Update
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🌈 *16/05/2018 मुनि वृन्द एवं साध्वी वृन्द के दक्षिण भारत में सम्भावित विहार/ प्रवास सबंधित सूचना* 🌈
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री धर्मरूचि जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*साहूकारपेट,चेन्नई*
☎ *8910991981*
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री मुनिसुव्रत कुमार जी ठाणा 2* *का प्रवास*
Smt.Kamalabai Bhoormal Giriya Therapanth Bhavan
KV KUPPAM
(बेंगलुरु - चेन्नई हाईवे)
☎ 9602007283,
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*राजाजीनगर,बेंगलुरु*
☎ *9448385582,*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3 का प्रवास*
*श्रेयांस कुमार जी विनय कुमार जी सेठिया के निवास स्थान पर*
*No.78 A,Sannidhi Street,*
*तुरुवनन्नामलाई*
☎ *8107033307,9443222652,*
*9944770003*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य डॉ. मुनि श्री अमृत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*CHENRAJ JI DUGAR*
No 205,Annasalai
*Nemili*
☎ 9566296874,9600041001
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*जैन स्थानक,पनीरसेल्वम*
*हॉस्पिटल के पास,*
*मेट्टूपालयम*
☎ *9629588016,7200690967*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी एवं मुनि श्री दीप कुमार जी का प्रवास*
*जैन स्थानक*
*आरकोणम*
☎ *8072609493*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितीय' ठाणा ५ का प्रवास*
*अशोक कुमार जी मुथा के निवास स्थान पर*
23 jayaram street
saidapet, ch-15
(Landmark: Near kalignar Arch)
☎ 7010319801,9841188345
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या "शासन श्री" साध्वी श्री यशोमती जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ भवन*
*तंडियारपेठ, चैनैइ*
☎ *7044937375,9841098916*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासन श्री साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा 5* का प्रवास
*अर्हम् भवन*
*विजयनगर, बेंगलुरु*
☎9448278156
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री विमलप्रज्ञा जी ठाणा 6 का प्रवास*
*तेरापंथ भवन-ट्रिप्लिकेन*
☎ *9051582096*
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4 का प्रवास*
*अभिषेक जी सुराना*
29/A Ranganathan Avenue Road Opp Millers Road Kilpauk-Chennai-1
☎ *8428020772,9884700393*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञा श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*शांतिलाल जी दुगड़ के निवास स्थान पर*
बजाज स्ट्रीट
*शोलिंगर*
☎ 8875762662
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या सुर्दशना श्री जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*सिंधनूर*
☎ *8830043723*
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*संघ संवाद + संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
*महावीर भवन*
*श्रीरंगपटना*
*(मंड्या- मैसूर रोड)*
☎9348027915,9886288780
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*संध संवाद*+ *संध संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मधुस्मिता जी ठाणा 6 का प्रवास*
*आलोक जी सुराणा*
226, 9th 10 क्रॉस जेपीनगर सेकंड फेस Bangalore (कर्नाटक)
(दिवाकर हॉस्टल के पीछे)
☎ 7798028703,9880044577
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News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".
