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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 548* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*जीवन-वृत्त*
गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के बाल्यकाल का प्रथम दशक मां की ममता, परिवार के अमित स्नेह एवं धार्मिक वातावरण में बीता। जीवन के दूसरे दशक के प्रारंभ में पूर्ण वैराग्य के साथ जैन श्वेतांबर तेरापंथ संघ के अष्टमाचार्य श्री कालूगणी से ज्येष्ठ भगिनी लाडांजी सह वीर निर्वाण 2452 (विक्रम संवत् 1982) में बालक तुलसी का दीक्षा संस्कार लाडनूं में हुआ। ज्येष्ठ बंधु चंपालालजी उनसे पूर्व दीक्षित थे।
भगिनी और युगल भ्राता खटेड़ वंश के ये तीनों रत्न तेरापंथ धर्मसंघ के अलंकार बने। कालांतर में मुनि तुलसी आचार्य बने। साध्वी श्री लाडांजी की साध्वीप्रमुखा पद पर नियुक्ति हुई एवं ज्येष्ठ बंधु मुनि चंपालाल 'सेवाभावी' संबोधन से सम्मानित हुए। आचार्यश्री तुलसी की जननी वदनांजी 58 वर्ष की उम्र में अपने ही पुत्र द्वारा दीक्षित होकर साध्वी बनीं। यह इतिहास की विरल घटना है। साध्वी वदनांजी के जीवन में संयम तथा तप की ज्योति प्रज्जवलित थी। उन्होंने 18 वर्ष तक एकांतर तप की आराधना की। समता, सरलता और सौम्यभाव उनके सहज गुण थे। विनय-वात्सल्य की प्रतिमूर्ति मातुश्री वदनांजी की विशिष्ट तपःसाधना एवं संयम-साधना से प्रभावित होकर आचार्य श्री तुलसी ने उन्हें 'साध्वीश्रेष्ठा' पद से विभूषित किया। उनका 98 वर्ष की दीर्घ आयु में समाधिपूर्ण स्वर्गवास हुआ।
खटेड़ परिवार की तेरापंथ धर्मसंघ को इन चार महान् आत्माओं की देन है। इस परिवार के अन्य कई साधु-साध्वी भी दीक्षित हुए। आचार्य श्री तुलसी, मातुश्री वदनांजी एवं ज्येष्ठ भगिनी लाडांजी की दीक्षा में प्रेरणा स्रोत प्रमुख रूप से सेवाभावी मुनिश्री चंपालालजी रहे थे।
आचार्य श्री तुलसी का मुनि जीवन अनुशासनमय था। संयम साधना स्वीकार करने के बाद लघु वय में दीक्षित मुनि तुलसी की चिंतनात्मक एवं मननात्मक शक्ति का स्रोत पठन-पाठन में प्रवाहित हुआ। व्याकरण, कोष, सिद्धांत, काव्य, दर्शन, न्याय आदि विविध विषयों का उन्होंने गंभीर अध्ययन किया। वे संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, राजस्थानी भाषा के अधिकारी विद्वान् थे।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी के संयमी जीवन* के बारे में विस्तार से जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रृंखला -- 202* 📜
*हीरालालजी मुरड़िया*
*धार्मिक सेवाएं*
हीरालालजी की धार्मिक क्षेत्र में भी अनेक प्रशंसनीय सेवाएं रहीं। महाराणा फतहसिंहजी की ही तरह महाराणा भूपालसिंहजी के भी कृपापात्र थे। संघ-हित की दृष्टि से भी उन्हें संघीय समाचारों से समय-समय पर अवगत करते रहते। महाराणा को भी कभी कुछ ज्ञातव्य अथवा सूचनीय होता तो उन्हें माध्यम बनाते। विक्रम संवत् 1992 में जब आचार्यश्री कालूगणी का उदयपुर में चातुर्मास था तब महाराणा ने उनके माध्यम से अनेक बार कालूगणी को आवश्यक निवेदन करवाए।
वे सांसारिक और धार्मिक दोनों ही क्षेत्रों में पूर्ण विश्वसनीय और सफल व्यक्ति थे। कालूगणी की उन पर विशेष कृपा थी। उनके परामर्शों पर वे विशेष ध्यान देते थे। महाराणा ने भी उन्हें अनेक बार सम्मानित किया। विक्रम संवत् 1989 में महाराणा ने उनको बैठक का सम्मान प्रदान किया। उनके दो पुत्र थे— वसंतीलालजी और सुंदरलालजी।
विक्रम संवत् 1993 में हीरालालजी का देहावसान हो गया। उनसे थोड़े दिन बाद ही भाद्रव शुक्ला 6 गंगापुर में कालूगणी भी दिवंगत हो गए। इस अवसर पर कलकत्ता, बंबई जैसे भारत के सुप्रसिद्ध नगरों के अनेक बाजार बंद रहे। आसाम और बंगाल से लेकर मारवाड़ तथा मेवाड़ के विभिन्न नगरों में भी पूर्ण बंदी रही। महाराणा भूपालसिंहजी को कालूगणी के दिवंगत होने के समाचार कई दिनों पश्चात् ज्ञात हुए। उन्होंने तब हीरालालजी के पुत्र सुंदरलालजी मुरड़िया को बुलाकर उपालंभ देते हुए कहा— "हीरालालजी के विद्यमान न रहने का मुझे वस्तुतः आज अनुभव हुआ था। वह होता तो क्या मुझे कुछ कालूगणी के दिवंगत होने का पता तत्काल नहीं हो जाता? हम उनकी स्मृति में राज्य की ओर से बंदी भी नहीं रख सके। इसका मेरे मन में सदा के लिए पश्चाताप रह गया।" पिता के दायित्वों को निभाने में रह गई उस त्रुटि का पश्चाताप तो सुंदरलालजी को भी हुआ, परंतु अवसर बीत चुका था। उसके विषय में कुछ भी कर पाना संभव नहीं था।
*सादगी और सरलता के धनी आमेट के श्रावक उदयरामजी लोढ़ा के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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