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💠 *मानवीय मूल्यों की रक्षा अणुव्रत का आशय है,*
*आध्यात्मिकता प्रमाणिकता उसका अमल ह्रदय है।*💙
🌑 *हिंसा के इस गहन तिमिर में अणुव्रत एक उजारा।।*🌞
⛩ विभन्न *धर्म गुरुओं की समुपस्थिति* में *चेन्नई* के माधावरम् में..
🌈 *अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह* का प्रथम दिन - *"साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस"*
🙏 *सान्निध्य - 'अणुव्रत अनुशास्ता' आचार्य श्री महाश्रमण*
👉 आज के *"साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस"* कार्यक्रम के *कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक: 26/09/2018
प्रस्तुति: ✨ *अणुव्रत सोशल मीडिया* ✨
प्रसारक:
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 सिलीगुड़ी - भिक्षु चरमोत्सव के अवसर पर संगीत प्रतियोगिता का आयोजन
👉 तिरुपुर - जैन संस्कार विधि एवं जैन विद्या सम्मान समारोह
👉 कालबादेवी - आचार्य श्री भिक्षु के 216 वे चरमोत्सव का आयोजन
👉 मुम्बई - अणुव्रत क्षेत्रीय संयोजक द्वारा पर्यावरण सुरक्षा व व्रक्षारोपन
👉 बारडोली - नशा मुक्तिअभियान
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 26 सिंतबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 433* 📝
*अप्रमत्तविहारी आर्यरक्षितसूरि*
*(अंचल गच्छ संस्थापक)*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
विजयचंद्रसूरि ने विक्रम संवत् 1169 में विधिपक्ष की। स्थापना के नए नियम बनाए। अपने गच्छ में नवीन समाचारी की उद्घोषणा की। इसी समय विजयचंद्र मुनि का नाम रक्षितसूरि रखा गया। आगमानुसारी समाचारी की सुरक्षा में सशक्त प्रयत्न होने के कारण आर्य रक्षितसूरि नाम भक्तों को सार्थकता की अनुभूति करा रहा था।
आर्यरक्षित द्वारा स्थापित यह विधिपक्ष-गच्छ कालांतर में अंचलगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
भावसागरसूरि द्वारा रचित वीर वंश-पट्टावली में विजयचंद्रसूरि के आचार्य पद पर नियुक्ति एवं विधिपक्ष-गच्छ की स्थापना का समय वीर निर्वाण 1639 (विक्रम संवत् 1169) है।
इस गच्छ की समाचारी का वर्णन धर्मघोषसूरि ने विक्रम संवत् 1263 में 'शतपदिका' प्राकृत ग्रंथ में किया, परंतु वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इसी ग्रंथ के आधार पर महेंद्रसूरि ने विक्रम संवत् 1294 में संस्कृत में शतपदी ग्रंथ रचा। यह ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध है। अंचलगच्छ की समाचारी का ज्ञान इस ग्रंथ से किया जा सकता है।
अंचलगच्छ की समाचारी को पुर्णिमागच्छ, सार्ध-पुर्णिमागच्छ और आगमगच्छ से भी स्वीकृति प्राप्त हुई। नाडोलगच्छ, बल्लभीगच्छ आदि ने भी इनकी समाचारी का अनुसरण किया।
आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के बाद आर्यरक्षितसूरि धर्म प्रचार के लिए कई गांवों एवं नगरों में विहरण करते हुए 'विउणय' गांव में पधारे। इस गांव में कपर्दी नाम का श्रेष्ठी रहता था। कपर्दी श्रेष्ठी विपुल वैभव का स्वामि था। आर्यरक्षितसूरि ने उसे धर्म का स्वरूप समझाया। श्रावक दीक्षा दी। कपर्दी श्रेष्ठी की पुत्री का नाम समयश्री था। समयश्री भी आर्यरक्षित के प्रवचन से प्रभावित हुई। उसने 25 महिलाओं के साथ आर्यरक्षितसूरि से महाव्रत दीक्षा स्वीकार की। संयम के पथ पर अग्रसर हुई। विउणय नगर में आर्यरक्षितसूरि का धर्म प्रचार कार्य विशेष रूप से हुआ। कई व्यक्तियों ने यहां आर्यरक्षित से श्रावक व्रत ग्रहण किए। कई सुलभ बोधि बने।
*आचार्य विजयचंद्रसूरि द्वारा स्थापित विधिपक्ष गच्छ का अंचलगच्छ नाम कैसे उद्घोषित हुआ...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 87* 📜
*फूसराजजी चोपड़ा*
*खाना और खिलाना*