👉 अहमदाबाद - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 नोएडा - तेरापंथ निर्देशिका का विमोचन
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👉 छापर-संगीत प्रतियोगिता का आयोजन
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Update
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 325* 📝
*अध्यात्मोन्मुखी आचार्य अमृतचंद्र*
*पञ्चास्तिकाय टीका* इस टीका की रचना आचार्य कुन्दकुन्द के पञ्चास्तिकाय ग्रंथ की 173 गाथाओं पर हुई है। इस टीका का नाम तत्त्वदीपिका है। यह टीका चार भागों में विभक्त है— *(1)* पीठिका, *(2)* प्रथम श्रुतस्कंध *(3)* द्वितीय श्रुतस्कंध *(4)* चूलिका। इस टीका में काल के अतिरिक्त धर्मास्ति, अधर्मास्ति आदि पांचों अस्तिकायों का विस्तृत विवेचन है।
समयसार टीका, प्रवचनसार टीका, पञ्चास्तिकाय टीका ये तीनों टीकाएं सारपूर्ण, सरस, गंभीर और मर्मस्पर्शिनी हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय इन तीनों ग्रंथों के गूढ़ अर्थों का प्रकाशन और सम्यक् प्रतिपादन, अंतः रहस्यों का उद्घाटन, अस्पष्ट बिंदुओं का स्पष्टीकरण इन टीकाओं में किया गया है। टिकाओं की रचना प्रौढ़ और हृदय को छूने वाली है। निश्चय और व्यवहार का व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध विवेचन टिकाओं में है। इन टीकाओं के अध्ययन से पाठक को अध्यात्म रस का अनूठा आस्वाद प्राप्त होता है। समयसार टीका पर रचे गए कलश अध्यात्मरस से ओतप्रोत हैं।
अपनी साहित्यिक रचनाओं का परिचय उन्होंने विलक्षण ढंग से दिया है। वे लिखते हैं—
*वर्णैः कृतानि चित्रैः पदानि तु पदैः कृतानि वाक्यानि।*
*वाक्यैः कृतं पवित्रं शास्त्रमिदं न पुनरस्माभिः।।226।।*
*(पुरुषार्थसिद्ध्युपाय)*
तरह-तरह की वर्णों से पद बन गए, पदों से वाक्य बन गए और वाक्यों से यह पवित्र शास्त्र बन गया है। मैंने इसमें कुछ नहीं किया।
विद्वान् आचार्य अमृतचंद्र का यह निगर्वी व्यवहार उनकी महत्ता का बोध कराता है।
आचार्य अमृतचंद्र के ग्रंथों में अध्यात्म का मधुर नाद है। उनके समयसार सहित टीका ग्रंथ ग्रंथकार की गहरी अध्यात्म निष्ठा और अध्यात्म रसिकता की अनुभूति कराते हैं।
*समय-संकेत*
आचार्य अमृतचंद्र ने अपनी कृति में कहीं समय का संकेत नहीं किया है। शुभचंद्राचार्य के ज्ञानार्णव में अमृतचंद्र के पद्य पाए जाते हैं। पंडित आशाधरजी ने अनगार धर्मामृत टीका में 'ठक्कुर' पद जैसे सम्मानसूचक विशेषण के साथ आचार्य अमृतचंद्र का उल्लेख किया है। अतः शुभचंद्राचार्य से एवं विक्रम की 13वीं सदी में होने वाले विद्वान् पंडित आशाधरजी से आचार्य अमृतचंद्र पूर्ववर्ती हैं। जयसेन के धर्म रत्नाकर में भी पुरुषार्थसिद्ध्युपाय के 59 पद्य हैं। जयसेन भावसेन के शिष्य थे। राजा मुञ्ज के समकालीन महासेन जयसेन के प्रशिष्य थे। जयसेन ने धर्म रत्नाकर ग्रंथ वीर निर्वाण 1525 (विक्रम संवत् 1055) में संपन्न किया था। अतः आचार्य अमृतचंद्र के समय की उत्तर सीमा इससे आगे नहीं बढ़ सकती। इन उपर्युक्त उल्लेखों के आधार पर परमानंद शास्त्री आदि दिगंबर विद्वानों ने आचार्य अमृतचंद्र का समय विक्रम की 10वीं शताब्दी का तृतीय चरण सिद्ध किया है। यह समय वीर निर्वाण की सार्ध सहस्र शताब्दी का उत्तरार्द्ध काल है। आचार्य अमृतचंद्र के ग्रंथों में प्राञ्जल संस्कृत भाषा के प्रयोगों को देखने से उनका यह समय ठीक प्रतीत होता है।
*सिद्ध-व्याख्याता आचार्य सिद्धर्षि के प्रेरणादायी प्रभाविक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 149* 📝
*दुलीचंदजी दुगड़*
*सुरक्षा की व्यवस्था*
गतांक से आगे...
