05.02.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 06.02.2019
Updated: 06.02.2019

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आइए आज हम आपको ले चलते हैं बेंगलुरु चतुर्मास स्थल पर... जहां कुछ ही दिनों के बाद लगने वाला है श्रद्धा आस्था समर्पण विश्वास का अध्यात्मिक मेला....

2019 चातुर्मास हेतु आगन्तुकों के लिए अभूतपूर्व आवसीय कुटीर की तैयारियां ।

*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, बेंगलुरू*
संप्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३७* - *मानसिक स्वास्थ्य और प्रेक्षाध्यान १५*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 531* 📝

*आगम-स्वाध्यायी आचार्य अमोलकऋषि*

जैन श्वेतांबर स्थानकवासी परंपरा में ऋषि संप्रदाय के आचार्य अमोलकऋषि विश्रुत विद्वान् थे। वे श्रम परायण आचार्य थे। सद् ग्रंथों का चिंतन, मनन और निदिद्यासन करने में वे संलग्न रहते थे।

*जन्म एवं परिवार*

अमोलकऋषि का जन्म वीर निर्वाण 2404 (विक्रम संवत् 1934) को राजस्थान में ओसवाल परिवार में हुआ। वे कस्तूरचंदजी के पौत्र और केवलचंदजी कांसटिया के पुत्र थे। उनकी माता का नाम हुलासी था। उनके छोटे भाई का नाम अमीरचंद था।

*जीवन-वृत्त*

अमोलक ऋषि को बाल्यावस्था में मातृ-वियोग सहन करना पड़ा। पिता केवलचंदजी ने मुनियों से बोध प्राप्त कर संयम दीक्षा स्वीकार की।

अमोलकऋषि को परिवार से धार्मिक वातावरण सहज प्राप्त था। पिता की दीक्षा ने उन्हें संयम मार्ग के प्रति आकृष्ट किया। उन्होंने वीर निर्माण 2414 (विक्रम संवत् 1944) में भागवती दीक्षा ग्रहण की।

अमोलक ऋषि बुद्धि से संपन्न श्रमण एवं गुरुजनों के प्रति विनम्र थे। उन्होंने श्री रत्नऋषिजी के पास शास्त्रों का गंभीर अध्ययन किया और उनके साथ वे गुजरात आदि अनेक क्षेत्रों में विचरे। रत्नऋषिजी के साथ अमोलकऋषिजी सात वर्ष तक रहे।

वीर निर्वाण 2459 (विक्रम संवत् 1989) ज्येष्ठ शुक्ला 12 गुरुवार को ऋषि आचार्य परंपरा में उन्हें आचार्य पद से विभूषित किया गया। पिछले कई वर्षों से ऋषि संप्रदाय में आचार्य पद रिक्त था।

*आगम-स्वाध्यायी आचार्य अमोलकऋषि द्वारा रचित साहित्य व उनके आचार्यकाल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 185* 📜

*बालचंदजी कठोतिया*

*वचन के लिए*

एक बार कलकत्ता में किसी मिल को बालचंदजी कठोतिया ने वचन दे दिया कि कल तक हम पाट की इतनी गांठें आपको दे सकेंगे। बाद में जब उन्होंने अपने कार्याधिकारियों से वह बात कही तो उन्होंने कहा कि एक दिन में इतनी गांठें बांध पाना किसी भी स्थिति में संभव नहीं है। बालचंदजी के सम्मुख तब अपने वचन को निभाने की समस्या उत्पन्न हो गई। एक क्षण के लिए उन्होंने कुछ सोचा और फिर पारितोषिक के लिए कुछ रुपए अलग रखकर मजदूरों से कहा— "यदि आज-आज में इतनी गांठें बांध दो तो यह रकम तुम लोगों में बांट दी जाएगी।" उनकी वह सूझबूझ काम कर गई और यथासमय कार्य पूरा हो गया।

*जमीन और विवाह*

वे धनी होते हुए भी उदार विचारों के व्यक्ति थे। अपने हक पर आंच न आने देने में जितने जागरूक थे उतने ही दूसरों के हक का आदर करने में भी। एक बार उन्होंने अपने पड़ोस की जगह खरीदी। वह चार भाइयों की जगह थी। वे सब उसी में रहा करते थे। बेच देने के पश्चात् तीन भाई तो उसे खाली कर अन्यत्र जाने को तैयार हो गए, किंतु एक भाई की विधवा स्त्री उसे खाली करने में आनाकानी करने लगी।

बालचंद जी ने उसे बुलाकर पूछा कि मकान बेच देने के पश्चात् भी तुम उसे खाली क्यों नहीं कर रही हो? उस स्त्री ने अपनी परेशानी बतलाते हुए कहा— "यहां से चले जाने के पश्चात् मेरी बेटी का विवाह होना कठिन हो जाएगा। मेरे पास पैसे नहीं हैं, फिर भी अभी तक लोगों को यही पता है कि यह इनका निजी मकान है। मकान खाली कर देने पर यह भ्रम टूट जाएगा और सगाई होनी कठिन हो जाएगी।"

बालचंदजी ने उसकी स्थिति को सहृदयतापूर्वक ने केवल सुना ही अपितु समझा भी। उन्होंने विवाह योग्य रकम दी और यथा शीघ्र विवाह कर देने के पश्चात् ही मकान खाली करवाया। वह पूर्ण संतुष्ट तथा निश्चिंत होकर वहां से गई। इस प्रकार उसकी और अपनी दोनों की ही समस्या का उन्होंने हल निकाल लिया। वे कहा करते थे कि किसी के मन को पीड़ित करके तथा उसकी दूराशीष लेकर कुछ आर्थिक लाभ कर भी लिया जाए तो वह फलदाई नहीं होता।

*किसी धोबी से?*

पहनने-ओढ़ने के कपड़े, खाने-पीने का सामान, गहने तथा बर्तन आदि सभी वस्तुएं वे अच्छी खरीद कर आनंदित होते थे। स्वयं जैसे साफ-सुथरे रहते वैसे ही अपनी हर वस्तु को भी साफ-सुथरा रखते थे। एक बार एक व्यक्ति के कमीज के कफ उन्होंने बड़े उज्जवल और चमकदार देखे। उन्होंने तत्काल पता लगाया कि वह किस धोबी के पास अपने वस्त्र धुलवाता है। पता लगते ही उन्होंने भी अपने वस्त्र धुलने के लिए वही देने प्रारंभ कर दिए।

*सुजानगढ़ के श्रावक बालचंदजी कठोतिया की और भी अनेक विशेषताओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 बेहाला (कोलकाता) - विश्व कैंसर दिवस पर ते.म.म. द्वारा कार्यक्रम आयोजित
👉 गंगाशहर - त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
👉 साउथ कोलकाता - भजन मंडली प्रतियोगिता का आयोजन
👉 जयपुर शहर - वृहद चिकित्सा शिविर का आयोजन
👉 राजमुन्दरी - एतिहासिक पचरंगी तप का अनुष्ठान

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🍯 *मन गमता शब्द रसाल, अणगमता शब्द विकराल ।* 🌀
🎭 *गमता शब्द सुण्यां नहीं रीझै, अणगमता सुण्यां नहीं खीजै।।*👆
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके "अरसूर" पधारेंगे..*
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 11 कि.मी. का..*

⛩ *आज दिन का प्रवास: महाराजा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अरसूर (T. N.)*
*लोकेशन:*
https://goo.gl/maps/DHmvnP5byfQ2

🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 05/02/2019

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