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आगामी 17 अगस्त को महातीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी की स्वर्णभद्र कूट पर श्री 1008 पारस नाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक के उपलक्ष्य में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाएगा । सभी भाव बनाये और श्री सम्मेद शिखर जी की वंदना और प्रकिमा करके आएं । उचे उचे शिखरों वाला है यह तीर्थ हमारा 🙏
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#आचार्य_विद्यासागर_जी के सुशिष्य #मुनिश्री_वीरसागर जी महाराज #मुनिश्री_विशालसागर जी एवं #मुनिश्री_धवलसागर जी महाराज एवं #मुनि_श्री_सौरभसागर_जी_महाराज
का #मंगलमिलन हुआ आज सुबह में यमुनाविहार दिल्ली के मंगलविहार की बेला मे..
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News in Hindi
एक दिन आचार्य श्री को तारंगा जी के कार्यालय में अतिप्राचीन भगवान नेमिनाथ की खड्गासन प्रतिमा का उपेक्षित रूप में होना का ज्ञात हुआ। कहा जाता है कि ये प्रतिमा निकटम नदी में बहते हुए प्राप्त हुई थी जो अज्ञानता वश त्रुटि मानकर उपेक्षित रख दी गयी थी। आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुराज ने जब भगवान नेमिनाथ की उस प्रतिमा के दर्शन किए तो उन्हें उस प्रतिमा में पूर्वाचार्यो द्वारा प्रतिष्ठा की दिव्य ऊर्जा की अनुभूति हुई
गुजरात की साढ़े तीन करोड़ महामुनियों की निर्वाण वाली अतिपावन पुण्य धरा सिद्धक्षेत्र श्री तारंगा जी मे परमपूज्य संयमभूषण चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुराज ससंघ 8.7.2018 की प्रातः तक विद्यमान थे ।
लगभग एक पखवाड़े तक संघ यहाँ विद्यमान रहा। ऐसे महान सिद्धक्षेत्र पर विशाल श्रेष्ठ संघ के आने पर जैसे धर्म व पुण्य का अमृत बरस रहा था।एक दिन आचार्य श्री को तारंगा जी के कार्यालय में अतिप्राचीन भगवान नेमिनाथ की खड्गासन प्रतिमा का उपेक्षित रूप में होना का ज्ञात हुआ। कहा जाता है कि ये प्रतिमा निकटम नदी में बहते हुए प्राप्त हुई थी जो अज्ञानता वश त्रुटि मानकर उपेक्षित रख दी गयी थी। आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुराज ने जब भगवान नेमिनाथ की उस प्रतिमा के दर्शन किए तो उन्हें उस प्रतिमा में पूर्वाचार्यो द्वारा प्रतिष्ठा की दिव्य ऊर्जा की अनुभूति हुई।जिस पर आचार्य श्री ने तारंगा जी के पदाधिकारियों को सम्बोधन करते हुए कहा की हमारी प्राचीन प्रतिमाए व प्राचीन शिलालेख हमारे महान जैन धर्म की प्राचीनता का एहसास व साक्ष्य सिद्ध कर विश्व मे गौरव बढाती है इन्हें ऐसे उपेक्षित रखना उचित नही।अतः आचार्य श्री ने उन्हें पर्वत की सिद्ध शिला पर विराजमान करने की उत्तम प्रेरणा दी। आचार्य भगबन्त श्री सुनिलसागर जी ने उसी सिद्ध शिला पर केशलोचन किया उपवास होने की वजह से सम्पूर्ण दिन व रात उसी पर्वत की सिद्ध शिला पर ध्यान-समायिक-स्वाध्याय हेतु विराजमान रहे।
उधर पदाधिकारीगण किराए के 10 हट्टे कट्टे मजदूरों को लेकर मूर्ति पर्वत पर ले जाने का कार्य चालू करवाया किन्तु वे प्रतिमा जी को लेकर दो सीढ़िया भी नही चढ़ सके।फिर 10 मजदूर ओर लाये गए किन्तु कई घण्टो की मशक्कत के बाद भी वे सब भी दो सीढिया नही चढ़ सके। सभी थक कर लाचार हो गए। सब पदाधिकारी आश्चर्य पड़ गए में आखिर हो क्या रहा है? क्यो ऊपर नही चढ़ पा रहै है?
