10.09.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 10.09.2018
Updated: 30.09.2018

Update

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परम पूज्य आचार्य प्रवर
का प्रेरणा पाथेय....


आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

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दिनांक:
10 सितंबर 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Source: © Facebook

Video

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 10 सिंतबर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

Video

10 September 2018

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👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के ‌लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬

https://youtu.be/bXRlKajYr4k

📍
: दिनांक:
*10 सितंबर 2018*

: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄

: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 सूरत - तेमम द्वारा शील की सौरभ-सोना सती परिसंवाद का मंचन
👉 उधना, सूरत - पर्यूषण पर्व प्रथम दिवस - खाद्य संयम दिवस
👉 अम्बिकापुर (छतीसगढ़): पर्युषण पर्व का प्रथम दिन "खाद्य संयम दिवस "
👉 उधना, सूरत - परिसंवाद का आयोजन
👉 उधना, सूरत - पर्यूषण पर्व द्वितीय दिवस - स्वाध्याय दिवस
👉 दिल्ली - दस का दम प्रतियोगिता का आयोजन
👉 रोहिणी, दिल्ली - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 उधना, सूरत - अभिनव सामायिक दिवस
👉 हिसार - अभिनव सामायिक दिवस
👉 भुज - अभिनव सामायिक दिवस
👉 पुणे - अभिनव सामायिक दिवस
👉 पालघर - अभिनव सामायिक दिवस
👉 न्यू पनवेल, मुम्बई - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 रोहिणी, दिल्ली - अभिनव सामायिक दिवस

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🔰 *भावभरा आमंत्रण* 🔰

*अपने स्वर की*
*रश्मियों से कार्यक्रम*
*में चार चांद लगाएंगे*
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*संगायक श्री कमल सेठिया*
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💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢

💠 *सान्निध्य* 💠
*शासन श्री मुनि श्री रविंद्रकुमार जी*
*व तपोमूर्ति मुनि श्री पृथ्वीराज जी*

💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
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*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
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*दिनांक - 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*

♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨

प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 सूरत - 16 वर्षीय प्रिंस मेहता मास खमण तप की ओर अग्रसर

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 74* 📜

*प्यारचंदजी दलाल*

*धार्मिक संकट*

प्यारचंदजी दलाल उदयपुर निवासी थे। उनका जन्म संवत् 1907 में हुआ। उनके माता-पिता मंदिरमार्गी आम्नाय के थे। संवत् 1929 में वे नेणचंदजी के गोद चले गए। वह परिवार भी मंदिरमार्गी आम्नाय का ही था। उसमें केवल नेणचंदजी की पत्नी अकेली तेरापंथी थी। प्यारचंदजी का विवाह स्थानकवासी आम्नाय वालों के घर में हुआ। इस तरह वह परिवार एक प्रकार से जैन धर्म के सभी संप्रदायों से संबंध हो गया।

प्यारचंदजी के सामने यह स्थिति एक धार्मिक संकट के रुप में उपस्थित हुई। सभी ओर से उन्हें अपनी-अपनी ओर आकृष्ट करने का प्रयास चलने लगा। कुछ दिनों तक तो वे बहुत असमंजसता में रहे कि उन्हें कौन सी परंपरा को स्वीकार करना चाहिए? आखिर उन्होंने सभी मान्यताओं को समझ लेने के पश्चात् ही इस विषय में कुछ निर्णय करने का निश्चय किया। वे सभी के पास गए, उनके मंतव्यों को समझा, आचार-व्यवहार को परखा और फिर अपने विवेक बल के आधार पर निष्कर्ष निकाला। इस प्रक्रिया में उन्हें तेरापंथ ही सर्वाधिक सुव्यवस्थित और क्रियानिष्ठ लगा। फलस्वरूप वे तेरापंथी श्रावक बन गए।

*सत्य का मूल्यांकन*

तेरापंथी बन जाने के कारण उन्हें अनेक कष्ट उठाने पड़े। सभी सगे संबंधी उनके विरुद्ध हो गए। नेणचंदजी के क्रोध का तो कहना ही क्या था। उन्होंने उनको बहुत बुरा-भला कहा। आखिर में यहां तक भी कह दिया था कि यदि तू तेरापंथी ही रहेगा तो मेरे धन में से तुझे एक पाई भी मिलने वाली नहीं है। इस धमकी से वे कुछ भी विचलित नहीं हुए और अपने निर्णय पर अडिग रहे। वे किसी के बहकावे में आकर तो तेरापंथी बने नहीं थे। पूर्ण रूप से छानबीन करके उन्होंने अपने लिए वह मार्ग चुना था। आर्थिक प्रलोभन के आगे झुक कर सत्यमार्ग को छोड़ देने के लिए वे उद्यत नहीं हुए। सत्य को प्राप्त करने तथा सुरक्षित रखने में मनुष्य को जो मूल्य चुकाना होता है, प्यारचंदजी उसके लिए तैयार थे।

