यालय कहते हैं।
#प्रश्न: जिन दर्शन के विचार से कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिन दर्शन के विचार से एक उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: मंदिर जी जाने के लिए उद्यम करने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: मंदिर जी जाने के लिए उद्यम करने पर दो उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: मंदिर जी के लिए चल देने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: मंदिर जी के लिए चल देने पर चार उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: मंदिर जी के मध्य रास्ते में पहुँचने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: मंदिर जी के मध्य रास्ते में पहुँचने पर पंद्रह उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: जिन मंदिर का दूर से दर्शन करने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिन मंदिर का दूर से दर्शन करने पर एक माह के उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: जिन मंदिर में पहुँचने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिन मंदिर में पहुँचने पर छह मास के उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: जिन मंदिर की प्रदक्षिणा देने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिन मंदिर की प्रदक्षिणा देने पर सौ वर्ष के उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन करने पर कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन करने पर एक हजार वर्ष के उपवास का फल मिलता है।
#प्रश्न: जिनेन्द्र भगवान् की पूजन स्तुति से कितने उपवास का फल मिलता है?
#उत्तर: जिनेन्द्र भगवान् की पूजन स्तुति से अनन्त पापों का क्षय एवं अनन्त उपवासों का फल मिलता है।
#नोट 😗 *यह फल विवरण पद्म पुराण के ३२वें पर्व से लिया गया*
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#संस्मरण.....गर्मी का समय था, भोपाल में महावीर जयंती मनाने के उपरांत संघ का विहार नेमावर की ओर हो गया। शाम को 5 बजे के उपरांत विहार होता, क्योंकि लू चलती थी, जमीन भी गरम रहती थी। दूसरे दिन सुबह एक स्थान पर* *रुकना* *हुआ। प्रात: 9:45 पर आहार चर्या के पूर्व* *आचार्य महाराज शुद्धि ले रहे थे। उसी समय जो महाराज पीछे रह गये थे, वे भी आ गये थे।आचार्यश्री जी को* *नमोस्तु किया और कहा* *हम लोग* *पीछे रह* *गये थे*, *कल लू लग गयी थी। आचार्य* *महाराज हँसकर बोले कि जिन्हें लू लग जाती है, वे ऐसे नहीं हँसते, हँसकर बात नहीं कर पाते। शिष्य ने कहा - आचार्य श्री जी,* *आपकी छवि को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है तो लोग समझते हैं यह निरोगी हैं। यह सुनकर सरलता के साथ* *आचार्य महाराज बोले - तो ठीक है हम हँस देते हैं, ताकि आपका रोग दूर हो जावे। सभी लोग हँसने लगे। कभी-कभी गुरुदेव बिल्कुल सरल शिशु के* *समान हो जाया करते हैं। एवं हर क्षणों में हम सबके सम्बल बन संभालते रहते हैं। यह उनकी महानता का द्योतक है।*
*सच है आचार्य महाराज शिशु जैसे सरल हैं, पुष्प जैसे प्रसन्न, सागर जैसे गम्भीर और हिमालय जैसे* *उच्च हैं। उनकी एक दृष्टि मात्र से, उनके शब्दों की ध्वनि श्रवण से, उनकी कृपा दृष्टि से, उनके आशीष में उठे हस्त स्पर्श* *से श्रद्धालुओं के जीवन में दिव्य भाव का अवतरण हो जाता है।*
*✍🏻संकलन✍🏻*
*_विद्यासागर.गुरु_*
*_गुरुदेव नमन_*
*_रजत जैन भिलाई_*
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The Nandishvara Dvipa beautfully recreated inside a temple in Jabalpur..
परम पूज्य मुनि श्री #प्रणम्य_सागरजी ने बताया --
मोक्ष मार्ग सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र मे परस्पर निर्विरोध होने पर बनता है🙏🙏🙏रत्नत्रय मे सम्यक ज्ञान मध्य में आता है,इसी कारण से सम्यक ज्ञान कारण रूप भी है और कार्य रूप भी है
सर्व विदित है कि सम्यक दर्शन होने पर ही सम्यक ज्ञान होता है यह सम्यक ज्ञान सम्यक दर्शन का कार्य हाने से इसे कार्य सम्यक ज्ञान कहा जाता है। सम्यक ज्ञान का कार्य यही समाप्त नहीं हो जाता,,, यदि वास्तव में तत्वश्रद्दान से सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान आया है* तो यही सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र का कारण बनता है* *जब यह सम्यक ज्ञान,सम्यक चारित्र दिलवाये तो फिर यह* कारन सम्यक ज्ञान कहलाता है यही सर्वज्ञ द्वारा बताया गया मोक्ष मार्ग है* जो ज्ञान सम्यक ज्ञान? पर ही अंत हो जाये वह पडितो का मार्ग है जिन शासन का मार्ग नही है*। आचार्य अमृतचन्द्रजी ने कहा है '' *ज्ञान चरित्र नयपरस्परतीर्वमैत्री* ' सम्यक ज्ञान और क्रिया [चारित्र ]में तीर्व मेत्री है इससे स्पष्ट है कि जो ज्ञान चारित्र कि ओर नहीं ले जाये वह ज्ञान मिथ्या ज्ञान ही होता है परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्यसागर जी ने बताया ज्ञान किसे कहा जाये और उसका उपयोग क्या है और कैसे अपने सम्यक्त्व को बड़ा सकते है और आत्मस्वभाव को प्राप्त करा सकता है *आचार्य कुंदकुंद ग्रंथराज अष्ट पाहुड मे बताते है सम्यक्त्व के दो ही कारन है प्रथम तो अरिहंत में शुभ भक्ति करना सम्यक्त्व है और दितीय विषयो से विरक्त होना,शील को बनाये रखना* इसीसे विशुध्दि बढ़ेगी
