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👉 *महावीर जयंती के कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित*
🔹दौलतगढ़
🔹इस्लापुर
🔹गदग
🔹हिसार
👉 *अणुव्रत महासमिति द्वारा प्रदत्त प्रकल्पानुसार चुनाव शुद्धि अभियान*
🔹जयपुर
🔹 सादुलपुर राजगढ़
🔹बेंगलुरू
🔹 सादुलपुर राजगढ़
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 कोटा - भगवान महावीर जन्म कल्याणक दिवस पर कार्यक्रम
👉 डोडोनहल्ली: महावीर जयंती पर कार्यक्रम आयोजित
👉 पाली - महावीर जन्म कल्याणक के उपलक्ष्य में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन
👉 भुज कच्छ - अणुव्रत चुनावशुद्घि अभियान
👉 लाछुड़ा - महावीर जयंती के अवसर पर कार्यक्रम
👉 पीलीबंगा - भगवान महावीर जन्म कल्याणक दिवस पर कार्यक्रम
👉 औरंगाबाद - भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव कार्यक्रम
👉 सिलीगुड़ी - महावीर जयंती कार्यक्रम
*प्रस्तुति: 🌻संघ संवाद*🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 18 अप्रैल 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 23* 📜
*उद्भवकालीन स्थितियां*
*वर्तमान में*
आद्य आचार्यश्री भीखणजी से लेकर वर्तमान तक तेरापंथ में निम्नोक्त ग्यारह आचार्य हुए हैं—
*1.* आचार्यश्री भीखणजी
*2.* आचार्यश्री भारमलजी
*3.* आचार्यश्री रायचंदजी
*4.* आचार्यश्री जीतमलजी (जयाचार्य)
*5.* आचार्यश्री मघराजजी
*6.* आचार्यश्री माणकलालजी
*7.* आचार्यश्री डालचंदजी
*8.* आचार्यश्री कालूरामजी
*9.* आचार्यश्री तुलसीजी (स्वयं आचार्यपद से मुक्त होकर दशम आचार्य की नियुक्ति की)
*10.* आचार्यश्री महाप्रज्ञजी
*11.* आचार्यश्री महाश्रमण जी (वर्तमान आचार्य)
प्रत्येक आचार्य ने अपने शासन-काल में तेरापंथ को क्रमशः विकसित किया है। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी भी उसके चहुंमुखी विकास में लगे हुए हैं। तेरापंथ का इतिहास आद्योपांत प्रगति, संघर्ष-विजय और मर्यादानुवर्तिता का इतिहास रहा है। तेरापंथ को आत्मानुशासन का एक अलभ्य उदाहरण कहा जा सकता है। आचार्य का अनुशासन केवल साक्षीमात्र या मार्गदर्शक मात्रक होता है।
प्रारंभ से तेरापंथ द्विशताब्दी (विक्रम संवत् 2017, आषाढ़ पूर्णिमा) तक इस संघ में दीक्षित होने वाले व्यक्तियों की संख्या 1973 थी, जिसमें 667 साधु तथा 1306 साध्वियां थीं। विद्यमान साधु-साध्वियों की संख्या 655 थी। जिसमें 166 साधु और 489 साध्वियां थीं। लाखों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएं हैं।
एक आचार, एक विचार और एक आचार्य की अभिनव रत्नत्रयी ने तेरापंथ को जो स्थैर्य प्रदान किया है, वह तेरापंथ के लिए ही नहीं, अपितु समुद्र जैन समाज के लिए गौरवास्पद है। इसी क्रम के आधार पर तेरापंथ में 'एक के लिए सब और सब के लिए एक' का आदर्श कार्य रूप में परिणत हुआ है। तेरापंथ का भूतकाल गौरवशाली और भविष्यकाल नवोन्मेषों की कल्पना-स्थली रहा है। उसका हर वर्तमान काल अपनी प्रगतिशीलता के आधार पर नवोन्मेष की कल्पनाओं को वास्तविकता का रूप देता हुआ आगे बढ़ता रहा है।
*तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्यश्री भीखणजी के जीवन चरित्र* के बारे में विस्तार से जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 11* 📖
*अंतर्द्वंद्व का विलय*
गतांक से आगे...