उनके पिता ने तीन-चार वर्ष तक तो प्रतीक्षा की, शायद उसे समझ आ जाए और वह अपना आग्रह छोड़ दे। परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। आखिर उनको पृथक् कर दिया गया। उसे पृथक् करना नहीं कह कर घर से निकाल देना ही कहना चाहिए। अपने शरीर पर पहने हुए वस्त्रों के अतिरिक्त सब कुछ वहीं छोड़कर खाली हाथों उन्हें वहां से जाने को विवश होना पड़ा। आभूषण भी वहीं रख लिए गए। इस प्रकार प्यारचंदजी के पास अपने भरणपोषण करने के लिए उस समय न कोई साधन रह पाया था और न कोई वैसी व्यवस्था थी। उस भयंकर मानसिक विपत्ति की स्थिति में भी उन्हें तेरापंथी बनने का कोई पश्चाताप नहीं हुआ।

*श्रावक प्यारचंदजी दलाल ने स्वयं को इस भयंकर विपत्ति से कैसे उबारा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 420* 📝

*महामनीषी आचार्य मलयगिरि*

समर्थ टीकाकार मलयगिरि श्वेतांबर परंपरा के प्रभावी आचार्य थे। वे नाम से मलयगिरि और ज्ञान से भी मलयगिरि थे। वे जैनागमों के गंभीर पाठक थे। उनकी प्रतिभा स्वच्छ दर्पण की तरह निर्मल थी। उनका संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व था।

*गुरु-परम्परा*

मलयगिरि ने अपने ग्रंथों में गुरु परंपरा का कहीं उल्लेख नहीं किया है। उनके उत्तरवर्ती ग्रंथों में भी इस संबंध का कहीं संकेत नहीं है। आवश्यक टीका में मलयगिरि ने 'तथा चाहुः स्तुतिषु गुरवः' लिखकर हेमचंद्राचार्य की अन्ययोगव्यवच्छेदिका का पूरा पद्य उद्धृत किया है। इससे स्पष्ट है आचार्य मलयगिरि हेमचंद्राचार्य को गुरु जैसा बहुमान प्रदान करते थे। हेमचंद्राचार्य के वैदुष्य का उनके जीवन पर प्रभाव था, पर हेमचंद्राचार्य से आचार्य मलयगिरि की गुरु परंपरा का संबंध प्रतीत नहीं होता।

*जीवन-वृत्त*

मलयगिरि की गृहस्थ संबंधी और मुनि जीवन संबंधी सामग्री उपलब्ध नहीं है। मलयगिरि को आचार्य पद अथवा सूरि पद की प्राप्ति कब और किसके द्वारा हुई, यह भी अज्ञात है। शब्दानुशासन का प्रारंभ करते समय मलयगिरि लिखते हैं "आचार्य मलयगिरिः शब्दानुशासनमारभते"। शब्दानुशासन का यह वाक्य मलयगिरि के आचार्य पद को सिद्ध करने के लिए पुष्ट प्रमाण है। मलयगिरि द्वारा स्वयं के लिए आचार्य शब्द का व्यवहार किया गया है जो भ्रांत नहीं हो सकता।

जिनमण्डलगणी कृत 'कुमारपाल प्रबंध' के अनुसार हेमचंद्र ने गच्छान्तरीय देवेन्द्रगणी और मलयगिरि के साथ विशेष विद्या साधना की दृष्टि से गुरु का आदेश प्राप्त कर गौड़ देश की ओर प्रस्थान किया था। मार्ग में मध्यवर्ती रेवतक तीर्थ पर तीनों ने गुरु द्वारा प्राप्त सिद्धचक्र मंत्र की अम्बादेवी के सहयोग से आराधना की। इससे मंत्राधिष्टायक देव विमलेश्वर प्रकट हुआ। उसने तीनों से यथेप्सित वर मांगने को कहा। उस समय मलयगिरि ने जैन आगमों पर टीका रचने का वरदान चाहा। तीनों की यथेप्सित मांगों को पूर्ण करता हुआ देव तथास्तु कहकर अदृश्य हो गया।

यह घटना हेमचंद्राचार्य और मलयगिरि के आत्मीय संबंधों को प्रकट करती है।

मलयगिरि उदार विचारों के धनी थे। यश और श्लाघा की कामना से दूर थे। उनके कण-कण में लोक कल्याण की भावना थी। टीका ग्रंथों की प्रशस्तियों में प्राप्त उल्लेखानुसार मलयगिरि टीका रचना से प्राप्त अध्यात्म लाभ को जनहितार्थ अर्पित कर देते थे।

*महामनीषी आचार्य मलयगिरि साहित्य* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

🏮
पर्युषण पर्व का
चतुर्थ दिवस
"वाणी संयम (मौन) दिवस"

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दिनांक:
10 सितंबर 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *श्रीमती श्वेता दूधोडिया द्वारा मौन अठाई तप..*
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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