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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 23 जून 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 आमेट - विश्व योग दिवस के अन्तगर्त योग एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम
👉 मालाड़, मुम्बई - महिला मंडल संगठन यात्रा के अंतर्गत स्व प्रबंधन सुखी जीवन कार्यशाला
👉 विजयनगर(बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 पूर्वांचल, कोलकाता - अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 साउथ हावड़ा - योग जागरूकता शिविर का आयोजन
👉 ईरोड - ते.म.म. द्वारा स्वप्रबंधन कार्यशाला आयोजित
👉 विशाखापट्टनम - तेरापंथ सभा द्वारा ज्ञानशाला का कार्यक्रम आयोजित
👉 विशाखापट्टनम - तेयुप का शपथ ग्रहण समारोह
👉 कुंभलगुड (बेंगलुरु): जैन संस्कार विधि से भूमि पूजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 359* 📝
*शिवालय आचार्य शान्ति*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
एक बार कवि धनपाल में कोल कवि (शक्ति उपासक) धर्म से कहा "अस्ति श्वेताम्बराचार्य शान्तिसूरि परो न हि।" श्वेताम्बराचार्य शान्तिसूरि के समान दूसरा कवि नहीं है।
कवि धनपाल द्वारा इस प्रकार प्रशंसा सुनकर कोल कवि धर्म शान्त्याचार्य के पास आया और उनसे शास्त्रार्थ में पराजित हुआ। द्रविड़ देश के एक अन्य वाद रसिक विद्वान् को भी शान्त्याचार्य से शास्त्रार्थ में करारी हार मिली। द्रविड़ विद्वान् के नाम का उल्लेख प्रभावक चरित्र में नहीं है।
शास्त्रार्थों में इस प्रकार विजय प्राप्त कर शान्त्याचार्य ने वादि वेताल उपाधि की सार्थकता प्रमाणित की।
शांतिसूरि मंत्रों के ज्ञाता थे। पाटण के श्रेष्ठी जिनदेव के पुत्र पद्मदेव को सर्प ने काट लिया। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु घोषित कर दी गई। शांतिसूरि ने मंत्र प्रयोग से जहर उतार कर उसे स्वस्थ बना दिया। ऐसा उल्लेख भी प्रभावक चरित्र शांतिसूरि प्रबंध में है।
शांत्याचार्य के 32 विद्वान् शिष्य न्याय के पाठी थे। शांत्याचार्य उन्हें स्वयं न्याय का प्रशिक्षण देते थे। एक बार शांतिसूरि अपने शिष्यों को दुर्घटप्रमेय व्यवस्था समझा रहे थे। नडूल नगर (नाड़ोल) से आए हुए सुविहीत मार्गी मुनिचंद्र ने दूर खड़े होकर शांतिसूरि का न्याय विषयक प्रवचन सुना। शंकराचार्य की अध्यापन पद्धती ने मुनिचंद्र को प्रभावित किया। वे 15 दिन तक निरंतर वहां आकर दूर खड़े रहकर शांत्याचार्य द्वारा शिष्यों को प्रदीयमान पाठ वाचना को ग्रहण करते रहे। 16वें दिन शांत्याचार्य ने अपने शिष्यों की परीक्षा ली। उनकी शिष्य मंडली में से एक भी शिष्य प्रश्नों का संतोषजनक समाधान नहीं दे सका। मुनिचंद्रसूरि ने शांत्याचार्य से विनम्रतापूर्वक आदेश प्राप्त कर 15 दिनों का अध्ययन सम्यक् प्रकार से दोहरा दिया एवं शांत्याचार्य द्वारा प्रदत्त प्रश्नों को सम्यक् रूप से समाहित किया।
मुनिचंद्र जैसे प्रतिभासंपन्न विद्यार्थी को पाकर शांत्याचार्य अत्यंत प्रसन्न हुए। तब से शांत्याचार्य की शिष्य मंडली में प्रविष्ट होकर मुनिचंद्र को प्रमाण शास्त्र के अध्ययन का अवसर मिला।
सुविहित मार्गी मुनियों के लिए उस समय पाटण में स्थान की कठिनता थी। चैत्यवासियों का वर्चस्व होने के कारण पाटण के आस-पास भी सुविहित मार्गी मुनियों के लिए स्थान सुलभ नहीं था।
मुनिचंद्रसूरि सुविहित मार्गी होते हुए भी उनके सामने स्थान की कठिनाई नहीं हुई। शांत्याचार्य के निर्देश से श्रावकों ने स्थानीय टंकशाला के पीछे के बाग में मुनिचंद्रसूरि के रहने की समुचित व्यवस्था कर दी।
यह प्रसंग शांत्याचार्य के उदार हृदय का परिचायक है। इस समय मुनिचंद्रसूरि ने शांत्याचार्य से न्याय-विद्या का गंभीर प्रशिक्षण प्राप्त किया।