आचार्य मानतुंग अपनी अशक्यता का अंकन करना चाहते हैं इसीलिए मानतुंग कहते हैं—
*वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशांककान्तान्,*
*कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोपि बुद्ध्या।*
*कल्पान्तकालपवनोद्धतनक्रचक्रं,*
*को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम्।।*
मैं आपकी स्तुति नहीं कर सकता, किंतु और कौन है जो ऐसा कर सकता है? जो बृहस्पति के समान बुद्धि वाला है, वह भी अगर कह दे कि मैं भगवान की स्तुति करने में सक्षम हूं तो मैं हार मान कर बैठ जाऊंगा। पर क्या कोई ऐसा कहने में समर्थ है? क्या कोई अपनी दो भुजाओं से समुद्र को तैरकर पार कर सकता है? वह भी ऐसा समुद्र जिसमें प्रलयकाल जैसे भयानक बवंडर और लहरें उठ रही हों, जिसमें भयंकर मगरमच्छ आदि जलचर हों। उसे तैरना असंभव है। इस स्थिति में मुझ जैसे छोटे प्राणी के लिए चिंता ही क्या है? जब बड़े से बड़ा व्यक्ति भी आपकी स्तुति करने में सक्षम नहीं है तब फिर मेरी अक्षमता का प्रश्न ही क्या? मैं तो नगण्य हूं।
मानतुंग के मन में एक अंतर्द्वंद्व चल रहा है। जब व्यक्ति के सामने कोई बड़ा प्रश्न आता है तब उसके मन में एक अंतर्द्वंद्व सा छिड़ जाता है। ऐसे समय में मन की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाती है। ऐसे क्षणों में ही प्रभु के साथ, परमात्मा के साथ, अपनी आत्मा के साथ सीधा संबंध स्थापित होता है। लोगों ने मुझसे (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञजी) अनेक बार पूछा— 'श्रमण महावीर' में आपने यह कैसे लिख दिया कि महावीर के साथ मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञजी) संबंध स्थापित किया? क्या परमात्मा के साथ संबंध स्थापित हो सकता है? मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञजी) कहा— हां, हो सकता है यदि ठीक ढंग से स्थापित किया जाए, विधि से स्थापित किया जाए।
'बतायो' एक सूफी फकीर था। वह बाजार में गया। भूख लगी थी। उसने मीठे खरबूजे का ढेर देखा। खाने की इच्छा हुई, किंतु पास में एक पैसा भी नहीं था। खरबूजे वाले के पास गया और बोला— खरबूजे दोगे? दुकानदार बोला— जरूर देंगे पर पैसे मिलने के बाद। फकीर ने कहा— मेरे पास पैसे नहीं है। क्या तुम अल्लाह के नाम पर एक खरबूजा मुझे नहीं दे सकते हो? बड़ी आरजू-मिन्नत के बाद खरबूजे वाले ने एक सड़ा-गला खरबूजा उसे दे दिया। उस सड़े-गले खरबूजे को खाने की इच्छा नहीं हुई। सहसा 'बतायो' को याद आया— कल एक आदमी ने उसे एक टका दिया था। वह एक टका पगड़ी में अभी खुंसा हुआ है। 'बतायो' ने तुरंत उसे निकाला, दुकान पर गया, बोला— एक टके का खरबूजा दे दो। खरबूजे वाले ने तत्काल एक मीठा सा खरबूजा उसे दे दिया। 'बतायो' ने कुछ सोचते हुए कहा— 'हे भगवान! तेरे नाम पर यह सड़ा-गला खरबूजा मिला और टके के नाम पर बढ़िया और मीठा। अरे! यह क्या! क्या टका अल्लाह से भी बड़ा है? जिसके मन में टका बड़ा होता है वह कभी अल्लाह के साथ संबंध स्थापित नहीं कर सकता।'
जब समस्या आती है तब आदमी अंतर्द्वंद्व में उलझता है, तब वह परम सत्ता के साथ संबंध स्थापित करना चाहता है। आचार्य मानतुंग के मन में भी अंतर्द्वंद्व चल रहा है। वे कहते हैं— आपकी स्तुति करने में मैं समर्थ नहीं हूं तो आप ही बताएं कौन समर्थ है, जिसके पास जाकर स्तुति करने की कला सीखूं? प्रभो! मैंने दूर तक दृष्टि डालकर देखा, इस मर्त्यलोक में ही नहीं, अमर्त्यलोक में भी कोई देव अथवा देवगुरु बृहस्पति भी आपकी स्तुति करने में समर्थ नहीं है। जब सब आपकी स्तुति करने में अक्षम हैं तब मैं अपनी अक्षमता का गीत क्यों गाऊं?
