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⛩ *चेन्नई (माधावरम)*: *'संथारा साधिका' सुश्री उषा बाई डूंगरवाल* की निकली *"बैेंकुठि यात्रा"..*
🙏🏻🌞 _दिवंगत आत्मा के चिर लक्ष्य प्राप्ति की मंगलकामना_ 🌙🙏🏻
दिनांक: 25/08/2018
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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *चेन्नई के एडिशनल इनकम टैक्स कमिश्नर श्री नन्दकुमार जी* *आचार्य प्रवर* के श्री चरणों में उपस्थित....
🎯 *दिनांक: 25 अगस्त 2018*
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 25 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
25 अगस्त 2018
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प्रस्तुति:
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 409* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*राजवंश*
आचार्य हेमचंद्र के जीवन में सिद्धराज जयसिंह और भूपाल कुमारपाल का योग वरदान सिद्ध हुआ। गुजरात रत्न सिद्धराज जयसिंह से आचार्य हेमचंद्र का प्रथम मिलन अणहिल्लपुर पाटण में हुआ। गुरु देवचंद्रसूरि के स्वर्गवास के बाद हेमचंद्राचार्य खम्भात से पाटण आए। उस समय पाटण पर चौलुक्य वंशीय नरेश सिद्धराज जयसिंह का शासन था।
एक बार अणहिल्लपुर पाटण के राजमार्ग पर भीड़ के साथ गजारूढ़ नरेश को सामने आते हुए देखकर आचार्य हेमचंद्र एक तरफ किसी दुकान पर खड़े हो गए। संयोग से नरेश का हाथी भी उनके पास आकर रुक गया। उस समय हेमचंद्र ने एक श्लोक बोला
*कारय प्रसरं सिद्ध! हंसतिराजमशङ्कितम्।*
*त्रस्यन्तु दिग्गजाः किं तैर्भूस्त्वयैवोद्धृता यतः।।*
राजन! गजराज को निःसंकोच आगे बढ़ाओ। रुको मत। हाथियों के त्रास की आप चिंता नहीं करें। इस धरती का उद्धार आप से हुआ है।
पाटणनाथ हेमचंद्र की बुद्धि से प्रभावित हुआ। उस दिन के बाद नरेश के निवेदन पर आचार्य हेमचंद्र का पदार्पण पुनः-पुनः राजदरबार में होने लगा।
हेमचंद्राचार्य ने 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण ग्रंथ रचा। इसके साथ इतिहास का मनोरम अध्याय निबद्ध है।
गुजरात रत्न सिद्धराज जयसिंह मालव से विजय-माला पहन कर लौटे। लक्ष्मी उनके चरणों में लोट रही थी। सब ओर से बधाइयां प्राप्त हो रही थीं। स्वागत गीत गाए जा रहे थे, परंतु सरस्वती के स्वागत के बिना उनका मन खिन्न था। मालव राज्य का मूल्यवान् साहित्य उनके कर-कमलों की शोभा बढ़ा रहा था, पर उनके पास व्याकरण और जीवन को मधुर रस से ओतप्रोत करने वाली काव्यों की अपनी अनुपम संपदा नहीं थी। मालव ग्रंथालय के एक विशाल ग्रंथ को देखकर सिद्धराज जयसिंह ने पूछा "यह क्या है?" ग्रंथालय में नियुक्त पुरुषों ने कहा "राजन! यह भोज नरेश का स्वरचित सरस्वती कण्ठाभरण नामक विशाल व्याकरण है। विद्वद् शिरोमणि नरेश भोज शब्दशास्त्र, अलङ्कारशास्त्र, निमित्तशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वास्तुविज्ञान, अङ्कशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र आदि अनेक ग्रंथों के रचनाकार थे। प्रश्न चूड़ामणि, मेघमाला, अर्थशास्त्र आदि ग्रंथ भी उनके थे।"
सिद्धराज जयसिंह विद्या प्रेमी था। उसने इस कमी की पूर्ति के लिए प्रतिभाओं का आह्वान किया। तत्रस्थ विद्वानों की दृष्टि मेधावी आचार्य हेमचंद्र पर केंद्रित हुई। नरेश ने हेमचंद्र को कहा "मुनि नायक! लोकोपकार के लिए नए व्याकरण का निर्माण करो। इसमें आपकी ख्याति है और मेरा यश है।"
