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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २९* - *मानसिक स्वास्थ्य और प्रेक्षाध्यान ७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *मैत्री बुढ़ापे के साथ: श्रंखला ३*
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⛩ *लाडनूं* (राज.): *70 वें "गणतंत्र दिवस"* के अवसर पर..
📚 *जैन विश्व भारती* की शैक्षणिक इकाई *विमल विधा विहार* में आयोजित *समारोह*..
🏛 *सचिवालय* प्रांगण में *झंडारोहण* कार्यक्रम..
*..के कुछ विशेष दृश्य..*
प्रस्तुति: *मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
संप्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 28 जनवरी 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 हनुमंतनगर (बेंगलुरु):
👉 राजराजेश्वरी नगर(बैगलुरू):
गणतंत्र दिवस पर तेयुप द्वारा कार्यक्रम
*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 525* 📝
*शान्तिस्रोत आचार्य शान्तिसागर*
दिगंबर परंपरा में आचार्य शांतिसागरजी प्रभावक आचार्य हुए। उनकी प्रख्याति योगीराज एवं महान् तपस्वी के रूप में है। उनकी स्वाध्याययोग एवं भक्तियोग में गहरी निष्ठा थी। दिगंबर शाखा में लुप्तप्रायः मुनि परंपरा का पुनरुद्धार करके उसे प्राणवान् बनाया।
*गुरु-शिष्य-परम्परा*
शांतिसागरजी के दीक्षा गुरु देवप्पास्वामी (देवेंद्र कीर्ति स्वामी) थे। उनके शिष्य परंपरा में वीरसागरजी, शिवसागरजी आदि विद्वान् आचार्य हुए। उन्होंने दिगंबर मुनि परंपरा को आगे बढ़ाया एवं त्याग, तप, स्वाध्याय आदि से जैन शासन की प्रभावना की।
*जन्म एवं परिवार*
शांतिसागरजी का जन्म दक्षिण भारत के बेलगांव जिले के अंतर्गत 'येलगुल' गांव में नाना के घर वीर निर्वाण 2399 (विक्रम संवत् 1929, ईस्वी सन् 1872) आषाढ़ कृष्णा षष्ठी बुधवार को हुआ। उनका वंश क्षत्रिय था। वे भीमगौंडा पाटिल के पुत्र थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। गृहस्थ जीवन में शांतिसागरजी का नाम सातगौंडा था। आदिगौंडा और देवगौंडा नाम के उनके ज्येष्ठ बंधु थे। उनके अनुज का नाम कुंभगौंडा था। बहिन का नाम कृष्णाबाई था। उनके पूर्वज श्री पद्मगौंडा देसाई बीजापुर जिले के 'सालविद्री' स्थल के अधिपति थे।
*जीवन-वृत्त*
शांतिसागरजी का परिवार सुखी एवं समृद्ध था। माता-पिता धार्मिक रुचि के थे। पिता भीमगौंडा बलवान, रूपवान एवं प्रभावशाली क्षत्रिय थे। उन्होंने ब्रह्मचारी रहकर 16 वर्ष पर्यंत एकासन किए। शांतिसागरजी की मां सत्यवती धार्मिक महिला थी।
शांतिसागरजी होनहार दिखते थे। ज्योतिषियों ने उनकी जन्म पत्रिका बनाई और उज्जवल भविष्य की घोषणा करते हुए बताया "यह बालक धार्मिक होगा। दुनिया में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा तथा संसार के प्रपंच में नहीं फंसेगा।
*शान्तिस्रोत आचार्य शान्तिसागर के शारीरिक सौष्ठव व निर्ग्रंथ भावना की जागृति* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 179* 📜
*बालचंदजी कठोतिया*
*अग्नि-स्फुलिंग*
सुजानगढ़ निवासी बालचंदजी कठोतिया का जीवनकाल संवत् 1927 से संवत् 1963 चैत्र शुक्ला 9 तक था। उनके पिता फूसामलजी उन्हें केवल चार वर्ष का छोड़कर ही गुजर गए थे। वे अपने बाबा बिंजराजजी की देखरेख में बड़े हुए। बाल्यावस्था से ही वे बड़े विवेकी और चतुर थे। स्वाभिमानी इतने कि बड़े से बड़े व्यक्ति के द्वारा किया गया थोड़ा सा अपमान भी उन्हें सह्य नहीं होता था। एक बार बिंजराजजी ने किसी प्रसंग में अपने तथा छोटे भाई फूसामलजी के परिवार की तुलना करते हुए कहा कि उनका परिवार बड़ा है खर्च भी अधिक है। हमारे न बड़ा परिवार है और अधिक खर्च। बिंजराजजी के मन में उस समय शायद कोई अन्यथा भाव नहीं रहा होगा, परंतु प्रसंगवश कही गई वह बात बालचंदजी के मन में चुभ गई। यद्यपि बाबा के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान था, फिर भी बात की चुभन को एक क्षण के लिए भी भूल नहीं पाए। अवस्था में बालक होने पर भी वे अग्नि-स्फुलिंग की तरह तेज थे। उसी समय बाजार में वे एक दुकान किराए पर लेने और वहां व्यापार प्रारंभ करने के लिए प्रारंभिक तैयारी करने लगे।
जब मध्याह्नकालीन भोजन का समय हुआ तब भी वे घर नहीं पहुंचे तो बिंजराजजी ने उनके विषय में पूछताछ की। नौकरों ने पता लगाकर बताया कि वे तो बाजार में दुकान की व्यवस्था कर रहे हैं। बिंजराजजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे तत्काल उनके पास आए और वैसा करने का कारण पूछने लगे। बालचंदजी ने तब निर्भीकतापूर्वक सारी बात बताते हुए कहा— "हमारे परिवार में खर्च अधिक है, अतः हमें अधिक कमाई का प्रयास करना ही चाहिए।" बिंजराजजी उनकी मनोव्यथा का कारण समझ गए। उन्होंने कहा कि वे उस समय केवल वस्तुस्थिति बतला रहे थे। उसका यह तात्पर्य कदापि नहीं था कि उसके लिए तुम्हें अतिरिक्त कमाई करनी चाहिए। इस प्रकार बड़ी मधुरता से समझाकर वे उन्हें अपने साथ ही घर ले आए। बाबा के अतिरिक्त स्नेह ने उस उठती पीड़ा को शांत कर दिया।
*सुजानगढ़ के श्रावक बालचंदजी कठोतिया के व्यापार क्षेत्र में प्रवेश व उत्तरोत्तर विकास* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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5⃣🛐 *पंच परमेष्ठी नां गुण गाऊं, साचो श्रद्धूं दूजा ने श्रद्धाऊं।*✅
✨🌙 *म्हारै शिव-सुख नीं हद चाय, तिहां जावण रो करूं उपाय ।।*☝
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके "सेनपटीपालयम" पधारेंगे..*
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 11.30 कि.मी. का..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: जेयम मैट्रिकुलेशन स्कूल, सेनपटीपालयम (T. N.)*
*लोकेशन:*
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👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 28/01/2019
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