पहले व्यव्हार सम्यक्दर्शन प्राप्त होने पर ही निश्चय कि प्राप्ति हो सकती है बगैर हाई स्कूल पास करे स्नातक कि किताब पड़ने से स्नातक नहीं बन सकते प्रक्रिया और क्रुम से ही मोक्ष मार्ग में आगे बड़ा जाता है बड़े बड़े आचiर्य भी प्रभु भक्ति में मग्न है इसलिए भक्त बने रहिये।,, भगवान बनना नहीं पड़ता...बन जाते है *
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*आइए जाने क्यों आवश्यक है आचार्य श्री विद्यासागर जी के कीर्ति स्तम्भो का निर्माण
आचार्य श्री विद्यासागर जी भारतवर्ष में एक मात्र तो नही अपितु अनेको साधुओं में एक ऐसे आचार्य है जिन्होंने अपनी कठिन एवम आगम अनुरूप चर्या से साधु जीवन का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है । आचार्य भगवन ने साधु जीवन के 50 स्वर्णिम वर्ष में उनके जीवन को इतना तपाया कि वे स्वर्ण से बहुत ऊपर उठकर अद्भुत, अद्वितीय पारसमणि बन गए, ऐसे दिव्य पारसमणि जिनके नाम के स्मरण मात्र से ही हम जैसे प्राणी स्वर्ण बन जाते हैं आचार्य भगवन की चर्या, उनका आभामण्डल, उनका तेज, उनका दिव्य रूप, उनकी मनमोहक छवि किसी अरिहंत की छवि से कम नही आचार्य शांतिसागर जी के उपरांत अगर जैन धर्म की विजय पताका किन्ही साधु ने आसमान की ऊंचाइयों तक लहराई है वे आचार्य भगवन ही है । आचार्य भगवन के काल मे जन्म लेकर एवम उनके दर्शन करके हम तो धन्य हो ही गए है परन्तु आने वाली सन्तति के नेत्रों एवम ह्रदय को पवित्र करने हेतु, उनके चरित्र एवम चर्या को उत्कृष्ट करने हेतु ऐसे आदर्श पुनः इस धरा पर हो न हो अतः आचार्य भगवन के स्वर्ण दीक्षा महोत्सव के उपलक्ष्य में उनके कीर्ति स्तम्भ बनाकर हम इस भारत की धरा को दीर्घकाल के लिए को भाग्यशाली बनाने का उपक्रम कर रहे है और यह भी हमारा ही स्वार्थ है जिससे हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ऐसी दिव्य मूर्ति, अलौकिक शक्ति के धारक को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर सके आज आचार्य भगवान जैन समाज की नींव तो है ही जिसपर समस्त समाज टिका हुआ है परन्तु वे जैन समाज रूपी घर की छत भी है जिनकी छत्रछाया में सम्पूर्ण जैन समाज एवम जैन धर्म फल फूल रहा है एवम निरन्तर प्रगति कर रहा है ।
आचार्य श्री केकीर्ति स्तम्भ जैन समाज के गौरव को दीर्घकाल तक जीवित रखेंगे एवम आगामी समय मे सिर्फ श्रावक ही नही अन्य साधुओं के लिए भी प्रेरणा बनेंगे।
अतः सभी अपनी भक्ति एवम क्षमता के अनुरूप कीर्ति स्तम्भ के निर्माण में अपना तन, मन एवम धन से योगदान दे अन्यथा अनुमोदना अवश्य करें।
*निवेदक:-अंचल जैन मिरेकल*
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News in Hindi
मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं मुनिश्री विराटसागर जी महाराज ससंघ -मंगल प्रवेश -डूंगरपुर(राज.) 3 मई 2018 #ShankaSamadhan
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मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं मुनिश्री विराटसागर जी महाराज ससंघ -मंगल प्रवेश -डूंगरपुर(राज.) 3 मई 2018 #ShankaSamadhan
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मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं मुनिश्री विराटसागर जी महाराज ससंघ -मंगल प्रवेश -डूंगरपुर(राज.) 3 मई 2018 #ShankaSamadhan
यह मनुष्य जीवन बहुत ही दुर्लभता से हम सभी को मिला हु है।इसमें भी जैन कुल दुर्लभ है। और उसमे भी आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चरणों की छत्रछ्या मिलना महा दुर्लभ है।
हमने अनंतो जन्मों में कोई पुण्य किये होंगे।अनंतो जन्म का पुण्य एक साथ उदय में आया है जो हमे ऐसे महान गुरु का सानिध्य मिला। अब हमे एक भी समय को व्यर्थ नही गवाना चाहिये। अपना यह जीवन पूज्य गुरुदेव के चरणों मे समर्पित कर दे।एक वही है जो हमारे अनंतो भवो की इस भटकन को दूर करके हमें मोक्षप्राप्त कराएंगे। यही करे कि इस जीवन में उनसे मुनि दीक्षा/आर्यिका दीक्षा प्राप्त करे।यदि नही हो सके तो प्रतिमा लेकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनायें।और गुरुदेव के इस 50 वे संयम स्वर्ण महोसत्व पर उनसे कुछ संयम अवश्य ग्रहण करें।
जीवन मे एक बात हमेशा याद रखना- *प्राण भले छोड़ देना लेकिन आचार्य श्री जी के चरणों को मत छोड़ना।
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