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🌸 *जैन तेरापंथ कार्ड धारकों के लिए दवाइयों पर 25% छूट* 🌸
🏠 *अब घर बैठे प्राप्त होगी दवाइयां*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के तेरापंथ नेटवर्क* के अंतर्गत सभी *जैन तेरापंथ कार्ड* धारकों के लिए एक नया उपहार प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अंतर्गत Futura Care कंपनी के *PRESCOLIFE* द्वारा जैन तेरापंथ कार्ड धारकों को एलोपैथी दवाइयों पर (MRP पर) FLAT 25% छूट दी जाएगी। *
*छूट प्राप्त करने के लिए, क्या करना होगा?* 🤔
PRESCOLIFE के व्हाट्सएप नंबर 8056050909 पर आपके *डॉक्टर द्वारा लिखित पर्ची (prescription)* एवं *अपने जैन तेरापंथ कार्ड* की फोटो व्हाट्सएप करें।
*दवाइयों का पेमेंट सिस्टम क्या होगा?* 🤔
दवाइयों का पेमेंट करने के लिए Credit Card, Debit Card, Net Banking, Paytm तथा cash on delivery की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी।
Online पेमेंट करने वालों को कोरियर/डाक निःशुल्क भेजा जाएगा, किंतु Cash on delivery वालों के लिए कोरियर चार्ज 50 रुपए रहेगा। चेन्नैवासियों के लिए Cash on delivery भी नि:शुल्क रहेगी।
*कितने दिनों में मिलेगी दवाइयां?* 🤔
Order कन्फ़ॉर्म होने के सामान्यतया एक दिन से चार दिन के मध्य (स्थान की दूरी अनुसार) दवाइयां बताए गए पते पर प्राप्त हो सकेंगी।
*T&C Apply
Helpline Number- 8056050909
जैन तेरापंथ कार्ड से संबंधित जिज्ञासाओं समाधान हेतु मोबाइल नंबर 7044776666 पर संपर्क करें।
🙏 *संप्रसारक* 🙏
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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*गुरवरो धम्म-देसणं*
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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दो आध्यात्मिक परम्पराओं
का समागम
दिगंबर परम्परा के आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर
एवं
श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्य श्री महाश्रमण जी
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दिनांक:
20 अक्टूबर 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Source: © Facebook
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 451* 📝
*जनहितैषी आचार्य जिनप्रभ*
*साहित्य*
जिनप्रभसूरि ने धर्म प्रचार के साथ साहित्य साधना भी की। स्तोत्र साहित्य निर्माण में उनकी विशेष रुचि थी। प्रतिदिन भोजन से पूर्व पांच नए श्लोकों की रचना करने हेतु वे प्रतिज्ञाबद्ध थे। उन्होंने सैकड़ों स्तोत्र रचे और तपागच्छ के नवोदीयमान सोमतिलकसूरि के चरणों में इस स्तोत्र साहित्य को भेंटकर उनके प्रति बहुमान प्रदर्शित किया।
उन्होंने स्तोत्र साहित्य के अतिरिक्त स्वतंत्र मौलिक ग्रंथों की रचना भी की। उनकी प्रथम रचना विक्रम संवत् 1352 की है और अंतिम रचना विक्रम संवत् 1390 की है। जिनप्रभसूरि द्वारा रचित ग्रंथों में कुछ कृतियों के नाम इस प्रकार हैं
*1.* कातंत्र-विभ्रम-टीका विक्रम संवत् 1352
