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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 18 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Update
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🔰 *भावभरा आमंत्रण* 🔰
💠 *सिर्फ 4 दिन शेष*💠
💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💠 *सान्निध्य* 💠
*शासन श्री मुनि श्री रविंद्रकुमार जी*
*व तपोमूर्ति मुनि श्री पृथ्वीराज जी*
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
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*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
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*दिनांक - 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 रतलाम - मात्र 18 वर्षीय श्रेया कोठारी मासखमण तप की ओर अग्रसर
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 426* 📝
*जगत्-पूज्य आचार्य जिनचन्द्र (मणिधारी)*
खरतरगच्छ के मणिधारी जिनचंद्रसूरि भी बड़े दादा के नाम से प्रसिद्ध हैं। जैन श्वेतांबर मंदिरमार्गी समाज के चार दादा आचार्यों में उनका द्वितीय क्रम है। जिनचंद्रसूरि के मस्तक में मणि होने के कारण उनकी प्रसिद्धि मणिधारी जिनचंद्र के रूप में हुई। ऐसी जनश्रुति है।
*गुरु-परंपरा*
मणिधारी जिनचंद्रसूरि के गुरु बड़े दादा जिनदत्तसूरि थे। जिनचंद्रसूरि की जिनदत्तसूरि से पूर्व की गुरु परंपरा वही है जो जिनदत्तसूरि की है। यह 'जनप्रिय आचार्य जिनदत्तसूरि' नामक प्रकरण में दी गई है।
*जन्म एवं परिवार*
जिनदत्तसूरि का जन्म वैश्य वंश में विक्रमपुर (राजस्थान) में वीर निर्वाण 1667 (विक्रम संवत् 1197) भाद्रव शुक्ला अष्टमी ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ। वे श्रेष्ठी रासल के पुत्र थे। माता का नाम देल्हण देवी था।
*जीवन-वृत्त*
मणिधारी जिनचंद्रसूरि ने लघुवय में मुनि जीवन में प्रवेश किया। उनकी दीक्षा जिनदत्तसूरि द्वारा वीर निर्वाण 1673 (विक्रम संवत् 1203) में हुई।
मणिधारी जिनचंद्रसूरि का जीवन कई विशेषताओं से मण्डित था। उनके गर्भ में आने से पहले ही जिनदत्तसूरि को विशिष्ट आत्मा के आगमन का आभास हो गया था। विशिष्ट आत्मा का संबंध उन्होंने जिनचंद्रसूरि के साथ जुड़ा।
मुनि जीवन में प्रवेश करने के बाद जिनचंद्रसूरि ने शास्त्रीय ग्रंथों का गंभीरता से अध्ययन किया और गुरु के मार्गदर्शन में उन्होंने विविध अनुभव प्राप्त किए। जिनदत्तसूरि ने वीर निर्वाण 1675 (विक्रम संवत् 1205) वैशाख शुक्ला छठ विक्रमपुर में महावीर जिनालय में अपने उत्तराधिकारी पद पर जिनचंद्र सूरी की नियुक्ति की। सूरिपद महोत्सव श्रेष्ठी रासलजी ने उल्लास के साथ मनाया।
जिनदत्तसूरि का स्वर्गवास होने के बाद वीर निर्वाण 1681 (विक्रम संवत् 1211) में संपूर्ण गच्छ का दायित्व उनके कंधों पर आ गया जिसे उन्होंने कुशलता से निभाया।
मथुरा में वीर निर्वाण 1687 (विक्रम संवत् 1217) में जिनचंद्रसूरि ने जिनपतिसूरि को दीक्षित किया।
क्षेमन्धर श्रेष्ठी जिनचंद्रसूरी का परम भक्त श्रावक था।
मणिधारी जिनचंद्रसूरि योग्य उत्तराधिकारी हुए। जैन धर्म की प्रभावना हुई। वर्चस्वी व्यक्तित्व के कारण जिनचंद्रसूरि अपने गुरु जिनदत्त की भांति दादा नाम से प्रसिद्ध हुए।
जिनचंद्रसूरि आगम ज्ञान के भंडार थे। दिल्ली के महाराज मदनपाल जिनचंद्रसूरि की असाधारण विद्वत्ता पर मुग्ध होकर उनके अनन्य भक्त बन गए।
चैत्यवासी पद्मचंद्राचार्य जैसे उद्भट विद्वान् को शास्त्रार्थ में पराजित करने से उनकी यश चंद्रिका अधिक विस्तृत हुई।
