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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 05 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 तेजपुर - *तिविहार संथारा सआनंद गतिमान.....*
👉 गंगावती - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 साउथ कोलकाता - निर्माण एक कदम स्वच्छता की ओर
👉 साउथ कोलकाता - महिला मंडल द्वारा यंग अचीवर्स का सम्मान समारोह आयोजित
👉 साउथ कोलकाता - कन्या मंडल द्वारा पहचान का परचम पर नृत्य नाटिका की प्रस्तुति
👉 राजगढ़, सादुलपुर- समिति द्वारा अणुव्रत के प्रचार प्रसार में सहयोगी बने पत्रकार को सम्मानीत
👉 तिरपुर - ज्ञानशाला वार्षिकोत्सव का आयोजन
👉 बाड़मेर - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 कोटा - भक्ति आधारित चिकित्सा पद्वति कार्यशाला एवं तप अभिनन्दन समारोह का आयोजन
👉 अहमदाबाद (हिम्मतनगर) - अ भा ते म मं राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्या एवं गुजरात प्रभारी की संगठन यात्रा
👉 शाहीबाग (अहमदाबाद) - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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05 September 2018
❄⛲❄⛲❄⛲❄⛲❄
👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬
https://youtu.be/6L-OyfqUWL0
📍
: दिनांक:
*05 सितंबर 2018*
: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄
: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
❄⛲❄⛲❄⛲❄⛲❄
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
🏮
कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
05 सितंबर 2018
🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🔰🎌♦♻♦♦♻♦🎌🔰
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 416* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*कोषग्रन्थ*
आचार्य हेमचंद्र ने चार कोष ग्रंथों की रचना की। *1.* अभिधान चिंतामणि, *2.* अनेकार्थ संग्रह, *3.* निघण्टु, *4.* देशीनाममाला। इन चारों में अभिधान चिंतामणि सर्वाधिक विशाल है। इसके 6 कांड हैं एवं 1541 श्लोक हैं। इस शब्दकोष की रचना 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' के बाद हुई। ग्रंथ के प्रारंभ में हेमचंद्र लिखते हैं
*प्रणिपत्यार्हतः सिद्धसाङ्गशब्दानुशासनः।*
*रूढयौगिकमिश्राणां नाम्नां मालां तनोम्यहम्।।1।।*
उपर्युक्त उल्लेख से स्पष्ट है कि कोष की रचना से पूर्व व्याकरण की रचना हो गई थी।
इस प्रथम अभियानचिंतामणिकोष में एक-एक वस्तु के अनेक पर्यायवाची संस्कृत नामों का उल्लेख है। द्वितीय कोष अनेकार्थ संग्रह में एक शब्द के अनेक अर्थ बताए गए हैं। तृतीय निघण्टुकोष में वनस्पति शास्त्र संबंधी विभिन्न नामों की सामग्री है। यह वनस्पति शास्त्र कोष है। चतुर्थ देशीनाममाला कोष में संस्कृत प्राकृत व्याकरण से असिद्ध देशी शब्दों का संग्रह है। प्राकृत अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं एवं आधुनिक भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से यह कोष अत्यंत उपयोगी है। आचार्य हेमचंद्र ने इन चारों कोषों में ज्ञान का वैभव भर दिया है।
*काव्यानुशासन* यह आचार्य हेमचंद्र का उत्तम कोटि का ग्रंथ है। इसमें काव्य के गुण दोषों की नई एवं सारगर्भित व्याख्याएं हैं। 'काव्यमानन्दाय' कहकर हेमचंद्र ने काव्य के लक्ष्य का निर्धारण किया है और मम्मट द्वारा प्रस्तुत काव्य परियोजन की परिभाषा में नया क्रम जोड़ा है। इसके पाठ से काव्य गुणों के विवेचन में मम्मट की अपेक्षा हेमचंद्र के चिंतन में अधिक व्यापकता है। इस ग्रंथ पर ग्रंथकार के अलङ्कारचूड़ामणि नामक एक लघु टीका है। विषयों का विस्तार से विवेचन ग्रंथकार की विवेक नामक टीका में है।
*छंदोनुशासन* यह ग्रंथ छंदों का ज्ञान कराने में उपयोगी है। इस ग्रंथ में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तीनों भाषाओं के ग्रंथों के छंदों का निरूपण किया गया है। आचार्य हेमचंद्र कि यह छंदशास्त्र संबंधी मौलिक कृति है। इसमें छंदों की विविध प्रकार की सामग्री है। छंदों के उदाहरण भी हेमचंद्र ने अपने ग्रंथों में दिए हैं। इस ग्रंथ पर आचार्य हेमचंद्र की वृत्ति भी है। काव्यानुशासन के बाद छंदोनुशासन की रचना हुई है।
