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👉 सोलापूर - अहिंसा प्रशिक्षण कार्यशाला
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प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अणुव्रत महासमिति
का
*अभियान*
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आतिशबाजी
को
*कहें ना*
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*आइये सोचें*
🎇
आतिशबाजी
से होने वाले
*नुकसान*
🤷♂🤷♀
तो हम दिवाली
पर आतिशबाजी
*क्यों करें?*
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: प्रस्तुती:
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
🌻
: संप्रसारक:
*संघ संवाद*
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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*गुरवरो धम्म-देसणं*
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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राष्ट्रीय संस्कार
निमार्ण शिविर
का समापन
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दिनांक:
18 अक्टूबर 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 449* 📝
*मननशील आचार्य मल्लिषेण*
स्याद्वाद-मञ्जरी टीका के रचनाकार आचार्य मल्लिषेण श्वेतांबर विद्वान् थे। व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि विभिन्न विषयों के वे गंभीर अध्येता थे। नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, मीमांसक, बौद्ध प्रभृति अनेक दर्शनों के अध्ययन-मनन से उनकी चिंतन शक्ति प्रौढ़ थी। यह तथ्य उनकी रचनाओं को पढ़ने से स्पष्ट है। वर्तमान में स्याद्वाद-मञ्जरी के अतिरिक्त उनकी अन्य रचना उपलब्ध नहीं है।
*गुरु-परंपरा*
मल्लिषेण के गुरु नागेंद्रगच्छीय उदयप्रभसूरि थे। उदयप्रभसूरि के गुरु विजयसेनसूरि थे। उदयप्रभसूरि की गुरु परंपरा ही संभवतः मल्लिषेण की गुरु परंपरा थी। जो उदयप्रभसूरि प्रकरण में प्रस्तुत है। स्याद्वाद-मञ्जरी टीका की रचना करते समय आचार्य मल्लिषेण ने अपने गुरु उदयप्रभसूरि का श्रद्धासिक्त शब्दों में वर्णन किया है, पर उनके पूर्व की गुरु परंपरा के संकेत नहीं है। वह श्लोक इस प्रकार है
*मातर्भारति! सन्निधेहि हृदि मे येनेयमाप्तस्तुते-*
*र्निर्मातुं विवृतिं प्रसिद्ध्यति जवादारम्भसंभावना।*
*यद्वा विस्मृतमोष्ठोयोः स्फुरित यत् सारस्वतः शाश्वतो*
*मंत्र श्रीउदयप्रभेति रचनारम्यो ममाहर्निशम्।।*
*जीवन-वृत्त*
आचार्य मल्लिषेण की गृहस्थ जीवन की सामग्री उपलब्ध नहीं है। मुनि जीवन में उनके विद्या गुरु कौन थे यह उल्लेख भी कहीं नहीं है। संभवतः उदयप्रभसूरि उनके प्रशिक्षक रहे हैं।
आचार्य मल्लिषेण के जीवन की यत्किञ्चित् प्रामाणिक सामग्री स्याद्वाद-मञ्जरी के प्रशस्ति श्लोकों में है। वे श्लोक इस प्रकार हैं
*नागेन्द्रगच्छ गोविंदवक्षोऽलङ्कारकौस्तुभाः।*
*ते विश्ववंद्या नंद्यासुरुदयप्रभसूरयः।।*
*श्रीमल्लिषेणसूरिभिरकारि तत्पदगगनदिनमणिभिः।*
*वृत्तिरियं मनुरविमितशाकाब्दे दीपमहसि शनौ।।*
