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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 22 अक्टूबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 हिसार - *सागारी संथारे "शासनश्री" साध्वी श्री चंद्रकला जी (हिसार) का देवलोकगमन.....*
प्रस्तुति: 🙏 *संघ संवाद* 🙏
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 452* 📝
*आचार्यकल्प उपाध्याय यशोविजय जी*
जैन दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान्, गंभीर चिंतक, प्रखर वक्ता उपाध्याय यशोविजय जी तपागच्छीय नयविजय जी के शिष्य थे। वे सौ कृतियों के रचनाकार थे। यशोविजय जी का जन्म विक्रम संवत् 1665 में हुआ। वे बचपन से ही स्फुरित मनीषा के धनी थे। "होनहार बिरवान के होत चिकने पात" की उक्ति उनके जीवन में चरितार्थ हुई। वे बाल्यावस्था में माता के साथ प्रतिदिन जैन उपाश्रय में जाते और प्रतिक्रमण सुनते। सुनने मात्र से उन्हें समग्र प्रतिक्रमण कंठस्थ हो गया।
अति वर्षा के कारण एक दिन उनकी माता उपाश्रय में न जा सकी। यशोविजय जी ने अस्खलित उच्चारण पूर्वक अथ से इति तक प्रतिक्रमण माता को सुना दिया। पुत्र की तीव्र स्मरण शक्ति पर माता को बहुत प्रसन्नता हुई। यह बात उनके धर्म प्रतिबोधक गुरु तक पहुंची। उन्होंने बालक की हस्तरेखाएं देखीं और कहा "यह बालक हमारे उपयोग का है।"
माता में पुत्र ममता से भी अधिक धर्म के प्रति श्रद्धा भावना का प्राबल्य था। उसने अपने सुकुमार लाल को गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया।
यशोविजय जी ने दीक्षा लेने के बाद व्याकरण, सिद्धांत, ज्योतिष, छंद आदि विविध विषयों में बहुत शीघ्र ही अपनी प्रतिभा शक्ति से प्रभुत्व स्थापित किया।
यशोविजय जी के ऊर्जस्वल व्यक्तित्व से जैन धर्म के महान उदय की संभावना सबको प्रतीत हो रही थी। जैन संघ की विशेष सहायता से वीर निर्माण 2169 (विक्रम संवत् 1699) में वे न्याय संबंधी विशेष अध्ययन के लिए विनयविजय जी के साथ काशी गए थे। वहां उन्होंने समग्र भारतीय दर्शनों पर विशेष दक्षता प्राप्त की।
यशोविजय जी की स्मरण शक्ति बहुत तीव्र थी। एक दिन में शार्दुल-विक्रिडित छंद में सात सौ श्लोकों को कंठस्थ कर वाराणसी के दिग्गज विद्वानों को चमत्कृत कर दिया। अवधान विद्या पर भी उनका विलक्षण प्रभुत्व था। एक हजार प्रश्नों को बहुत त्वरा से समाहित कर उन्होंने गणित विशेषज्ञों को भी चमत्कृत कर दिया।
उनके विद्वत्ता की सुवास सर्वत्र प्रसारित हुई। तत्रस्थ विद्वानों ने उन्हें न्याय विशारद की उपाधि से अलंकृत किया।
यशो विजय जी की सबसे महत्त्वपूर्ण देन जैन दर्शन में नव्य न्याय शैली को विकास देना है।
नव्य न्याय का प्रारंभ वीर निर्वाण 17वीं (विक्रम की 13वीं) सदी में मिथिला के नैयायिक गंगेश में हुआ बताया गया है।
सभी दर्शनों की साहित्य धारा इस ओर मुड़ रही थी, पर जैनाचार्य मौन थे। चार सौ-पांच सौ वर्ष तक कोई भी जैन ग्रंथ इस नवीन शैली में निर्मित होकर विद्वानों के सामने नहीं आया।
उपाध्याय यशोविजय जी की दृष्टि इस ओर उन्मुख बनी। उनकी प्रांजल प्रज्ञा एवं त्वरित गामिनी लेखिनी ने नव्य न्याय शैली में विपुल साहित्य रचना की।
नवीन परिभाषा और नूतन शैली पर आधारित उनकी तत्त्व चिन्तामणि ने संपूर्ण न्याय जगत् में हलचल पैदा कर दी।
प्रमाण नय निक्षेप का सांगोपांग विवेचन करने वाली जैन तर्क भाषा, ज्ञान बिंदु, ज्ञान प्रकरण ये न्याय जगत् की महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं। न्यायावलोक, भाषा रहस्य, प्रमाण रहस्य, वाद रहस्य, अष्ट सहस्री और शास्त्र वार्ता समुच्चय की नवीन व्याख्या में अष्ट सहस्री विवरण और स्याद्वाद कल्पलता का निर्माण हुआ।