फिर कुछ पदाधिकारी समस्या लेकर आचार्य श्री सुनिलसागर जी के पास पहुचे तो आचार्य श्री ने बताया वे व्यसन ग्रहण करने वाले आदमी है इसलिए अहिँसा की प्रतीक ये प्रतिमा उनसे नही चढ़ेगी। वे यदि नियम ग्रहण कर ले तो सम्भव है इस पर मुनि श्री सुश्रुतसागर जी द्वारा उन मजदूरों को नियम के बारे बताया गया लेकिन वे मन से तैयार नही हुए जिसपर आचार्य श्री ने मना कर दिया।
अगले दिन जब आचार्य श्री का आहार हुआ तब वहां नवाधाभक्ति में उपस्थित आठ नवयुवक श्रावको को आचार्य श्री ने आदेश पूर्वक कहा कि आप लोग स्वयं उस प्रतिमा जी को पर्वत पर ले जाने का पुण्य कार्य करो।
गुरुवर की आज्ञा को शिरोधार्य मानते हुए आठो नवयुवको ने प्रतिमा जी को उठाया और पर्वत पर चल दिये।अदभुद अतिशय जो प्रतिमा जी 20 हट्टे कट्टे मजदूरों द्वारा न चढ़ पायी वह आठ सामान्य श्रावको द्वारा कुछ ही घण्टो में तय स्थान तक पहुच गयी।
भगवान नेमिनाथ की दिव्य ऊर्जा वाली उस प्राचीन प्रतिमा जी के अतिशय व आचार्य श्री की पुण्य प्रेणादायक अतिशय शिक्षा से उपस्थित सम्पूर्ण जन समुदाय आश्चर्यचकीत हो उठा।
*इसप्रकार आचार्य श्री सुनिलसागर जी के नेक मार्गदर्शन व सानिध्यता में वह प्रतिमा तारंगा जी के पर्वत पर सिद्ध शिला पर पूजन प्रतिष्ठा पूर्वक स्थापित की गयी*
*देवाधिदेव भगवान श्री नेमिनाथ जी को कोटिशः नमन*
*साढ़े तीन करोड़ महामुनियों की निर्वाण भूमि श्री सिद्धक्षेत्र तारंगा जी को नमन*
*तपस्वी सम्राट के श्रेष्ठ अभिनवकुंदकुंद चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुराज के पावन चरणों मे कोटिशः नमन*
*लेखक-शाह मधोक जैन चितरी*
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चातुर्माश शुरू होने वाले है लेकिन यह जानकर अत्यधिक हैरानी हुई कि अभी #श्रावक को #कमंडल में #जल कैसे भरा जाता है यह जानकारी भी नही है बताइये क्या आप को जानकारी है कि कमंडल में जल कैसा भरा जाता है
ऐसा एक हादसा ही कहे अकस्मात एक #श्रावक के #शुद्धि के समय आने पर #आचार्य भगवंत गुरु विद्यासागर जी महाराज के शिष्यों में से एक शिष्य (यहाँ में नाम लिखना उचित नही समझता मात्र संकेत ही समझे) शुद्धि करने के लिये जाने ही वाले थे और जैसे ही श्रावक ने कमंडल में जल डाला और महाराज ने शुद्धि के लिये अंजुली में लिया और बस हाथ जोड़ कर खड़े हो गए सभी असमंजस में पड़ गए आखिर क्या हुआ, कई बार के निवेदन पँर मुनि श्री ने बताया कि आप के द्वारा की गयी गलती का प्रायश्चित हमे करना होगा अभी भी किसी की समझ मे नही आ रहा था कि आखिर गलती क्या हुए तब मुनि श्री ने बताया कि कमंडल में भरे जाने वाले जल को पूर्णतया उबाल कर फिर ठंडा कर कमंडल में भरा जाता है क्योंकि यही जल पूरे दिन उपयोग में लिया जाता है इसलिये जल की मर्यादा पूरे दिन की तभी होती है जब उसे पूर्णतया उबाला जाए ओर फिर उसे ठंडा कर कमंडल में भरा जाना चाहिये अन्यथा मुनि प्रायश्चित का पात्र माना जायेगा_
*इस प्रकार आज श्रावको को मुनि श्री के द्वारा सबसे महत्वपूर्ण जानकारी जो कि जानने योग्य है प्राप्त हुई । अब जहा तक मुझे लगता है कि हमे यह जानकारिया अवश्य कर रखना चाहिये जो चतुर्माश के दौरान अत्यंत आवश्यक है जैसे मुनिराज शौच कहा जाए किस स्थान पर जाए, आहार आदि पर जाते समय रास्ते मे जा रहे मुनिराज की शुद्धि बनी रहे इस हेतु श्रावको का साथ जाना भी आवश्यक हो, मंदिर जी मे मुनिराज की चर्या निर्बाध रूप से हो इसलिये समाज के लिए प्रबुद्ध जनो को क्रमशः एक एक कर मंदिर जी मे अनिवार्य रूप से रहना चाहिये और साधु के सभी आवश्यक पूर्ण हो सके इस बाबत जाग्रत भी रहना चाहिये, अभी भी इसके अलावा बहुत सारे कार्य ऐसे होते है जिनके किये बगैर चातुर्माश की व्यवस्थाएं अधूरी रहती है जिन्हें समय समय पर आपको बताया जाएगा और आप भी एक सुधि श्रावक की तरह सजग रहते हुए साधु के चातुर्माश में सलग्न रहे और पुण्य प्राप्ति के किसी भी अवसर को जाने ना दे
*आपकी सजगता ही आपके नगर में पधारे मुनिराज के चतुर्माश को सहजता प्रदान करेगी और उनकी साधना में सहयोग*
*श्रीश ललितपुर*
🔔🚩 *पुण्योदय विद्यसंघ*🚩🔔
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