लंबे विचार-विमर्श के पश्चात् निष्कर्ष स्वरूप यह निर्णय किया गया कि यह षड्यंत्र जिन विरोधियों के द्वारा किया गया है, उन्होंने घुड़सवारों को भी अवश्य ही कुछ सिखाने पढ़ाने का प्रयास किया होगा। हो सकता है कि वे योजनापूर्वक अचानक ही यहां आ धमकें और हमें सावधान होने का अवसर ही ना दें। इसलिए पहला कार्य तो यह होना चाहिए कि हम जयाचार्य से प्रार्थना करें कि वे वर्तमान स्थान को छोड़कर ऐसे स्थान पर पधार जाएं जहां हर कोई जब चाहे तब सीधा न पहुंच पाए। हमारा दूसरा कार्य यह होना चाहिए कि हम अपनी बलिदानी की तैयारी रखें। अहिंसा के पुजारी होने के नाते हम किसी को मारना पसंद नहीं करते, किंतु समय आने पर अन्याय के विरोध में मर तो सकते ही हैं। दुर्दैव से यदि घुड़सवार यहां पहुंच जाएं तो हमारे जीवित रहने तक वे जयाचार्य तक न पहुंच पाएं।
दुलीचंदजी इस कार्य में अग्रणी थे। शेष श्रावक वर्ग पूर्ण रूप से उनके साथ था। दुगड़जी ने जयाचार्य से प्रार्थना की कि इस खुले मकान में रहना इस समय सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है, अतः आप मेरी हवेली में पधार जाइए।
जयाचार्य ने पहले तो वहां जाना न आवश्यक समझा और न उपयुक्त ही, परंतु सब लोगों का यह दृष्टिकोण रहा कि हो सकता है विरोधियों के द्वारा सिखाएं पढ़ाए लोग अचानक ही यहां आकर अपमानजनक व्यवहार करने लग जाएं। उस स्थिति में हमारे पास उनको समझाने बुझाने का भी कोई समय नहीं रहेगा। आप यदि सुरक्षित स्थान में विराज जाते हैं तो हमारे लिए थोड़ी निश्चिंतता हो जाती है। हम लोगों को अपनी बात उन्हें समझाने का अवसर मिल जाता है। संभव है, हमारी पूरी बात समझ लेने के पश्चात् उनके विचार बदल जाएं और वे राजाज्ञा को क्रियांवित करने में एक-दो दिन का विलंब कर दें। इतना समय तो मिलने पर निश्चित है कि जोधपुर में भंडारीजी अपने प्रयास में सफल हो जाएंगे और वहां से कोई दूसरा आदेश लेकर उनका कोई न कोई व्यक्ति यहां पहुंच जाएगा।
यह बात जयाचार्य तो जंच गई और वे दुगड़जी के मकान में पधार गए। वहां दुगड़जी आदि श्रावकों ने अपनी पूरी व्यवस्था कर ली। समझाने-बुझाने की तो प्रथम व्यवस्था थी ही, उसके सफल न होने पर इस प्रकार डट कर खड़े हो जाने की व्यवस्था थी कि उनको समाप्त किए बिना कोई वहां से आगे न बढ़ सके। ये दो व्यवस्थाएं तो प्रकट रूप से ही कर ली गई थीं, परंतु दोनों के विफल होने पर तीसरी योजना भी दुगड़जी ने बना डाली थी। वे किसी मूल्य पर जयाचार्य पर आंच नहीं आने देना चाहते थे। आचार्य का अपमान पूरे संघ का अपमान होता है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से पूर्व वे अपना सब कुछ दांव पर लगा देने को तैयार थे। उन्होंने अपनी तीसरी योजना में कुछ चुने हुए स्थानीय 'मोहिल' राजपूतों को तैयार किया, जो न मारने में झिझकने वाले थे और न मरने में। यद्यपि उनकी इस तीसरी योजना को धार्मिक क्षेत्र में किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता, परंतु जो किया जा चुका था वह इतिहास का एक अंग तो बन ही गया। आज भले ही उसे अनावश्यक या अनुचित कह दिया जाए, परंतु उस समय तो वह सबको अत्यंत आवश्यक और अंतिम प्रतिकार प्रतीत हुआ।
*सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था कर लेने के पश्चात् आगे क्या घटित हुआ...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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⛲❄❄ *अणुव्रत* ❄❄⛲
🔹 संपादक 🔹
*श्री अशोक संचेती*
"संयम" विषय पर केंद्रित
🎈 *मई अंक* 🎈
के
आकर्षण
*संयम: साधना का स्वप्रबंधन*
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प्रबंधन का प्राणतत्त्व है संयम
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*अपेक्षा इन्द्रिय संयम की*
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संयम प्रधान हो जीवन
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*संयम सिद्धांत नहीं, जीवन शैली है*
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संयम: समस्याओं का समाधान
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*पगडण्डी या सफलता का राजमार्ग*
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🔅 *अणुव्रत सोशल मीडिया*🔅
संप्रसारक
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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