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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
14 मई 2018, का वीडियो
प्रस्तुति~अमृतवाणी
सम्प्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम..
👉 *आज का प्रवास स्थल* - Traing Collage श्री कृष्णा सिनेमा की सामने, वी. राजमुंदरी (आंध्रप्रदेश)
👉 *आज का विहार* - लगभग 13.1 कि.मी.
दिनांक: 014/05/2018
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प्रस्तुति: 🙏🏻 *संघ संवाद* 🙏🏻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 324* 📝
*अध्यात्मोन्मुखी आचार्य अमृतचंद्र*
अध्यात्म के विशिष्ट व्याख्याकार आचार्य अमृतचंद्र दिगंबर विद्वान् थे। उनको जैनागमों का गहरा ज्ञान था। आचार्य कुन्दकुन्द की दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टियों का पल्लवन तथा सम्यक् व्याख्यान आचार्य अमृतचंद्र ने किया है।
*जीवन-वृत्त*
आचार्य अमृतचंद्र की गुरु-शिष्य परंपरा तथा गृहस्थ जीवन की सामग्री उपलब्ध नहीं है। पंडित आशाधरजी ने आचार्य अमृतचंद्र के लिए 'ठक्कुर' शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द का प्रयोग ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के लिए होता है। आचार्य अमृतचंद्र ब्राह्मण या क्षत्रिय कुछ भी रहे हों पर 'ठक्कुर' शब्द उनके उच्च कुल का संकेत है।
*साहित्य*
आचार्य अमृतचंद्र को संस्कृत प्राकृत दोनों भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने ग्रंथ रचना संस्कृत भाषा में की। उनके ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है—
*पुरुषार्थसिद्धियुपाय* यह श्रावकाचार का श्रेष्ठ ग्रंथ है। इसका नाम जिनवचन रहस्य कोश भी है। इस ग्रंथ की रचना आर्यावृत्त छंद में हुई है। ग्रंथ पांच भागों में विभाजित है। ग्रंथ की पद्य संख्या 226 है। ग्रंथ गत अधिकारों के नाम हैं— *(1)* सम्यक्त्व विवेचन, *(2)* सम्यक् ज्ञान व्याख्यान, *(3)* सम्यक् चरित्र व्याख्यान, *(4)* संलेखना धर्म व्याख्यान, *(5)* सकल चरित्र व्याख्यान। इन पांचों अधिकारों के नाम से ग्रंथ का प्रतिपाद्य स्पष्ट है। आचार्य अमृतचंद्र कि यह मौलिक कृति है। इसकी रचना सरल और सुबोध शैली में है।
*तत्त्वार्थसार* यह एक तात्त्विक रचना है। आचार्य उमास्वाति के तत्त्वार्थ सूत्र का सुसम्बद्ध पद्यानुवाद है। इसके नौ अधिकार हैं। इन नौ अधिकारों में जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष इन सात तत्त्वों का वर्णन किया गया है। तत्त्वार्थसार यथार्थ में तत्त्वार्थसूत्र का ही सार रूप है। आचार्य पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि, अकलङ्काचार्य की तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका के विषय भी कृति में गृहीत हैं। सैद्धांतिक तत्त्वों का विवेचन सरल और स्पष्ट भाषा में है। इस कृति के कुल पद्य 718 हैं। आचार्य अमृतचंद्र कि यह हृदयग्राही रचना है। इस ग्रंथ को ग्रंथकार ने मोक्ष मार्ग में दीपक के समान प्रकाशक माना है।
*समयसार टीका* इस टीका का दूसरा नाम आत्मख्याति टीका है। कुन्दकुन्द के समयसार नामक अति गंभीर ग्रंथ का इस टीका में पर्याप्त विस्तार है। मूल ग्रंथ की भांति यह टीका भी काफी गंभीर और गहन है। टीका की शैली परिष्कृत और प्रौढ़ है। कुन्दकुन्द के ग्रंथों के अनेक गंभीर बिंदु भी इस टीका से स्पष्ट हुए हैं। जीव-अजीव, पुण्य-पाप आदि सैद्धांतिक तत्त्वों का विवेचन करती हुई यह गद्यात्मक मार्मिक टीका ज्ञानवर्धक एवं सरल है। प्रस्तुत टीका नाटक के समान अंकों में विभाजित है। इसे टीका की रचना पद्धति का नया प्रयोग कहा जा सकता है। समयपाहुड ग्रंथ का समयसार नामकरण भी आचार्य अमृतचंद्र ने किया है।
*समयसार कलश* समयसार टीका के श्लोक संग्रह से समयसार कलश नामक कृति का निर्माण हुआ है। यह ग्रंथ गंभीर होते हुए भी रोचक है और अध्यात्म रस से परिपूर्ण है। इसके कुल 278 पद्य हैं और 12 अधिकार हैं। इसका कविवर बनारसीदास जी ने हिंदी पद्यानुवाद किया है।