*श्रीजीप्रभसूरीणां साहाय्योद्भिन्नसौरभाः।*
*श्रुतावुत्तंसतु सतां वृत्ति स्याद्वादमञ्जरी।।*
इन श्लोकों में नागेंद्रगच्छ, गुरु उदयप्रभसूरि, स्याद्वाद-मञ्जरी वृत्ति रचना का समय और रचना में सहयोगी जिनप्रभसूरि का उल्लेख है।
*साहित्य*
आचार्य मल्लिषेण द्वारा निर्मित स्याद्वाद-मञ्जरी आचार्य हेमचंद्र की अन्य-योग-व्यवच्छेदिका की टीका है। प्रसाद और माधुर्य गुण से मंडित यह टीका रत्नप्रभसूरि की स्याद्वाद रत्नावतारिका से अधिक सरल और सरस है। इसकी कमनीय पदावलियां एवं कांत, कोमल शब्द संयोजना पाठक के मानस को मुग्ध करती है। विविध दर्शनों का मर्म स्पर्शी विवेचन और युक्ति पुरस्सर स्याद्वाद का प्रतिस्ठापन मल्लिषेण की संतुलित मेधा का परिचायक है। दर्शनांतरीय मत के प्रकाशन में जैनेतर विद्वानों के प्रति प्रामाणिक, प्रकांड, परमर्षि जैसे शालीन शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो मल्लिषेणसूरि के हृदय की विशालता को प्रकट करता है।
विपुल साहित्य नहीं होने पर भी मल्लिषेण की प्रसिद्धि स्याद्वाद-मञ्जरी के आधार पर है।
इस कृति ने जैन-जैनेतर सभी विद्वानों को प्रभावित किया है। माधवाचार्य ने सर्व-दर्शन संग्रह में इसका संकेत किया और यशोविजयजी ने इस पर स्याद्वाद मञ्जूषा की रचना की।
स्याद्वाद-मञ्जरी की रचना में आचार्य मल्लिषेण को सहयोग करने वाले जिनप्रभसूरि लघु खरतरगच्छ के थे और स्तोत्रसाहित्य के रचनाकार थे।
*समय-संकेत*
स्याद्वाद-मञ्जरी के प्रशस्ति श्लोकों में प्राप्त उल्लेखानुसार आचार्य मल्लिषेण ने यह कृति शक संवत् 1214, वीर निर्वाण 1819 (विक्रम संवत् 1349) दीपमालिका शनिवार के दिन संपन्न की। आचार्य मल्लिषेण के कालक्रम को जानने के लिए यह पुष्ट प्रमाण है।
*जनहितैषी आचार्य जिनप्रभ के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 103* 📜
*कालूरामजी जम्मड़*
*शासन-सेवी*
*पक्का आंगन*
साधु-साध्विया जम्मड़ो की हवेली में विराजते उस समय व्याख्यान प्रायः हवेली के चौक में या दरवाजे पर होता। आचार्यश्री पधारते तब हवेली से सटी हुई दक्षिण पार्श्ववर्ती उनकी महफिल में व्याख्यान होता। महफिल के आगे बनी हुई लंबी चौकी कच्ची थी। उसके आगे की खुली भूमि रेतीली थी। पुरुष व्याख्यान के समय चौकी पर बैठते और महिलाएं खुले चौक की रेतीली भूमि पर। गर्मी के दिनों में पसीना आता तब रेत में महिलाओं के वस्त्र खराब हो जाते। कालूरामजी ने श्रीचंदजी गधैया से परामर्श किया और चौकी तथा खुले चौक को पक्का बना दिया। थोड़े दिनों पश्चात् डालगणी का वहां पदार्पण हुआ। किसी व्यक्ति ने आचार्यश्री को एकांत में निवेदन किया कि यह आरम्भ आप के निमित्त ही हुआ है। डालगणी ने कालूरामजी से इस विषय में पूछताछ की और ऐसा कार्य करने के लिए उपालंभ दिया। उन्होंने वहां से अन्य स्थान में चले जाने का निश्चय किया।
