10.04.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 12.04.2019
Updated: 24.04.2019

News in Hindi

👉राजराजेश्वरीनगर (बेंगलुरु) अचार्य तुलसी डायग्नोस्टिक सेंटर ने किया लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण
👉 लाछुड़ा - मुनिवृंद का आध्यात्मिक मिलन एवं स्वागत समारोह
👉 बालोतरा - संथारा प्रत्याख्यान
👉 राजाजीनगर (बेंगलुरू) जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 मुम्बई - चुनाव शुद्धि अभियान कार्यक्रम का आयोजन

प्रस्तुति: *🌻 संघ संवाद 🌻*

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 10 अप्रैल 2019

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 16* 📜

*उद्भवकालीन स्थितियां*

*राजनीतिक स्थिति*

गतांक से आगे...

राजस्थान की दशा तो उस समय और भी अधिक चिंतनीय हो रही थी। वह अनेक राजनीतिक इकाइयों में विभक्त तो था ही, परंतु उनमें भी कोई प्रभावशाली राजा नहीं रह गया था। रणबांकुरे राजपूत वीरों की तलवारों का पानी उतर चुका था। शत्रु-दमन के समय काम आने वाला शौर्य पारस्परिक वैमनस्य की अग्नि में भस्म हुआ जा रहा था। एक दूसरे को गिराने की भावना से उत्पन्न परिस्थितियों ने सारे राजस्थान को निष्प्रभ बना डाला था। ऐसे अवसरों से लाभ उठाने में निष्णात अंग्रेजों ने राजस्थान पर भी अपने दांत लगा रखे थे।

तेरापंथ की जन्मस्थली मेवाड़ है। वहां की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति तो राजस्थान के अन्य राज्यों से भी गई-बीती थी। वहां के महाराणाओं की तेजस्विता का सूर्य अस्ताचलगामी हो चुका था। सांगा और प्रताप के वंशज बीते हुए युग की मधुर घटनावलियों की स्मृति-मात्र करने योग्य शेष रह गए थे। न उनका कोई प्रभाव था और न व्यक्तित्व। सामंतों का आतंक जनता पर तो छाया हुआ था ही, पर राणा-परिवार भी उससे बच नहीं पाया था। सोलह तथा बत्तीस की श्रेणी में गिने जाने वाले सरदारों के जिन पूर्वजों ने राणा-परिवार की रक्षा की थी और मेवाड़ का मुख उज्जवल किया था, उन्हीं के वंशजों में परस्पर प्रबल वैमनस्य चल रहा था। महाराणाओं को कभी शक्तावतों की ओर झुकना पड़ता था, तो कभी चूंडावतों की ओर। शक्ति-संतुलन के लिए सरदारों द्वारा किए जाने वाले षड्यंत्रों में आए दिन महाराणाओं की हत्याएं होती रहती थीं।

अराजकता की स्थिति से पड़ोसी राज्यों को लाभ उठाने का खूब अवसर मिल गया। कभी मराठा, कभी सिंधिया तथा कभी होल्कर की सेनाएं राज्य में घुस आतीं और वहां की अस्त-व्यस्तता को और अधिक बढ़ा देतीं। उनको प्रसन्न रखने तथा उनकी मांगे पूरी करने में राज्य का खजाना खाली हो चुका था। आक्रांता सैनिकों के हाथों मेवाड़ी प्रजा आए दिन लुटती रहती थी। कोई संरक्षण देने वाला नहीं था। महाराणा अपने सरदारों को भी वश में नहीं कर पा रहे थे, अतः बाहरी आक्रमणों को दबा देना उनके वश की बात हो ही कैसे सकती थी? जनता अपने भाग्य के भरोसे ही जी रही थी।

तेरापंथ की स्थापना के समय मेवाड़ में महाराजा राजसिंह (द्वितीय) राज्य कर रहे थे। वातावरण बड़ा विक्षुब्ध था। कुछ समय पूर्व ही मराठों ने आक्रमण किया था और वे बहुत-सा धन ले गए थे। उनके कुछ समय पश्चात् मल्हारराव होल्कर का आक्रमण हुआ। महापुरुषों (दादूपंथी नागाओं) की सेना का उपद्रव भी उग्र रूप में चालू था। इस प्रकार वहां की राजनीतिक स्थिति अत्यंत अस्थिर और भयावह थी।

*तेरापंथ की उद्भवकालीन राजस्थान की सामाजिक स्थिति* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 4* 📖

*स्तुति का संकल्प*

गतांक से आगे...