*2.* द्वयाश्रय काव्य विक्रम संवत् 1356 (श्रेणिक चरित्र संस्कृत रचना)
*3.* विधिमार्गप्रपा विक्रम संवत् 1363 (अयोध्या)
*4.* सिद्धांत आगम रहस्य
*5.* संदेह विषौषधि विक्रम संवत् 1364 (अयोध्या)
*6.* भयहर स्तोत्र टीका विक्रम संवत् 1365 (अयोध्या)
*7.* उवसग्गहरवृत्ति विक्रम संवत् 1365 (अयोध्या)
*8.* अजीत शांति वृत्ति विक्रम संवत् 1365 (अयोध्या)
*9.* वीर स्तुति विक्रम संवत् 1380
*10.* द्वयक्षर नेमि-स्तव
*11.* पंच परमेष्ठी-स्तव
*12.* महावीर गणधर कल्प विक्रम संवत् 1386
*13.* विविध तीर्थकल्प (संस्कृत प्राकृत रचना)।
विधिमार्गप्रपा की रचना आचार्य जिनप्रभ ने अयोध्या में की। यह ग्रंथ क्रियाकाण्ड प्रधान है। इसके 41 द्वार हैं। इसमें पौषध, प्रतिक्रमण आदि अनेक धार्मिक क्रियाओं की विधि को समझाया गया है। योग विधि में आचाराङ्ग, समवायाङ्ग आदि आगम विषयों का वर्णन है।
पिंडविशुद्धिप्रकरण, श्रावकव्रत कुलक, पौषधविधि-प्रकरण, द्वादश कुलक, संघ पट्टक आदि 42 कृतियों के नाम 'शासन प्रभावक जिनचंद्रसूरि और उनका साहित्य' नामक कृति में हैं।
जिनप्रभसूरि की कृतियों में विविध तीर्थकल्प एक ऐतिहासिक कृति है। इस कृति के अध्ययन से उनकी प्रलम्बमान यात्राओं का परिचय मिलता है। उन्होंने गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि विभिन्न क्षेत्रों में विहरण किया। इन यात्राओं में उन्हें विभिन्न देशों, प्रांतों, क्षेत्रों का जो इतिहास उपलब्ध हुआ और जो विशेषताएं उन्होंने देखीं अथवा जो घटनाएं जनश्रुति के आधार पर सुनीं उनको संस्कृत-प्राकृत भाषा में निबद्ध कर ग्रंथ की रचना की। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से यह ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है।
प्रस्तुत ग्रंथ में 62 कल्प हैं एवं तीर्थस्थानों का वर्णन है। भगवान महावीर के अस्थिग्राम, चंपा, पृष्ठचंपा, वैशाली आदि 42 चातुर्मासिक स्थलों का नाम पुरस्सर उल्लेख और पालक, नंद, मौर्यवंश पुष्यमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, नरवाहन, गर्दभिल्ल, शक, विक्रमादित्य आदि राजाओं की काल संबंधी जानकारी इस ग्रंथ में प्राप्त की जा सकती है।
इस ग्रंथ के दीपावली कल्प में पादलिप्त, मल्लवादी, सिद्धसेन दिवाकर, हरीभद्र, हेमचंद्र आदि के उल्लेख भी हुए हैं।
आचार्य जिनप्रभसूरि ने प्रस्तुत ग्रंथ की रचना वीर निर्वाण 1860 (विक्रम संवत् 1390) में की।
जिनप्रभसूरि का संबंध कई गच्छों से था। मल्लधार गच्छ के आचार्य राजशेखरसूरि उनसे न्यायकन्दली ग्रंथ का प्रशिक्षण लेते थे। स्याद्वादमञ्जरी की रचना में नागेंद्रगच्छीय आचार्य मल्लिषेण का उन्होंने सहयोग किया। तपागच्छ से उनका निकट का संबंध था यह स्तोत्र साहित्य के समर्पण से स्पष्ट है।
*समय-संकेत*
विविध तीर्थकल्प, विधिमार्गप्रपा, वीरस्तुति, महावीर-गणधर कल्प आदि ग्रंथों के आधार पर जन-जन हितैषी आचार्य जिनप्रभसूरि वीर निर्वाण 19वीं (विक्रम संवत् 14वीं) शताब्दी के प्रभावक विद्वान् थे।
*आचार्यकल्प उपाध्याय यशोविजय जी के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 105* 📜
*लाभूरामजी चोपड़ा*
*नीतिमान् व्यापारी*
