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बाजार के पशु-दूध तथा दुग्धजन्य पदार्थों का सच! स्वास्थ्य और सेहत नहीं आपके पैसे के माध्यम से आपका और यह उत्पाद बनाने हेतु मूक पशुओं का शोषण!!!
वक्त की जरूरत पशुजन्य दूध तथा सभी प्रकारके दुधजन्य पदार्थों का सर्वथा त्याग करें यही है। पर किसी कारणवश वह नहीं हो सके तो कम से कम थैली के और बाजर के पशु-दूध तथा दुग्धजन्य पदार्थों का सर्वथा त्याग करना ही समझजादी है। दया धर्म का मूल है, अपने अंदर दया का पोषण करें अपने नश्वर शरीर या जिव्हा के चोचलों के लिये किसी भी प्रकार के जीवों का शोषण नहीं।
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🇮🇳जीवंत #अतिशय🇮🇳
📖पुराण ग्रन्थों में भगवान नेमिनाथ के वैराग्य कथानक का वर्णन मिलता है युवराज नेमिकुमार की बारात सजी थी,कुछ ही समय पश्चात जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल (राजमति जी) से परिणय होने वाला था सहसा भगवान को पशुओं का क्रन्दन सुनाई पड़ा जानकारी ली तो पता चला आपके विवाह में सम्मिलित राजाओं के भोजन हेतु इन पशुओं को लाया गया है,ज्यों ही नेमिकुमार ने यह शब्द सुने झट से वैरागित हो गए व गले में पहने हार,कांकण-डोरा आदि सब आभूषण उतार दिए व रथ को गिरनार पहाड़ की ओर मोड़ दिया वहाँ जाकर वस्त्राभूषण उतारकर वीतरागी दिगम्बर हो गए🖼
*🔶इस कथा ने कोटि लोगों को प्रेरणा दी,व इसे सुनने मात्र से लोग संसार के आल-जाल से मुक्त होकर निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर लेते थे पर यह बात चौथेकाल की है अगर पंचमकाल में इस कथा को सुनकर किसी को वैराग्य आ जाए तो इसे अतिशय ही कहेंगे अपितु महाअतिशय।🔶*
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_हाँ ऐसा ही वाकया हुआ.. 2 साल पहले!! हम सभी जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी से तो परिचित ही है उनकी चर्या,त्याग,तपस्या के प्रभावस्वरूप आज पंचमकाल में ऐसी-ऐसी बातें देखी जाती है जिनके बारे में सोचना भी असंभव है_
*🚩🚩बुंदेलखंड का दमोह जिला जिसे पूज्य बड़े बाबाजी का आशीष हजारों सालों से प्राप्त है उसी श्रीक्षेत्र कुंडलपुर के अध्यक्ष सर्व श्री संतोष जी सिंघई-जिनका जीवन वास्तव में प्रेरणादायक है दमोह जिले के सबसे रईस खानदानी होते हुए भी पूज्य बड़े बाबा जी व छोटे बाबा जी के प्रति अहर्निश समर्पित।श्री सिंघई जी ने परिवार को बचपन से ही ऐसे संस्कार दिए कि बच्चे देव-शास्त्र-गुरु के भक्त रहे व कभी बच्चों ने कोई ऐसा कार्य किया जो धर्मविरुद्ध हो।🚩🚩*
श्री सिंघई जी के सबसे छोटे सुपुत्र श्री श्रवण कुमार सिंघई(लकी सिंघई)आयु 30 वर्ष शिक्षा M.Com/C.A.(final)