मानतुंग संभले। उन्होंने मन ही मन सोचा— 'मुझ में जितनी क्षमता है, उसका उपयोग मुझे करना है।' इस संकल्प के साथ अंतर्द्वंद्व विलीन हो गया और स्तुति का प्रवाह अविच्छिन्न बन गया।
*आचार्य मानतुंग ने अपनी बुद्धि और संवेग का समन्वय कैसे किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 22* 📜
*उद्भवकालीन स्थितियां*
*भविष्य के लिए*
गतांक से आगे...
किसी भी नए संगठन के साफल्य और स्थायित्व के विषय में जन-मानस का संशयालु होना स्वाभाविक ही होता है। तेरापंथ के विषय में भी अनेक संशय उत्पन्न हुए। प्रारंभ में तो लोगों को यह विश्वास ही नहीं हो पाया कि यह संगठन कभी आगे बढ़ भी पाएगा। उस समय इसके सम्मुख बाधाओं पर बाधाएं और चुनौतियों पर चुनौतियां आती रहती थीं। सब परिस्थितियों का सामना करते हुए यह आगे बढ़ा, फला-फूला और जन-मानस में स्थान प्राप्त करने में पूर्ण रूप से सफल हुआ। इसके संस्थापक स्वामी भीखणजी ने स्वयं अपने जीवन में ही वैसी सफलता प्राप्त की, जिसकी पहले कभी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी। इतना होने पर भी एक संदेह बार-बार लोगों के मन में उभरता रहा कि पहले भी शैथिल्य के विरुद्ध अनेक उत्क्रांतियां हो चुकी हैं। यदि वे स्थाई नहीं बन सकीं, तो यह फिर स्थाई कैसे बन जाएगी? काल-परिपाक से यह संस्था भी क्या शिथिलता के उसी मार्ग पर अग्रसर नहीं हो जाएगी, जिस पर उसकी पूर्ववर्ती सभी संस्थाएं अग्रसर हो चुकी हैं?
एक व्यक्ति ने एक बार यह प्रश्न कुछ प्रकारांतर से स्वयं स्वामी भीखणजी के सामने ही रख दिया। उसने स्वामीजी से पूछा— 'आपको अपना यह उत्क्रांति-मार्ग कितने वर्षों तक चलता लगता है?'
स्वामीजी ने उत्तर देते हुए कहा— 'इस मार्ग का अनुगमन करने वाले साधु जब तक श्रद्धा और आचार में सुदृढ़ रहेंगे, वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेंगे और स्थानक खड़े करने के फेर में नहीं पड़ेंगे, तब तक यह मार्ग अच्छी तरह से चलता रहेगा।'
स्वामी भीखणजी के उपर्युक्त उत्तर को भविष्य के लिए तेरापंथ को दिया गया एक मार्गदर्शन कहा जा सकता है। तेरापंथ जब तक इस मार्ग पर आरूढ़ रहेगा, तब तक उसकी प्रगति में कोई बाधा नहीं आ सकेगी। उत्क्रांति करने वाली पूर्ववर्ती संस्थाओं में जो शिथिलताएं आईं, उनका कारण और निवारण स्वामी भीखणजी अच्छी तरह से जानते थे। उन्होंने इस विषय में लिखा है— 'अपने निमित्त स्थान बनवाने वाले वस्त्र-पात्र आदि की मर्यादा का भी लोप कर देते हैं। वे फिर उग्र विहार छोड़कर किसी सुविधापूर्ण स्थान में पड़े रहना पसंद करने लगते हैं। इस प्रकार वे शिथिल हो जाते हैं। इसके विपरीत जो साधु मर्यादा को बहुमान देकर चलते हैं, वे शिथिल नहीं होते।' शिथिलता के इन मुख्य कारणों का मूलोच्छेद स्वामीजी ने तेरापंथ की आधारशिला रखने के समय ही कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने संघ के प्रत्येक सदस्य में मर्यादाओं के प्रति इतना बहुमान जागरित किया कि श्रमण-संघ के किसी भी उत्क्रांति-इतिहास में इतने सुदृढ़ संगठन की स्थापना का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।
*वर्तमान में तेरापंथ की एक झलक* देखेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 10* 📖
*अंतर्द्वंद्व का विलय*
गतांक से आगे...