गंगाशहर निवासी श्रावक लाभूरामजी चोपड़ा का जीवनकाल संवत् 1914 से 1974 फाल्गुन तक का था। वे अपने बड़े भाई फूसराजजी के निर्देशानुसार काम किया करते थे। विनयी इतने की भाई द्वारा उग्रतावश कुछ ऊंचा-नीचा कह देने पर भी अम्लान वदन से उसे सह लेते थे। प्रत्युत्तर में एक शब्द भी मुंह से नहीं निकालते। परिश्रमी व्यक्ति थे। जो भी कार्य प्रारंभ करते उसके पीछे सारी शक्ति झोंक देने में उन्हें कभी कोई हिचक नहीं हुआ करती थी।
प्रारंभ में कुछ वर्षों तक वे मुर्शिदाबाद निवासी सुप्रसिद्ध व्यवसायी इंद्रचंदजी नाहटा के यहां अपने भाई के साथ ही रहे, किंतु बाद में उनके परामर्श से उन्होंने संवत् 1950 के लगभग रंगपुर के उपनगर माहीगंज में 'छोगमल तिलोकचंद' नाम से एक निजी कार्य प्रारंभ कर दिया। उन्होंने अपना कार्य पूर्ण रूप से नीति युक्त चलाया। किसी प्रकार के व्यापारिक मायाचार से उन्हें घृणा थी। अन्याय से एक पैसा भी वे अपने यहां आने देना पसंद नहीं करते थे।
*परीक्षा का प्रकार*
लाभूरामजी स्वयं तो पूर्ण निष्ठा से नैतिकता निभाते ही थे, परंतु समय-समय पर अपने संपर्क में आने वालों की नैतिकता को परखते भी रहते थे। उनके परखने के प्रकार अपने ही प्रकार के थे। जिन किसानों तथा व्यापारियों से वे पाट आदि वस्तु खरीदा करते थे, उन्हें मूल्य चुकाते समय जान-बूझकर कुछ अधिक रुपया दे दिया करते थे। उस समय नोटों का विशेष प्रचलन नहीं था अतः लेन-देन में रोकड़े ही काम में लिए जाते थे। जब वह व्यक्ति उनको गिनता और अधिक होने पर वापस दे देता तब वह उसे नीतिमान् व्यक्ति मानकर आगे के लिए व्यापार में प्राथमिकता देते। जो व्यक्ति रुपए गिन कर चुपचाप अपने थैले में डालने की तैयारी करता उसे वे बीच में ही टोक कर कहते— "भाई बूढ़ा हो गया हूं। देखना कहीं मैंने रुपए अधिक तो नहीं दे दिए हैं?" इस प्रकार उसे लज्जित किए बिना दोबारा गिनने के लिए ले लेते और फिर गिरकर सही रकम उसे दे देते। बाद में अपनी दुकान के सभी व्यक्तियों को सावधान कर देते कि अमुक व्यक्ति के साथ लेन-देन करने में पूरी सावधानी रखी जानी चाहिए।
*श्रावक लाभूरामजी चोपड़ा की धार्मिक वृत्ति व उनके देह-त्याग* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 वडोदरा - अहिंसा प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 रायपुर - कन्या सुरक्षा चक्र का शिलान्यास
👉 सरदारशहर: "जैन संस्कार विधि" से नूतन गृह-प्रवेश
👉 जयपुर, शहर - महिला मंडल द्वारा "कन्या सुरक्षा" व "शिक्षा कार्यक्रम" आयोजित
👉 तिरुपुर - मुमुक्षु प्रज्ञा का मंगल भावना समारोह
👉 जलगांव - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 दिल्ली - संथारे का द्वितीय दिवस सआन्नंद गतिमान...
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन
मनमोहक दृश्य
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दिनांक:
20 अक्टूबर 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*अपने बारे में अपना दृष्टिकोण: वीडियो श्रंखला ४*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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