दमोह में श्री विद्या ट्रेडर्स के नाम से सबसे बड़ी हार्डवेयर की दुकान
श्रवणकुमार की विवाह की तैयारियाँ चल रही थी लड़की देख ली गई, सबकी तरफ से हाँ हो गई, जिनसे विवाह होना था उनका भी 60 लाख का पैकेज बस श्रवण के हाँ करने की देर थी। 25 तारीख को सुबह के समय अचानक लकी भैय्या बोले पापा आचार्य श्री के दर्शन करने चलना है टडा में।पिताजी आश्चर्यचकित..!! पर आचार्यश्री के दर्शनों का नाम सुनते ही तैयार हो गए।टडा पहुँचते ही आचार्यश्री के दर्शन किए व श्रवणकुमार ने जिज्ञासा प्रगट की-हे आचार्य देव! मुझे ब्रह्मचर्य व्रत देकर कृतार्थ कीजिए ताकि अपनी पर्याय को सार्थक कर सकूँ।आचार्य श्री नीचे देखकर मुस्कुरा दिए पिताजी पत्थर की तरह अटल हो गए झटका सा लगा,कि जिसकी विवाह की तैयारियाँ चल रही थी वह श्रवण अब श्रमण बनेंगे पर कर भी क्या सकते थे,पुत्र के दृढ़-निश्चय के आगे पिता की एक न चली व इसी दृढ़ता को देखते हुए आचार्यश्री ने भी एक ही बार में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत दे दिया व श्रवणकुमार का मोक्षमार्ग प्रशस्त कर दिया।
*_💦धन्य है ऐसे गुरुवर जिन्हें भक्तों ने साक्षात अतिशय की उपमा दी है..!! व धन्य है ऐसे भक्त जो गुरुवर का दर्शन पाकर वैरागित हो जाते है..!!💦_*
*_♀♂जैनम् जयतु शासनम्_♂♀*
*_♀♂वन्दे विद्यासागरम्_♂♀*
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✿ दादा गुरु ज्ञानसागर जी विराजो म्हारे ह्रदय कमल, तुम्हारी वाणी पर करे हम अमल!
जिनके कारण से आज विद्यासागर - विद्यासागर है, ऐसे महान गुरु के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस है! आचार्य श्री विद्यासागर ने अपने गुरु की अपूर्व सेवा की, ऐसी सेवा की ऐसा उत्तम उदहारण प्रस्तुत किया जो की वर्तमान में देखने को नहीं मिलता और ये आदर्श की कोटि में आता है । पूर्ण निमर्मत्व भावपूर्वक आचार्य ज्ञानसागर जी मरुभूमि में वि. सं. 2030 वर्ष की ज्येष्ठ मास की अमावस्या को प्रचंड ग्रीष्म की तपन के बीच 4 दिनों के निर्जल उपवास पूर्वक नसीराबाद (राज.) में ही शुक्रवार, 1973 ईस्वी को 10 बजकर 10 मिनट पर इस नश्वर देह को त्याग कर समाधिमरण को प्राप्त हुए। हिंदी केलिन्डर के अनुसार में दिन आज है! आचार्यश्री विद्यासागरजी के संयमित जीवन के आचार्यश्री शांतिसागरजी और आचार्यश्री ज्ञानसागरजी, दो स्वर्णिम तट हैं। एक ने उनके जीवन में धर्म का बीज बोया तो दूसरे ने उसे पुष्पित/पल्लवित कर वृक्ष का आकार प्रदान किया।
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प्रथम बार किसी दिगंबर जैन संत पर जारी किया गया पोस्टल टिकेट - #आचार्यज्ञानसागर जी मुनिराज... #आचार्यविद्यासागर जी मुनिराज के गुरु:) #ऽharePls
आज आचार्य ज्ञानसागर जी का #समाधि दिवस हैं!
