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🔰 *निमंत्रण* 🔰
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*आइये!*
*सपरिवार अपनी*
*श्रद्धा-भक्ति अर्पण*
*करने चलें।*
*अपनी यात्रा सुनिश्चित करें।*
🌀
💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💠 *सान्निध्य* 💠
*शासन श्री मुनि श्री रविंद्रकुमार जी*
*व तपोमूर्ति मुनि श्री पृथ्वीराज जी*
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
🎶
*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
🎶
*दिनांक 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ प्रबुद्ध जन..*
💠 *अरविंद ऑय हॉस्पिटल के चेयरमैन श्री रवीन्द्रन*
💠 *तमिलनाडु राइस मिल ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री तुलसिंगम*
💠 *मल्टीपल कॉउंसिल्स लाइंस क्लब इंटरनेशनल के चेयरमैन श्री पर्थीव कुमार*
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👉 सैन्थिआ - "कैसे करे नारी गति प्रगति का एहसास" विषय पर कार्यशाला आयोजित
👉 सादुलपुर - अणुव्रत समिति द्वारा सघन प्रचार प्रसार
प्रस्तुति 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 दिल्ली - मुनि श्री के संथारे का पांचवा दिन गतिमान
♨ मुनि श्री के दर्शनार्थ केंद्रीय मंत्री व लोकसभा सासंद
दिनांक 30-08-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 30 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Update
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
📮
दिनांक:
30 अगस्त 2018
🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 412* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*राजवंश*
गतांक से आगे...
पाटण नरेश सिद्धराज जयसिंह का देहावसान वीर निर्वाण 1669 (विक्रम संवत् 1199) में हुआ। उनके स्थान पर सुयोग्य कुमारपाल का राज्याभिषेक हुआ।
राजा किसी के मित्र नहीं होते, पर हेमचंद्राचार्य के विशाल एवं उदार व्यक्तित्व के कारण सिद्धराज जयसिंह नरेश के साथ उनके मैत्री अंतिम समय तक बढ़ती रही।
नरेश कुमार पाल में सिद्धराज जयसिंह जैसा विद्याप्रेम, कलाप्रेम और साहित्यानुराग नहीं था। वह धार्मिक वृत्ति का था। शिव का भक्त था। जैन धर्म के प्रति आस्था थी। वह हेमचंद्राचार्य के व्यक्तित्व से प्रभावित था। राज्यारोहण के समय कुमारपाल की अवस्था 50 वर्ष की थी और हेमचंद्राचार्य की उम्र 54 वर्ष की थी। समवयस्क होते हुए भी उनका संबंध गुरु-शिष्य जैसा था। महत्त्वपूर्ण कार्य के संपादन में कुमारपाल हेमचंद्राचार्य की सम्मति को मानता था।
राज्यारोहण के बाद कुमारपाल ने राज्य की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सपादलक्ष देश के नरेश अर्णोराज के साथ ग्यारह बार युद्ध किया। हर बार उसे असफलता मिली। मंत्री वाहड़ की सलाह से उसने जैन धर्म स्वीकार कर बारहवीं बार अर्णोराज पर आक्रमण किया। वह इस युद्ध में विजयी हुआ। यह समय वीर निर्वाण 1677 (विक्रम संवत् 1207) के आसपास है। इस घटना से नरेश की धार्मिक आस्था जैन धर्म के प्रति दृढ़ हो गई। अर्णोराज पर विजय प्राप्त करने के बाद नरेश कुमारपाल हेमचंद्राचार्य की सन्निधि पहुंचा। हेमचंद्राचार्य ने नरेश को अनेक अहिंसा प्रधान जीवनोपयोगी शिक्षाएं दीं। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर नरेश ने मांसाहार परिहार आदि कई नियम लिए।
हेमचंद्राचार्य ने कुमारपाल के राज्यारोहण के सात वर्ष पूर्व उसके राजा बनने की घोषणा कर दी थी और उसे मौत के मुख से बचाया था। इस उपकार से कुमारपाल हेमचंद्राचार्य के प्रति श्रद्धावनत था। उसने एक बार आचार्य के चरणों में राज्य समर्पित कर दिया। हेमचंद्राचार्य ने राज्य समर्पण के बदले अमारि की घोषणा करवाई तथा जैन धर्म के प्रचार-प्रसार की प्रेरणा दी।
अमारि की घोषणा से कुछ लोगों को ईर्ष्या हुई। उन्होंने कुमारपाल से निवेदन किया "राजन! कण्टकेश्वरी राजकुल की देवी है। देवी बलि मांग रही है। मांग पूरी नहीं होने पर उसका कोप विनाश का हेतु होगा।"
