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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 08 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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पर्युषण पर्व का
द्वितीय दिवस
"स्वाध्याय दिवस"
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दिनांक:
08 सितंबर 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 419* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*ग्रन्थों की मौलिकता पर विद्वानों के विचार*
गतांक से आगे...
आचार्य हेमचंद्र की प्रतिभा से उत्तरवर्ती विद्वान् प्रभावित थे। आचार्य सोमप्रभ ने उनके साहित्य के संबंध में लिखा है
*क्लृप्तं व्याकरणं नवं विरचितं छन्दो नवं द्वयाश्रयालङ्कारो प्रथितौ नयौ प्रकटितं श्रीयोगशास्त्र नवम्।*
*तर्कः सज्जनितो नवो जिनवरादिनां चरित्रं नवं*
*बद्ध येन न केन केन विधिना मोहः कृतो दूरतः।।*
आचार्य हेमचंद्र का साहित्य इतना मौलिक है कि जिसने भी उनके साहित्य को पढ़ा वह मुग्ध हो गया।
जर्मन विद्वान् डॉ. हर्मन जेकोबी तथा डॉ. बुल्वर ने उनके साहित्य का मंथन किया और दोनों ने उनके ग्रंथों पर समालोचनात्मक निबंध लिखे।
आचार्य हेमचंद्र ने किसी का अनुकरण नहीं किया। उनके ग्रंथों में नया चिंतन, नई सामग्री, नई शैली, नई दृष्टि, नई सृष्टि और नया अनुसंधान है।
आचार्य हेमचंद्र के ग्रंथों का प्रचार-प्रसार बहुत हुआ। नरेश कुमारपाल ने तथा अन्य राजाओं ने उनके साहित्य को दूर-दूर तक पहुंचाने की व्यवस्था की। कुमारपाल ने 700 लिपिकारों से ग्रंथों को लिपिबद्ध करवाया।
हेमचंद्राचार्य के पास रामचंद्रसूरि, गुणचंद्रसूरि, महेंद्रसूरि, वर्द्धमानगणी जैसे साहित्यकार शिष्य थे। लोकश्रुति है कि चौरासी कलमें एक साथ आचार्य हेमचंद्र के प्रशिक्षण केंद्र में चलती थीं।
समृद्ध साहित्य के रचनाकार कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य ने सरस्वती के खजाने को ज्ञान की अक्षय निधि से भरा। गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह को सुलभबोधि बनाकर तथा महान् शासक कुमारपाल को व्रत-दीक्षा प्रदान कर जैन शासन के गौरव को हिमालय के शिखर पर चढ़ा दिया।
शिलालेखों में कुमारपाल के साथ परमार्हत विशेषण उनके जैन होने का पुष्ट प्रमाण है।
आचार्य हेमचंद्र निस्संदेह अलौकिक प्रज्ञा के धनी थे। उनके सुप्रयत्नों से उस युग में नए प्रभात का उदय हुआ एवं भारतीय संस्कृति प्राणवान् बनी। उसके कण-कण में अध्यात्म चेतना मुखर हो गई।
*समय-संकेत*
कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र की आयु 84 वर्ष की थी। संयम साधना के 76 वर्ष के काल में 63 वर्ष तक आचार्य पद का दायित्व कुशलतापूर्वक वहन किया। आचार्य हेमचंद्र का स्वर्गवास वीर निर्वाण 1699 (विक्रम संवत् 1229) गुजरात प्रांत में हुआ।
आचार्य हेमचंद्र का युग जैन शासन के उत्कर्ष का युग था।
*महामनीषी आचार्य मलयगिरि के प्रेरणादायी प्रभावित चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 73* 📜
*अम्बालालजी कावड़िया*
*सेवार्थियों को सुविधा*