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News in Hindi
इस युग का सौभाग्य रहा, गुरुवर इस युग में जन्मे। हम सबका सौभाग्य रहा, गुरुवर के युग में हम जन्मे।।” आज आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस है #AcharyaGyansagar • #AcharyaVidyasagar
आज से 46 वर्ष पहले स्वयं की वृद्धावस्था के कारण संघसंचालन में असमर्थ जानकर जयोदयादि महाकाव्यों के प्रणेता, संस्कृत भाषा के अप्रतिम विज्ञपुरुष आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपने प्रिय षिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी को आचार्य पद देने का सुविचार किया। तब मुनि श्री विद्यासागर जी ने आचार्य पद ग्रहण करने से इंकार कर दिया। अनन्तर आ. श्री ज्ञानसागर जी ने उन्हंे संबोधित करते हुये कहा कि साधक को अंत समय में सभी पद तथा उपाधियों का परित्याग आवष्यक माना गया है। इस समय शरीर की ऐसी अवस्था नहीं है कि मैं अन्यत्र जाकर सल्लेखना धारण कर सकूँ। अतः तुम्हें आज गुरू-दक्षिणा अर्पण करनी होगी और उसी के प्रतिफल स्वरूप यह पद धारण करना होगा। गुरू-दक्षिणा की बात से मुनि विद्यासागर निरुत्तर हो गये।
तब धन्य हुई नसीराबाद (अजमेर) राजस्थान की वह घड़ी जब मगसिर कृष्ण द्वितीय, संवत् 2029, बुधवार, 22 नवम्बर, 1972 ईस्वी को आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपने ही कर-कमलों से आचार्य-पद पर मुनि श्री विद्यासागर महाराज को संस्कारित कर विराजमान किया। इतना ही नहीं मान-मर्दन के उन क्षणों को देखकर सहस्रों नेत्रों से आँसुओं की धार बह चली, जब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने मुनि श्री विद्यासागर महाराज को आचार्य-पद पर विराजमान किया एवं स्वयं आचार्य-पद से नीचे उतरकर सामान्य मुनि के समान नीचे बैठकर, नूतन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के चरणों में नमन कर बोले - ‘‘हे आचार्य वर! नमोस्तु, यह शरीर रत्नत्रय साधना में षिथिल होता जा रहा है, इन्द्रियाँ अपना सम्यक् कार्य नहीं कर पा रही हैं। अतः मैं आपके श्री चरणों में विधिवत् सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण धारण करना चाहता हूँ, कृपया मुझे अनुगृहीत करें।‘‘
आचार्य श्री विद्यासागर ने अपने गुरुवर की अपूर्व सेवा की। पूर्ण निर्ममत्व भावपूर्वक आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज मरुभूमि में वि. सं. 2030 वर्ष की ज्येष्ठ मास की अमावस्या को प्रचण्ड ग्रीष्मतपन में 4 दिनों के निर्जल उपवास पूर्वक नसीराबाद (राज.) में ही शुक्रवार, 1 जून 1973 ईस्वी को 10 बजकर 10 मिनट पर इस नष्वर देह का त्याग कर समाधिमरण को प्राप्त हुए। भगवान महावीर स्वामी की 2600 वर्ष की परम्परा में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण दृष्टिगोचर होता है जहां किसी गुरु द्वारा अपने ही षिष्य को अपने पद पर आसीन कर सामान्य मुनिवत् उसकी वन्दना कर के निर्यापकाचार्य का पद ग्रहण करने हेतु प्रार्थना की गई हो। धन्य हैं वे महा मुनिराज आ. ज्ञानसागर जी तथा धन्य हैं वे गुरुवर आ. विद्यासागर जी।
यह उत्तम मार्दव धर्म का उत्कृष्ट उदाहरण तो है ही साथ ही उनके लिये भी विचार करने के लिये आदर्ष उदाहरण है, जहां आचार्य बनने तथा बनाने की अंधी होड़ सी लगी है, योग्यता की परीक्षा किये बिना ही जहां आचार्य पद जैसे गम्भीर तथा पवित्र पद को पाने तथा लोकेषणा हेतु खुद के विराजमान रहते अन्य कई षिष्य आचार्यांे को तैयार करने का उतावलापन हावी हो रहा हो, ऐसे वातावरण में सीखना चाहिये आ. ज्ञानसागर जी तथा आ. विद्यासागर जी से कि तो गुरु अपने पद को निर्ममतत्व पूर्वक छोड़ने को तत्पर हो रहे हैं किन्तु षिष्य उस पद को ग्रहण करने को तैयार नहीं हो रहा है। ऐसे विरले महापुरुष कई शताब्दियांे में एकाध बार ही जन्म लेते हैं। अतः हमें गौरव होना चाहिये कि हमने पंचमकाल में जन्म होने के बावजूद भी ऐसे आचार्य भगवन्तों का सान्निध्य मिला।
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#समाधि • #मृत्यु_महोत्सव पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की परम शिष्या व पूज्या आर्यिका विज्ञानमति माताजी की संघस्था ज्येष्ठ आर्यिका माँ वृषभमति माताजी का अभी-अभी समाधि मरण तिलकगंज,सागर में हो गया है आज ही दादा गुरुदेव पूज्य आचार्य ज्ञानसागर जी मुनि महाराज का समाधि दिवस भी है
ॐ शांति लिखे कॉमेंट में..
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