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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 11 जून 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 घाटकोपर, मुम्बई - प्रागजी भाई खंडोर द्वारा तिविहार संथारा प्रत्याख्यान
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 2* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*नरेश से मिलन*
एक बार सेठजी से जोधपुर नरेश की किसी कारण से अनबन हो गई। आगे से आगे ऐसी परिस्थितियों बनती गईं कि वह मनमुटाव बढ़ता ही गया। नरेश ने उनको दी गई सब बक्शीसें जब्त कर लीं। भण्डारीजी ने तब सेठजी से निवेदन किया कि समुद्र में रहकर मगर से बैर रखना उपयुक्त नहीं है। आप किसी भी उपाय से इस झगड़े को समाप्त कर दीजिए। सेठजी ने तब इसे सम्मान सहित निपटाने का भार भण्डारीजी को ही सौंप दिया। भण्डारीजी ने सेठजी से जोधपुर नरेश के नाम एक पत्र लिखवाया और उसे लेकर वह राज सभा में उपस्थित हुए। अपना परिचय प्रस्तुत करने के पश्चात् उन्होंने इतने चातुर्य और माधुर्य के साथ बातचीत की कि नरेश पानी-पानी हो गए। पिछला सारा रोष भूलने के साथ-साथ इतने प्रसन्न हुए कि सेठजी को बुलाकर उन्हें सभी बक्शीसें पुनः प्रदान कीं तथा पहले से भी अधिक सम्मानित किया।
*राज-सेवा में*
इस घटना ने भण्डारीजी के जीवन को भी पलट दिया। जोधपुर नरेश ने एक जौहरी की तरह उस नर-रत्न की पहचान की। उनकी बुद्धिमत्ता, निर्भीकता, वाक्चातुर्य और कार्यकुशलता से वे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने सेठजी से भण्डारीजी को राजकीय सेवाओं के लिए मांग लिया। इस प्रकार वे व्यावसायिक क्षेत्र से निकलकर प्रशासन क्षेत्र में प्रविष्ट हुए। अपने प्रथम क्षेत्र में उन्होंने जिस योग्यता और विश्वसनीयता से काम किया था, उसी प्रकार इस क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी धाक जमाई। थोड़े ही समय में वे जोधपुर नरेश तख्तसिंहजी के अत्यंत विश्वस्त व्यक्ति हो गए। नरेश के पास उनकी मान्यता के विषय में स्थानीय लोगों में यह तुक्का प्रचलित हो गया था— "मांहें नाचै नाजरियो, बारे नाचै बादरियो" अर्थात् अन्तःपुर में तो नाजरजी का बोलबाला है और नरेश के पास बहादुरमलजी का।
*व्यवस्था-सुधार*
भण्डारीजी ने नरेश के निजी कार्यालय से लेकर कोषाधिकारी तक के अनेक कार्य संभाले। अपने अधिकार क्षेत्र की राजकीय व्यवस्थाओं में समय-समय पर उन्होंने अनेक सुधार किए और कार्य को सुदिशा प्रदान की। बहुत बार ऐसा भी हुआ कि जिन विभागों में सुधार की आवश्यकता अनुभव की गई, वे उन्हें सौंपे गए। उन दिनों 'चुंगी' राजस्व विभाग का एक अंग थी। पर उस विषय के नियमोपनियम के अभाव से तथा कोई संगठित प्रारूप न होने से उसका बहुत बड़ा भाग प्रायः यों ही नष्ट हो जाया करता था। उस क्षति को ध्यान में रखकर उन्होंने उस विभाग का एक अच्छा संगठन स्थापित किया और क्षतिपूर्ण स्रोतों को बहुलांश में रोक दिया। उसी प्रकार 'कोठार' तथा 'बागर' के विभाग को भी उन्होंने बहुत समुन्नत तथा सुसंगठित बनाया।
जोधपुर राज्य उन जैसे बुद्धिमान व्यक्ति से अंत तक उपकृत होता रहा। जोधपुर नरेश महाराज जसवंतसिंहजी ने उनकी मृत्यु से लगभग चार महीने पूर्व उन्हें राजकोष संभालने तथा सुसंगठित करने का कार्य सौंपा। उन्होंने उस कार्य का प्रारंभ तो किया परंतु बीच में ही रुग्ण हो जाने तथा कुछ समय पश्चात् दिवंगत हो जाने से पूर्ण नहीं कर सके। उनकी मृत्यु के पश्चात् वह कार्य उनके सबसे बड़े पुत्र किसनमलजी भण्डारी को सौंपा गया। वे उसे संवत् 1956 तक सुचारू रूप से संभालते रहे।
*बहादुरमलजी भण्डारी के विचारों और धारणाओं पर यदि कोई उपहास करता तो वे उसका उत्तर किस प्रकार देते...? एक रोचक घटना के माध्यम से* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 348* 📝
*अमित प्रभावक आचार्य अमितगति (द्वितीय)*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
