04.02.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 06.02.2019
Updated: 06.02.2019

News in Hindi

Video

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३६* - *मानसिक स्वास्थ्य और प्रेक्षाध्यान १४*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

🔮🛡🛡🛡🛡🔮

*अणुव्रत महासमिति*
द्वारा
शाखा समितियों
के लिए
करणीय
फरवरी माह
का प्रकल्प
*धार्मिक सहिष्णुता*

*: प्रस्तुति:*
अणुव्रत सोशल मीडिया

*: संप्रसारक:*
संघ संवाद

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👉 फरीदाबाद - *श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती भंवरी देवी राखेचा का संथारा सम्पन्न*
👉 अहमदाबाद - साध्वी प्रमुखाश्रीजी के 48वें चयन दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 कालीकट(केरल) - जैन विद्या परिक्षा का आयोजन
👉 भिलवाड़ा - नशामुक्ति पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु: महिला मंडल द्वारा वी कनेक्ट कार्यशाला का आयोजन
👉 बन्नरघट्टा रोड (बेंगलुरु): ज्ञानशाला का प्रथम दीक्षांत समारोह
👉 भिवानी: साध्वी श्री कुंथुश्री जी का पदार्पण पर स्वागत
👉 नागपुर - वास्तविक खुशिया अपनाएं, जीवन बगिया सरसाएं विषय पर कार्यशाला का आयोजन
👉 बड़ौदा - भजन मंडली प्रतियोगिता का आयोजन
👉 भिलवाड़ा - "आओ चले गांव की ओर" परियोजना के अंतर्गत कार्यक्रम
👉 भीलवाड़ा - आचार्य तुलसी डायग्नोस्टिक सेंटर का शुभारंभ

प्रस्तुति 🌻 *संघ संवाद*🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 4 फरवरी 2019

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 530* 📝

*'वैराग्यमूर्ति' आचार्य वीरसागरजी*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

वीरसागरजी ने शांतिसागरजी के पास वीर निर्वाण 2450 (विक्रम संवत् 1980) भाद्रव शुक्ला सप्तमी को क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। क्षुल्लक जीवन में उनका नाम वीरसागर रखा गया। उनके साथ नांद गांव के श्रेष्ठी खुशालचंद्रजी पहाड़े की भी क्षुल्लक दीक्षा हुई। उनका नाम चंद्रसागरजी रखा।

क्षुल्लक दीक्षा के सात माह बाद समडोली नगर में वीर निर्वाण 2451 (विक्रम संवत् 1981) में वीरसागरजी ने दिगंबर मुनि दीक्षा ग्रहण की। मुनि जीवन में उन्होंने 12 चतुर्मास गुरुदेव के साथ किए। उन्होंने अनेक प्रकार की शिक्षाओं को ग्रहण कर जीवन को संवारा। उसके बाद गुरु से वीरसागरजी और आदिसागरजी दोनों को साथ में स्वतंत्र विहरण करने का आदेश मिला। गुरुवर्य से पृथक् उन्होंने विक्रम संवत् 1993 का चातुर्मास इडर में किया। इंदौर, उज्जैन, जयपुर, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों में यथासमय चातुर्मासिक काल संपन्न कर धर्मसंघ की प्रभावना की। वीरसागरजी द्वारा कई क्षुल्लक दीक्षाएं, क्षुल्लिका दीक्षाएं, आर्यिका दीक्षाएं एवं मुनि दीक्षाएं संपन्न हुईं।

कुंथुलगिरि पर शांतिसागरजी महाराज ने यम संलेखना (अनशन) के समय वीर निर्वाण 2482 (विक्रम संवत् 2012) में वीरसागरजी को आचार्य पद प्रदान करने की घोषणा की। इस समय वीरसागरजी वहां उपस्थित नहीं थे।

शांतिसागरजी के द्वारा प्रदत कमण्डलु आदि के अर्पण तथा आचार्य पद नियुक्ति का भव्य आयोजन जनसमूह के समक्ष जयपुर में मनाया गया।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में वीरसागरजी ने धर्म प्रचार किया। उनकी सद् वाणी से प्रेरणा प्राप्त कर कई व्यक्ति व्यसन मुक्त बने। कई मांसाहारी से शाकाहारी बने।

*समय-संकेत*

वीरसागरजी का वीर निर्वाण 2484 (विक्रम संवत् 2014) का चातुर्मास जयपुर 'खानिया' में था। तन की शक्ति क्षीण हो गई। आश्विन अमावस्या के प्रातःकाल 10:00 बजे अचानक वीरसागरजी का स्वर्गवास हो गया।

वीरसागरजी का जीवन सहज विरक्ति प्रधान था। वे वैराग्य के मूर्तरूप थे।

*आगम-स्वाध्यायी आचार्य आलोकऋषि के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞🔱🌞

अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 184* 📜

*बालचंदजी कठोतिया*

*तीन मृत्युभोज*

ओसवाल समाज में पंचायत की ओर से काफी वर्षों तक मृत्यु भोज बंद रहे, किंतु बाद में फिर खोल दिए गए। उस समय अन्य लोगों ने उस मध्यकाल में मृत सभी पूर्वजों का एक साथ एक मृत्युभोज ही किया। वह भी थली के अपने-अपने गांवों में आकर। बालचंदजी ने उन लोगों का अनुकरण नहीं किया। उन्होंने अपने तीन पूर्वजों के पृथक्-पृथक् तीन मृत्युभोज किए। वे थली में तो किए ही, कलकत्ता में भी किए। इस प्रकार उस महानगरी के सभी ओसवालों को उन्होंने तीन-तीन बार भोज दिया। उस समय वहां के ओसवालों में तीन धड़े थे। शहर वाले, मारवाड़ी और थली वाले। उन्होंने तीनों ही धड़ों को भोज दिया। यद्यपि आज इतने बड़े भोजों का कोई महत्त्व नहीं रह गया। मृत्युभोजों का भी कोई औचित्य नहीं है, परंतु उस युग में यह सब उचित ही नहीं, अनिवार्य माना जाता था।

*खाओ, खिलाओ, बांटो*

बालचंदजी कोई वस्तु बनवाते या खरीदते तो प्रायः वह बड़ी मात्रा में ही होती थी। स्वल्पता उन्हें कभी पसंद नहीं थी। अपनी भतीजी माली बाई के विवाह में उन्होंने बादाम की कतली इतनी बनवाई कि विवाह के पश्चात् सारे गांव में बांटी गई और सभी मुकामों में भेजी गई, फिर भी इतनी बच गई कि महीनों तक खाने व बांटने के काम आती रही।

यद्यपि उतनी मात्रा में कोई भूल से नहीं बनी थी, अपितु समझ-बूझकर बनाई गई थी। कारण यह बना कि दिल्ली से बादाम खरीद कर रेल द्वारा भेजा गया था। वह समय पर नहीं पहुंचा। प्रतीक्षा करने से व्यर्थ में विलंब हो जाने की संभावना थी, अतः सुजानगढ़ में बादाम फिर खरीद लिया गया। उसके पश्चात् दिल्ली वाला माल भी पहुंच गया।

लोगों ने परामर्श दिया कि एक माल पुनः बेच दिया जाए। बालचंदजी इस कथन से सहमत नहीं हुए। उन्होंने कहा— "खाने-खिलाने के लिए खरीदे गए माल को बेचना उचित नहीं, अतः पूरे माल की मिठाई बना ली जाए।"

पारिवारिकों ने कहा— "इस प्रकार से तो मिठाई आवश्यकता से कहीं तिगुनी हो जाएगी।"

बालचंदजी बोले— "इसमें क्या हानि है? खूब खाना, खिलाना और जी भरकर बांटना।"

*समय की सूझ*

उनकी सूझ-बूझ बड़ी तेज होती थी। अन्य किसी को जहां कोई मार्ग दिखाई नहीं देता वहां वे कोई न कोई मार्ग खोज ही लेते थे। माली बाई के विवाह की बात है। बारात आई हुई थी, उसी दिन सारे गांव को भी न्योता भेजा गया था। भोज पुरे जोरों पर चल रहा था तो भट्टियों पर उससे भी अधिक जोरों से काम चल रहा था। संयोगवश उसी समय तेज वर्षा हो गई। भोज में तो अस्त-व्यस्तता हुई ही, किंतु भट्टियों का तो काम ही रुक गया। उनमें पानी चले जाने के कारण आग बुझ गई। वर्षा बंद होते ही लोग तो भोजन के लिए पूर्ववत् आ डटे, किंतु कुछ भट्टियों के बुझ जाने से पूरियों में देरी होने लगी। बालचंदजी देरी का कारण जानने के लिए जब वहां आए तो उन्हें पता चला कि प्रयास करने पर भी बुझी हुई भट्टियां चालू नहीं हो पाई हैं।

उन्होंने सारी स्थिति को तोला और फिर सामने पड़े घी के पीपों में से एक को भट्टियों में उड़ेल देने के लिए कहा। घी पड़ने भर की देर थी कि भट्टियां फिर से जलने लगीं और रुका हुआ काम तत्काल आगे बढ़ चला। समय की उस सूझ ने काम में बड़ा सहयोग दिया।

*सुजानगढ़ के श्रावक बालचंदजी कठोतिया की वचनबद्धता व सहृदयता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘‍♂ *ज्ञान, ध्यान, री पावनधारा बहे सदा क्षण-क्षण में,*⏳
✨ *नया-नया आयाम प्रगति रा जागृति है कण-कण में।*🌅
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके "करूमदमपट्टी" पधारेंगे..*
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 11.50 कि.मी. का..*

⛩ *आज दिन का प्रवास: तेजा शक्ति इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर वूमेन, करूमदमपट्टी (T. N.)*
*लोकेशन:*
https://goo.gl/maps/hfgUrCWJXZM2

🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 04/02/2019

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👉 *मैत्री मृत्यु के साथ: श्रंखला ३*

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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३५* - *मानसिक स्वास्थ्य और प्रेक्षाध्यान १३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
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