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🔰 *भावभरा आमंत्रण* 🔰
💠 *सिर्फ 3 दिन शेष*💠
💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💠 *सान्निध्य* 💠
*शासन श्री मुनि श्री रविंद्रकुमार जी*
*व तपोमूर्ति मुनि श्री पृथ्वीराज जी*
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
🎶
*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
🎶
*दिनांक - 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🔰 *भावभरा आमंत्रण* 🔰
💠 *सिर्फ 3 दिन शेष*💠
💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
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*शासन श्री मुनि श्री रविंद्रकुमार जी*
*व तपोमूर्ति मुनि श्री पृथ्वीराज जी*
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
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*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
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*दिनांक - 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
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*परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने थली-राजस्थान का तीसरा चतुर्मास मोमासर के लिए घोषित किया है। ज्ञातव्य है कि थली का पहला चतुर्मास छापर और दूसरा चतुर्मास बीदासर के लिए पूर्व घोषित है।*
सम्प्रसारक
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 19 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 सोलापुर - पर्युषण महापर्व का आयोजन
👉 पुणे - संवत्सरी महापर्व उल्लासपूर्ण रूप से मनाया गया
👉 हिसार - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 उधना, सूरत - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 उधना, सूरत - भिक्षु भजन संध्या का आयोजन
👉 सूरत - कन्या मण्डल द्वारा स्वच्छता अभियान
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 चेन्नई - 26 वर्षीय प्रितेश सिसोदिया मास खमण तप की ओर अग्रसर
👉 सूरत - कन्या मण्डल द्वारा स्वच्छता अभियान
👉 उधना, सूरत - भिक्षु भजन संध्या का आयोजन
👉 उधना, सूरत - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 हिसार - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 पुणे - संवत्सरी महापर्व उल्लासपूर्ण रूप से मनाया गया
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद*🌻
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⛩ *चेन्नई (माधावरम), महाश्रमण समवसरण में..*
*गुरुवरो धम्म-देसणं!*
🙏 *मोमासर "श्री संघ" चौमासे की अर्जी ले "श्री चरणों" में उपस्थित..*
👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" कार्यक्रम के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक: 19/09/2018
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 427* 📝
*रमणीय रचनाकार आचार्य रामचन्द्र*
रामचंद्रसूरि प्रभावशाली आचार्य थे। वे प्रतिभा के धनी और साहित्यकार थे। उस युग के इने-गिने विद्वानों में उनकी गिनती होती थी। उन्हें कविकटारमल्ल की उपाधि प्राप्त थी।
*गुरु-परंपरा*
आचार्य रामचंद्र के गुरु 'कलिकालसर्वज्ञ' आचार्य हेमचंद्र थे। हेमचंद्र के गुरु देवचंद्रसूरि थे। आचार्य हेमचंद्र की गुरु परंपरा ही आचार्य रामचंद्र की गुरु परंपरा थी। हेमचंद्र की गुरु परंपरा हेमचंद्र प्रबंध में विस्तारपूर्वक प्रस्तुत है।
*जीवन-वृत्त*
आचार्य हेमचंद्र के शिष्यों ने रामचंद्र का विशिष्ट स्थान था। एक बार सिद्धराज जयसिंह ने हेमचंद्राचार्य से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा। उस समय हेमचंद्राचार्य ने रामचंद्र को उनके सामने प्रस्तुत किया।
रामचंद्र मुनि दिग्गज विद्वान् एवं बेजोड़ शब्द शिल्पी थे। उनकी दक्षता समस्यापूर्ति में विस्मयकारक थी। उनकी स्फुरणशील मनीषा मंदाकिनी में कल्पना-कल्लोलें अत्यंत वेग से हिलोरें लेती थीं। एक बार ग्रीष्म ऋतु में सिद्धराज जयसिंह क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में जा रहे थे। संयोग से मुनि रामचंद्र का मार्ग में मिलन हुआ। औपचारिक स्वागत के बाद सिद्धराज जयसिंह ने मुनि से प्रश्न किया
कथं ग्रीष्मे दिवसा गुरुतराः?
ग्रीष्म ऋतु में दिन लंबे क्यों होते हैं?
