Update
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🌈 *17/05/2018 मुनि वृन्द एवं साध्वी वृन्द के दक्षिण भारत में सम्भावित विहार/ प्रवास सबंधित सूचना* 🌈
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री धर्मरूचि जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*साहूकारपेट,चेन्नई*
☎ *8910991981*
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री मुनिसुव्रत कुमार जी ठाणा 2* *का प्रवास*
*KV KUPPAM se Vihaar kar ke Abirami collage padharenge*
(बेंगलुरु - चेन्नई हाईवे)
☎ 9602007283,
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*राजाजीनगर,बेंगलुरु*
☎ *9448385582,*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3 का प्रवास*
*श्रेयांस कुमार जी विनय कुमार जी सेठिया के निवास स्थान पर*
*No.78 A,Sannidhi Street,*
*तुरुवनन्नामलाई*
☎ *8107033307,9443222652,*
*9944770003*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य डॉ. मुनि श्री अमृत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*गेंलडा फार्म हाउस*
Koot Road
Near Takkolam Railway station
(Arkkonam - Kanchipuram Road)
☎ 9566296874,
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री अर्हत कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*गजपति पुरम से 14.5 km का विहार करके आर के जैन श्रवण ईंडस्ट्रिज गोटलम (विजयनगरम से 6 किमी पहले) पधारेगे*
☎9665000605,7972426132
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*संघ संवाद + संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*जैन स्थानक,पनीरसेल्वम*
*हॉस्पिटल के पास,*
*मेट्टूपालयम*
☎ *9629588016,7200690967*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔹 *आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी एवं मुनि श्री दीप कुमार जी का प्रवास*
*जैन स्थानक*
*आरकोणम*
☎ *8072609493*
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*संघ संवाद + संध संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितीय' ठाणा ५ का प्रवास*
*अशोक कुमार जी मुथा के निवास स्थान पर*
23 jayaram street
saidapet, ch-15
(Landmark: Near kalignar Arch)
☎ 7010319801,9841188345
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या "शासन श्री" साध्वी श्री यशोमती जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ भवन*
*तंडियारपेठ, चैनैइ*
☎ *7044937375,9841098916*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या शासन श्री साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा 5* का प्रवास
*अर्हम् भवन*
*विजयनगर, बेंगलुरु*
☎9448278156
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री विमलप्रज्ञा जी ठाणा 6 का प्रवास*
*तेरापंथ भवन-ट्रिप्लिकेन*
☎ *9051582096*
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री राकेश कुमारी जी (बायतु) ठाणा 4* का प्रवास
*तेरापंथ सभा भवन*
*हिमायतनगर, हैदराबाद*
☎9959037737
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*संध संवाद + संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4 का प्रवास*
*अभिषेक जी सुराना*
29/A Ranganathan Avenue Road Opp Millers Road Kilpauk-Chennai-1
☎ *8428020772,9884700393*
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री प्रज्ञा श्री जी ठाणा 4* का प्रवास
*शांतिलाल जी दुगड़ के निवास स्थान पर*
बजाज स्ट्रीट
*शोलिंगर*
☎ 8875762662
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या सुर्दशना श्री जी ठाणा 4 का प्रवास*
*तेरापंथ सभा भवन*
*सिंधनूर*
☎ *8830043723*
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*संघ संवाद + संघ संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
*महावीर भवन*
*श्रीरंगपटना*
*(मंड्या- मैसूर रोड)*
☎9348027915,9886288780
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*संध संवाद*+ *संध संवाद*
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🔸 *आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मधुस्मिता जी ठाणा 6 का प्रवास*
*सुपारसमल जी खटेड़*
House No C-1005 माइको ले आऊट साऊथ सिटी *आरकेरे, बैगलौर*
☎ 7798028703,
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Sangh Samvad
News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".