कुमारपाल ने हेमचंद्राचार्य से परामर्श किया तथा रात्रि में देवी के सामने पशु छोड़ दिए और कहा "देवी की इच्छा होने पर वह स्वयं उनका भक्षण कर लेगी।" रात्रि पूर्ण हुई। पशु कुशलतापूर्वक वहीं खड़े थे। प्रतिवादी निरुत्तर हो गए। कुमारपाल के हृदय में अहिंसा के प्रति गहरी निष्ठा हुई।
*हेमचंद्राचार्य और नरेश कुमारपाल के जीवन से संबंधित कुछ अन्य घटनाओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 66* 📜
*उदयचंदजी बैद (ताराणी)*
*जीवन का नया मोड़*
उदयचंदजी में धार्मिक संस्कार तो प्रारंभ से ही थे, किंतु उक्त घटना के पश्चात् उनमें एक विशेष प्रवाह आ गया। क्रमशः वे धार्मिकता की ओर अधिकाधिक झुकते चले गए। सामायिक, जप और स्वाध्याय में विशेष समय लगाने लगे। साधारण तत्त्वज्ञान के लिए अनेक थोकड़े तथा भक्ति-पूरक अनेक ढालें कंठस्थ कीं। साधु-साध्वियों की सेवा में विशेष समय लगाने लगे। प्रतिवर्ष आचार्य श्री के प्रायः दो बार दर्शन करने लगे। कभी किसी कारण से विलंब हो जाता तो उस समय तक के लिए घृत का परित्याग कर देते। उसी वर्ष से उन्होंने चारों स्कंध प्रत्याख्यान भी कर दिए। कहना चाहिए कि वह घटना उनके जीवन को नया मोड़ देने वाली सिद्ध हुई। उस समय से उन्होंने अपने जीवन को त्याग और तपस्या प्रधान बना लिया। धर्म के रंग में ऐसे रंगे कि उनका अधिकांश समय साधु-साध्वियों के आस-पास ही व्यतीत होने लगा। सभी साधु-साध्वियों का जीवन विवरण संगृहीत करके रखने लगे। लोग उन्हें मजाक में साधुओं का 'बाही भाट' कहकर पुकारा करते थे। समय-समय पर आचार्यों तथा साधु-साध्वियों के गुण वर्णन की गीतिकाएं बनाकर भी वे व्याख्यान में सुनाया करते थे। एक बार संवत् 1964 में उन्होंने आचार्य श्री डालगणी के सम्मुख एक लंबी गीतिका रचकर सुनाई। उसमें उस समय विद्यमान सभी साधु-साध्वियों का क्रमानुसार वर्णन था।
*संपत्ति की व्यवस्था*
उनका घर संपत्तिशाली था। परिवार भी बहुत बड़ा था। कमाई अच्छी चलती थी। सभी भाई समय-समय पर बंगाल जाते और कार्य संभालते रहते। कालांतर में उदयचंदजी का मन व्यापार की ओर से उदासीन रहने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने बंगाल जाना कम कर दिया। फिर संवत् 1944 में बंगाल जाने का परित्याग कर दिया। उसमें कुछ अग्रोक्त आगार थे– खाता देखने की आवश्यकता हो, बंटवारा करना हो या फिर साझीवाल आवश्यक समझ कर बुलाते हों तो वर्ष में एक बार एक मास के लिए जा सकते थे।
संवत् 1966 में उनके परिवार ने संपत्ति का बंटवारा किया। उस समय छोटे भाई दानचंदजी का परिवार उदयचंदजी के साथ ही रहा। संवत् 1962 में दानचंदजी का देहांत हो गया था। उनके परिवार में केवल तीन ही व्यक्ति थे। एक उनकी पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री। पिता की मृत्यु के समय पुत्र मालचंदजी 7 वर्ष के और पुत्री चांदबाई 5 वर्ष की थी। संवत् 1967 में उदयचंदजी ने मालचंदजी का विवाह किया और उन्हें गोद लेकर अपने विभाग की संपत्ति और 858 बीघा खेत की भूमि उनके नाम कर दी। उसके पश्चात् वे विशेष रूप से निवृत्तिपरक जीवन व्यतीत करने लगे।
*राजलदेसर के श्रावक उदयचंदजी बैद (ताराणी) की त्याग तपस्या और महान संलेखना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन
मनमोहक दृश्य
📮
दिनांक:
30 अगस्त 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य तुलसी
शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल
ओपनिंग सेरेमनी
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: दिनांक:
01 सितंबर 2018
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क्लोजिंग सेरेमनी
& अवार्ड सेरेमनी
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: दिनांक:
02 सितंबर 2018
📍
: स्थान:
आशीर्वाद भवन
आचार्य तुलसी
शांति प्रतिष्ठान
नैतिकता का
शक्ति पीठ
नोखा रोड
गंगाशहर (बीकानेर)
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: प्रस्तुति:
आचार्य तुलसी
शांति प्रतिष्ठान
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: प्रसारक:
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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