*प्रवचनसार टीका* यह टीका भी गहन और विस्तृत है तथा तत्त्वदीपिका के नाम से प्रसिद्ध है। इस टीका में आचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार का प्रतिपाद्य अत्यंत स्पष्टता के साथ प्रस्तुत है। समयसार टीका के समान ही इस टीका की शैली प्राञ्जल और परिष्कृत है।
*अध्यात्मोन्मुखी आचार्य अमृतचंद्र द्वारा रचित पञ्चास्तिकाय टीका एवं उनके आचार्य-काल के समय-संकेत* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 148* 📝
*दुलीचंदजी दुगड़*
*सुरक्षा की व्यवस्था*
संवत् 1920 में जयाचार्य ने चूरू में मुनिपतिजी को दीक्षा प्रदान की। उनके पिता जयपुर निवासी थानजी चोपड़ा के यहां गोद आए हुए थे, परंतु अनबन हो जाने के कारण पृथक् हो गए। बाद में उनका शीघ्र ही देहांत हो गया। थानजी ने उस विपत्ति की स्थिति में भी अपने पोते तथा पुत्र वधु को कभी नहीं संभाला। पिता की मृत्यु के लगभग बारह वर्ष पश्चात् मुनिपतिजी ने माता की आज्ञा लेकर जयाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। उसी प्रसंग को लेकर विरोधी लोगों ने एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रच डाला। उसमें फलौदी के ढड्डा परिवार तथा जयपुर और जोधपुर में उनके संबंधी परिवारों का मुख्य हाथ था। ढड्डा परिवार तेरापंथ से द्वेष रखता था। द्वेष का कारण यह था कि उनके परिवार की वधू सरदार सती ने उनकी इच्छा के विपरीत तेरापंथ में दीक्षा ग्रहण की थी। वे लोग दीक्षा की आज्ञा देने को तैयार नहीं थे, परंतु सरदार सती ने आज्ञा न लिखने तक आहार परित्याग कर दिया तब उन्हें बाध्य होकर आज्ञा देनी पड़ी। सरदार सती को दीक्षित करने वाले जयाचार्य ही थे। उस समय वे कुछ नहीं कर पाए, अतः उस रोष को निकालने के लिए उन्होंने उक्त दीक्षा को एक अवसर समझा।
मुनिपतिजी के पितामह थानजी एक साधारण व्यक्ति थे। परंतु ढड्डा परिवार संपन्न और पहुंच वाला था। उन लोगों ने जयाचार्य के विहरण स्थलों और समय का पूर्वानुमान लगाकर थानजी के द्वारा जोधपुर नरेश के सम्मुख एक आवेदन पत्र प्रस्तुत करवाया। उसमें उन्होंने एक 'मोडे' द्वारा अपने पौत्र को बहकाकर मूंड लिए जाने की शिकायत तथा उसे गिरफ्तार कर पौत्र को वापस दिलाने की प्रार्थना की गई थी। उन लोगों ने 'मोडे' के नाम पर नरेश को भ्रांति में रखा और उनसे जयाचार्य को गिरफ्तार करने के लिए दस घुड़सवार लाडनूं भेजने का आदेश प्राप्त कर लिया। इतना ही नहीं तत्काल सारी तैयारी के साथ वहां से उनका गुपचुप लाडनूं की ओर प्रयाण भी करवा दिया।
जयाचार्य उन दिनों लाडनूं में विराजमान थे। उन्हें उपर्युक्त षड्यंत्र का कोई पता नहीं था। जोधपुर के श्रावक बहादुरमलजी भंडारी को पहले-पहल उसका पता चला। उन्होंने तत्काल तीव्रगामी ऊंट पर अपना आदमी भेजकर कर वे समाचार लाडनूं के श्रावकों के पास पहुंचाएं और स्वयं नरेश से मिलकर पूर्व आदेश को निरस्त कराने के प्रयत्न में लग गए।
लाडनूं में उक्त समाचारों से हलचल मच गई। श्रावक वर्ग इकट्ठा हुआ। सबके सम्मुख पहली समस्या यह थी कि जो घुड़सवार वहां से प्रस्थान कर चुके हैं उन्हें यहां पहुंचने से कैसे रोका जाए? अनेक सुझाव तथा योजनाएं सामने आईं। किसी का कथन था यहां से कुछ व्यक्ति जोधपुर जाकर नरेश से मिलें तो किसी का कथन था कि समाचारों के अनुसार वहां तो भंडारीजी प्रयास कर ही रहे हैं, हमें नरेश का दूसरा आदेश पहुंचने से पूर्व यदि घुड़सवार यहां पहुंच जाएं तो उस स्थिति का सामना करने के लिए सोचना चाहिए। इस पर किसी का सुझाव था कि लाडनूं के ठाकुर से सहायता ले जाए तो किसी का सुझाव था कि ठाकुर साहब जोधपुर नरेश के आदेश के विरुद्ध हमारी सहायता नहीं कर सकेंगे, अतः हमें अपने ही बलबूते पर सोचना चाहिए।
*लाडनूं के श्रावकों ने इस लंबे विचार-विमर्श से क्या निर्णय लिया और उसकी क्रियान्वित कैसे की...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*आभा मंडल: वीडियो श्रंखला ३*
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