15.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 15.10.2018
Updated: 15.10.2018

News in Hindi

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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*गुरवरो धम्म-देसणं*

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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राष्ट्रीय संस्कार
निमार्ण शिविर
का पंचम दिवस

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दिनांक:
15 अक्टूबर 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 446* 📝

*दयार्द्रहृदय आचार्य देवेन्द्र*

देवेन्द्रसूरि का तत्त्व निष्णात आचार्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे संस्कृत भाषा के अधिकृत विद्वान् थे। उन्हें सैद्धांतिक एवं आगमिक ग्रंथों का गंभीर ज्ञान था। वे जैन दर्शन सम्मत कर्मवाद सिद्धांत के ज्ञाता थे।

*गुरु-परंपरा*

देवेन्द्रसूरि के गुरु जगच्चन्द्रसूरि थे। जगच्चन्द्रसूरि मणिरत्नसूरि के शिष्य थे। देवेन्द्रसूरि के कई शिष्य थे। उनमें विद्यानंदसूरि और धर्मघोषसूरि विद्वान् शिष्य थे।

*जीवन-वृत्त*

देवेन्द्रसूरि ने शैशवावस्था में दीक्षा ग्रहण की और निष्ठा से विद्या की आराधना कर विशिष्ट शक्तियां प्राप्त कीं। उनकी व्याख्यान शैली रोचक एवं प्रभावक थी। उनकी वाणी को सुनकर श्रोता मुग्ध हो जाते थे। उनके उपदेशों से बोध प्राप्त कर कई व्यक्ति संयम पथ के पथिक बने।

उनके विद्वान् शिष्य विद्यानंदसूरि और धर्मघोषसूरि द्वारा लघु पौषधशाला की स्थापना हुई। बड़ी पौषधशाला का प्रारंभ विजयचंद्रसूरि के शिष्यों ने किया।

देवेन्द्रसूरि ने मालव में धर्म प्रचार का कार्य किया।

*ग्रंथ-रचना*

देवेन्द्रसूरि तात्त्विक ग्रंथों के रचनाकार थे। उन्होंने अधिकांशतः सिद्धांतपरक साहित्य की रचना की। कर्मग्रंथों जैसी उपयोगी कृतियां देवेन्द्रसूरि के गंभीर आगमिक ज्ञान की सूचक हैं। कर्मग्रंथों की संख्या पांच है। प्रथम क्रमग्रंथ की 60 गाथाएं हैं, द्वितीय की 34 गाथाएं, तृतीय की 24 गाथाएं, चतुर्थ की 86 गाथाएं एवं पांचवें की 100 गाथाएं हैं। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इन ग्रंथों में कर्मों का स्वरूप और उनके परिणाम को अच्छी तरह से समझाया गया है। इनमें गुणस्थानों का भी विवेचन है। कर्म ग्रंथों पर देवेन्द्रसूरि का स्वोपज्ञ विवरण है।

सिद्धपंचाशिका सूत्रवृत्ति, धर्मरत्न वृत्ति, श्रावक दिनकृत्य सूत्र, सुदर्शन चरित्र आदि उनकी कई सरस रचनाएं हैं। इनमें विविध सामग्री है।

वे कवि भी थे। उन्होंने दार्शनिक ग्रंथों के अतिरिक्त दानादि कुलक आदि मधुर स्तवनों की रचना की। उनकी 'वन्दारु वृत्ति ग्रन्थ' श्रावकानुविधि के नाम से प्रसिद्ध है।

*समय-संकेत*

देवेन्द्रसूरि का वीर निर्वाण 1797 (विक्रम संवत् 1327) में स्वर्गवास हुआ। इस आधार पर देवेन्द्रसूरि वीर निर्वाण की 18वीं और विक्रम की 14वीं शताब्दी के विद्वान् थे।

*शब्द-शिल्पी आचार्य सोमप्रभ (द्वय) के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 100* 📜

*कालूरामजी जम्मड़*

*चिमठी और बोरा*

कालूरामजी का शरीर बहुत सुदृढ़ था। व्यापार में पड़कर भी उन्होंने अपने शरीर की उपेक्षा नहीं की। उनके शारीरिक बल का परिचय देने वाली अनेक घटनाएं सुविदित हैं। एक बार कुछ समवयस्क से बैठे बातचीत कर रहे थे। उनके सामने एक बोरा पड़ा था। उसमें दो मन (लगभग 80 किलो) भार था। सबलता की परीक्षा के लिए आह्वान किया गया कि कोई इस बोरे को चिमठी से पकड़कर ऊपर उठा दे तो जानें। अनेक युवकों ने प्रयास किया, परंतु कोई सफल नहीं हो सका। आखिर कालूरामजी ने उसे ऊपर उठाया और सबको अपनी सबलता का परिचय दिया।

*घोड़ियों की लड़ाई*

एक बार सेठ संपतरामजी दूगड़ के नोहरे में दो घोड़ियां परस्पर लड़ पड़ीं। वे एक दूसरे पर आक्रमण करती हुई बाहर गली में आ गईं। सेठ साहब के वहां नौकरी करने वाले ठाकुर और आड़सिंहजी तथा पहाड़सिंहजी ने उनकी लड़ाई छुड़ाने का काफी प्रयास किया, परंतु वे दोनों मिलकर भी घोड़ियों पर नियंत्रण नहीं कर सके। उसी समय कालूरामजी उसी मार्ग से होकर कहीं जा रहे थे। घड़ियों की दौड़ भाग के कारण मार्ग निरापद नहीं था। दोनों ठाकुरों ने जम्मड़जी को आगे जाने से रोका और कहा कि हमारे सब प्रयास विफल हो गए हैं, वे वश में नहीं आ रही हैं।

जम्मड़जी ने पास में पड़ी दन्ताली हाथ में उठाई और यह कहते हुए घोड़ियों की तरफ आगे बढ़ गए कि मनुष्य यदि पशुओं पर भी नियंत्रण नहीं कर पाएगा तो यह उसके लिए अपार लज्जा की बात होगी। उन्होंने लड़ती हुई घोड़ियों पर दन्ताली के वार किए और उन्हें पृथक्-पृथक् कर दिया। ठाकुरों ने तक घोड़ियों को उनके लिए निर्णीत स्थानों पर बांध दिया। कालूरामजी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए।

*कालूरामजी जम्मड़ की व्यापार क्षेत्र में योग्यता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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