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव और ज्ञानदेव कोलायत की ओर गए। जंगल से गुजरते हुए वे प्यास से आक्रांत हो गए। ज्ञानदेव बड़े तत्त्वज्ञानी थे। वे कुएं के पास गए, पानी निकाला और पी लिया। नामदेव प्रकृति से भक्त थे, तत्त्वज्ञानी नहीं थे। उन्होंने वहीं बैठे-बैठे अभंग का गायन किया। कुएं का जल स्वतः ऊपर आ गया। उन्होंने स्वयं जल पीया। साथ चल रहे दूसरे लोगों ने भी अपनी प्यास बुझाई। आस-पास के पशु-पक्षी भी जल पीकर तृप्त हो गए।
शक्ति स्वयं प्रस्तुत होकर व्यक्ति के साथ जुड़ जाती है, किंतु वह तब प्रस्तुत होती है, जब कोई मानतुंग की तरह स्वयं को बाल रूप में प्रस्तुत करे। मैं छोटा हूं— यह किसी को पसंद नहीं है। मैं बड़ा हूं— यह सब को पसंद है। यदि कोई कह दे कि आप बहुत बड़े हैं तो व्यक्ति को इतनी प्रसन्नता होती है, जितनी शायद किलो भर घी पीने पर भी नहीं होती होगी। बड़ा बनना कोई बुरी बात नहीं है, किंतु जिसने बाल बनने का रहस्य समझा है, उसके लिए फिर कुछ और प्राप्त करने का प्रयत्न शेष नहीं रहता। बाल का मतलब है— सरलता। बाल का तात्पर्य है— समर्पण। ईसाई धर्म में सरलता को कितना महत्व दिया गया है। प्रभु ईसा मसीह से पूछा गया— स्वर्ग जाने का अधिकारी कौन है? उन्होंने एक बच्चे को गोद में उठाकर कहा— यह है बालक अर्थात् सरलता।
सरलता का महत्त्व महावीर ने भी प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा धर्म उसी आत्मा में ठहरता है, जिसमें सरलता है। कपट का व्यूह रचने वाली आत्मा में कभी धर्म नहीं ठहरता। बाल होना बहुत बड़ी बात है। अवस्था की दृष्टि से तो सभी बालपन से गुजरते हैं, किंतु पचास वर्ष का होने के बाद भी कोई बालरूप में रह सके तो उससे बड़ा सौभाग्य और कोई नहीं होगा। मानतुंग ने स्वयं को बालरूप में प्रस्तुत करते हुए कहा— "प्रभो! मैं बालक हूं, आप मेरी अशक्यता को क्षमा करें। चाँद को हाथों से पकड़ने के मेरे प्रयत्न पर आप हंसे नहीं, इसे बाल-सुलभ चपलता समझें।"
बालपना कोई निराशा नहीं है। यह काम नहीं हो सकता, इसका नाम है निराशा। कर सकता हूं किंतु नहीं करता, यह अकर्मण्यता की स्थिति है। पहली निराशा की भूमिका है और दूसरी अकर्मण्यता की भूमिका। कुछ लोग तीसरी श्रेणी के होते हैं, जो काम तो किसी तरह कर लेते हैं, किंतु सुरक्षा नहीं कर पाते। यह लापरवाही की भूमिका है। इन तीन भूमिकाओं से हमारा जीवन गुजरता है। आचार्य मानतुंग में किसी प्रकार की निराशा नहीं है, अकर्मण्यता और लापरवाही नहीं है। यद्यपि वे अपनी अशक्यता का अनुभव कर रहे हैं, पर मन में कोई निराशा नहीं है।
*आचार्य मानतुंग अपनी अशक्यता का अंकन करना चाहते हैं... इसके लिए वे क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
👉 वीरगंज(नेपाल) - महावीर जयंती के अवसर पर प्रभात फेरी का आयोजन
👉 बेंगलुरू - स्वस्थ चुनाव - शुद्ध लोकतन्त्र कार्यक्रम आयोजित
👉 विजयनगर - तेयुप द्वारा अपना टाइम आ गया कार्यशाला का आयोजन
👉 बेंगलुरु: जैन युवा संगठन द्वारा महावीर जयंती के अवसर पर आयोजित रैली में महिला मंडल की सहभागिता
👉 जींद - महावीर जयंती के अवसर पर प्रभात फेरी का आयोजन
👉 अहमदाबाद - जैन संस्कार विधि से गृह प्रवेश
👉 अहमदाबाद - महावीर जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 अहमदाबाद - "स्वस्थ चुनाव - शुद्ध लोकतन्त्र" कार्यक्रम आयोजित
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *मैं मनुष्य हूँ: श्रंखला ९*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १०८* - *अनासक्त चेतना और प्रेक्षाध्यान ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