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📿 अलखपुरा (तोशाम): अणुव्रत नेतृत्व द्वारा संथारा साधक की सुखपृच्छा
🙏 *संघ संवाद* 🙏
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 552* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में साधु-साध्वियों की यात्राओं का विस्तार हुआ। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, सिक्किम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, तमिलनाडु, कन्याकुमारी, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर आदि प्रायः सभी प्रांतों में तथा भारत से बाहर नेपाल में भी साधु-साध्वियां पहुंचे। उन्होंने जन-जन को मानवता का संदेश दिया एवं धर्म प्रचार का महान् कार्य किया है।
सदियों से उपेक्षित नारी जागरण हेतु आचार्य तुलसी ने गंभीर चिंतन किया। जीवन उत्थान के लिए नए मोड़ की सुव्यवस्थित योजना प्रस्तुत कर उन्हें जीने की कला सिखाई। 'सादा जीवन उच्च विचार' का प्रशिक्षण देकर अर्थहीन मूल्यों, अंधविश्वासों एवं गलत परंपराओं से नारी समाज को मुक्त होने का बोध दिया। तेरापंथ धर्मसंघ का अनुयायी नारी समाज अध्यात्म की गहराइयों एवं सामाजिक दायित्व को समझने लगा है। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के नाम से उनका सबल संगठन है। वर्तमान आचार्य प्रवर के सान्निध्य में प्रतिवर्ष उनका वार्षिक सम्मेलन होता है। इसमें प्रशिक्षित नारियां समाज की विभिन्न गतिविधियों के संदर्भ में चिंतन करती हैं। साम्य योगी, कारुणिक, नारी उद्धारक आचार्यश्री तुलसी की प्रेरणा और मार्गदर्शन से नारी समाज में कई नए उन्मेष उद्घाटित हुए हैं।
समण श्रेणी की स्थापना आचार्यश्री तुलसी के प्रगतिशील कार्यक्रमों की एक और कड़ी है। इस श्रेणी में दीक्षित समण-समणी वर्ग द्वारा धर्म प्रभावना का व्यापक कार्य हो रहा है। जहां साधु-साध्वियां नहीं पहुंच पाते वहां समण-समणी वर्ग पहुंच जाता है। उन्होंने आप द्वारा प्रदत नैतिक संदेश को विदेशों तक पहुंचाया है और पहुंचा रहे हैं।
पारमार्थिक शिक्षण संस्था एवं जैन विश्व भारती आचार्यश्री के जीवनकाल की दो विशिष्ट उपलब्धियां हैं।
*अमृतपुरुष आचार्यश्री तुलसी द्वारा जैन समन्वय की दिशा में प्रस्तुत पंचसूत्री एवं त्रिसूत्री योजनाओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रृंखला -- 206* 📜
*डायमलजी नाहटा*
*पारिवारिक जीवन*
डायमलजी नाहटा लाडनूं के महत्वपूर्ण श्रावकों में से एक थे। उनके पितामह सरूपचंदजी लाडनूं के समीपवर्ती गांव खानपुर से उठकर लाडनूं में बसे थे। उन्होंने अपने पुत्र पन्नालालजी का विवाह लाडनूं के ही गुरुमुखरायजी बैंगानी की पुत्री जड़ावबाई के साथ किया। दोनों परिवार अच्छे धार्मिक संस्कार वाले थे। संत समागम में खूब रुचि लिया करते थे। पन्नालालजी के पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुईं। सबसे बड़े पुत्र डायमलजी का जन्म विक्रम संवत् 1931 में हुआ। सब बहन-भाईयों का जन्म क्रम इस प्रकार था— गोरीबाई, डायमलजी, कर्मचंदजी, मक्खूबाई, विरधीचंदजी, नेमीचंदजी और धर्मचंदजी।
डायमलजी का विवाह विक्रम संवत् 1942 में सुजानगढ़ के जोधराजजी छाजेड़ की कन्या से हुआ, परंतु वह विवाह के पश्चात् रुग्ण होकर पांच-छह महीनों में ही गुजर गई। तब उनका दूसरा विवाह उसी की छोटी बहन हुलासीबाई के साथ कर दिया गया। उससे उन्हें तीन पुत्र तथा तीन पुत्रियां हुईं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं— खिंवराज, छगनीबाई, जीतमल, पूनीबाई, फतेहचंद और मालीबाई। खिंवराज चार वर्ष की बाल्यावस्था में ही गुजर गया। डायमलजी ने अपने सभी बच्चों को सुसंस्कारी बनाने का भरपूर प्रयास किया। वे स्वयं अपने तथा अपनी संतति के विषय में अत्यंत जागरुक व्यक्ति थे।