कालूरामजी ने नम्रता पूर्वक निवेदन किया कि महिलाओं के बहुमूल्य वस्त्रों के खराब होने की बार-बार शिकायत आई। तब मैंने इसे पक्का बनाने का निश्चय किया। आप श्रीचंदजी से पूछ कर निश्चय कर लीजिए। क्योंकि मैंने उनसे इस विषय में परामर्श करके कार्य किया था।
डालगणी ने श्रीचंदजी से पूछा। उन्होंने यही प्रार्थना की कि हम गृहस्थ हैं। अपने तथा अपनी महिलाओं के वस्त्रों की सुरक्षा के लिए यदि हम अपने मकान में आवश्यक परिवर्तन करते हैं, उसको आप के निमित्त हुआ कैसे कहा जा सकता है? दोनों ही विश्वसनीय श्रावक थे, अतः उनके कथन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था। डालगणी तब वहीं विराजे।
*दूध का जला*
कालूरामजी संवत् 1966 के चातुर्मास में डालगणी के दर्शन करने के लिए लाडनूं गए। आचार्यश्री का स्वास्थ्य बहुत निर्बल चल रहा था। जम्मड़जी ने नाड़ी देखी तो वह बहुत अव्यवस्थित चल रही थी। उन्होंने निवेदन किया— "गुरुदेव! नाड़ी की स्थिति को देखते हुए मुझे यह प्रार्थना करने को बाध्य होना पड़ रहा है कि आपको संघ की आगामी व्यवस्था का निर्णय कर देना चाहिए।" डालगणी ने छोटा सा उत्तर देकर बात को टालते हुए कहा— "ध्यान में है।" कालूरामजी ने दूसरी बार प्रार्थना करते हुए कहा— "आपके ध्यान में तो होगा ही, परंतु मेरी प्रार्थना का तात्पर्य है कि वह समाज के ध्यान में भी आ जाना चाहिए।" डालगणी ने फिर वैसा ही छोटा सा उत्तर दिया— "देखा जाएगा।" कालूरामजी ने फिर साहस किया और बोले— "धृष्टता की क्षमा चाहता हूं। मेरा निवेदन है कि आप वर्तमान साधुओं में से ही किसी एक को चुनेंगे। नई दीक्षा देकर उसे तैयार कर सकें, इतना समय तो अब है नहीं। तब फिर विलंब करके खतरा क्यों उठाना चाहिए?" डालगणी थोड़े मुस्कुराए और बोले— "जम्मड़जी मैं जानता हूं कि दूध का जला हुआ छाछ को भी फूंक मारता है। तुम संघ हित के लिए जो कह रहे हो वह उचित ही है। मेरे कर्त्तव्य को मुझे ही पूर्ण करना है। अवसर आते ही मैं अपने कार्य को पूर्ण कर देने का विचार रखता हूं।"
कालूरामजी ने तीन बार निवेदन कर देने के पश्चात् उस विषय को वहीं समाप्त कर दिया। डालगणी ने उनके निवेदन के पश्चात् शीघ्र ही कालूगणी का नाम पत्र में अंकित करके अपने उत्तराधिकारी का चयन कर दिया।
*कालूरामजी जम्मड़ अनौचित्य को कभी प्रश्रय नहीं देते थे... इस बात को दृष्टिगत करने वाले एक प्रेरणादायक प्रसंग* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*अपने बारे में अपना दृष्टिकोण: वीडियो श्रंखला २*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
📿 *आ है खरी कमाई जी, आ है खरी कमाई जी ।* 💎
⛩ *चेन्नई* (माधावरम्)..
🙏 *परम् पावन आचार्य श्री महाश्रमण जी* के मंगल सान्निध्य में *बालमुनि प्रिंस कुमार जी* के *मासखमण (30) की तपस्या* सानंद सम्पन्न..
💠 *मुख्य मुनि जी, साध्वी प्रमुखा श्री जी, मुख्य नियोजिका जी, साध्वी वर्या जी, मुनि वृन्द एवं साध्वी वृन्द द्वारा तपस्या की अनुमोदना....*
🌈 *आज प्रातःकाल के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक 18/10/2018
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