*आचार्य हेमचंद्र नरेश का परामर्श पाते ही किस तरह स्वयं को इस कार्य के लिए नियोजित किया...?* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 63* 📜
*भीमराजजी पारख*
*विविधांगी जीवन*
राजगढ़ निवासी श्रावक भीमराजजी पारख जयाचार्य के युग में तेरापंथी बने थे। उससे पूर्व वे यति संप्रदाय के अनुयाई थे। उठ-बैठ सनातनियों में अधिक थी, अतः उनके संस्कार भी उनमें प्रचुरता से थे। प्रतिवर्ष वे नियमपूर्वक कार्तिक स्नान किया करते थे। प्रातः घूमने जाते तब बहुत सारी बासी रोटियां अपने साथ ले जाते और टुकड़ा-टुकड़ा फेंककर कुत्तों को खिला देते। गर्मी के दिनों में अपनी दुकान पर ठंडे पानी के घड़े भरवाकर रखते थे। पथिकों तथा पिपासितों को उससे बड़ा सहयोग मिलता था। ये सब कार्य उनके विविधांगी जीवन के एक-एक अंग बन गए थे।
वे राजगढ़ के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में गिने जाते थे। राज्याधिकारियों से उनका बहुत अच्छा व्यक्तिगत परिचय था। कहा जाता है कि इस समय में प्रथम कोटि के थे बजरंगदासजी टीकमाणी और द्वितीय कोटि के थे भीमराज जी पारख।
*ब्याज का कार्य*
वे व्याज का कार्य किया करते थे। राजगढ़ के अतिरिक्त उन्होंने एक दुकान भिवानी में भी की थी, परंतु वहां सारा कार्य मुनीम ही देखा करते थे। वे स्वयं तो दो या तीन बार ही वहां गए थे। रेतीले और कच्चे मार्ग के कारण आने-जाने वालों को बड़े कष्ट उठाने पड़ते थे। ऊंटों पर ही जाना पड़ता था। इसलिए वे वहां बहुत कम जा पाए।
वे प्रकृति के बड़े शांत थे। झगड़ा-झंझट उनको बिल्कुल पसंद नहीं था। यदि कोई जमींदार या किसान उनके रुपए मार भी लेता, तो भी वे उस पर दावा नहीं करते। गरीबी के कारण यदि कोई रुपए नहीं दे पाता, तो वे उन्हें बट्टे खाते भुगता देते थे।
*लिखा बांचते हैं*
तेरापंथी बनने से पूर्व एक बार वे उपाश्रय में यतिजी का व्याख्यान सुनने के लिए गए। यतिजी ने व्याख्यान के प्रसंग में कहा— "भगवान की मूर्ति पर जो जितने पैसो के फूल चढ़ाता है, उसे उतने ही गांवों का राज्य मिलता है।"
भीमराजजी के गले यह बात नहीं उतरी। उन्होंने कहा— "मैं एक रुपए के फूल चढ़ाने को तैयार हूं। बदले में आप मुझे केवल राजगढ़ का ही राज्य दिलवा दीजिए।"
इसके उत्तर में यतिजी अन्य तो कुछ भी नहीं कह पाए, केवल इतना ही कह कर चुप हो गए कि भाई! हम तो जैसा पोथी में लिखा है, वही बांचते हैं। इसमें कितना सत्य है और कितना असत्य, इसका हमें कोई पता नहीं।
*भीमराजजी पारख अच्छे नाड़ी-वेत्ता भी थे... उनके प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* में इसके बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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💢 *निमंत्रण* 💢
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*आइये!*
*अपने आराध्य को*
*श्रद्धा-भक्ति अर्पण*
*करने चलें।*
*अपनी यात्रा सुनिश्चित करें।*
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💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
*दिनांक 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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भावनात्मक स्वास्थ्य व प्रेक्षा ध्यान
प्रेक्षा ध्यान, मौलिक प्रवचन - ४
अवधि: ४५ मी.
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*विचार क्यों?: कायोत्सर्ग और श्वास प्रेक्षा, वीडियो श्रंखला ३*
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संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