News in Hindi
👉 तिरुकलीकुण्ड्रम - जैन विधा सप्ताह, ज्ञानशाला पखवाडा एवं मेधावी छात्र सम्मान समारोह का आयोजन
👉 कोयम्बत्तूर - महासभा प्रतिनिधियों की संगठन यात्रा
👉चिकमगलूर - मंत्र दीक्षा का आयोजन
👉 तिरुपुर - सुपात्र दान मोक्ष का पायदान कार्यशाला का आयोजन
👉 मदुराई - मंत्र दीक्षा का आयोजन
👉 सेलम - मंत्र दिक्षा एवं मेधावी छात्र समान समारोह का आयोजन
👉 चिकमगलूर - 259 वां स्थापना दिवस का आयोजन
👉 हैदराबाद - ज्ञानशाला पखवाडा समाचार
👉 विशाखापट्टनम-
मंत्र दीक्षा का आयोजन
जैन संस्कार विधि के बढते चरण
👉 हांसी - मंत्र दिक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉 खारुपेटिया - तेरापंथ सभा, तेयुप एवं अणुव्रत समिति का सामुहिक शपथ ग्रहण समारोह
👉 लिलुआ - मंत्र दिक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉अहमदाबाद - तेयुप द्वारा वक्ता बने प्रवक्ता कार्यक्रम का आयोजन
👉अमराईवाडी ओढव - तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर एक शाम भिक्षु के नाम भव्य भक्ति संध्या
👉 रतलाम - मंत्र दिक्षा का आयोजन
👉 पुणे - तेरापंथ स्थापना दिवस व प्रतिक्रमण साधना अभियान
👉 बारडोली - तेरापंथ स्थापना दिवस व मंत्र दिक्षा कार्यक्रम
👉 भुज - मंत्र दिक्षा का आयोजन
👉 लिम्बावत सूरत - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर
👉 गंगावती (कर्नाटक): मंत्र दीक्षा के कार्यक्रम का आयोजन
👉 कांकरिया, मणिनगर: मंत्र दीक्षा के कार्यक्रम का आयोजन
👉 चिकमंगलूर - अणुव्रत समिति शपथग्रहण समारोह
👉 बल्लारी: तेयुप द्वारा मंत्र दीक्षा और सामूहिक जन्मोत्सव का आयोजन
👉 नागपुर - तेयुप शपथ ग्रहण समारोह व चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 कालीकट - स्वयं को निखारे, पाप को पखारे कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 चेन्नई ~ श्री संचय जैन अणुविभा के अध्यक्ष बने..
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 44* 📜
*सुखराजजी भंडारी*
*कविता-परिचय*
गतांक से आगे...
विक्रम संवत् 1938 भाद्रव कृष्णा 12 को जयाचार्य दिवंगत हो गए। कवि हृदय सुखराजजी के मन को उस घटना से बड़ा आघात लगा। संवेदना के उन क्षणों में भावों का जो प्रभाव बहा, वह 'मरसिया' के रूप में इस प्रकार प्रकट हुआ—
"सकल सिद्धांत जाके लसत मुखारविन्द,
अनघ अनंत गुण वृष्टि वरसायगो।
छत्र विद्वानन को, पवित्र रायचन्द-पाट,
दे नर विचित्र बोध, जग जश छायगो।।
भने 'सुखराज' आह! कृतान्तगति जोर कहा?
जीत गण-कन्थ पन्थ स्वर्ग के सिधायगो।
मुकुट जिन-शासन को, शील दृढ़ आसन को,
सुधा बेन भासन को, वासन विलायगो।।"
ज्ञान को दिनन्द पुर-पुर में प्रकाश करी
दास उर अरविंद की राश विकसायगो।
प्रभुता अशेष वेश कहां लो कवेश पढ़े
छिति पर जिनेश जैसी छटा छिब छायगो।
पाखंड हटाय, जीत डंका बजाय ग्राम-
ग्राम नाम ख्यात जीत कीर्ति को बधायगो।
मुकुट जिन-शासन को, शील दृढ़ आसन को
सुधा बेन भासन को, वासन विलायगो।।"
"सत्य को सुमेर ओ कुबेर ज्ञान कमला को,
वृन्दन मुनींद्र तामें इंद्र-पद पायगो।
मुगती मग-दाता, त्राता, विख्याता भरत बीच,
भ्राता जन गोतम की ज्यूं जैन को जमायगो।
मुद्रा-छवि प्यारी, बलिहारी कवि वेर-वेर,
जीत ब्रह्मचारी अवतारी दिन आयगो।
मुकुट जिन-शासन को, शील दृढ़ आसन को
सुधा बेन भासन को, वासन विलायगो।।"
"आगम अनुसारे केते भारे-भारे ग्रंथ रचे,
आज जिनराज सो प्रकाश धर करगो।
न्याय अरु नीत को बधाय जीत कीर्ति निधे।
गण में प्रबंध अति बांध प्रभा भरगो।।
भने 'सुखराज' भव-वार ए अपार जामे,
ज्याज ज्यों अनेक जीव तार आप तरगो।
रायचंद-पाट को दिपाय के बधाय तोर।
तीरथ चढ़ाय शोभा देव-लच्छी वरगो।।"
*जोधपुर के श्रावक लिछमणदासजी भंडारी के प्रेरणादाई जीवन-वृत्त* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 390* 📝
*नित्य नवीन आचार्य नेमिचन्द्र*
*ग्रन्थ-रचना*
गतांक से आगे...
