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बाहर पानी की बरसात तो अंदर अमृतवाणी की बरसात
-बरसती बूंदों के कारण प्रवास स्थल से ही प्रदान किया मंगल उद्बोधन
-जीवन में तेजस्विता और शीतलता का संतुलन बनाए रखने की आचार्यश्री ने दी प्रेरणा
-#मासखमण सहित अनेक तपस्याओं का श्रद्धालुओं ने किया प्रत्याख्यान
31.08.2018 #माधावरम, #चेन्नई (#तमिलनाडु): शुक्रवार को जब बादल से पानी की बरसात हो रही थी तो उसी समय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता महातपस्वी शांतिदूत #आचार्य_श्री_महाश्रमण जी की अमृतवाणी रूपी वर्षा भी आरम्भ थी। बादल से बरसती बूंदों से जहां धरती गीली हो रही थी तो आचार्यश्री की अमृतवाणी रूपी आध्यात्मिक बरसात लोगों को हृदयरूपी आंगन को अभिसिंचन प्रदान कर रही थी। बरसती बूंदे जहां धरती का ताप हरण कर रही थीं तो आचार्यश्री की बरसती अमृतवाणी लोगों के भीतर के संताप का हरण कर रही थी। यह अविस्मरणीय क्षण था चतुर्मास प्रवास स्थल, माधावरम का। जहां शुक्रवार को प्रातः हो रही बरसात के कारण जब आचार्यश्री का ‘महाश्रमण समवसरण’ में पधारना संभव न हुआ तो उपस्थित श्रद्धालुओं पर अपनी अमृतवाणी की वर्षा आचार्यश्री ने अपने प्रवास स्थल के बाहरी बाग में बने बारामदे से आरम्भ कर दी। श्रद्धालु अपने आराध्य की इस कृपा से मानों निहाल हो उठे। आचार्यश्री ने वहीं मंगल प्रवचन का श्रवण ही नहीं कराया, बल्कि नियमित चलने वाले मुनिपत के व्याख्यान का वाचन भी किया। वहीं आचार्यश्री के समक्ष आज एक मासखमण की तपस्या सहित अनेक लोगों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।
शुक्रवार को सूर्योदय होने के पूर्व से ही बरसात हो रही थी जो रूक-रूककर लगातार हो रही थी। इस कारण प्रवचन पंडाल तक आचार्यश्री का जाना संभव न हो सका तो आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं पर महती कृपा कराने के अपने प्रवास स्थल के बाहर की ओर बने बरामदे में विराजमान हो गए। और कहते हैं ना जहां आराध्य विराजमान बस वहीं समवसरण स्थापित हो जाता है। इसी प्रकार उसी बरामदे और आसपास ही ओ गया समवसरण। हालांकि प्रवचन पंडाल में दोनों ओर लगी बड़ी स्क्रीन के माध्यम से भी श्रद्धालु अपने आराध्य को अपने समक्ष ही देख पा रहे थे।
आचार्यश्री ने ‘#ठाणं’ #आगमाधारित अपने पावन प्रवचन में आकाश के दो भाग लोकाकाश और अलोकाकाश का वर्णन करते हुए कहा कि लोकाकाश छोटा और अलोकाकाश अनंत होता है। लोकाकाश में ही सिद्ध, देव मानव आदि सभी रहते हैं। आचार्यश्री ने शास्त्रकार द्वारा वर्णित आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र और तारों वर्णन करते हुए कहा कि सूर्य एक ऐसा तत्त्व है जिसमें ऊष्मा व तेजस्विता है। वह प्रकाश वाला है। प्रकाश का गुण मनुष्यों में भी आना चाहिए। सूर्य से प्रकाशवत्ता और ज्ञानवत्ता की प्रेरणा लेने का प्रयास करना चाहिए। चन्द्रमा की शीतलता और निर्मलता से भावों में शीतलता और आचारों में निर्मलता लाने का प्रयास करना चाहिए। ग्रहों से दूसरों की भी अच्छाइयों को भी ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार चंद्रमा ग्रह, नक्षत्र और तारों से शोभायमान होता है, उसी प्रकार आचार्य भी अपने साधु-साध्वियों के मध्य शोभायमान होते हैं।
आदमी में तेजस्विता और शीतलता दोनों संतुलित रूप में होना चाहिए। किसी भी अधिकता अच्छी नहीं होती। दोनों का संतुलित समावेश शरीर, मन और जीवन में रहे तो आदमी का जीवन अच्छा हो सकता है।
आगमाधारित मंगल प्रवचन के पश्चात् आचार्यश्री ने मुनिपत के व्याख्यान क्रम को आगे बढ़ाया।
इसके उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि श्री बादल मेहता ने मासखमण (31) की तपस्या का प्रत्याख्यान कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। साथ ही अपनी-अपनी धारणाओं के अनुसार अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मुस्कान-राकेश बोथरा द्वारा गाए गए गीतों की सीडी ‘आस्था का धाम’ चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धर्मचंद लूंकड़ तथा श्री रमेश कोठारी ने आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की। श्री नरेश मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त किया।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी #महासभा
31.08.2018
प्रेषक > ƬHЄ MЄƊƖƛ ƇЄƝƬЄƦ
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ममत्व और प्रमोद भावना का एक और उदाहरण देते हुए शासन श्री। कृपया इस वीडियो को जरूर देखने का प्रयास करें🙏🙏 #दुर्लभ_वीडियो
#दिल्ली में विराजित वरिष्ठतम सन्त "#शासनश्री" #मुनि_श्री_सुमेरमल जी 'सुदर्शन' के #संथारे का आज छठा दिन सानन्द गतिमान है।
31.08.2018
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🙏 #जय_जिनेन्द्र सा 🙏
दिनांक- 31-08-2018
तिथि: - #भादवा #कृष्णा #पाँचम (05)
#शुक्रवार का त्याग/#पचखाण
★आज #जमीकंद खाने का #त्याग करे।
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जय जिनेन्द्र
#प्रतिदिन जो त्याग करवाया जाता हैं। सभी से #निवेदन है की आप स्वेच्छा से त्याग अवश्य करे। छोटे छोटे #त्याग करके भी हम मोक्ष मार्ग की #आराधना कर सकते हैं। त्याग अपने आप में आध्यात्म का मार्ग हैं।
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🙏 THE MEDIA CENTER 🙏
🔯 गुरुवर की अमृत वाणी 🔯
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