मुनि ने प्रश्न के उत्तर में तत्काल एक संस्कृत श्लोक की रचना की
*देव! श्रीगिरीदुर्गमल्ल! भवतो दिग्जैतृयात्रोत्सवे,*
*धावद्वीरतुरङ्गनिष्ठुरखुरक्षुण्णक्षपामण्डलात्।*
*वातोद्धूतरजोमिलत्सुरसरित्सञ्जातपङ्कस्थली,*
*दूर्वाचुम्बनचञ्चुरा रविहयास्तेनैव वृद्धं दिनम्।।*
(गिरि-मालाओं और दुर्लंध्य दुर्गों पर विजय पताका फहराने वाले देव! आप की विजययात्रा के महोत्सव पर वेगवान् पशुओं की दौड़ के कारण उनके खुरों से उठे पृथ्वी के धूलिकण पवन लहरियों पर आरूढ़ होकर आकाशगंगा से जा मिले। नीर और रजों के सम्मिश्रण से वहां दूब उग गई। उसे दूब के चरते-चरते चलने के कारण सूर्य के घोड़ों की गति मंद हो गई। इस हेतु से दिवस लंबे हैं।)
*रामचन्द्र का यह उत्तर सुनकर सिद्धराज जयसिंह की क्या प्रतिक्रिया रही...? तथा आचार्य रामचंद्र के कुछ जीवन प्रसंगों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 81* 📜
*हस्तीमलजी दुगड़*
*श्रमणभूत श्रावक*
हस्तीमलजी ने धीरे-धीरे स्वयं को धर्म ध्यान में इतना खपा दिया कि उनका अधिकांश समय धार्मिक प्रवृतियों में ही लगने लगा। अपनी प्रौढ़ावस्था के प्रारंभ में ही उन्होंने आजीवन ब्रम्हचर्य व्रत स्वीकार कर लिया। बारह व्रत तो उससे भी पूर्व ग्रहण कर लिए थे। वे बहुधा साधुओं के स्थान पर ही सोते। प्रतिदिन 18-20 सामायिक करते। भोजन करने तथा पानी पीने के लिए लकड़ी के पात्र ही काम में लेते। खान-पान के लिए कुछ भी कहकर नहीं बनवाते। इन सभी प्रवृत्तियों के कारण लोग उन्हें साधुवत् मानने लगे। आगमों में 'समणभूए' शब्द विशेष साधना संपन्न श्रावक के लिए प्रयुक्त हुआ है। हस्तीमलजी के लिए भी वह उपयुक्त विशेषण बन गया।
*पारिवारिक व्यवस्था*
हस्तीमलजी के चार संतान थीं। उनमें दो पुत्रियां सुगनबाई व चावबाई तथा दो पुत्र कानमलजी और मानमलजी थे। चारों को योग्य बनाकर यथासमय उपयुक्त स्थानों पर विवाहित कर देने के पश्चात् हस्तीमलजी एक प्रकार से चिंता मुक्त हो गए। बड़े पुत्र कानमलजी कलकत्ता में एक व्यापारिक प्रतिष्ठान में कार्य देखते थे। छोटे पुत्र मानमलजी जोधपुर राज्य में ही हाकिम थे।
एक बार हस्तीमलजी थली में डालगणी के दर्शन करने के लिए गए। सेवा में बैठे थे कि अचानक आचार्यश्री ने फरमाया— "हस्तीमलजी क्या अब तक भी नौकरी से मन नहीं भरा?" वे गुरु इंगित के जानकार थे, अतः तत्काल खड़े हुए और नौकरी करने का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान कर दिया। ब्याज के अतिरिक्त अन्य व्यापार करने का भी उन्होंने प्रत्याख्यान कर दिया।
सत्तर वर्ष की अवस्था होने पर हस्तीमलजी ने अपने लिए सर्व प्रकार से निवृत्ति प्रधान जीवन जीने की व्यवस्था की। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दोनों पुत्रों में बांट दी। निजी रूप में संपत्ति रखने का त्याग कर दिया। पत्नी के पास दो सौ तोला सोना था। वह उन्हीं के पास रहने दिया। उनकी मृत्यु के पश्चात् दोनों भाइयों को उसके बराबर विभाग का अधिकार दिया। इस व्यवस्था के चार वर्ष पश्चात् ही संवत् 1982 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया। तब वह सोना दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया गया।
*वेदना के वर्ष*
हस्तीमलजी के अंतिम तीन वर्ष वेदना के वर्ष कहे जा सकते हैं। संवत् 1985 में उनके घुटनों में पीड़ा प्रारंभ हुई तो उनका फिरना-घिरना बंद हो गया। विवश होकर उन्हें घर पर ही रहना पड़ा। धीरे-धीरे उनके शरीर पर निर्बलता इस प्रकार छा गई कि उठना-बैठना भी दूसरे के सहारे से होने लगा। क्रमशः मल-मूत्र विसर्जन के कार्यों में भी वे परवश हो गए। उनके पौत्र कनकमलजी प्रायः उनके पास रहते और सावधानी से आवश्यक सेवा करते।
*हस्तीमलजी दुगड़ को अपनी मृत्यु के संबंध में हुए पूर्वाभास* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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