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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ६७* - *स्वभाव परिवर्तन और प्रेक्षाध्यान १३*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रृंखला -- 203* 📜
*उदयरामजी लोढ़ा*
*चार पुत्र*
अमेट निवासी उदयरामजी लोढ़ा का जन्म विक्रम संवत् 1930 के लगभग हुआ। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ श्रावक थे। सादगी और सरलता उनके जन्मजात गुण थे। उनके चार पुत्रों के नाम क्रमशः हीरालालजी, मूलचंदजी, बहादुरमलजी और गेरीलालजी थे। सभी पुत्र अच्छे गुणवान और कमाई में लगे हुए थे। उस समय तक मेवाड़ी लोग प्रायः मेवाड़ छोड़कर बाहर जाना पसंद नहीं करते थे। कुछ लोग ही बाहर गुजरात की ओर जाने लगे थे। बाहर जाकर जिन्होंने कार्य किया वे शीघ्र ही धनी बन गए। अन्य लोगों के लिए वे प्रेरक उदाहरण बन गए। उदयरामजी के पुत्र भी उक्त वातावरण से प्रभावित हुए। उन्होंने बाहर जाकर कार्य किया और घर की आर्थिक स्थिति को अनुकूल करने का प्रयास किया। उसमें यत्किंचित सफल भी हुए।
*बज्राघात*
मनुष्य कुछ अन्य सोचता है, नियति में कुछ अन्य निश्चित होता है। ऐसे उदाहरणों से संसार भरा पड़ा है। उक्त चारों भाइयों को भी नियति के क्रूर प्रहार का सामना करना पड़ा। थोड़े-थोड़े समय के अंतर से चारों भाइयों का देहावसान हो गया। व्यापारिक लेन-देन जो जहां था वहीं अटक कर रह गया। कोई उसे अवेरने वाला नहीं रहा।
उदयरामजी पर वृद्धावस्था में पुत्रों की मृत्यु के रूप में चार वज्र प्रहार हुए। प्रत्येक प्रहार मर्मांतक तक पीड़ा करने वाला था, परंतु उन्होंने हर आघात के पीछे अपने ही कर्मों का प्रबल उदय देखा और सब कुछ शांत भाव से सह लिया। वृद्धावस्था के सभी सहारे टूट जाने पर भी उन्होंने कभी अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया। पति-पत्नी दोनों ही पूर्वा पेक्षया अधिक तत्परता से धर्मध्यान में प्रवृत्त हो गए।
*अर्थार्जन के लिए*
पुत्रों के अभाव में उदयरामजी के घर की स्थिति कमजोर हो गई। उसे संभालने के लिए उन्हें कार्यरत होना पड़ा। वृद्धावस्था में थोड़ा परिश्रम भी मनुष्य को थका देता है, परंतु आवश्यकता पड़ने पर सब कुछ करना ही पड़ता है। उन्होंने अर्थार्जन के लिए सामान्य परिश्रम का कार्य अपनाया। किसानों को ब्याज पर रुपए देने प्रारंभ किए, परंतु उसमें भी समय-समय पर उन्हें अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता होती। कभी-कभी ब्याज उगाहने के लिए उन्हें गांवों में जाना पड़ता।
मेवाड़ में उस समय न सड़कें थीं और न मोटर आदि वाहन। छोटी-मोटी यात्राएं प्रायः लोग पैदल ही कर लेते थे। अच्छे खाते-पीते लोग घोड़े या टट्टू पर यात्रा करते थे। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण अन्य वाहनों का प्रयोग सरल नहीं था। उदयरामजी को अपनी यात्रा पैदल ही करनी पड़ती थी। उगाही का कार्य संपन्न कर वे घर पहुंचते तब तक बहुधा सूर्यास्त हो जाया करता था। रात्रिभोजन का परित्याग होने के कारण उन्हें फिर भूखा ही रह जाना पड़ता।
*समस्या का समाधान*
