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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 30* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*गृही-जीवन*
*पत्नी-वियोग*
अभिग्रह के कुछ समय पश्चात् ही भीखणजी की पत्नी का देहांत हो गया। उस अचानक मृत्यु ने उनकी भावना को एक साथ झकझोर डाला। वे सोचने लगे— "काल का कोई भरोसा नहीं, अतः शुभ कार्य में समय मात्र का प्रमाद भी भयंकर भूल है। आगम कहते हैं कि अपने संकल्पित काम को भविष्य के ऊपर तीन प्रकार के व्यक्ति ही छोड़ सकते हैं— एक तो वे, जिनकी मृत्यु के साथ मित्रता है। दूसरे वे, जो मृत्यु के सामने से भाग जाने का सामर्थ रखते हैं और तीसरे वे, जो यह समझते हैं कि उनकी मृत्यु कभी होगी ही नहीं।' भीखणजी रात-दिन इन्हीं विचारों में लीन रहने लगे। वे अपनी इच्छा को बहुत शीघ्रता से फलीभूत कर लेना चाहते थे, अतः स्वभावतः ही उनकी आकृति पर गाम्भीर्य रहने लगा।
लोगों ने उस गाम्भीर्य को पत्नी-वियोग से उत्पन्न औदासीन्य समझा। उन्होंने उनकी भावना को अपनी भावना के अनुरूप ही आंका और सांत्वना के साथ-साथ दूसरा विवाह कर लेने के लिए परामर्श देने लगे, परंतु भीखणजी ने उसे स्पष्ट अस्वीकार कर दिया। अच्छे संबंध मिलते हुए भी उन्होंने सबको विरक्तभाव से ठुकरा दिया और यावज्जीवन ब्रह्मचर्य पालने की प्रतिज्ञा कर ली।
*आत्म-परीक्षा*
संयम आत्म-विजयी के लिए जितना सुखदायक है, कायर के लिए उतना ही अधिक दुःखदायक। मन और इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित किए बिना इस ओर पैर बढ़ा देना, खतरों से भरा हुआ है। इसीलिए भीखणजी ने दीक्षा से पूर्व अपने-आपको पूर्ण रूप से कसौटी पर कसकर देख लिया था कि वे पग-पग पर आने वाले परिषहों का दृढ़ता से सामना कर सकते हैं या नहीं। उस परीक्षण-काल में एक बार तो उन्होंने कैर का ओसाया हुआ पानी भी पी कर देखा था। उस पानी को उन्होंने एक तांबे के लोटे में भरकर 'बंडेल' (एक-दूसरे पर रखे बर्तनों की श्रेणी) में रख दिया और काफी देर तक पड़े रहने के पश्चात् पीया। अति नीरस उस जल को पीकर वे यह देख लेना चाहते थे कि साधु बनने पर अचित्त जल पीने के नियम को वे निभा सकेंगे या नहीं? अपने दीक्षित-जीवन के उत्तरार्द्ध (विक्रम संवत् 1851) में उक्त घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने मुनि हेमराजजी से, जबकि वे गृहस्थ थे, कहा था— 'साधु होने के पश्चात् आज तक वैसा नीरस जल पीने का काम नहीं पड़ा।' उन्होंने आत्म-परीक्षण के रूप में इस प्रकार के अनेक प्रयोग करके अपने आप को पूर्ण रूप से तोलकर देख लिया था।
*आज्ञा की मांग*
अपनी क्षमता का पूर्ण विश्वास हो जाने के पश्चात् भीखणजी ने अपना विचार माता दीपांबाई के सामने रखा और दीक्षा के लिए आज्ञा मांगी। वे अपनी माता के अत्यंत प्रिय और विनीत पुत्र थे। शाह बल्लूजी का देहांत होने के पश्चात् वे उनकी हर आवश्यकता का बड़ा ध्यान रखा करते थे। ऐसी स्थिति में पुत्र के मुख से दीक्षा लेने की बात सुनकर दीपांबाई को बड़ा धक्का लगा। उन्होंने उनसे बड़ी आशाएं बांध रखी थीं। वे बहुधा कहा करती थीं— 'मेरा बेटा बड़ा होनहार है। समय पाकर यह कोई महान् यशस्वी व्यक्ति बनेगा।' वृद्धावस्था के अपने एकमात्र सहारे को छोड़ देना उन्हें कभी अभीष्ट नहीं था, अतः दीक्षा के लिए आज्ञा देने का उन्होंने स्पष्ट निषेध कर दिया।
*बुआ का विरोध*
परिवार के अन्य संबंधी व्यक्तियों ने भी यथासाध्य भीखणजी को अपने निर्णय से विचलित करने का प्रयास किया। उनकी बुआ ने तो दबाव देते हुए यहां तक भय दिखलाया कि यदि तुम दीक्षा लोगे, तो मैं पेट में कटार भोंक कर मर जाऊंगी। परंतु भीखणजी उन सब कठिनाइयों से घबराएं नहीं। उन्होंने अपनी बुआ से कहा— 'कटार बहुत कठोर और तीक्ष्ण होती है। वह 'पूनी' नहीं होती कि कोई सहज ही उसे पेट में भोंक ले। ऐसी व्यर्थ की बातों से मुझे अटकाने का प्रयास करना निरर्थक है।'
*तेरापंथ के आद्य प्रणेता आचार्यश्री भीखणजी की माता दीपांबाई को आए सिंह के स्वप्न की सत्यता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 18* 📖
*स्तुति का मूल्य*
गतांक से आगे...
