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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ८७* - *कार्य कौशल और प्रेक्षाध्यान ४*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 धोइन्दा - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में कार्यशाला का आयोजन
👉 जयपुर - ज्ञानशाला द्वारा नियोजित द्विदिवसीय आध्यात्मिक यात्रा
👉 अहमदाबाद - जैन संस्कार विधि से गृह प्रवेश
प्रस्तुति: *🌻संघ संवाद 🌻*
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🇮🇳 *भारत के राष्ट्रपति द्वारा* आगामी 4 अप्रैल को राष्ट्रपति भवन में..
📖 जैन आगमों की भाषा @ *"प्राकृत भाषा"* के क्षेत्र में *उल्लेखनीय योगदान* के लिए..
👉 *जैन विश्व भारती के प्रो.दामोदर शास्त्री और डॉ. योगेश जैन* को *सम्मानित किया जाएगा।*
👥 *जैन विश्व भारती परिवार* आपकी इस उपलब्धि पर अत्यंत *पुलकित है*🎊 और आपके प्रति *मंगलकामनाएं प्रेषित*📜 करता है।
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 27 मार्च 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रृंखला -- 562* 📝
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी*
*शोक-संवेदना*
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंद्रकुमार गुजराल ने कहा "आचार्य श्री तुलसी एक महान् आध्यात्मिक पुरुष थे। संपूर्ण मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक थे। उन्हें शांति, प्रेम और अहिंसा के मसीहा के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा।"
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा "आचार्य श्री तुलसी का संपूर्ण जीवन नैतिक पुनर्जागरण के महान् कार्य में लगा। उन्होंने देशवासियों को उन सद्गुणों की ओर खींचा जिनके बिना न तो लोकतंत्र ही सफल हो सकता है और न मानव जीवन की सार्थकता प्राप्त हो सकती है।"
According to Dalia Lama—
"I am saddened to learn about the passing away of Aacharya Anuvrat Anushasta Ganadhipati Saint Tulsi. Whom I had pleasure of meeting a few years ago. I offer my prayer on condolences.
We have lost a philosopher, administrator and a great human being his long will be. I will always remember my meeting with him."
"राजस्थान ही क्या समूचे भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना गुरुदेव के अस्तित्व से जुड़ा हुआ था, जीवन्त था। उनका अचानक हम सबके बीच से उठ जाना हतप्रभ कर गया।
हमारा यह प्राकृत विभाग एवं विश्वविद्यालय अपने समस्त परिवार सहित पूज्य गणाधिपतिजी को शतशः नमन करता है।"
*प्रेम सुमन जैन*
*प्रोफेसर, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर*
"गणाधिपति आचार्य तुलसी हमारे बीच से चले जाने से भारत की एक अपूरणीय क्षति हुई है। उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व की यशोगाथा स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य है। जो क्रांतिदर्शी रास्ते उन्होंने दिखाए, जिस पर उन्होंने युगांतकारी परिवर्तनों का प्रवर्तन किया और जिस प्रकार उन्होंने अहिंसा और अनेकांत को समूची भारतीय चेतना में संक्रमित किया, वह उनके जैसे युग पुरुष के लिए ही संभव था।
मृत्यु, मत अभिमान कर
ऐसे मनुज मरते नहीं।
परम पूज्य गणाधिपति आचार्य श्री तुलसी अमर हैं, सदैव अमर रहेंगे।"
*डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी*
*भारतीय उच्चायुक्त, लंदन*
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी के महाप्रयाण पर प्रेषित और भी अन्य शोक-संवेदनाओं* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 5* 📜
*ऐतिहासिक काल*
*उत्तरवर्ती आचार्य*
भगवान् महावीर के निर्वाण प्राप्त होने के पश्चात् आर्य सुधर्मा से उत्तरवर्ती आचार्यों की परंपरा प्रारंभ होती है। विभिन्न ग्रंथों में वर्णित आचार्य परंपराओं के अवलोकन से ज्ञात होता है कि वह मुख्यतः तीन प्रकार से मिलती है—
*1.* गणाचार्य
*2.* वाचनाचार्य
*3.* युगप्रधान आचार्य
गणाचार्य परंपरा अपने-अपने गण के गुरु-शिष्य क्रम से चलती रही है। जबकि वाचक तथा युगप्रधान परंपरा किसी एक गण से संबंधित नहीं है। वह जिस किसी भी गण या शाखा में होने वाले एक के पश्चात् दूसरे समर्थ वाचनाचार्यों तथा युगप्रधान आचार्यों के क्रम को जोड़ने से बनी है। अपने युग के सर्वोपरि प्रभावशाली आचार्य को युगप्रधान आचार्य माना गया है। वे गणाचार्य तथा वाचनाचार्य दोनों में से हुए हैं। गणाचार्य का कार्य गण की चारित्रिक सुव्यवस्था करना और वाचनाचार्य का कार्य गण की शैक्षणिक सुव्यवस्था करना होता है। आचार्य सुहस्ती तक ये दोनों कार्य अविभक्त थे, परंतु बाद में विभक्त हो गए। गणाचार्य परंपरा को गणधर-वंश तथा वाचनाचार्य परंपरा को वाचक-वंश या विद्याधर-वंश भी कहा जाता रहा है।
*विभिन्न पट्टावलियां*
*(1)* हिमवंत की *स्थविरावली* के अनुसार वाचक-वंश या विद्याधर-वंश की परंपरा इस प्रकार है—
*1.* गणधर सुधर्मा
*2.* आचार्य जम्बू
*3.* आचार्य प्रभव
*4.* आचार्य शय्यम्भव
*5.* आचार्य यशोभद्र
*6.* आचार्य सम्भूति विजय
*7.* आचार्य भद्रबाहु
*8.* आचार्य स्थूलभद्र
*9.* आचार्य महागिरि
*10.* आचार्य सुहस्ती
*11.* आर्य बहुल और बलिसह
*12.* आचार्य (उमा) स्वाति
*13.* आचार्य श्याम
*14.* आचार्य सांडिल्य (स्कंदिल)
*15.* आचार्य समुद्र
*16.* आचार्य मंगुसूरि
*17.* आचार्य नन्दिलसूरि
*18.* आचार्य नागहस्तीसूरि
*19.* आचार्य रेवती नक्षत्र
*20.* आचार्य सिंहसूरि
*21.* आचार्य स्कंदिल
*22.* आचार्य हिमवन्त क्षमाश्रमण
*23.* आचार्य नागार्जुनसूरि
*24.* आचार्य भूतदिन्न
*25.* आचार्य लोहित्यसूरि
*26.* आचार्य दूष्यगणी
*27.* आचार्य देववाचक (देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण)
*28.* आचार्य कालक (चतुर्थ)
*29.* आचार्य सत्यमित्र (अंतिम पूर्वविद्)
*दुस्सम काल समण संघत्थव तथा विचार श्रेणी के अनुसार युगप्रधान-पट्टावली और समय* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पायेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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