*व्यापार-क्षेत्र में*
डायमलजी अत्यंत धार्मिक व्यक्ति थे, अतः व्यापार क्षेत्र में पूरी प्रमाणिकता रखा करते थे। मायाचार से कमाए गए धन को वे 'पाप का पैसा' मानकर चला करते थे। उनके घर में वैसी संपत्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। सर्वप्रथम उन्होंने अपने चचेरे भाइयों के साझे में कार्य किया। कलकत्ता में उनके व्यापारिक प्रतिष्ठान का नाम 'शोभाचंद डायमल' था। उस प्रतिष्ठान की अन्यत्र भी दो दुकानें थीं। एक कूचबिहार में तथा दूसरी अलीपुरद्वार में। सभी दुकानों में पाट, गल्ला तथा आढ़त का काम था। लोगों में उनके फर्म की प्रामाणिकता का अच्छा विश्वास जमा हुआ था, अतः तीनों दुकानें अच्छा लाभ कमाया करती थीं।
विक्रम संवत् 1972 में चचेरे भाइयों का साझा समाप्त कर दिया गया। उन्होंने कूचबिहार की दुकान संभाली और डायमलजी ने अपने भाइयों के साथ कलकत्ता और अलीपुरद्वार की। उन्होंने अपने फर्म का नाम रखा 'डायमल विरधीचंद' कलकत्ता में कार्य मुख्यतः डायमलजी देखा करते तथा अलीपुरद्वार में विरधीचंदजी। उनके एक भाई कर्मचंदजी युवावस्था के प्रवेश काल में ही दिवंगत हो गए थे। उनकी पत्नी संपत्ति और मकान का अपना विभाग लेकर पृथक् रहने लग गई थी।
आठ वर्षों तक चारों भाइयों का कार्य सम्मिलित रहा। फिर विक्रम संवत् 1980 में नेमीचंदजी पृथक् हो गए। शेष तीन भाइयों का कार्य विक्रम संवत् 1997 तक सम्मिलित रहा। डायमलजी विक्रम संवत् 1990 तक कलकत्ता में कार्य देखते रहे थे, फिर भाइयों तथा पुत्रों को काम सौंप कर स्वयं एक प्रकार से निवृत्त होकर देश में रहने लगे।
चारों भाइयों का व्यापार सम्मिलित चल रहा था उसी समय विक्रम संवत् 1977 में संपत्ति और मकानों की पांती कर ली गई थी। एक ही पोल में दो हवेलियां बनाई हुई थीं। उनमें से एक डायमलजी और धर्मचंदजी की पांती में तथा दूसरी विरधीचंदजी और नेमीचंदजी की पांती में आई।
*लाडनूं के महत्त्वपूर्ण श्रावकों में से एक डायमलजी नाहटा के व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🎡 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम
⛩ *प्रवास स्थल व प्रवचन स्थल*
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Ponvayalil Auditorium, NH 66, Edappallicottah, Kerala 691583
🌈 *आज के विहार एवं मुख्यप्रवचन*
*के कुछ मनोरम दृश्य...........*
🌎 *लोकेशन______________*
https://maps.google.com/?cid=7847780176684915537
👉 *दिनांक - 12 मार्च 2019*
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद*🌻
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🎋🌿🎋 *नवीन घोषणा* 🎋🌿🎋
*परमपूज्य गुरुदेव ने महती कृपा कर वि. सं. 2076 का यह नया चातुर्मास फरमाया है --*
🔮 *साध्वी श्री रामकुमारी जी सरदारशहर*
⚜ *कांकरिया मणिनगर, अहमदाबाद*
*प्रस्तुति:🌻 संघ संवाद* 🌻
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*परमपूज्य गुरुदेव ने महती कृपा कर वि. सं. 2076 का यह नया चातुर्मास फरमाया है --*
🔮 *मुनिश्री रविन्द्रकुमार जी*
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⚜ *रिन्छेड* (राजस्थान)
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ७१* - *तनाव प्रबंधन और प्रेक्षाध्यान १*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
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Helpline No. 8233344482
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