एक साम्ययोगी की स्तुति का अर्थ है— साम्ययोग में चले जाना। समता की सिद्धि पा लेना। जहां समता है वहां यह बिल्कुल उपयुक्त प्रयोग है कि ऋषभ की स्तुति से क्षण भर में सैकड़ों जन्मों के संचित पाप क्षीण हो जाते हैं। साम्ययोग की साधना करने वाला क्षण भर में जिन पापों को क्षीण कर देता है, उन पापों को तीव्र तपस्या करने वाला भी सहजता से क्षीण नहीं कर पाता। इसीलिए कहा गया— अनेक जन्मों की श्रृंखला में तपस्या करने वाला कर्मों को उतना क्षीण नहीं कर पाता, जितना साम्ययोगी क्षण भर में कर देता है। इस साम्ययोग के माहात्म्य के संदर्भ में मानतुंग की वाणी का मूल्यांकन करें। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने केवल स्तुति के भावावेश में ही यह बात नहीं कही, किंतु भगवान् ऋषभ के स्वरूप को सामने रखकर यह बात कही है। मानतुंग का आराध्य आत्मा और समता का प्रतीक है इसलिए यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। इसमें अर्थवाद भी नहीं है। यह यथार्थवाद है। कहा जाता है— ध्यान की साधना करने वाला ढाई मिनट में जितने कर्मों को क्षीण करता है, तपस्या करने वाला लंबे समय में भी उन कर्मों को क्षीण नहीं कर पाता। ध्यान की साधना की निष्पत्ति है समता। जिस व्यक्ति के जीवन में ध्यान की साधना है, वहां समता का उदय होता है। उसकी निष्पत्ति पर पहुंचने वाला तो और अधिक कर्मों को क्षीण करता है। इसलिए स्तुतिकार का यह कथन बहुत युक्तियुक्त और गंभीर चिंतन का परिणाम है। उन्होंने इस बात को जिस उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। अंधकार इतना व्यापक और इतना गहरा होता है कि पृथ्वी को जैसे अंधकार में डूबो देता है। कहीं कुछ पता नहीं चलता। सूर्य उगता है, अंधकार का पता ही नहीं लगता। जो अंधकार इतना गहरा था, इतना सघन था वह एक सूर्य के आते ही विलीन हो गया।
प्रश्न हो सकता है कि कहां इतना व्यापक अंधकार, कहां अकेला सूर्य? सूर्य का प्रकाश इतना तीव्र है, उसकी रश्मिया इतनी समर्थ हैं कि अंधकार बिल्कुल नष्ट हो जाता है। अंधकार भी कैसा? भंवरा जैसे काला-नीला होता है, वैसा काला-नीला अंधकार। जिसे न्यायशास्त्र की भाषा में कहा जाता है कि अंधकार इतना श्लिष्ट कि मुट्ठी में पकड़ लें। इतना सघन की सुई से उसे भेद सकें। इतना सघन और इतना गहरा अंधकार एक सूर्य के आगमन से नष्ट हो सकता है तो फिर भगवान् ऋषभ की साधना, आराधना और स्तुति करने वाले व्यक्ति के भीतर प्रकाश क्यों नहीं फूटेगा? उसके भीतर जो अंधकार रूपी पाप संचित है, वह चाहे कितने लंबे समय से है, कितना ही गहरा और सघन है, वह क्षण भर में नष्ट क्यों नहीं हो सकता?
*आचार्य मानतुंग ने अपनी बात को किस प्रकार स्पष्ट किया है...?* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रगति के स्वर्ण सूत्र*: श्रंखला ३*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ११९* - *आत्मसाक्षात्कार और प्रेक्षाध्यान ९*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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