*द्वात्रिंशिकाएं* अन्ययोगव्यवच्छेदिका और अयोगव्यवच्छेदिका नामक दो द्वात्रिंशिकाओं में भारतीय दर्शनों की अवधारणा और जैन दर्शन के साथ उनकी तुलना है। भारतीय दर्शनों को समझने के लिए ये दोनों द्वात्रिंशिकाएं पठनीय हैं। दोनों कृतियों में शब्द संयोजन आकर्षक है। वह पाठक के मन को चुंबक की तरह आकर्षित करती है।
*द्वयाश्रय महाकाव्य* आचार्य हेमचंद्र का यह महाकाव्य है। इसकी रचना संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं में हुई है, अतः भाषा के आधार पर यह महाकाव्य दो विभागों में विभक्त है
*1.* संस्कृत द्वयाश्रय महाकाव्य
*2.* प्राकृत द्वयाश्रय महाकाव्य।
इस महाकाव्य में चौलुक्यवंश का पूर्ण इतिहास और काव्य के सभी गुणों का स्पष्ट दर्शन है। इस काव्य का नाम कुमारपाल चरित्र भी है। काव्य रचना का मुख्य उद्देश्य कुमारपाल चरित्र का वर्णन करना है। इस ग्रंथ में संस्कृत, प्राकृत व्याकरण के नियमों की सोदाहरण प्रस्तुति हुई है। यह श्रमसाध्य कार्य है। जिसकी अनुभूति कुशल वैयाकरण ही कर सकता है। ऐसा कार्य हेमचंद्र जैसी सूक्ष्म प्रज्ञा से संभव है।
इस महाकाव्य के 28 सर्ग हैं। इसके संस्कृत सर्गों की संख्या 20 है। अवशिष्ट आठ सर्ग प्राकृत में हैं। इसमें चौलुक्यवंश के परंपरा का विस्तार से वर्णन है। अध्यात्म चर्चाओं की दृष्टि से सातवां सर्ग महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें कुमारपाल के चरित्र वर्णन के साथ अनेक अन्य शिक्षात्मक कविताएं भी हैं। कुमारपाल चरित्र की प्रधानता होने के कारण इस काव्य की प्रसिद्धि 'कुमारपाल चरित्र' के नाम से हुई है।
*कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य द्वारा रचित अन्य कोषग्रन्थों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 70* 📜
*अम्बालालजी कावड़िया*
*दृढ़ श्रावक*
अंबालालजी का जन्म उदयपुर निवासी कुंदनलालजी कावड़िया के घर संवत् 1907 में हुआ। वे प्रसिद्ध देशभक्त भामाशाह के वंशज थे। भामाशाह ने महाराणा प्रताप को देश रक्षा के लिए जो धन दिया था, कहा जाता है कि वह 'कावड़ों' में भर-भर कर लाया गया था। तभी से उनकी वंश परंपरा के साथ 'कावड़िया' विशेषण जुड़ गया। कालांतर में ओसवाल जाति में वह भी एक गोत्र बन गया। अंबालालजी ने जयाचार्य के शासनकाल से प्रारंभ कर कालूगणी के शासनकाल तक अपनी सेवाएं प्रदान कीं। उनका ननिहाल तेरापंथ का अनुयाई था। उनकी माता बड़ी आस्थावान् श्राविका थी। अंबालालजी को उन्हीं से धर्म का रहस्य प्राप्त हुआ। बाद में जयाचार्य के पास उन्होंने गुरुधारणा की। धीरे-धीरे तत्त्वज्ञान सीख कर वे अत्यंत दृढ़ हो गए। कालांतर में उनकी गणना उदयपुर के प्रमुख श्रावकों में होने लगी। वे बहुत दूर-दूर तक के क्षेत्रों में जाकर आचार्यों के दर्शन करते रहते थे। अपने साथ अन्य व्यक्तियों को भी ले जाया करते थे। अनेक व्यक्तियों ने उनके माध्यम से धर्म के रहस्य को समझकर उसे ग्रहण किया।
*सफल वकील*
वे वकालत किया करते थे। केवल ताजीमी जागीरदारों के मामले ही लिया करते, शेष के लिए उन्हें समय ही नहीं रहता था। सफल वकील होने से समाज के भी अनेक कार्यों को सुलझाने में उनका महत्त्वपूर्ण सहयोग रहता था। गंगापुर की साध्वी नजरकंवरजी को दीक्षित होने से रोकने के लिए पुर निवासी चौथमलजी ने एक मुकद्दमा प्रारंभ कर दिया था। उसमें उनके विरुद्ध विजय प्राप्त करने में उन्हीं का मुख्य परिश्रम रहा। संघ में दीक्षित होने वाले अन्य भी अनेक दीक्षार्थियों की पारिवारिक बाधाओं को दूर करने में उन्होंने समय-समय पर सफल सहयोग प्रदान किया। गोगुंदा निवासी मुनि सुखलाल जी और उनकी माता तथा पहुना निवासी मुनि मांगीलालजी और उनकी माता की दीक्षा कुछ पारिवारिक आग्रहों-विग्रहों के कारण रुकी हुई थी। अंबालालजी के प्रयासों ने ही उनको आज्ञा प्रदान करवाई।
*तेरापंथ समाज पर मंदिर मार्गी समाज का गड़बोर में दाखिल एक प्रसिद्ध मुकद्दमे व एक अन्य मामले में अंबालालजी कावड़िया द्वारा किए गए शांति के प्रयास* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ प्रबुद्ध जन..*
💠 *हिन्दू मक्कल कतची (पार्टी) के संस्थापक अध्यक्ष श्री अर्जुन संपथ*
💠 *तमिलनाडु ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री विक्रमराजा*
💠 *ट्रेडर्स एसोसिएशन के तिरुवनामलै जिला अध्यक्ष श्री मन्नुलिंगम*
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दिनांक 04-09-2018
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