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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 06 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 417* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*कोषग्रन्थ*
*योगशास्त्र* यह योग विषयक कृति है। इसके 12 प्रकाश हैं। श्लोक संख्या 1012 है। इस ग्रंथ पर 12750 श्लोक परिमित व्याख्या भी है। इस ग्रंथ में यम, नियम आदि योग से संबंधित विभिन्न बिंदुओं का विस्तृत वर्णन है तथा श्रावक के नियमों को प्रथम चार प्रकाशों में प्रतिपादित किया है। श्लोकों की रचना अनुष्टुप् छंद में है। योग के महत्त्व तथा योग की निष्पत्ति को बताने वाला यह महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। प्रस्तुत ग्रंथ की रचना चौलुक्य वंश भूषण परमार्हत् श्री कुमारपाल नरेश की प्रार्थना पर हुई। कुमारपाल इसका प्रतिदिन स्वाध्याय किया करता था।
*प्रमाणमीमांसा* इसमें प्रमाण और प्रमेय का विस्तृत व्याख्यान है। यह न्याय विषयक कृति है। इस ग्रंथ में पांच अध्याय हैं। यह ग्रंथ पूरा उपलब्ध नहीं है।
*परिशिष्ट पर्व* त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र की भांति यह आचार्य हेमचंद्र का ऐतिहासिक ग्रंथ है। इसमें जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों का जीवन चरित्र निबद्ध है। इस ग्रंथ पर डॉ. हर्मन जेकोबी की प्रस्तावना (Parisista Parva Introduction) पठनीय है।
*त्रिषष्टिशलाकापुरुष* यह ऐतिहासिक ग्रंथ है। इसमें जैन धर्म के 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव, 9 बलदेव इन 63 शलाकापुरुषों का जीवन चरित्र है। यह ग्रंथ दस विभागों में विभाजित है। विभाग का पर्व संज्ञा से अभिहित किया गया है। यह काव्य जैन पुराण ग्रंथ है।
तत्कालीन सांस्कृतिक चेतना, सभ्यता का उत्कर्ष, धर्म, दर्शन, विज्ञान, कला, अध्यात्म आदि विविध विषयों को अपने में गर्भित किए हुए यह ग्रंथ इतिहास प्रेमी पाठकों के लिए उपयोगी है। महाभारत के विषय में कही गई यह लोकोक्ति "यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्" प्रस्तुत ग्रंथ पर अधिकांशतः चरितार्थ होती है। हेमचंद्राचार्य की इतिहास विषयक यह उत्तम कृति है।
*कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य द्वारा रचित ग्रन्थों की मौलिकता पर विद्वानों के विचार* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 71* 📜
*अम्बालालजी कावड़िया*
*गड़बोर के मुकद्दमे*
गड़बोर के मूर्तिपूजक समाज ने तेरापंथियों को मंदिर में सामायिक आदि धर्म क्रियाएं करने से रोकने की दृष्टि से उन पर दो मुक़द्दमे चलाए। प्रथम मुकद्दमा संवत् 1937 में प्रारंभ किया गया। उन्होंने 23 तेरापंथी श्रावकों के नाम लिखाए और आरोप लगाया कि उन्होंने मूर्ति पर टांचे लगा दिए। उक्त मुकद्दमा नीचे की दो अदालतों में चलने के पश्चात् अंत में महद् राजसभा में आया। उनका निर्णय करने के लिए संवत् 1970 में महाराणा फतेहसिंहजी ने 4 व्यक्तियों का खण्डपीठ नियुक्त किया, परंतु वह एकमत नहीं हो पाया। तब संवत् 1989 में महाराणा भूपालसिंहजी ने 9 व्यक्तियों का दूसरा खण्डपीठ नियुक्त किया। उसमें संवत् 1990 में मंदिरमार्गियों की अपील को निरस्त कर दिया। तेरापंथ समाज की वह महत्त्वपूर्ण विजय थी।
उक्त मुकद्दमे के बीच में ही मंदिरमार्गियों ने एक दूसरा मुकद्दमा संवत् 1939 में प्रारंभ किया। उसमें 24 तेरापंथी श्रावकों के नाम लिखाए और आरोप लगाया कि उन्होंने मंदिर में यति बखतावरसागरजी के व्याख्यान में विघ्न डाला और अपशब्द बोलते हुए झगड़ा किया। वह मुकद्दमा भी नीचे की दो अदालतों में होता हुआ महद् राजसभा में पहुंचा। महाराणा फतेहसिंहजी ने उसके लिए तीन व्यक्तियों का खण्डपीठ नियुक्त किया। उसने नीचे की अदालतों को ठपका दिया और संवत् 1985 में मंदिरमार्गियों की अपील निरस्त करते हुए तेरापंथियों को पूर्णतः निर्दोष घोषित किया।
उक्त दोनों ही मुकद्दमों को जीतने में गड़बोर निवासी श्रावक हेमराजजी सियाल के साथ-साथ अंबालालजी कावड़िया का भी सराहनीय योगदान रहा। यद्यपि अंतिम विजय के समय तक कावड़ियाजी जीवित नहीं रहे, फिर भी कार्य संचालन की जो भूमिका उन्होंने बनाई, उससे अंतिम लक्ष्य को पाने में बड़ा सहयोग मिला।
*शांति-प्रयास*
मुनि पृथ्वीराजजी का चातुर्मास उदयपुर में था। उस वर्ष अन्य संप्रदाय के साधुओं ने उन्हें शास्त्रार्थ करने के लिए चुनौती दी। मुनिश्री ने उसे स्वीकार कर लिया। विरोधी पक्ष के साधु वस्तुतः शास्त्रार्थ करने के लिए इतने उत्सुक नहीं थे, जितने किसी न किसी बहाने से दोनों समाजों में परस्पर झगड़ा करा देने के लिए। इसलिए उनकी ओर से विभिन्न उत्तेजनापूर्ण बातें कही जाने लगीं। फल यह हुआ कि दोनों ओर से विभिन्न उत्तेजनापूर्ण बातें कही जाने लगीं और दोनों ओर के व्यक्तियों में इतना तनाव उत्पन्न हो गया कि झगड़ा हो जाने का वातावरण बन गया। जब महाराणा फतेहसिंहजी के पास उक्त वातावरण की बात पहुंची तो उन्होंने आदेश देकर शास्त्रार्थ के लिए निषेध करवा दिया। उत्तेजनापूर्ण स्थिति के उस सिलसिले में पुलिस ने दोनों ओर के 25 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, परंतु कुछ समय पश्चात उन सबको मुक्त कर दिया गया। उस झमेले में वातावरण को अधिक न बिगड़ने देने तथा उसे शांत करने के प्रयासों में कावड़ियाजी का प्रमुख हाथ रहा। उसके लिए वे समय-समय पर महाराणा से मिलते रहे तथा उन्हें परिस्थितियों से अवगत कराते रहे।
*श्रावक अंबालालजी कावड़िया के कुछ और जीवन प्रसंगों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....
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दिनांक:
06 सितंबर 2018
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*निद्रा संयम, वीडियो श्रंखला १*
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