04.03.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 04.03.2019
Updated: 05.03.2019

Update

🏮 📍 *नवीन घोषणा* 📍🏮
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*परमपूज्य गुरुदेव ने महती कृपा कर वि. सं. 2076 का यह नया चातुर्मास फरमाया है --*

⚜ *साध्वीश्री रवि प्रभा जी*

🚦 *शालीमार बाग, दिल्ली*

प्रस्तुति: 🙏🏻 🌻 *संघ संवाद* 🌻🙏🏻

🏮 📍 *नवीन घोषणा* 📍🏮
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*परमपूज्य गुरुदेव ने महती कृपा कर वि. सं. 2076 का यह नया चातुर्मास फरमाया है --*

⚜ *मुनिश्री भूपेंद्र कुमार जी*

🚦 *सार्दुलपुर (राजस्थान)*

⚜ *साध्वीश्री रामकुमारी जी*

🚦 *पचपदरा (राजस्थान)*

प्रस्तुति: 🙏🏻 🌻 *संघ संवाद* 🌻🙏🏻

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 4 मार्च 2019

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रृंखला -- 547* 📝

*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*

अणुव्रत प्रवर्तक, भारतज्योति, युद्धप्रधान आचार्य श्री तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें आचार्य पद पर आसीन थे। वे जैन परंपरा के यशस्वी, मनस्वी, वर्चस्वी, तेजस्वी आचार्य थे। वे अध्यात्म के शिखर पुरुष थे। ज्ञान के हिमालय थे। नैतिक क्रांति के पुरोधा एवं शांति के देवता थे।

राष्ट्रसंत गुरुदेव श्री तुलसी तेरापंथ धर्म-संप्रदाय के आचार्य थे, पर सांप्रदायिकता का व्यामोह उनके स्वच्छ-निर्मल विचारों के प्रवाह को रोक न सका। अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से उन्होंने धर्म को व्यापक रूप दिया और सौहार्द एवं सर्वधर्म सद्भाव का वातावरण तैयार कर जन-जन को जोड़ने का प्रयत्न किया।

जनता ने आप का मानवता के मसीहा के रूप में स्वागत किया पर आपने अपने आपको मानव ही माना।

आप अपना परिचय देते हुए कहते "मैं पहले मानव हूं, उसके बाद जैन फिर तेरापंथ का धर्माचार्य हूं।"

आपके ऊर्ध्वमुखी दृष्टिकोण को उदात्त चिंतन ने आपको असीम लोकप्रियता एवं प्रसिद्धि प्रदान की।

बीसवीं सदी के क्रांतिकारी धर्म गुरुओं में आपका नाम अग्रणी स्थान पर रहेगा।

आपकी अध्यात्मपरक कालजई वाणी समुद्र-पार अनुगूंजित हुई है। भविष्य में भी गूंजित होती रहेगी।

*गुरु-परम्परा*

आचार्य श्री तुलसी के दीक्षा-गुरु तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य 'कालूगणी' थे। उनके जीवन का बहुमुखी विकास आचार्य कालूगणी के संरक्षण में हुआ। आचार्य कालूगणी से पूर्व गुरु-परंपरा के आदीस्रोत तेरापंथ धर्मसंघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु थे।

*जन्म एवं परिवार*

आचार्य श्री तुलसी का जन्म वीर निर्वाण 2441 (विक्रम संवत् 1971) कार्तिक शुक्ला द्वितीया को राजस्थानांतर्गत लाडनूं के खटेड़ वंश में हुआ। पितामह का नाम राजरूपजी, पिताश्री का नाम झूमरमलजी एवं माता का नाम वदनांजी था। झूमरमलजी की नौ संतानों में ज्येष्ठ श्री मोहनलालजी थे। अपने नौ भाई-बहनों में आपका (तुलसी) क्रम आठवां था।

*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी के जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रृंखला -- 201* 📜

*हीरालालजी मुरड़िया*

*कीर्तिस्तंभ का जीर्णोद्धार*

हीरालालजी ने अनेक ऐतिहासिक स्थलों का जीर्णोद्धार करने में भी अपनी निपुणता का परिचय दिया। सुप्रसिद्ध कुंभलगढ़ के किले की प्राचीर तथा वहां के नीलकंठ महादेव और गणेश मंदिर का जीर्णोद्धार उन्होंने ही किया था। वे जिस कार्य को हाथ में लेते उसी में अपनी पूर्ण शक्ति भिड़ा देते, अतः प्रत्येक कार्य उन्हें सफलता की सीढ़ियां पर चढ़ाता चला गया।

चित्तौड़ के किले में स्थित सुप्रसिद्ध कीर्तिस्तंभ का जीर्णोद्धार उनके कौशल का चमत्कार कहा जा सकता है। महाराणा फतहसिंहजी ने उसके जीर्णोद्धार का निर्णय किया, तब सर्वप्रथम अंग्रेज अभियंता को बुलाकर उसे ही वह भार सौंपना चाहा। उसने पूर्ण रूप से निरीक्षण किया और कहा कि जीर्णोद्धार करते समय इस के ढह जाने की संभावना है, अतः उचित यही रहेगा कि इसे ढहा कर इसके स्थान पर दूसरा कीर्तिस्तंभ निर्मित कर दिया जाए। उसने अनुमानित व्यय का विवरण भी महाराणा के सम्मुख रखा, जो कि कई लाख रुपयों का था।

महाराणा उसकी कलात्मकता तथा स्वरूप पूर्ववत् रखना चाहती थे। गिराकर पुनः बनाने में वह संभव नहीं था, अतः अंग्रेज अभियंता की बात स्वीकार्य नहीं हुई। उन्होंने हीरालालजी को बुलाया और पूछा कि क्या वह इसके स्वरूप को बनाए रखकर जीर्णोद्धार कर सकेगा? उन्होंने निरीक्षण-परीक्षण करने के पश्चात् उसकी स्वीकृति दे दी और कार्य प्रारंभ कर दिया। नीचे से ऊपर तक सहारे के लिए पुस्त लगाकर उन्होंने ऊपर से नीचे की ओर एक-एक मंजिल का उद्धार कार्य संपन्न किया। कार्य पूर्ण हो जाने पर महाराणा ने स्वयं आकर उसका निरीक्षण किया और वे उनके कार्य से पूर्ण संतुष्ट हुए।

कुछ दिनों पश्चात् महाराणा ने उस अंग्रेज अभियंता को निमंत्रित किया जिसने कीर्ति स्तंभ के नव निर्माण का परामर्श दिया था। उसके आने पर महाराणा ने उसे कीर्तिस्तंभ दिखलाया। उसने आश्चर्याभिभूत नयनों से उसे देखा और कहा— "यह किस अभियंता का कमाल है? मैं उसे देखना चाहता हूं।" महाराणा ने हीरालालजी को आगे करते हुए कहा— "यह कमाल इस व्यक्ति ने कर दिखाया है।" महाराणा ने कहा— "इसका एक कमाल यह भी है कि आप के अनुमानित व्यय से आधे व्यय में ही इसने यह समग्र कार्य संपन्न कर दिया है।" अंग्रेज अभियंता ने तब बड़े आदर के साथ हीरालालजी से हाथ मिलाया और धन्यवाद दिया।

*उदयपुर के श्रावक हीरालालजी मुरड़िया की धार्मिक सेवाओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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📚 *शिक्षा के संकाय बहुत है, आध्यात्मिक आय नहीं,* 💎
👆 *वर्तमान पीढ़ी का भावी - पीढ़ी के प्रति न्याय नहीं ।* 👇
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दिनांक: 04/03/2019

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