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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 26 अक्टूबर 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 456* 📝
*मेधावी आचार्य मेरुतुंग*
*(प्रबंध चिंतामणि रचनाकार)*
प्रबंध चिंतामणि के रचनाकार मेरुतुंगसूरि नागेंद्रगच्छ के आचार्य थे। वे प्रभावी आचार्य चंद्रप्रभुसूरि के शिष्य थे। मेघदूत काव्य के रचनाकार मेरुतुंग इनसे भिन्न हैं। दोनों की गुरु परंपरा भी भिन्न है। काव्यकार मेरुतुंगसूरि अंचलगच्छ के हैं। प्रस्तुत मेरुतुंगसूरि नागेंद्रगच्छ के हैं। दोनों में लगभग एक शतक का अंतराल है। काव्यकार मेरुतुंगसूरि से प्रबंध चिंतामणि के रचनाकार मेरुतुंगसूरि पूर्ववर्ती हैं। टीकाकार मेरुतुंगसूरि का सत्ता-काल विक्रम संवत् 15वीं शताब्दी एवं प्रबंध चिंतामणि के रचनाकार मेरुतुंगसूरि का सत्ता-काल विक्रम संवत् 14वीं शताब्दी माना गया है।
*साहित्य*
आचार्य मेरुतुंग का वैदुष्य इतिहास लेखन में प्रकट हुआ। उन्होंने महापुरुष चरित्र नामक ग्रंथ की रचना की। प्रबंध चिंतामणि की तरह यह कृति भी इतिहास से संबंधित है। इस कृति में जैन शासन के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, सोलहवें तीर्थंकर शान्ति, बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ, तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर का जीवन परिचय है। इतिहास पाठकों के लिए उपयोगी है।
आचार्य मेरुतुंग का प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ जैन इतिहास की विपुल सामग्री से परिपूर्ण है। जैन इतिहास को विस्तृत रूप से प्रदान करने वाले मुख्य चार ग्रंथ माने गए हैं। *(1)* प्रभावक चरित्र, *(2)* प्रबंध चिंतामणि, *(3)* प्रबंध कोश *(4)* विविध तीर्थकल्प।
'प्रभावक चरित्र' के रचनाकार प्रभाचंद्र, 'प्रबंध कोश' के रचनाकार राजशेखर, 'विविध तीर्थकल्प' के रचनाकार जिनप्रभ एवं 'प्रबंध चिंतामणि' के रचनाकार मेरुतुंगसूरि हैं।
ये ग्रंथ परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं। कालक्रम की दृष्टि से इन में प्रभावक चरित्र सर्वप्रथम एवं प्रबंध चिंतामणि का स्थान द्वितीय है।
प्रबंध चिंतामणि का विवेचन संक्षिप्त एवं समास शैली में है। इस ग्रंथ की रचना में विद्वान् धर्मदेव का सहयोग आचार्य मेरुतुंग को मिला। विद्वान् धर्मदेव गुरुभ्राता या अन्य स्थविर पुरुष थे।
आचार्य मेरुतुंग के गुणचंद्र नाम का शिष्य था। वह लेखन कला में प्रवीण था। उसने इस ग्रंथ की पहली प्रतिलिपि तैयार की। राजशेखर के प्रबंध कोश में प्रबंध चिंतामणि का उपयोग हुआ है।
*समय-संकेत*
मेरुतंगसूरि का स्वर्गवास का समय ज्ञात नहीं है। प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ की रचना उन्होंने वीर निर्वाण 1831 (विक्रम संवत् 1361) में संपन्न की। इस आधार पर मेधावी आचार्य मेरुतुंग वीर निर्वाण 19वीं (विक्रम की 14वीं) शताब्दी के थे।
*गुणनिधि आचार्य गुणरत्न के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 110* 📜
*गणेशदासजी चंडालिया*
*इतिहास दोहराया गया*
गतांक से आगे...
