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जैनम जैयतु शासनम! वन्दे विद्यासागरम!
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कितनी ही विपत्ति आए, #आत्महत्या नहीं करना चाहिए -आचार्यश्री विधासागर जी महाराज #share please
जीवन में कितनी ही विपत्ति, कितनी भी परेशानी आए, उससे डरकर आत्महत्या नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्महत्या कर लेते हैं। मरण की इच्छा करते हैं। वह संल्लेखना मरण या समाधिमरण नहीं होता।
यह बात अतिशय क्षेत्र पपौरा में शनिवार को आचार्य श्री विधासागर जी महाराज ने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि वेदना सहन करने हम तैयार हैं। निश्चित रूप से शरीर काम नहीं करता, बैठना नहीं बनता, करवट लेने की हिम्मत नहीं होती। लेटे-लेटे घाव बन जाते हैं, लेकिन हम बर्दाश्त करते रहते हैं। आत्मविश्वास ऐसा है कि उसका फल हमें मिलेगा। भूख तो, लेकिन इच्छा नहीं है।
उपवास का महत्व बताया:
आचार्य ने उपवास का महत्व बताते हुए कहा कि 24 घंटे तक कुछ नहीं खाएंगे, जो लोग वस्तु का त्याग करते हैं। नियम धर्म से भोजन करते हैं। रात्रि में भोजन नहीं करते हैं। रात्रि में पानी का भी त्याग करते हैं। उनको अपने जीवन काल में किसी वस्तु की कमी नहीं आती है। उन्होंने कहा कि अब शरीर काम नही करता तो बुद्धि पूर्वक नियम लिया जाता है, जब तक प्राण नहीं निकलेंगे रात्रि में अन्न फल नहीं लेंगे। खाने की इच्छा तो है, लेकिन क्षमता नहीं है, तो हमको खाने की इच्छा नहीं करना चाहिए।। कभी भी हम मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं।
7 प्रकार के नरक हैं
आचार्य श्री ने कहा कि 7 प्रकार के नरक हैं। नारकीय जीव को नरक में भूख सहन करनी पड़ती है। भूखे प्यासे रहते हैं। नरक में जीवों को कई प्रकार की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। नरक के जीव अपनी भूख मिटाना चाहते हैं, लेकिन भूख को मिटा नहीं पाते हैं। आपको भी भूख लगती है। आप अपने भोजन का प्रबंध करके रखते हैं। असंयम के कारण कई बार खाते हैं। नरक के जीव भूख मिटाना चाहते हैं, लेकिन वेदना के कारण भूख- प्यास मिटा नहीं पाते हैं
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सबके प्रति कैसे क्षमा भाव रखो: आचार्य विद्यासागरजी #AcharyaVisyasagar
कभी कभी मेरा ख़ुद से मिलने का मन करता हैं!
काफ़ी कुछ सुना हैं मैंने अपने बारे में! 🙂
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कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध हेरिटेज हंपी में तुंगभद्रा नदी के किनारे कठोर तप साधना करते हुए मुनि श्री चिन्मय सागर जी महाराज जंगल वाले बाबा...
मैं भगवान के बारे में बोल सकता हूं, मगर मेरे गुरू के बारे में नहीं बोल सकता.. मेरे गुरू भगवान से बङकर हैं
मेरे गुरू, गुरू हैं
मेरे गुरू, लघू नहीं
मेरे गुरू, लघू नहीं
मेरे गुरू, गुरू हैं
मेरे गुरू, मेरू नहीं
मेरू तो और भी हो सकते हैं
मेरे गुरू सुमेरू हैं
मेरे गुरू, गुरू हैं
एक ही था, एक ही है, एक ही रहेगा
मेरे गुरू सरिता नहीं,
मेरे गुरू सरोवर नहीं
मेरे गुरू सागर नहीं,
मेरे गुरू विद्यासागर हैं, चैतन्य महासागर हैं
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कल के प्रवचन... आचार्य भगवंत ने भी कुछ इस प्रकार के संदेश दिए कि वह चाहते है सारे देश मे #हिंदी जिसे हम देश की #मातृभाषा के रूप में जानते है जो 11 राज्यो में बहुत अच्छे से बोली जाती है का उपयोग होना चाहिये फिर चाहे वह शासन प्रशासन की बात हो या न्यायालय में हो रहे किसी भी वाद की बहस या फैसला हो
आचार्य भगवंत का आदेश है कि हमे शुरुआत अपने आप से करना है यानि कि अपने दस्तखत हिंदी में बनाने शुरू करना चाहिये और साथ ही साथ अपने आवश्यक जितने भी काम होते है उन्हें भी हिंदी में ही करना होगा और हमारा प्रयास यह भी होना चाहिये कि जो भी प्रतिनिधि हमारी मातृ भाषा हिंदी को प्राथमिकता से देश मे अनिवार्य कराने के लिये प्रयास करने का संकल्प ले हम उसे ही प्रोत्साहित करें और अपना नेता बना कर लोकसभा या विधानसभा पहुचाये, आचार्य भगवंत के आदेशों का पालन करते हुए में श्रीश ललितपुर आज और अभी से यह नियम लेता हूं कि जब तक जिऊँगा अपने दस्तखत हिंदी में ही करूंगा और हमेशा ही हिंदी को शासन प्रशासन एवं न्यायालय के कामकाज में उपयोग वाली भाषा बनाएं जाने तक अपनी ओर से प्रयास करता रहूंगा जिसके लिये ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को ही समर्थन दूंगा जो हिंदी से प्रेम करता हो और हिंदी को उपयोगी भाषा बनाने में हमारे नेता की अहम भूमिका निभा सके, यदि आप भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनवाने की इस मुहिम में अपना योगदान देना चाहते है तो यथासंभव आपको भी इसी तरह के कुछ कटु फैसले लेने ही होंगे या फिर चुनाव में नोटा का उपयोग कर यह सिद्ध करना होगा कि हमारा नेता वही है जो हिंदी को उपयोग की भाषा बनाने में पहली भूमिका निभाएगा
_इंडिया शब्द को हटा कर जिस दिन भारत कहना और लिखना शुरू कर दिया जाएगा यह स्वयं भगवान के रूप आचार्य भगवंत का आशीष
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