भगवान् ऋषभ के दोनों चरण कैसे हैं? इस प्रश्न को उभारते हुए मानतुंग कहते हैं— देवताओं का इंद्र भगवान् का भक्त है। वह जब आदिनाथ के चरणों में प्रणत होता है तब उसके मुकुट में जड़ित मणियों की किरणें भगवान् ऋषभ के पैरों में गिरती हैं। जब भगवान् ऋषभ के अंगुष्ठ पर इंद्र का मणि-जड़ित मुकुट टिकता है, तब अंगुष्ठ से निकलने वाली रश्मियां इतनी तेज होती हैं कि वे उस मणि की रश्मियों को भी उत्तेजित कर देती हैं, अत्यधिक प्रकाश से भर देती हैं। मणि की प्रभा प्रकाश करती है, पर पूरा प्रकाश नहीं कर पाती। उसमें अंधकार भी छिपा हुआ है, किंतु भगवान् ऋषभ के अंगुष्ठ में से निकलने वाली रश्मियां उस मणि को भी प्रकाशित कर देती हैं, जो स्वयंप्रकाशी है। अंधकार में प्रकाश करना एक बात है, किंतु प्रकाशी को प्रकाश से भर देना बहुत बड़ी बात है। मणि में प्रकाश पूरा नहीं है और इसलिए नहीं है कि उसके साथ भी इंद्र के मोह का अंधकार जुड़ा हुआ है। मोह की लीलाएं अनंत हैं। यह सारा अंधकार है। प्रकाश के भीतर भी अंधकार है। बाहर में है प्रकाश और भीतर में है अंधकार।

अर्जुन ने योगीराज कृष्ण से पूछा— 'भगवन्! कौन सी प्रेरणा पाकर आदमी न चाहते हुए भी पाप करता है। हर आदमी सोचता है कि अच्छा काम करूं, किंतु भीतर से एक ऐसी तरंग उठती है कि व्यक्ति पाप में लग जाता है। वह प्रेरणा कौन सी है?' श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया—

*काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।*
*महाशनो महापाप्मा, विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।*

रजोगुण से पैदा होने वाले काम और क्रोध से प्रेरित होकर आदमी न चाहते हुए भी पाप का आचरण कर लेता है।

इंद्र ने ऋषभ के चरणों में सिर झुकाया। उसके मुकुट की दिव्य मणि से किरणें बिखर रही थीं। वे किरणें ऋषभ के चरणों पर आईं, अंगूठे पर आईं। उन किरणों के साथ भी मोह जुड़ा हुआ था, काम और क्रोध जुड़ा हुआ था। इस पवित्र, शुद्ध और दिव्य आलोकमय चरण का स्पर्श कर वह पाप का अंधकार विलीन हो गया। जो पूरा प्रकाशी नहीं था, जिसके भीतर में अंधकार छिपा हुआ था, वह प्रकाशशील बन गया। प्रकाश के भीतर भी अंधकार छिपा रहता है। कहा जाता है कि 'दिए तले अंधेरा' किंतु इसे सच्चाई के साथ समझें तो कहना चाहिए दिए के भीतर भी अंधेरा है। न केवल दिए के तले अंधेरा रहता है, किंतु प्रकाश में भी अंधेरा छिपा रहता है। जब तक पवित्र आत्मा का प्रकाश नहीं मिलता, प्रकाशी भी अंधकार से मुक्त नहीं रह पाता। दुनिया में कोई ऐसा अंधकार नहीं है, जिसके भीतर प्रकाश न छिपा हुआ हो और ऐसा कोई प्रकाश नहीं है जिसके भीतर अंधकार न छिपा हुआ हो। मानतुंग कहते हैं— भगवान् ऋषभ के चरण का स्पर्श पाकर वे मणियां भी प्रकाशित हो उठीं, इंद्र के भीतर जो पाप का अंधकार छिपा हुआ था, वह भी विलीन हो गया और प्रकाश से जगमगा उठा उसका अंतःकरण।

इंद्र ने इन पाद-युग्मों को सम्यग् श्रद्धा के साथ विधिवत् प्रणाम किया। प्रणाम करना भी एक कला है। सब लोग प्रणाम करना नहीं जानते। कुछ लोग विधिवत् प्रणाम करते हैं। कोमल हाथ से या कोमलता से सिर का स्पर्श होना चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि अशिष्ट भाव से किए गए प्रणाम से पैर की चमड़ी भी उतर जाती है। प्रणाम करना चाहिए बड़ी कोमलता और विनम्रता के साथ।

*आचार्य मानतुंग ने प्रणाम किन चरणों को किया... व क्यों किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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*सरसंघचालक*
*भागवत जी*
द्वारा
*चुनावशुद्धि*
*अभियान*
थीम की
अनुशंसा

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: प्रस्तुति:
*अणुव्रत*
*सोशलमीडिया*

🌻
: संप्रसारक:
*संघ संवाद*

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १००* - *अनासक्त चेतना और प्रेक्षाध्यान ३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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