मणिधारी आचार्य जिनचंद्र ने अपनी मणि की सूचना मृत्यु से पूर्व अपने भक्तों को देकर सावधान किया कि मेरे दाहसंस्कार से पहले मेरी मस्तक मणि को पात्र में ले लेना अन्यथा किसी योगी के हाथ में यह अमूल्य मणि पहुंच सकती है। वह मणि बहुत प्रभावक थी। दादा जिनेचंद्रसूरि के उत्तराधिकारी जिनपतिसूरि थे।
*समय-संकेत*
मणिधारी आचार्य जिनचंद्र सूरी का वीर निर्वाण 1693 (विक्रम संवत् 1223) द्वितीय भाद्रव मास में दिल्ली नगर में अनशनपूर्वक स्वर्गवास हुआ।
वर्तमान में दिल्ली के महरौली नामक स्थान पर उनका चामत्कारिक स्तूप है।
*रमणीय रचनाकार आचार्य रामचन्द्र के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 80* 📜
*हस्तीमलजी दुगड़*
*डीडवाना से जोधपुर*
हस्तीमलजी दुगड़ जोधपुर के विशिष्ट श्रावकों में थे। उनके पिता सुजानमलजी डीडवाना निवासी थे। उनके घर संवत् 1908 में हस्तीमलजी का जन्म हुआ। उनके तीन अन्य भाइयों में आनंदमलजी और कल्याणमलजी उनसे बड़े तथा बस्तीमलजी छोटे थे। हस्तीमलजी का विवाह डीडवाना के ही पूनमचंदजी चोपड़ा की पुत्री पानकंवर के साथ संपन्न हुआ। कालांतर में चारों भाइयों ने जोधपुर को अपना कार्य क्षेत्र बनाया और वहीं बस गए। हस्तीमलजी जोधपुर सरकार के नमक विभाग में काम करने लगे। वे नीति के विशुद्ध और कार्य में निपुण थे। अपना कार्य पूर्ण निष्ठा के साथ करते। व्यक्तिगत जीवन में पूरी सादगी बरतते। धीरे-धीरे उन्होंने कुछ पूंजी जोड़ी और फिर ब्याज का कार्य भी करने लगे। ब्याज के लिए उन्होंने अपनी पूंजी प्रायः जोधपुर में रहने वाले बड़े ठिकानों में ही लगाई।
*धार्मिक प्रवृत्ति*
हस्तीमलजी प्रारंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। जयाचार्य से लेकर कालूगणी तक पांच आचार्यों के दर्शन तथा सेवा का उन्हें अवसर मिला था। प्रकृति शांत और सरल थी। थोकड़ों का अच्छा ज्ञान रखते थे। प्रतिवर्ष गुरु दर्शन के लिए दूर-दूर तक जाते रहते थे। प्रत्याख्यान काफी थे। फिर भी यथावसर उनकी सीमाओं का संकोचन करते हुए अपने अव्रत को घटाते रहे थे। सौ लिलोती रखी थी उन्हें घटाते हुए केवल पांच पर आ गए। पांचों तिथियों को रात्रिभोजन के त्याग को बढ़ाते हुए उन्होंने आजीवन रात्रिकालीन चौविहार व्रत ले लिया और फिर उसके ऊपर दिन के प्रथम प्रहर को भी अपने प्रत्याख्यान में सम्मिलित कर लिया। सचित्त पानी पीने का त्याग रखते। अष्टमी, चतुर्दशी के नियमित रूप से उपवास और पौषध करते। अन्य तपस्याएं भी बीच-बीच में करते रहते थे।
*हस्तीमलजी दुगड़ की पारिवारिक व्यवस्था आदि* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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💎 *संघ-संपदा बढ़ती जाए, प्रगति शिखर पर चढ़ती जाए ।*
*भेक्ष्व शासन नन्दन वन की सौरभ से सुरभित भूतल हो।।* 🌼
⛩ *चेन्नई (माधावरम), महाश्रमण समवसरण से..*
👉 *"विकास महोत्सव" पर पूज्य गुरुदेव के व्यख्यान का "अमृतवाणी" द्वारा किये गए प्रसारण को देखने के लिए क्लिक करें..*
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👉 *पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में "विकास महोत्सव" का आयोजन..*
👉 *पूज्य गुरुदेव ने दिए साधु-साध्वियों के लिए चातुर्मास पश्चात विहार से सम्बंधित दिशा-निर्देश*
👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" कार्यक्रम के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक: 18/09/2018
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): परम पावन *पूज्य गुरुदेव से* प्रेरणा पा *वी डी एस सायर ग्रुप* (वेल्लूर-तिरुवनामलै) *के 270 कर्मचारियों ने किये "अहिंसा यात्रा" के त्रियामी संकल्प स्वीकार*
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