01.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 01.10.2018
Updated: 02.10.2018

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 437* 📝

*उदारमना आचार्य उदयप्रभ*

उदयप्रभ नागेंद्र गच्छ के प्रभावी आचार्य थे। उनके वर्चस्वी व्यक्तित्व का जनता पर प्रभाव था। गुजरात के महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल उनके आस्थावान भक्त थे।

*गुरु-परंपरा*

उदयप्रभसूरि की गुरु परंपरा में शांतिसूरि के शिष्य अमरचंदसूरि उनके शिष्य हरीभद्र, हरीभद्र के शिष्य विजयसेन और विजय सेन के शिष्य उदयप्रभ थे।

*जीवन-वृत्त*

उदयप्रभसूरि ने लघुवय में मुनि दीक्षा ग्रहण की। प्रसिद्ध आख्यानकार माणभट्ट का व्याख्यान सुन कर उन्होंने व्याख्यान देने की कला सीखी। उदयप्रभसूरि की इच्छानुसार महामात्य वस्तुपाल ने छह मास तक उपाश्रय के निकट माणभट्ट के व्याख्यान आदि की व्यवस्था की।

उदयप्रभसूरि का नाम मंत्र की तरह प्रभावक माना जाता था। आचार्य मल्लीषेण का उदयप्रभसूरि के विषय में उल्लेख है

*मातर्भारति! संनिधेहि हृदि मे येनेयमाप्रस्तुतेः*
*निर्मातुं विवृतिं प्रसिद्ध्यति जवारारम्भसंभावना।*
*यद्धा विस्मृतमोष्ठयोः स्फुरित मत् सारस्वतः शाश्वतो*
*मन्त्र श्री उदयप्रभेति रचनारभ्यो ममाहर्निशम्।।4।।*

गुजरात के राजा वीरधवल पर उदयप्रभसूरि का प्रभाव था। वीरधवल के महामात्य वस्तुपाल एवं तेजपाल दोनों भाई जैन थे। वीरधवल के यश को दिगंतव्यापी बनाने में दोनों का योगदान था।

युगल बंधु महामात्य, सेनापति एवं अर्थ व्यवस्थापक थे तथा वे प्रचंड योद्धा, दानी एवं धार्मिक भी थे।

एक बार शक्तिशाली म्लेच्छ सेना के आगमन की सूचना पाकर गुर्जर नरेश श्री वीरधवल चिंतित हुआ। उसने अमात्य वस्तुपाल को बुलाकर कहा "गर्दभी विद्यासिद्ध गर्दभिल्ल राजा भी म्लेच्छों के द्वारा पराभूत हो गया था। शक्तिशाली राजा शिलादित्य का राज्य भी इनसे ध्वस्त हो गया। म्लेच्छ दुर्जेय हैं। हमें अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए?" वस्तुपाल ने कहा "राजन्! आप चिंता ना करें। म्लेच्छों के सामने रणभूमि में खड़ा होने के लिए मुझे आदेश दें।" राजा ने वैसा ही किया। वस्तुपाल और तेजपाल युगल बंधुओं की शक्ति के सामने म्लेच्छ पराजित हो गए।

वणिक् पुत्र केवल व्यापार कुशल ही नहीं होते अपितु क्षत्रिय जैसा तेज भी उनमें होता है। यह बात दोनों अमात्यों ने सिद्ध कर दी।

शोभाग वस्तुपाल का व्यक्तित्व कई विशेषताओं से संपन्न था। उनके जीवन में लक्ष्मी, सरस्वती एवं शक्ति का आश्चर्यजनक समन्वय था। हिंदुस्तान में पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण पर्यंत दूर-दूर तक धार्मिक कार्यों के लिए महामात्य की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त थी। वाग्देवी सुनू तथा सरस्वती पुत्र की उपाधियों से वह विभूषित था। राजा भोज की तरह वह विद्वानों का आश्रयदाता था। वस्तुपाल ने विद्यामंडल की स्थापना की, जिससे संस्कृत की वृद्धि हुई।

*महामात्य वस्तुपाल की विशेषताओं व आचार्य उदयप्रभ द्वारा रचित साहित्य एवं उनके आचार्य काल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 91* 📜

*नथमलजी भण्डारी*

*धनी और धार्मिक*

नथमलजी ब्यावर के निवासी थे। धनवान व्यक्ति थे। ब्यावर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर आदि अनेक स्थानों पर उनकी दुकानें थीं, जो कि अच्छी चला करती थीं। वे डालगणी के समय में काफी प्रसिद्ध श्रावकों में से एक थे। वे तत्त्व-श्रद्धा में बड़े सुदृढ़ और साधु-साध्वियों के परम भक्त थे। सामायिक, संवर आदि धार्मिक क्रियाओं में भी काफी अच्छी रुचि रखा करते थे।

*साधर्मिक-वात्सल्य*

साधर्मिकों के प्रति उनके मन में बड़ा वात्सल्य रहा करता था। धार्मिक दृष्टि से जहां वे उन्हें सुदृढ़ बनाने का प्रयास करते रहते वहां सांसारिक दृष्टि से भी उन्नत बनाने में लगे रहते। किसी की नौकरी नहीं लगी होती तो स्वयं प्रयास करके कहीं ना कहीं उसके लिए काम खोजते और उसे वहां जमा देते। किसी को दुकान आदि के लिए आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती तो वह भी देते। घर-गृहस्थी के कार्यों में भी व्यथासाध्य सहयोगी बना करते थे। जब-जब डालगणी के दर्शनार्थ जाया करते, तब-तब प्रायः अपने साथ दूसरे अनेक साधर्मिक व्यक्तियों को भी अपने व्यय पर ले जाया करते। उन्हें यह पता था कि दूसरों के व्यय पर जाने में अनेक व्यक्ति संकोच कर सकते हैं। इसलिए वे प्रायः यही कहा करते थे कि मुझे दो चार आदमियों का साथ चाहिए, अतः मैं तो तुम्हें अपनी आवश्यकता से ही ले जा रहा हूं। इस प्रकार जहां वे उनके आचार्य दर्शन में सहयोगी बनते वहां उनके स्वाभिमान की सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा करते थे। अष्टमाचार्य कालूगणी के पदासीन होने के कुछ वर्ष पश्चात् ही वे दिवंगत हो गए थे।

*ब्यावर के ही एक और कट्टर श्रावक नथमलजी रांका के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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⛰ *समस्या आवेग की है विकटतम जग में,*🌐
🙇🏻‍♂ *आदतों की विवशता है व्याप्त रग-रग में।*❤
🧘🏻‍♂ *हो रहा उपचार इस अवदान के द्वारा ।।*🌷

🌼 *'अणुव्रत अनुशास्ता' आचार्य श्री महाश्रमण जी* के पावन सान्निध्य में *चेन्नई* के माधावरम् में..⛩

🌈 *"अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह" का पंचम दिन - "नशामुक्ति दिवस"*

दिनांक: 30/09/2018

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

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