Update
*अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ को 99 वें जन्मदिवस पर शत-शत वंदन - अभिवंदन*
*श्रद्धाप्रणत:*
*अणुव्रत महासमिति परिवार*
प्रस्तुति: 🔅 *अणुव्रत सोशल मीडिया*🔅
संप्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ को 99 वें जन्मदिवस पर शत-शत वंदन - अभिवंदन*
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 14 जून 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Update
👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में*
💥 *इंदौर - मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ स्तरीय आँचलिक कन्या कार्यशाला*
💥 *सत्र विषय - ASPRING A NEW एक नई पहचान*
👉 सूरत - तुलसी प्रबोध प्रतियोगिता
👉 विजयनगर (बेंगलुरु): अभातेममं संगठन यात्रा
👉 के.जी.यफ - अभातेममं के तत्वधान में संघठन यात्रा
👉 राजराजेश्वरी नगर - उन्नयन कार्यशाला
*प्रस्तुति: 🌻 संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 351* 📝
*मनस्वी आचार्य माणिक्यनन्दी और नयनन्दी*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
*नयनन्दी* माणिक्यनन्दी की भांति नयनन्दी भी मेधा के धनी थे। उनकी दो रचनाएं उपलब्ध हैं *1.* सुदंसण चरिउ *2.* सयलविहिविहाणकव्य।
दोनों ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है—
*सुदंसण चरिउ* आचार्य नयनन्दी द्वारा रचित सुदंसण चरिउ अपभ्रंश भाषा की कृति है। यह 12 संधियों में विभक्त है। इसका मुख्य नायक धीर, गंभीर एवं महान् कष्टसहिष्णु सेठ सुदर्शन है। सेठ सुदर्शन की मित्र पत्नी कपिला को कामविह्वल बताकर उसके कुत्सित जीवन को चित्रित किया गया है। संपूर्ण काव्य में सेठ सुदर्शन के निर्मल चरित्र की गरिमा एवं ब्रम्हचर्य व्रत में उनकी निष्ठा प्रकट है।
काव्य कला की दृष्टि से यह उत्तम ग्रंथ है। इसकी शैली सरस और सालङ्कारिक है। इस काव्य में आचार्य माणिक्यनन्दी की गुरु परंपरा दी गई है जो ऐतिहासिक संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है। काव्य लक्षणों से भूषित यह निर्दोष कृति आचार्य नयनन्दी के गंभीर ज्ञान की सूचक है।
*सयलविहिविहाण (सकलविधिविधान)* यह 58 संधियों में परिसमाप्त काव्य ग्रंथ है। भुजंगप्रिया, मंजरी, चंद्रलेखा, मौक्तिकमाला आदि नाना प्रकार के छंदों में रचित यह कृति अत्यंत सरस है। श्रावकाचार संहिता की विपुल सामग्री इसमें है। इसकी प्रशस्ति में कालिदास, बाण, मयूर, नरेश हर्ष, जैनाचार्य अकलङ्क, समंतभद्र आदि का उल्लेख है। इस काव्य की 58 संधियों में 16 संधियां वर्तमान में अनुपलब्ध हैं।
*समय-संकेत*
आचार्य माणिक्यनन्दी अकलङ्क के ग्रंथों के अनन्य पाठी थे। अकलङ्काचार्य का समय विविध अनुसंधानों के आधार पर ईस्वी सन् 720 से 780 तक माना है, अतः आचार्य माणिक्यनन्दी अकलङ्काचार्य से उत्तरवर्ती होने के कारण ईस्वी सन् 8वीं शताब्दी के बाद का विद्वान् उन्हें मानना निर्विवाद स्थिति है।
आचार्य माणिक्यनन्दी और आचार्य प्रभाचंद्र का परस्पर साक्षात् गुरु-शिष्य संबंध था, अतः वे प्रभाचंद्राचार्य से पूर्ववर्ती थे। आचार्य नयनन्दी आचार्य माणिक्यनन्दी के प्रथम विद्या शिष्य थे। नयनन्दी ने अपना काव्य परमार नरेश भोज के राज्य में धारा नगरी के महाविहार में वीर निर्वाण 1570 (विक्रम संवत् 1100 ईस्वी सन् 1043) में संपन्न किया था। आचार्य माणिक्यनन्दी गुरु स्थान पर होने के कारण नयनन्दी से भी पूर्ववर्ती हैं, अतः माणिक्यनन्दी का समय डॉ. नेमीचंद्र शास्त्री ने विविध प्रमाणों के आधार पर विक्रम संवत् 1060 तक अनुमानित किया है। आचार्य नयनन्दी का समय उनकी सुदंसण चरिउ कृति में प्राप्त संवत् समय के अनुसार वीर निर्वाण 16वीं (विक्रम की 11वीं और 12वीं) शताब्दी स्पष्ट सिद्ध है।
आचार्य माणिक्यनन्दी और नयनन्दी के गंभीर ग्रंथ इन दोनों आचार्यों के मनस्वी रूप को प्रकट करते हैं।
*अनेकान्त विवेचक आचार्य अभयदेव के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 5* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*महाराज कुमार का रोष*
अपनी नीति निष्ठा की कट्टरता के कारण भंडारीजी को कभी-कभी बड़ी विकट स्थिति का सामना भी करना पड़ जाता था। वे जानते थे कि नीतिमत्ता के मार्ग में अनेक कठिनाइयां हैं। राजकीय सेवा में रहने वाले के लिए तो वह मार्ग अत्यंत दुर्गम है। फिर भी वे उसी मार्ग पर निर्भीक होकर चले। अनेक बार महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के रुष्ट हो जाने की स्थितियों का भी उन्हें सामना करना पड़ा।
एक बार भंडारी जी ने नरेश तख्तसिंहजी को एक तेज गति वाली सांड (ऊंटणी) भेंट की। नरेश ने उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया और देखरेख के लिए उन्हीं को सौंपते हुए कहा— "इसे और अच्छी तरह से तैयार करो। भरण-पोषण का व्यय राजकोष से ले लेना। सिखाने और घुमाने वाले के सिवा अन्य किसी को सवारी के लिए मुझे पूछे बिना मत देना।" वह सांड भंडारीजी के पास वर्षों तक रही। बीच-बीच में नरेश उसे सवारी के लिए मंगवाते रहे।
महाराज कुमार जसवंतसिंहजी ने एक दिन शिकार के लिए जाने का निश्चय किया। परंतु उसी दिन उनका घोड़ा अस्वस्थ हो गया, अतः निजी सचिव के सुझाव पर उन्होने भंडारीजी के पास से 'सांड' मंगवाई। भंडारीजी एक क्षण के लिए असमंजसता में फंस गए। एक ओर राजाज्ञा थी तो दूसरी ओर राजकुमार की आवश्यकता। दूसरे ही क्षण उन्होंने आगत व्यक्ति से कहा— "महाराज कुमार से प्रार्थना करो कि वे नरेश की आज्ञा ले लें ताकि राज आज्ञा का उल्लंघन न हो।" भंडारीजी का कथन बिल्कुल नीति संगत था, परंतु राजकुमार ने उसे अपने लिए अपमानजनक समझा और उसी दिन से वे उनसे रुष्ट रहने लगे। भंडारीजी पर नरेश की विशेष कृपा थी, अतः रुष्ट होने पर भी राजकुमार उनका कुछ बिगाड़ नहीं सके।
*बहादुरमलजी भण्डारी पर से महाराज कुमार का रोष कैसे धुला और वे उन्हें किस तरह राज्य के हितैषी समझने लगे...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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