यशोविजय जी ने तत्सम और भी अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रचे एवं जैन साहित्य के भंडार को भरा।
*आचार्यकल्प उपाध्याय यशोविजय जी की साहित्य रचना व उनके जीवन प्रसंगों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 106* 📜
*लाभूरामजी चोपड़ा*
*धार्मिक वृत्ति*
आरंभ से ही वे कठोर दिनचर्या के अभ्यासी थे। वृद्धावस्था में तो उन्होंने स्वयं को और भी अधिक कठोर चर्या में डाल लिया था। वे केवल एक बार भोजन करते, अचित्त पानी पीते। वह भी एकासन करते समय घंटा घर में ही पी लेते। छहों विगयों का परित्याग था। मुंह में कभी कभी छाले हो जाया करते थे उस समय केवल मिश्री लेने का आगार रखा हुआ था। अचित्त पानी, रोटी, चटनी, खिचड़ा और छाछ ये पांच द्रव्य ही उनके खान और पान में काम आते थे। ग्रीष्म ऋतु में धूप में खड़े हो कर दो सामायिक करते और शीत ऋतु में उसी प्रकार शीत सहन करते। जीवन के अंतिम दस वर्षों में उन्हें मांचे या ढोलिये आदि पर सोने का त्याग था। बिछौने के लिए केवल एक कंबल रखा करते थे। जूते नहीं पहनते थे। घरेलू कार्यों के लिए प्रायः प्रतिदिन ही उन्हें गंगाशहर से बीकानेर जाना पड़ता, तब वे पैदल ही जाया करते थे। साधु-साध्वियों की सेवा करने में उन्हें बड़ा आनंद आता था। सभी उन्हें 'श्रावकजी' नाम से पुकारा करते थे।
*ध्यान में प्राणांत*
लगभग 60 वर्ष की अवस्था में उन्होंने देह-त्याग किया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने अपनी पत्नी तथा घर के अन्य सभी व्यक्तियों को रोने का त्याग करवा दिया। मृत्यु से प्रायः दो घंटे पूर्व उन्होंने स्वयं विधिपूर्वक यावज्जीवन के लिए अनशन ग्रहण कर लिया और ध्यान मुद्रा में बैठकर माला फेरने लगे। उन्होंने सबसे कह दिया था कि अब उन्हें न कोई बतलाए और न स्पर्श ही करें। इस प्रकार दो घंटे लगातार ध्यानस्थ रहकर पश्चिम रात्रि में सवा चार बजे ध्यानावस्था में उन्होंने प्राण छोड़े। कहा जाता है कि उन्होंने मृत्यु के पश्चात् तत्काल ही गंगाशहर में स्थिरवास के रूप में विराजित मुनि पृथ्वीराजजी के दर्शन किए। मुनिश्री ने मुनि डायमलजी से समय पूछा और कहा कि श्रावकजी आयुष्य पूरा कर गए हैं।
*धर्मसंघ की महनीय सेवा करने वाले श्रावक गणेशदासजी चंडालिया के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 मोमासर - तेरापंथ भवन का शिलान्यास
👉 मानसा (पंजाब) - जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव
👉 विजयनगर, बेंगलुरू - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 शाहीबाग (अहमदाबाद) - जीवन शैली प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 विजयनगर, (बेंगलुरु): "बदले स्वयं को TURNING -POINT 'T' के साथ"कार्यशाला आयोजित
👉 रायपुर - अहिंसा प्रशिक्षण कार्यशाला एवं अभिनव मीटिंग का आयोजन
👉 अमराईवाड़ी-ओढव - जीवन शैली प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 कांलावाली:- दीक्षार्थी शोभायात्रा व मंगल भावना समारोह
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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*गुरवरो धम्म-देसणं*
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
22 अक्टूबर 2018
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प्रस्तुति:
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News in Hindi
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*अपने बारे में अपना दृष्टिकोण: वीडियो श्रंखला ५*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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