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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*संकल्प शक्ति का विकास: वीडियो श्रंखला ४*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 39* 📜
*किसनमलजी भंडारी*
*'पाप करो सब लोग'*
गतांक से आगे...
सम्यक्त्व के अभाव में किए जाने वाले अनेकविध कार्यों की मोख प्राप्ति में अकिंचतकता, धर्म विषयक अधूरी समझ तथा अनुकंपा आदि विषयों पर भंडारीजी की लेखनी काफी स्पष्टता से चली। एतद विषयक उनके कुछ पद्य इस प्रकार हैं—
"मूंड मुंडाय के मून धरै केई जोग की जुक्त रचै तित हू
केई पहाड़ पे नग्न तपै लटकै केई ऊर्ध बधा खित हू
काल अकाल को साझै बहु नर सूत्र सिद्धांत पढ़ै नित हू
एते प्रपंच अनेक करो सरधा बिन मोक्ष नहीं कित हू"
"साध कहावत या जग जैन के वीर के वैन की फेन न कांईं
पाप कियां बिन धर्म हुवै नहीं ऐसी प्ररूप करै दृढ़ताई
सूत्र सिद्धांत पढ़ै जु सुनै नित पै अघ पाटी पढ़ी रु पढाई
आंख अभिंतर देखै उघाड़ के तो यह संख के संख सदाई"
"थावर जीव हनै त्रसकाय के देव गुरु धर्म हेत हनावै
पुण्य प्ररुप के पाप करावत सो मति-मंद पसंद कहावै
सूत्र सिद्धांत को तंत न जानत भेख हू जग को ठग खावै
ऐसो अज्ञानी मिथ्याती महा जमराज हु की राजधानी में जावै"
"अनुकंप ही को अनुकूल कहै प्रतिकूल कहै नहीं सो मत कूरो
आक को दूध अनै पय धेनु को एक गिनै जिन ते जिन दूरो
नीर सुधा अरु नीर हलाहल श्वेत खड़ी फुन श्वेत ही बूरो
एक ही भेद गिनै मतिमंद हु भेद में भेद लखै जन पूरो"
"नाम को सीरो बनावत या विध बूरै की एवज बालू मिलाई
घृत के भारे गोमूत्र को डार के मैदे की एवज पांडु मिलाई
ईंधन आंच करी विध युक्त हु ताह प्रसाद कियो दुखदाई
मोह अनुकंप कियां ध्रम मनात तासों रहै सिव दूर सदाई"
*किसनमलजी द्वारा आचार्यश्री डालगणी से जोधपुर चातुर्मास की प्रार्थना और आचार्यश्री द्वारा उसका स्वीकार व उनके देहावसान* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 385* 📝
*वर्चस्वी आचार्य वीर*
*जीवन-वृत्त*
प्रभात में राजा सिद्धराज जयसिंह को इसकी जानकारी मिली। उन्हें गहरा दुःख हुआ। कई दिनों के बाद पल्ली ग्राम से आए हुए ब्राह्मणों का वीराचार्य के वहां पहुंचने की सूचना तिथि वार सहित मिली। घटना को सुनकर नरेश को आश्चर्य हुआ। नरेश ने सोचा "सूरिजी अवश्य ही आकाश मार्ग से विद्या द्वारा गए हैं, अन्यथा ऐसा संभव नहीं था। नगरी में पुनः पदार्पण के लिए नरेश ने वीराचार्य को प्रार्थना की।
वीराचार्य ने कई गांवों और नगरों में विहरण करने के बाद वहां आने का संकेत दिया। महाबोधपुर में उन्होंने बौद्ध विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ पर विजय प्राप्त की। उसके बाद वीराचार्य गोपगिरि (ग्वालियर) में आए। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्थानीय नरेश ने उनका विशेष सम्मान किया। उनके वहां कई शास्त्रार्थ हुए। शास्त्रार्थों में विजय होने के कारण गोपालगिरि नरेश ने उनको छत्र, चामर आदि कई वस्तुएं उपहार में प्रदान कीं। वहां से विहार पर कई दिन वीराचार्य नागपुर में विराजे। तदनंतर अणहिल्लपुर पाटन के निकटवर्ती चारूप गांव में आए। पाटण नरेश ने वहां आकर वीराचार्य का सम्मान किया और अपने शहर में उनका उत्साहपूर्वक प्रवेश करवाया। पाटण के वादीसिंह नामक सांख्य विद्वान् के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ। इसमें भी वीराचार्य को विजय प्राप्त हुई। सिद्धराज जयसिंह ने इस प्रसंग पर वीराचार्य को 'जयपत्र' प्रदान किया। इस विजय की घोषणा वीराचार्य के कलागुरु गोविंदसिंह ने पहले ही कर दी थी। पाटण की राजसभा में कमलकीर्ति नामक दिगंबर विद्वान् के साथ भी वीराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ।
*समय-संकेत*
वीराचार्य के जन्म, दिक्षा आदि से संबंधित तिथि-मिति का उल्लेख प्राप्त नहीं है। पाटण नरेश सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में वे सम्मानित विद्वान् थे। सिद्धराज जयसिंह का शासनकाल वीर निर्वाण 1620 से 1669 (विक्रम संवत् 1150 से 1199) तक माना गया है। इस आधार पर वीराचार्य वीर निर्वाण की 16वीं 17वीं (विक्रम संवत् की 12 वीं) सदी के विद्वान् सिद्ध होते हैं।
*जनप्रिय आचार्य जिनदत्त के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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