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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३२* - *मानसिक स्वास्थ्य और प्रेक्षाध्यान १०*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 सिरसा (हरियाणा) - अणुव्रत समिति द्वारा सेवा कार्य
👉 विशाखापटृनम - संगीत प्रतियोगिता का आयोजन
👉 हिसार - 'राहु-केतु ग्रह पीड़ा निवारक महाअनुष्ठान’ का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 31 जनवरी 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 528* 📝
*शान्तिस्रोत आचार्य शान्तिसागर*
*शिष्य परिवार*
मुनिजन वीरसागरजी, नेमीसागरजी, चंद्रसागरजी, पायसागरजी, नेमिसागरजी कुन्थुसागरजी, धर्मसागरजी, सुधर्मसागरजी, आदिसागरजी, वर्धमानसागरजी, क्षुल्लक साधक विमलसागरजी, अजितसागरजी, पायसागरजी, समन्तभद्रजी, चंद्रकीर्तिजी, अर्हदवलिजी, आर्यिका चंद्रमतिजी क्षुल्लक साधिकाएं जिनमतिजी, सुमतिमतिजी, अनन्तमतिजी विमलमतिजी ये आचार्य शांतिसागर के शिष्य परिवार में हुए।
वृद्धावस्था में उनकी नेत्र ज्योति क्षीण हो गई पर उनकी आत्मज्योति प्रबल थी।
जीवन के संध्याकाल में कुन्थुलगिरि पर ईस्वी सन् 1955 अगस्त के तृतीय सप्ताह में उन्होंने यम सल्लेखना ग्रहण की। अपने प्रथम शिष्य वीरसागरजी को यम सल्लेखना के अवसर पर शुक्रवार 26 अगस्त को आचार्य पद पर नियुक्त किया। उस समय वीरसागरजी खानियां (जयपुर) में थे। उनके लिए शांतिसागरजी ने शिक्षात्मक एवं आशीर्वादात्मक संदेश दिया "आगम के अनुसार प्रवृत्ति करना। हमारी तरह ही समाधि धारण करना। सुयोग्य शिष्य को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना। जिससे दिगंबर परंपरा चले।" संघ का भार वीरसागरजी को सौंपने के बाद वे योग साधना में लीन हो गए। इनका 36 दिन का अनशन सानंद संपन्न हुआ।
शांतिसागरजी शांति के सागर थे। उनके जीवन में ध्यानयोग, तपोयोग, समत्वयोग तीनों का समन्वय था। उनकी ध्यानयोग और तपोयोग की साधना से जन-जन को आत्म बल प्राप्त हुआ और संयम साधना तथा समता की साधना से मानव के अंतर्मन में समरस का संचार हुआ।
*समय व स्थान*
शांतिसागरजी ने 31 वर्ष तक आचार्य पद का दायित्व कुशलतापूर्वक संभाला। कुन्थुलगिरि पर्वत पर 83 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अनशन किया। समाधि के साथ शांतिसिंधु आचार्य शांतिसागर का 36 दिवसीय अनशन में वीर निर्वाण 2482 (विक्रम संवत् 2012) में स्वर्गवास हुआ।
*'वैराग्यमूर्ति' आचार्य वीरसागरजी के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 182* 📜
*बालचंदजी कठोतिया*
*चिपका हुआ पत्र*
अनुशासन के विषय में बालचंदजी कठोतिया काफी कठोर थे। कार्य में सामान्य सी गलती भी उन्हें बहुत अखरा करती थी। एक बार मुकाम से एक मुनीम का पत्र आया। असावधानी के कारण वह लिफाफे के साथ चिपक गया। बालचंदजी ने जब उसे खोला तो काफी प्रयास करने पर भी ठीक ढंग से नहीं खुल पाया और फट गया। उन्होंने उसी समय पत्र देकर उस मुनीम को कलकत्ता बुलाया और यह कहकर छुट्टी दे दी कि जब तुम्हें लिफाफे में कागज डालने का ढंग भी अच्छी तरह से नहीं आता तब तुम वहां का कार्य क्या देख सकोगे?
*लंबा पत्र*
वे समय का मूल्य जानते थे, अतः अपने आवश्यक कार्यों में समय को विभक्त कर तदनुसार निर्णीत समय पर उसे पूरा करने का प्रयास करते थे। इधर-उधर की बातों तथा अनावश्यक कार्यों में वे एक क्षण भी खोना नहीं चाहते थे। यहां तक कि किसी का आया हुआ लंबा पत्र पढ़ना भी उन्हें समय की बर्बादी लगता था। एक बार किसी मुनीम ने अपने पत्र को कुछ लंबा कर दिया तो उन्होंने उसे बुलाकर उपालंभ देते हुए कहा कि क्या तुमने मुझे निकम्मा समझ लिया है जो इतने लंबे-लंबे पत्र लिख डालते हो? आगे के लिए उसे छोटे पत्र तथा आवश्यक समाचार ही लिखने का निर्देश दिया।
*बीस हजार का धोखा*
वे मनुष्य की दुर्बलता से परिचित थे, अतः किसी के द्वारा गड़बड़ कर देने पर भी उस पर तीव्र आर्थिक प्रहार नहीं करते थे। एक बार एक मुनीम ने लगभग बीस हजार की गड़बड़ी कर दी। पता लगने पर उससे पूछताछ की गई। बचने का कोई मार्ग न रहने पर अंततः उसने अपना दोष स्वीकार कर लिया। बालचंदजी ने तब उसकी पारिवारिक आवश्यकताओं को देखते हुए वह रकम तो बट्टे खाते भुगता दी, साथ ही उसका शेष वेतन और 101 रुपए विदा के देते हुए उसे छुट्टी दे दी। धोखा देने वालों को भी इस प्रकार पूरा वेतन और पारितोषिक देना उनके हृदय की दयालुता का ही द्योतक है। वस्तुतः वे एक कठोर अनुशासक होकर भी किसी को पीड़ित करना नहीं चाहते थे। अनेक लोगों ने उस समय उनको कहा था कि ऐसे धोखेबाज को तो पुलिस के हवाले करना चाहिए, परंतु बालचंदजी ने उस परामर्श को अस्वीकार करते हुए कहा— "जो करेगा, वह भरेगा। मैं उसे पीड़ित कर अपनी लघुता का उदाहरण प्रस्तुत करना उचित नहीं मानता।"
*सुजानगढ़ के श्रावक बालचंदजी कठोतिया की उदारता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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👉 *मैत्री बुढ़ापे के साथ: श्रंखला ४*
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके "रायपुरम-तिरुपुर" पधारेंगे..*
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 12.50 कि.मी. का..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: जे एम जैन भवन, रायपुरम-तिरुपुर (T. N.)*
*लोकेशन:*
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🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 31/01/2019
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