उदयरामजी के तीसरे पुत्र बहादुरमलजी की पत्नी लक्ष्मीबाई उनके साथ रहती थी। वह कांकरोली के धर्मनिष्ठ श्रावक रंगलालजी पगारिया की पुत्री थी। सास-ससुर की सेवा का उसे विशेष ध्यान रहता। उगाही करके वापस आने पर उदयरामजी कई बार भूखे रह गए, तब लक्ष्मीबाई का ध्यान उक्त समस्या पर गया। उसने उसके लिए तत्काल एक मार्ग निकाल लिया। उदयरामजी बाहर जाते तब वह उन्हें पूछ लेती कि आज कौन से गांव जा रहे हैं? स्वयं भोजन-पानी लेकर वह उसी मार्ग पर दूर तक सामने चली जाती। दो-तीन मील चले जाने पर जहां भी वे मिलते, उन्हें भोजन करा लेती और उनके साथ-साथ वापस चली आती। पुत्रवधू की सेवा भावना ने तपस्या का एक सुखद समाधान उपलब्ध करा दिया।
*उदयरामजी लोढ़ा की पुत्रवधू की दीक्षा* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 549* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
दुरूह ग्रंथों की परायणता के साथ लगभग बीस हजार श्लोकों को कंठस्थ करना आचार्य श्री तुलसी की सद्यःग्राही स्मृति का परिचायक था।
वे सोलह वर्ष की लघुवय में विद्यार्थी मुनियों के शिक्षाकेंद्र का सफलतापूर्वक संचालन करने लगे। उनकी आत्मीयता से विद्यार्थी बाल मुनियों को अंतःतोष था। यह उनकी अनुशासन कुशलता का सजीव निदर्शन था।
संयमी जीवन की निर्मल साधना, विवेक का जागरण, सूक्ष्म ज्ञान का विकास, सहनशीलता, धीरता आदि विविध विशेषताओं के कारण बाईस वर्ष की अल्प अवस्था में संत तुलसी को महामनीषी आचार्य कालूगणी ने विक्रम संवत् 1993 भाद्रव शुक्ला तृतीया को गंगापुर में युवाचार्य पद का गुरुतर दायित्व प्रदान किया। आचार्यश्री कालूगणी के स्वर्गवास के बाद विक्रम संवत् 1993 भाद्रव शुक्ला षष्ठी को युवाचार्य श्री तुलसी आचार्य पद पर आसीन हुए। तीन दिन बाद नवमी के दिन आपका प्रथम पदाभिषेक महोत्सव मनाया गया।
तेरापंथ जैसे विशाल एवं मर्यादित धर्मसंघ को युवा मनीषी का नेतृत्व मिला। यह जैन संघ के इतिहास की विरल घटना थी। अवस्था एवं योग्यता का कोई अनुबंध नहीं होता।
तरुण का उत्साह, नभ की विशालता, हंस मनीषा के साथ आचार्य श्री तुलसी ने अपना कार्य संभाला। प्रतिक्षण जागरूकता के साथ चरण आगे बढ़े और उद्बुद्धि विवेक हस्तस्थित दीपक की भांति मार्ग दर्शक बना। सर्वप्रथम तेरापंथ के अंतरंग विकास के लिए उनका ध्यान केंद्रित हुआ। प्रगतिशील संघ का प्रमुख अंग शिक्षा एवं श्रुतोपासना है। आचार्य श्री तुलसी ने सर्वप्रथम प्रशिक्षण का कार्य अपने हाथ में लिया। आचार्य श्री तुलसी की दीर्घ दृष्टि साध्वी समाज पर पहुंची। यह चिंतन पूज्य कालूगणी का था, परंतु कुछ परिस्थितियों के कारण यह फलवान नहीं हो सका। उसकी पूर्ति आचार्य श्री तुलसी ने की। साध्वियों की शिक्षा के लिए प्रयत्नशील बने। उनकी चतुर्मुखी प्रगति के लिए शिक्षाकेंद्र, कलाकेंद्र एवं परीक्षाकेंद्र खुले। योग्य, योग्यतर एवं योग्यतम आदि परीक्षाओं के रूप में नवीन पाठ्यक्रम बने। उस समय से अब तक पाठ्यक्रम के कई रूप परिवर्तित हो चुके हैं।
इन प्रयत्नों के फलस्वरूप साध्वी समाज के लिए बहुमुखी विकास के नए द्वार उद्घाटित हुए। मुनिवृंद की भांति तेरापंथ धर्म संघ की साध्वियों ने शिक्षा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। आज अनेक विदुषी साध्वियां हैं। उनमें प्रभावक प्रवचनकार, संगीतकार, ग्रंथरचनाकार, तत्वज्ञा विविध दर्शनों की मर्मज्ञा, आगमज्ञा तथा संस्कृत, प्राकृत आदि कई भाषाओं की विशेषज्ञा हैं।
*साध्वी समाज के प्रारंभिक विकास में साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी के महान् योगदान* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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