*शिवालय आचार्य शान्ति की ग्रंथ-रचना व उनके आचार्य काल के समय-संकेत* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 13* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*अटल धर्मानुराग*
जोधपुर के एक यतिजी के वहां भंडारीजी का काफी आना-जाना था। यह शायद प्रारंभिक वर्षों की बात है। उन्होंने यतिजी को कह रखा था कि आप तेरापंथ और उसके आचार्यों के प्रति यदि कोई निंदात्मक बात कहने लगेंगे तो अपना यह प्रेम-भाव निभा नहीं सकेगा। मैं उसी दिन से यहां आना छोड़ दूंगा। यतिजी इसके लिए वचनबद्ध थे कि वे कभी किसी के सम्मुख ऐसी कोई बात नहीं करेंगे। परंतु उस युग में तेरापंथ के विषय में बात न करना कठिन कार्य था। जैनों के प्रत्येक संप्रदाय में धर्म की चर्चा चलते ही घूम फिर कर बहुधा वह तेरापंथ पर आ जाती थी। कहीं उसका स्वरूप प्रशंसात्मक होता तो कहीं निंदात्मक। यतिजी वादा करके भी उसे निभा नहीं पाए। भंडारीजी के सम्मुख तो वे बचते रहे, पर पीछे से निंदा करते रहे। एक दिन यतिजी किसी के साथ निंदात्मक बातें कर रहे थे कि अचानक भंडारीजी आ गए। उनके अंदर आते ही यतिजी ने बात का रुख बदल दिया। परंतु वे बाहर खड़े रहकर पहले ही बातों का सारा सिलसिला सुन चुके थे। अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार उन्होंने यतिजी को जता दिया और फिर कभी उस उपाश्रय में नहीं गए। उन जैसे धर्मानुरागी व्यक्ति भला अपने गुरु की निंदा कैसे सुन वह सहन कर सकते थे? यतिजी ने उस विषय को लेकर कई बार क्षमा याचना भी की, परंतु भंडारीजी ने स्पष्ट कह दिया कि एक बार जिसने वचन भंग कर दिया वह दूसरी बार नहीं करेगा, इसका क्या विश्वास है? मैं अब कभी नहीं आऊंगा।
*संबंधों की शर्त*
भंडारीजी की धार्मिक लगन इतनी उत्कृष्ट थी कि उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति उस रंग में रंगे बिना नहीं रह पाता था। साधु-साध्वियों के प्रति उनका आदर भाव बहुत गहरा था। उनके उच्च पद का गौरव भी उसमें कभी बाधक नहीं बन पाया। एक बार कुछ उच्च राज्याधिकारी जो कि ओसवाल समाज के ही थे, भंडारीजी से कहने लगे— "हम लोग आपके परिवार में बेटी देने में इसलिए संकोच करते हैं कि आपके परिवार की स्त्रियां साधु-साध्वियों के आगमन तथा विदाई के समय उनके पीछे-पीछे पैदल जाती हैं।"
भंडारीजी ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर देते हुए कहा— "हां यह आप लोगों के लिए पहले से ही सोच लेने की बात है। मेरे घर में कुलवधू बनकर आएगी उसे तो साधु-साध्वियों के गमनागमन पर उनके पीछे-पीछे पैदल चलना आवश्यक होगा।"
*सुझाव का सत्कार*
भंडारीजी की पत्नी सरल स्वभाव वाली अत्यंत धर्मनिष्ठ महिला थीं। उनका स्वर्गवास संवत् 1923 में हुआ। पत्नी का देहांत होने से अनेक वर्ष पूर्व यही भंडारी जी ने शील-व्रत ग्रहण कर लिया था। वे दोनों एक ही कमरे में अलग-अलग पल्यंकों पर सोया करते थे। गोरूजी सुराणा ने जब उनके उस व्यवहार को शील-व्रत के लिए उपयुक्त नहीं बतलाते हुए उन्हें दूसरे कमरे में सोने का परामर्श दिया तो व्रत-सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने उसे तत्काल स्वीकार कर लिया। उसके पश्चात् वे बाहर बैठक में ही सोने लगे। यद्यपि इससे उनकी पत्नी को बहुत दुःख हुआ, किंतु उन्होंने लोक-व्यवहार की विशुद्धि के लिए उन्हें समझा लिया।
*बहादुरमलजी भंडारी द्वारा धर्मसंघ की सेवा में दिए गए मौलिक योगदान* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*अहिंसा यात्रा के बढ़ते कदम*
👉🏻 आज का प्रवास - Govt. High school, Manu Bolu
दिनांक - 23 जून 2018
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*मंत्र एक समाधान: वीडियो श्रंखला ३*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
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संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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