फूसराजजी खाने में खिलाने में बहुत रुचि रखते थे। वे स्वयं पाककला में निष्णात थे। जब कभी मन में आती तभी अपनी रुचि की कोई विशिष्ट वस्तु बनाते और मित्रजनों को खिलाते। वृद्धावस्था में तो उनका वह स्वभाव ही बन गया था। दोनों समय रसोईघर में जाकर कुछ न कुछ बनाए बिना मानो उन्हें चैन ही नहीं पड़ता था। इतना होने पर भी उन्होंने कभी अपनी जिह्वा को खुली छूट नहीं दी थी। स्वादिष्ट से स्वादिष्ट पदार्थ सम्मुख होने पर भी वे मिताहार की सीमा को नहीं लांघते।
अनेक बंगाली सज्जन उनके मित्र थे। उस युग में अपने समाज के अतिरिक्त किसी दूसरे समाज के साथ भोजन-पानी आदि का व्यवहार बिल्कुल निषिद्ध था। किंतु फूसराजजी ने मित्रता के सम्मुख उसको कोई महत्त्व नहीं दिया। वे इस मामले में कुछ खुले विचारों के थे। खानबहादुर मौलवी आफान उल्ला कविराज के साथ भी उनकी घनिष्ठता थी।
*कार्य-मुक्ति*
फूसराजजी ने अनेक दशकों तक नाहटाजी के यहां प्रधान मुनीम के रूप में काम किया। उनका वहां पूरा विश्वास और पूरा सम्मान था। नाहटाजी ने सदैव उनको अपने घर के एक सदस्य की तरह ही माना था। नाहटाजी उनसे नौ वर्ष पहले ही दिवंगत हो गए थे। उस समय उनके दोनों पुत्र पूरणचंदजी और ज्ञानचंदजी बालक थे। नाहटाजी ने अपने व्यापार व संपत्ति के साथ-साथ अपने दोनों पुत्रों की देखरेख का भार भी उन्हीं पर छोड़ा था। उन्होंने उस कार्य को पूर्ण निष्ठा के साथ निभाया। जब दोनों भाई वयस्क हो गए और उन्होंने कार्यभार संभाल लिया तब भी उनके घर में चोपड़ाजी की हिलाई डोर ही हिला करती थी।
एक बार किसी विषय पर बातचीत करते समय चोपड़ाजी को कुछ ऐसा आभास हुआ कि नाहटाजी के नवयुवक पुत्र अब उन्हें अनावश्यक समझने लगे हैं। उन्होंने तत्काल अपना कर्त्तव्य निर्धारित किया और स्वेच्छया कार्यमुक्त हो गए। उन जैसे स्वाभिमानी और कार्यशील व्यक्ति के लिए किसी के गले का ढोल बनकर रहने की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।
*प्रशस्त धार्मिकता*
कार्य मुक्त होकर वे गंगाशहर आ गए। धार्मिक रूचि उनमें पहले भी प्रशस्त थी। वहां साधु-साध्वियों का संयोग पाकर और भी निखर उठी। प्रतिदिन तीन-चार सामायिक कर लेते। वे स्वाध्याय तथा जप भी नियमित रूप से किया करते थे। रात्रिभोजन का त्याग अनेक वर्षों से रखते आए थे। सरलता और सौजन्य उनके स्वभावगत गुण थे। क्रुद्ध वे अवश्य शीघ्रता से हो जाते, परंतु उतनी ही शीघ्रता से पुनः शांत भी हो जाते थे। क्षणिक कठोरता आने पर भी मूलतः उनका हृदय बहुत कोमल था।
वर्षों पूर्व से उनको अफीम लेने की आदत थी, किंतु जब छोड़ने का निश्चय किया तो उसकी मात्रा घटाते हुए उसके स्थान पर जायफल चूर्ण की मात्रा मिलाकर खाने लगे। दो महीनों में वे उस व्यसन से मुक्त हो गए।
तंबाकू भी वे बहुत अधिक पिया करते थे, परंतु एक दिन निर्णय किया और उसे एक ही झटके में सदा के लिए छोड़ दिया। इस प्रकार अपने को उत्तरोत्तर प्रशस्त बनाते हुए उन्होंने वृद्धावस्था में भी अपने सुदृढ़ मनोबल का परिचय दिया। वे 67 वर्ष का आयुष्य भोग कर दिवंगत हुए।
*साधुभूत श्रावक चिमनीरामजी कोठारी के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 आसीन्द - विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 टिटिलागढ - भिक्षु चरमोत्सव पर संगीत प्रतियोगिता का आयोजन
👉 रोहिणी, दिल्ली - भक्तामर स्त्रोत अनुष्ठान का आयोजन
👉 सूरत - बदले स्वयं को turning point 'T' के द्वारा कार्यशाला का आयोजन
👉 हिसार - टीपीएफ का शपथ ग्रहण समारोह
👉 फरीदाबाद - विशाल रक्तदान शिविर
👉 उधना, सूरत - चित्त समाधि शिविर का आयोजन
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News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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