कावड़ियाजी बड़े सेवा परायण और साहसी व्यक्ति थे। वे व्यवस्था करने में भी बड़े निपुण थे। आचार्यों के उदयपुर पदार्पण के समय सेवा में आने जाने वाले यात्रियों के ठहरने के लिए मकानों की व्यवस्था करने का भार बहुधा उन्हीं पर रहता था। श्रावक समाज की अन्य समस्याओं में भी वे रुचि लिया करते और उन्हें सुलझाने का प्रयास करते रहते थे।
संवत् 1951 में डालगणी का मेवाड़ में पदार्पण हुआ। मेवाड़ की सीमा में प्रवेश करने के दिन से ही अंबालालजी सेवा में पहुंच गए। मार्ग में स्थान स्थान पर चुंगी की चोकी वालों ने यात्रियों को तंग करना प्रारंभ कर दिया। उस कठिनाई को दूर करने के लिए वे स्वयं उदयपुर गए और अधिकारियों से आज्ञा प्राप्त की कि सेवा में आने जाने वाले किसी भी व्यक्ति की तलाशी नहीं ली जाए और उन्हें किसी प्रकार से तंग न किया जाए। सेवार्थियों को उनके इस कार्य से बड़ी सुविधा प्राप्त हुई।
*त्याग करवा दीजिए*
संवत् 1972 का चातुर्मास उदयपुर करवाने के लिए कावड़ियाजी ने अनेक व्यक्तियों के साथ जाकर कालूगणी से प्रार्थना की। आचार्यश्री उस समय कुछ भी निर्णीत करने को उद्यत नहीं थे। अतः फरमाया कि चातुर्मास की अभी क्या शीघ्रता है? अवसर आने पर देखा जाएगा।
अंबालालजी ने तब निवेदन करते हुए कहा— "आप ही तो फरमाया करते हैं कि शुभ कार्य में समय मात्र की भी देरी नहीं करनी चाहिए और अब आप ही फरमाते हैं कि शीघ्रता क्या है? यदि आप चातुर्मास का अभी निर्णय नहीं करना चाहते हैं तो फिर हम सबको चातुर्मास से पूर्व मरने का त्याग करवा दीजिए।" उनकी इस बात से सारी सभा हंस पड़ी। स्वयं कालूगणी भी मुस्कुराए। आखिर वह चातुर्मास उदयपुर को प्रदान किया गया। अंबालालजी ने उस चातुर्मास में सेवा का खूब लाभ लिया। गृह कार्यों की चिंता छोड़ कर उन्होंने इतने समय के लिए एक प्रकार से पंचायती नोहरे को ही अपना निवास स्थान बना लिया। आगंतुक यात्रियों की व्यवस्था करना और आचार्यश्री की सेवा करना– ये दो कार्य ही उस समय उनके सम्मुख प्रमुख थे। दोनों ही कार्यों को उन्होंने बड़ी सावधानी और सफलता के साथ निभाया।
चातुर्मास काल के उस महत्त्वपूर्ण अवसर पर संयोगवश उनकी पीठ पर जहरीला फोड़ा हो गया। वह धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो काफी पीड़ रहने लगी। स्थिति यहां तक पहुंची कि कपड़ा पहनने में भी कठिनाई होने लगी। उन्होंने तब उस कठिनाई से बचने के लिए 'ठिकाने' से बाहर जाना ही प्रायः बंद कर दिया। वहीं रह कर वे अपने जिम्मे की व्यवस्था का उचित मार्गदर्शन करते और सामायिक, सेवा आदि कार्यों में लगे रहते। रात्रिकालीन शयन के लिए भी वे घर नहीं जाते।
धर्म-आराधना में निरंतर जागरुक, सेवा-परायण श्रावक अंबालालजी ने 68 वर्षों का आयुष्य प्राप्त किया। संवत् 1976 पौष शुक्ला 10 को उनका देहावसान हो गया।
*तेरापंथ में अखंड निष्ठा रखने वाले उदयपुर निवासी श्रावक प्यारचंदजी दलाल के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*निद्रा संयम: वीडियो श्रंखला ३*
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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