कुम्हार ने साध्वियों की बात का बड़ी निश्चिंतता से उत्तर देते हुए कहा— "मेरे पास है भी क्या जोरावर जी मेरे से छीन लेंगे? गधा, मिट्टी के बर्तन और झोंपड़ा। इनमें से एक भी वस्तु उनके काम के नहीं है। इतने पर भी वे छीन लेंगे तो छीन लेने दीजिए। आप इसकी चिंता छोड़कर अंदर आइए और विश्राम करिए।"
साध्वियों की सारी समस्या क्षण भर में हल हो गई। वे उस दिन के लिए कुम्हार के उस घर में जाकर ठहरीं। उन्होंने वहां आहार-पानी भी लिया।
दौलतगढ़ के श्रावकों को साध्वियों के प्रति आसींद रावजी द्वारा किए गए उक्त व्यवहार का पता लगा, तब वे सजग हुए और तत्काल स्थानीय ठाकुर से मिले। उन्होंने रावजी के व्यवहार की सारी स्थिति की जानकारी दी और अपने यहां साध्वियों को लिवा लाने की स्वीकृति चाही। ठाकुर तेरापंथ के साधु-साध्वियों के प्रति बड़ी भक्ति रखा करते थे। उन्होंने तत्काल स्वीकृति प्रदान करते हुए कहा— "यह तो हम लोगों के लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी। आप लोग मेरी ओर से भी साध्वियों को यहां आने के लिए प्रार्थना कर दीजिए।"
पूरी व्यवस्था कर लेने के पश्चात् कुछ श्रावक उस गांव में साध्वियों के दर्शनार्थ गए और अपनी तथा ठाकुर की ओर से वहां पदार्पण की। प्रार्थना के फलस्वरूप दूसरे दिन साध्वियां दौलतगढ़ चली गईं।
संयोग से दूसरे दिन रात्रि के समय किसी की असावधानी के कारण पिछले गांव में आग लग गई। वह ऐसे विचित्र प्रकार से फैली कि एक कुम्हार के घर को छोड़कर सारे घर आग की लपेट में आ गए। कहा नहीं जा सकता की एकमात्र कुम्हार के घर का बचाव किस देवी प्रसाद का परिणाम था, परंतु यह कहा जा सकता है कि उस घटना से पुरातन इतिहास ने एक बार स्वयं को फिर दोहरा दिया। इतना अंतर अवश्य रहा कि राजर्षि उदाई को स्थान देने वाले कुम्हार के घर को छोड़कर शेष सारे नगर का दाह हुआ था देव प्रकोप से, किंतु यहां पर यह कार्य हुआ प्रकृति प्रकोप से।
*महनीय सेवाएं*
यद्यपि महामारी के इस अवसर पर मेवाड़ में प्रवेश करने वाले साधु-साध्वियों के मार्ग में ऐसी अन्य भी अनेक बाधाएं आई होंगी, परंतु उनसे गणेशदासजी चंडालिया द्वारा राजाज्ञा प्राप्त कर की गई संघ की सामयिक सेवा के महत्त्व में कोई कमी नहीं हो जाती। समय-समय पर संघ को उनकी ऐसी महनीय सेवाएं प्राप्त हुई थीं।
संसार पक्ष में भी वे सभी के काम आने वाले व्यक्ति थे। ग्रामीण लोग उनका बहुत विश्वास किया करते थे। पारस्परिक झगड़ों का सुलझाव कराने के लिए वे बहुधा उनके पास आते ही रहते थे। स्थानीय व्यापारियों के झगड़े भी सुलझाव के लिए उनके पास आते रहते थे। वे निष्पक्ष रहते हुए झगड़ने वाले दलों में बहुधा समझौता करा देते थे।
*सुलभबोधी एवं सम्यक्त्वी श्रावक नगीनभाई वकीलवाला का प्रेरणादायी जीवन वृत्त* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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26 October 2018
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👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬
https://youtu.be/6rR41mQ5KKQ
📍
: दिनांक:
*26 अक्टूबर 2018*
: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄
: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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*गुरवरो धम्म-देसणं*
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
26 अक्टूबर 2018
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....
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दिनांक:
26 अक्टूबर 2018
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*अपने बारे में अपना दृष्टिकोण: वीडियो श्रंखला ७*
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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