16.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 16.10.2018
Updated: 16.10.2018

Update

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 101* 📜

*कालूरामजी जम्मड़*

*व्यापार क्षेत्र में*

कालूरामजी के पिता खेतसीदासजी ने सर्वप्रथम संवत् 1908 'मोजीराम खेतसीदास' नाम से कलकत्ता में कपड़े का व्यापार प्रारंभ किया। उसमें चार व्यक्तियों का साझा था। वह प्रतिष्ठान 20 वर्षों तक सभी को लाभान्वित करता रहा। संवत् 1928 में चारों मित्र पृथक्-पृथक् हो गए। उनमें से खेतसीदासजी तथा बींजराजजी इन दो मित्रों ने उसी वर्ष 'खेतसीदास तनसुखदास' नाम से पुनः कार्य प्रारंभ किया। स्वल्प समय में ही उक्त प्रतिष्ठान ने अच्छी आर्थिक उन्नति की।

संवत् 1936 में खेतसीदासजी का देहांत हो गया। तब उनके पुत्र कालूरामजी तथा बींजराजजी के पुत्र तनसुखदासजी ने कार्य संभाल लिया। अपने पिताओं के समान ही वे भी परस्पर प्रगाढ़ मित्र थे। उनकी दुकान मनोहरदास कटला में थी। उन्होंने अपने व्यापार कार्य को काफी आगे बढ़ाया। अनेक विलायती कंपनियों के अभिकर्ता (एजेंट) बने। उनमें टेलीमिल तथा ग्रेम कंपनी प्रमुख थीं। इनसे वे विभिन्न प्रकार के कपड़े तथा धोतीजोड़े मंगाते। बैंकिंग का कार्य भी करते। उनका वह प्रतिष्ठान निरंतर 40 वर्षों तक सम्मिलित कार्य करता रहा। व्यापार क्षेत्र की सफलता ने समाज में भी कालूरामजी को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया।

कालूरामजी के तीन पुत्र— मंगलचंदजी, वृद्धिचंदजी और शुभकरणजी। छोटे भाई नानूरामजी के कोई संतान नहीं थी, अतः बिचले पुत्र वृद्धिचंदजी को उनके गोद दे दिया गया। तनसुखदासजी का परिवार भी बढ़ा। दोनों मित्र प्रौढ़ होकर वृद्धावस्था की ओर बढ़ने लगे। तब तक उनके पुत्रों ने युवक होकर व्यापार में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। एक दिन कालूरामजी ने तनसुखदासजी से कहा— "हम दोनों में पूरा प्रेम है, परंतु अगली पीढ़ी में भी वैसा प्रेम रह सकेगा यह नहीं कहा जा सकता। हम चले जाएं और उसके पश्चात् वे सब लड़-झगड़ पृथक् हों इससे अच्छा है कि हम ही यह कार्य संपन्न कर दें। तनसुखदासजी का भी यही चिंतन था। एक दिन दोनों मित्र बैठे तथा एक मुनीम को भी साथ में बिठाया। थोड़े ही समय में उन्होंने अपने पूरे व्यवसाय का लेखा-जोखा किया और उसके दो विभाग कर लिए। कार्य संपन्न होने से पूर्व किसी को भनक तक नहीं पड़ने दी। उसके पश्चात् दोनों परिवारों ने अपना पृथक् व्यवसाय प्रारंभ कर दिया।

*कालूरामजी जम्मड़ की धर्मशासन के प्रति भक्ति व सेवा भावना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 447* 📝

*शब्द-शिल्पी आचार्य सोमप्रभ (द्वय)*

जैन श्वेतांबर मंदिर मार्गी परंपरा में सोमप्रभसूरि नाम के कई आचार्य हुए हैं। लोकप्रिय कृति सुक्तिमुक्तावली (सिन्दूरप्रकर) के रचनाकार सोमप्रभसूरि बड़गच्छ के आचार्य थे। तपागच्छ में भी सोमप्रभसूरि नाम के विद्वान् आचार्य हुए हैं। दोनों में एक शताब्दी से अधिक का अंतर है। बड़गच्छ के आचार्य सोमप्रभसूरि की प्रसिद्धि शतार्थी के रूप में हुई। वे तपागच्छ के आचार्य सोमप्रभसूरि से पूर्वकालीन थे।

*गुरु-परंपरा*

बड़गच्छ सोमप्रभसूरि के गुरु विजयसिंहसूरि थे। विजयसिंहसूरि से पूर्व अजीतदेवसूरि हुए। विजयसिंहसूरि समर्थ आचार्य थे। वे वीर निर्वाण 1705 (विक्रम संवत् 1235) तक विद्यमान थे। विजयसिंहसूरि के पट्टधर तीन आचार्य थे। उनमें एक नाम सोमप्रभसूरि का था। तपागच्छीय सोमप्रभसूरि धर्मघोषसूरि के शिष्य एवं पद्मानंदसूरि आदि मुनियों के गुरु थे।

*जन्म एवं परिवार*

बड़गच्छ के सोमप्रभसूरि का जन्म वैश्य वंश पोरवाल (प्राग्वाट्) जैन परिवार में हुआ। महामंत्री जिनदेव उनके दादा थे। पिता का नाम सर्वदेव था। तपागच्छीय सोमप्रभसूरि का जन्म वीर निर्वाण 1780 (विक्रम संवत् 1310) में हुआ।

*जीवन-वृत्त*

बड़गच्छ के सोमप्रभसूरि का परिवार धर्म के प्रति आस्थाशील था, अतः सोमप्रभ को धर्म के संस्कार सहज प्राप्त हुए। आचार्य विजयसिंहसूरि से उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की। गुरु चरणों में बैठकर आगम शास्त्रों का गहन अध्ययन किया तथा व्याकरण, न्याय आदि विविध विषयों के वे निष्णात विद्वान् बने।

विजयसिंहसूरि सोमप्रभ मुनि की योग्यता से प्रभावित हुए और उनकी नियुक्ति गच्छनायक के रूप में की।

तपागच्छीय सोमप्रभसूरि ने ग्यारह वर्ष की अल्पावस्था में मुनि दीक्षा ग्रहण की और बाईस वर्ष की लघुवय में सूरी पद पर आरूढ़ हुए। उनकी बहुश्रुतता और शास्त्रार्थ निपुणता प्रसिद्ध थी। उन्होंने चित्तौड़ में ब्राह्मण पंडितों के सामने विजय प्राप्त कर अपने बुद्धि कौशल का परिचय दिया। जैनागमों का गंभीर ज्ञान उन्हें था। एक बार उन्होंने ज्योतिष विद्या के बल पर भीमपल्ली में घटित होने वाली अनिष्ट घटना को जानकर उसका पूर्व संकेत देकर संघ को खतरे से बचाया।

*शब्द-शिल्पी आचार्य सोमप्रभ (द्वय) द्वारा रचित साहित्य* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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*गुरवरो धम्म-देसणं*

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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राष्ट्रीय संस्कार
निमार्ण शिविर
का षष्ठम दिवस

📮
दिनांक:
16 अक्टूबर 2018

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प्रस्तुति:
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News in Hindi

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......


परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....

📮
दिनांक:
16 अक्टूबर 2018

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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👉 रायपुर - सामूहिक आयम्बिल अनुष्ठान
👉 सी-स्कीम, जयपुर - बच्चो को स्वस्थ जीवन जीने का प्रशिक्षण
👉 केसिंगा - तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के तत्वावधान में "मेधावी छात्र सम्मान समारोह - 2018 व शपथ ग्रहण समारोह

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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