आचार्य नेमिचंद्रसूरि ने उत्तराध्ययन के प्रथमाशों की जितनी विस्तृत टीका की है, उत्तरांशों की टीका में इतना विस्तार नहीं है। अंतिम 12-13 अध्ययनों की टीका अधिक संक्षिप्त होती गई है। उनमें ना कोई विशेष कथाएं हैं और न कोई अन्य उद्धरण ही हैं।
अठारह भाषाओं के विद्वान् डॉ. हर्मन जेकोबी ने इन कथाओं का स्वतंत्र रूप से संग्रह किया। मुनि जिनविजय द्वारा प्राकृतकथासंग्रह के नाम से उनका प्रकाशन हुआ।
ले. जे. मेयर ने अंग्रेजी भाषा में इनका अनुवाद सन् 1909 में किया।
पाश्चात्य विद्वान् ल्यूमेन इन कथाओं पर मुग्ध रहे हैं। उन्होंने नेमिचंद्रसूरि द्वारा कथा के साथ प्रयुक्त पूर्व प्रबंध में पूर्व शब्द को निस्संकोच भाव से दृष्टिवाद के अंश का सूचक माना है।
यह टीका संक्षिप्त मूल पाठ का स्पर्श करती हुई अर्थ गौरव से परिपूर्ण है। प्राकृत कथाओं की प्रचुरता के कारण यह टीका हरिभद्र की शैली का अनुसरण करती हुई प्रतीत होती है। वैराग्य रस परिप्लावित ब्रह्मदत्त और अगड़दत्त जैसी कथाओं के साहचर्य से इस सुविशाल टीका में प्राणवत्ता आ गई है और विभिन्न ग्रंथों की गाथाओं का उद्धरण तथा सोदाहरण नाना विषयों की विवेचना के कारण इसकी सार्वजनिक उपयोगिता सिद्ध हुई है। इस सुखबोधा टीका का ग्रंथमान बारह सहस्र (12000) पद्य परिमाण है।
*रयणचूड़ चरियं* यह कृति प्राकृत गद्य पद्यात्मक है। इस पर संस्कृत का प्रभाव है। कृति काव्य गुणों से मंडित एवं शिक्षात्मक सूक्तियों से परिपूर्ण है। शैली पर कृत्रिमता का आवरण नहीं है। इस कृति का कथानक गणधर गौतम के मुख से सम्राट् श्रेणिक को सुनाया गया था। रत्नचूड़ इस कृति का मुख्य पात्र है। इस कृति की रचना गणी पद प्राप्ति के बाद हुई। यह कृति 3081 श्लोक परिमाण है।
*महावीर चरियं* यह नेमिचंद्रसूरि की प्राकृत पद्य रचना है। इस ग्रंथ का कुल ग्रंथमान 3000 पद्य परिमाण है। इसमें महावीर के पूर्व भवों का विस्तार से वर्णन है। यह नेमिचंद्रसूरि की अंतिम रचना मानी गई है। इसकी रचना अणहिल्लपुर पाटण में दोहड़ श्रेष्ठी की बस्ति में हुई। इसका रचनाकाल वीर निर्वाण 1619 (विक्रम संवत् 1149) है।
*समय-संकेत*
टीकाकार आचार्य नेमिचंद्र का समय उनके ग्रंथ रचना के समय संवत् के आधार पर निश्चय किया जा सकता है। 'आख्यान मणिकोश' का रचना समय वीर निर्वाण 1599 (विक्रम संवत् 1129) और 'महावीर चरियं' ग्रंथ का रचना समय वीर निर्वाण 1619 (विक्रम संवत् 1149) बताया गया है। इस आधार पर प्रस्तुत नेमिचंद्र वीर निर्वाण की 16वीं-17वीं (विक्रम की 12वीं) शताब्दी के विद्वान् थे।
*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में आगे और जानेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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