👉 *सिरियारी - आचार्य भिक्षु समाधि स्थल संस्थान के नव निर्वाचीत अध्यक्ष तातेड़ ने दायित्व ग्रहण किया*
दिनांक - 16-05-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Update
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 326* 📝
*सिद्ध-व्याख्याता आचार्य सिद्धर्षि*
*श्रीसिद्धार्षिप्रभोः पान्तु वाचः परिपचेलिमाः।*
*अनाद्यविद्यासंस्कारा यदुपास्तेर्भिदेलिमाः।।2।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 121)*
श्रीसिद्धर्षि की अनुभवों से परिपक्व वाणी भव्य जनों का संरक्षण करे।
जिस वाणी की उपासना से अनादिकालीन अविद्या के संस्कार छिन्न-भिन्न हो जाते हैं।
प्रभाचंद्राचार्य के उक्त श्लोक में श्री सिद्धर्षि की वचन संपदा का महत्त्व है।
प्रभावक जैन आचार्यों की परंपरा में सिद्धर्षि जैन दर्शन के प्रकांड विद्वान् थे। संस्कृत भाषा पर उनका आधिपत्य था। उनकी व्याख्यान शैली सरस थी। वे कुशल रचनाकार थे। उनके द्वारा रचित 'उपमिति भव प्रपञ्च कथा' जैन वाङ्मय का उत्तम ग्रंथ है।
*गुरु-परंपरा*
प्रभावक चरित्र ग्रंथ के अनुसार जैनाचार्य सिद्धर्षि वज्रस्वामी की परंपरा के थे। वज्रस्वामी के शिष्य वज्रसेन थे। वज्रसेन के नागेंद्र, निवृत्ति, चंद्र और विद्याधर ये चार प्रसिद्ध शिष्य थे। द्वितीय शिष्य निवृत्ति से निवृत्ति गच्छ की स्थापना हुई। इसी निवृत्ति गच्छ में सूर्याचार्य हुए। सूर्याचार्य के शिष्य का नाम गर्गर्षि था। गर्गर्षि सुप्रसिद्ध जैनाचार्य सिद्धर्षि के दीक्षा गुरु थे।
प्रबंधकोश के अनुसार सिद्धर्षि के दीक्षा गुरु जैनाचार्य हरिभद्रसूरि थे। जिन्होंने 'ललित विस्तरा' नामक वृत्ति ग्रंथ की रचना की।
'उपमिति भव प्रपञ्च कथा' की प्रशस्ति में सिद्धर्षि ने हरिभद्राचार्य को धर्मबोधदायक गुरु के रूप में स्मरण किया है। उन्होंने अपनी गुरु परंपरा में 'लाट' देश में आभूषण तुल्य सूराचार्य का सर्वप्रथम उल्लेख किया है और उनको निवृत्ति कुल का बताया है। सूराचार्य के बाद ब्राह्मण कुल भूषण 'उल्ल' नाम के आचार्य हुए। जिनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। आचार्य उल्ल के बाद देल्लमहत्तराचार्य का उल्लेख है। जो ज्योतिष शास्त्र और निमित्त शास्त्र के विद्वान् थे। उनके बाद दुर्गस्वामी हुए। दुर्गस्वामी का जन्म ऋद्धि ब्राह्मण कुल में हुआ था। सिद्धर्षि ने दुर्गस्वामी के उल्लेख के बाद अपने को और अपने गुरु बंधु दुर्गस्वामी को दीक्षा देने वाले गर्गर्षि को नमस्कार किया है। आगे के पद्य में दुर्गस्वामी की भावपूर्ण स्तुति की है।
सिद्धर्षि ने 'उपमिति भव प्रपञ्च कथा' ग्रंथ बनाया उससे पहले भिन्नमाल में दुर्गस्वामी का स्वर्गवास हो गया। गच्छ नायक के रूप में संभवतः उस समय सद्दर्षि थे। अपने गुरुओं की प्रशस्ति के साथ ज्येष्ठ गुरु बंधु सद्दर्षि की भी सिद्धर्षि ने प्रशस्ति की है एवं सद्दर्षि को उपशम भाव संपन्न, परहितकारी, आगम समुद्र एवं महाभाग्यशाली जैसे संबोधन देकर उनके प्रति गुरु जैसा सम्मान प्रकट किया है। अंत में सिद्ध नामक व्यक्ति ने सरस्वती देवी की बनाई हुई कथा कही है ऐसा कहकर सिद्धर्षि ने अपना नाम लिखा है और अपने को सद्दर्षि की चरण रेणु के तुल्य माना है।
इस प्रशस्ति के उल्लेखानुसार सिद्धर्षि निवृत्ति कुलोद्भूत सूराचार्य की परंपरा में हुए। सिद्धर्षि के गुरु दुर्गस्वामी और दीक्षा गुरु गर्गर्षि थे।
प्रस्तुत सूराचार्य प्रभावक चरित्र ग्रंथ में वर्णित द्रोणाचार्य के शिष्य सूराचार्य से भिन्न थे।
*सिद्ध-व्याख्याता आचार्य सिद्धर्षि के जन्म एवं परिवार* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 150* 📝
*दुलीचंदजी दुगड़*
*सुरक्षा की व्यवस्था*
गतांक से आगे...
सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था कर लेने के पश्चात् वे लोग आगंतुक घुड़सवारों की सावधानी पूर्वक टोह लेते रहे। जोधपुर से घुड़सवारों के विदा होने का दिन उन्हें पता था अतः लाडनूं तक का मार्ग तय करने में उन्हें कितना समय लग सकता है यह अनुमान लगा पाना कोई कठिन नहीं था। परंतु उस अनुमानित समय के बीत जाने के पश्चात् भी जब घुड़सवार वहां नहीं पहुंचे तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। थोड़े समय पश्चात् वह आश्चर्य तब सुखानुभूति में परिणित हो गया जब भंडारीजी के पुत्र किसनमलजी ने लाडनूं आकर जयाचार्य के दर्शन किए और बतलाया कि नरेश का दूसरा आदेश प्राप्त कर सभी घुड़सवारों को मार्ग से ही वापस लौटा दिया गया।
बात इस प्रकार हुई कि जोधपुर में बहादुरमलजी भंडारी ने उक्त घटना का पता लगते ही उसी दिन रात्रि में नरेश से मिलकर सारी परिस्थिति को सुधारने का प्रयत्न किया। जोधपुर नरेश के वे कृपापात्र व्यक्तियों में से थे। तभी तो नरेश जब अंतःपुर में सोने के लिए जा चुके थे तब भी वे उनसे मिलने का साहस कर सके। उन्होंने अपनी पूरी बात तो उनके सम्मुख रखी ही, साथ ही पूर्व आदेश के विरुद्ध तत्काल दूसरा आदेश पत्र भी लिखवाया और तदनुसार कुछ घुड़सवार देकर अपने पुत्र किसनमलजी के साथ वह पत्र भेजा। वे लोग शीघ्रता से चले। आगे गए हुए घुड़सवार उन्हें लाडनूं से काफी पहले ही मिल गए। राजाज्ञा का पत्र दिखलाकर उन्हें वहीं से वापस लौटा दिया और स्वयं अपने दल सहित जयाचार्य के दर्शन हेतु लाडनूं गए। घुड़सवारों को आते देखकर एक बार तो स्थिति तनाव की बनी। परंतु किसनमलजी ने आगे बढ़कर जब अपना परिचय दिया तब सभी लोग हर्षोत्फुल्ल हो गए। जयाचार्य भी बहादुरमलजी के उस कार्य से अत्यंत प्रसन्न हुए।
विरोधियों के उस षड्यंत्र को विफल कर देने का मुख्य श्रेय यद्यपि बहादुरमलजी भंडारी को ही प्राप्त है। फिर भी उस संभावित विकट परिस्थिति का सामना करने के लिए लाडनूं के श्रावकों की उस तैयारी का महत्त्व उससे कोई कम नहीं हो जाता। धर्म के प्रभाव और समग्र संघ के पुण्य प्रताप से वह आशंकित संकट आ ही नहीं पाया। यदि दैव-दुर्विपाक से वैसा हो जाता तो अवश्य ही बलिदानी श्रावकों में दुलीचंदजी का नाम प्रथम पंक्ति में आता।
*श्रावक दुलीचंदजी दुगड़ अपनी मांग पूर्ति के लिए जयाचार्य के सम्मुख जिन तरीकों को अपनाया करते थे...* उनके बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 *राजमुंदरी से पुज्यवर के आज के मनमोहक दृश्य*
💠 *पुज्यवर का आराधना भवन में पदार्पण*
दिनांक - 16-05-2018
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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