*उपासकाचार* आचार्य अमितगति के नाम पर इस ग्रंथ को अमितगति श्रावकाचार भी कहते हैं। ग्रंथ की श्लोक संख्या 1352 है। 15 परिच्छेद हैं। पांचवा, छठा, सातवां, चौदहवां, पन्द्रहवां परिच्छेद श्रावक आचार संहिता तथा ध्यान की विधि को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। पंचम परिच्छेद में मद्य, मांस, मधु की भांति रात्रिभोजन परित्याग का भी उपदेश दिया गया है। छठे परिच्छेद में सौ श्लोकों में श्रावक के बारह व्रतों का विस्तृत विवेचन है। सातवें परिच्छेद में व्रत के अतिचारों तथा श्रावक प्रतिमाओं का वर्णन है। चौदहवें परिच्छेद में 12 भावनाओं एवं पन्द्रहवें परिच्छेद के श्लोकों में भेद-प्रभेद सहित ध्यान का सम्यक् प्रतिपादन है।
प्रत्येक परिच्छेद के अंत में रचनाकार ने अपना नाम दिया है। रचना सरल और स्पष्ट है। उपासकाध्ययन, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, वसुनन्दी श्रावकाचार आदि कृतियों में श्रावकाचार संबंधी विपुल सामग्री उपलब्ध है। उनमें यह उपासकाचार कृति भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस रचना के अन्त में रचनाकार की गुरु-परंपरा भी प्राप्त है।
*भावना-द्वात्रिंशिका* इस कृति के 32 पद्य हैं। यह कृति के नाम से स्पष्ट है। इस कृति की पद्यावलियां कोमल एवं हृदयग्राही हैं। सामायिक में बहुत से लोग इसका विशेष स्वाध्याय करते हैं। आचार्य अमितगति कि यह अत्यधिक लोकप्रिय रचना है।
*आराधना* यह संस्कृत पद्यमयी रचना है। शिवाचार्य कृत प्राकृत आराधना का अनुवाद है। प्रशस्ति पद्यों में देवसेन से अमितगति (द्वितीय) तक की गुरु परंपरा है। समय और स्थान का संकेत नहीं है। कृति का प्रतिपाद्य ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप है। ग्रंथकार ने इस रचना को चार मास में संपन्न किया था। प्रशस्ति पद्यों में रचनाकार ने आराधना की विशेषता बताने के साथ अपना नामोल्लेख भी किया है।
*तत्त्वभावना* इस कृति के 120 पद्य हैं। यह कृति सामायिक पाठ के नाम से भी प्रसिद्ध है। कृति के अंत में निर्देश है "इति द्वित्तीय-भावना समाप्ता" रचनाकार के इस संकेत से स्पष्ट है यह कृति किसी बड़े ग्रंथ की दूसरी भावना या दूसरा अध्याय है।
*योगसार* इस ग्रंथ के रचनाकार भी आचार्य अमितगति थे। विद्वानों का अनुमान है आचार्य अमितगति द्वितीय के ग्रंथों की विशेषता इस ग्रंथ में नहीं है, अतः यह रचना आचार्य अमितगति प्रथम की रचना है।
*समय-संकेत*
आचार्य अमितगति की तीन कृतियों में संवत् समय प्राप्त है।
*सुभाषित रत्न संदोह* समय वीर निर्वाण 1520 (विक्रम संवत् 1050)
*धर्म परीक्षा* समय वीर निर्वाण 1540 (विक्रम संवत् 1070)
*पंच संग्रह* समय वीर निर्वाण 1543 (विक्रम संवत् 1073)
इन कृतियों में प्राप्त संवत् समय के अनुसार आचार्य अमितगति द्वितीय वीर निर्वाण 16वीं (विक्रम की 11वीं) शताब्दी के विद्वान् थे।
*मनस्वी आचार्य माणिक्यनन्दी और नयनन्दी के प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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📰 *राजस्थान पत्रिका में अणुव्रत संबंधी कवरेज*
🔅 *अणुव्रत सोशल मीडिया*🔅
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⛲❄ *अणुव्रत* ❄⛲
🔹 संपादक 🔹
*श्री अशोक संचेती*
*नैतिकता के विषय पर केंद्रित*
🎈 *जून अंक* 🎈
के
आकर्षण
*नैतिकता का स्वरूप*
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नैतिकता की समस्या
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*नहर नैतिकता की*
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ज्योतिदीप नैतिकता का
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👉 मानसा (पंजाब) - पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम
👉 जींद - जैन संस्कार विधि से सामुहिक जन्मोत्सव
👉 कोलकाता - कन्या मण्डल का गठन
👉 भुज - पौधारोपण एवं थैली का वितरण
👉 उधना, सूरत - सीखें स्वप्रबंधन संवारें अपना जीवन कार्यशाला
👉 बीकानेर - अणुव्रत समिति शपथ ग्रहण समारोह
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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