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👉 K.G.F. - शासन स्तंभ मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी (लाडनूं) की स्मृति सभा का आयोजन
👉 चुरु - शासन स्तंभ मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी (लाडनूं) की स्मृति सभा का आयोजन
👉 इस्लामपुर - शासन स्तंभ मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी (लाडनूं) की स्मृति सभा का आयोजन
👉 सिरियारी-शासन स्तंभ मंत्री मुनि श्री की स्मृति सभा का आयोजन
प्रस्तुति: *🌻संघ संवाद 🌻*
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 11 मई 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 अहमदाबाद - जैन संस्कार विधि से नूतन गृह प्रवेश
👉 राजाजीनगर, बेंगलुरु - जैन संस्कार विधि के बढते चरण
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *हृदय परिवर्तन के सूत्र - २*: श्रंखला १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 27* 📖
*सौंदर्य की मीमांसा*
आचार्य मानतुंग के मन में स्तुति के साथ-साथ अनेक प्रश्न, विकल्प उठ रहे हैं। पहला विकल्प उठा— आपका स्तवन करना तो दूर, आपकी कथा करना भी बहुत दुरूह है। बस, आपकी कथा करता रहूं, यही बहुत है। दूसरा विकल्प उभरा— आपकी स्तुति ही नहीं, आपको देख लेना भी पर्याप्त है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने आपको देख लिया, फिर किसी और चीज में उसका मन ही नहीं लगेगा। यह एक यथार्थ है– जो सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है, उसे देख लें तो फिर छोटी-मोटी चीजों को देखने का आकर्षण अपने आप समाप्त हो जाएगा।
मानतुंग कहते हैं— आपको जबसे देखा, आंखों की पलकें झपकी नहीं। अनिमेष दृष्टि से देखते ही रह गया। ये आंखें अब कहीं भी संतोष नहीं पा रही हैं। जब तक आप को नहीं देखा था, तब तक ये आंखें चारों ओर दौड़ती थीं किसी प्रिय वस्तु को देखने की चाह में। आपको देखा तो देखता ही रह गया। आंखें आप पर ही ठहर गई हैं। अब और कुछ देखने की इच्छा ही नहीं रही।
एक व्यक्ति को एक दिन चक्रवर्ती की खीर खाने को मिल गई। वह ऐसी खीर होती है, जो बहुत ही विरल दूध से निष्पन्न होती है। एक लाख गायों का दूध निकाला जाता है। उस दूध को एक हजार गायों को पिलाया जाता है। फिर उन गायों को दुहा जाता है। उस दूध में विशिष्ट प्रकार के द्रव्य डालकर खीर बनाई जाती है। ऐसी खीर को खाकर कौन मुग्ध नहीं बनेगा? उस व्यक्ति ने उस खीर को खाकर परम तृप्ति का अनुभव किया। चक्रवर्ती का आदेश था– राज्य के प्रत्येक घर में इसे खीर-खांड का भोजन मिले। दूसरे दिन वह अन्य घरों में जाकर खीर मांगकर खाने लगा। किसी भी घर की खीर से उसे वह स्वाद और तृप्ति नहीं मिली, जो चक्रवर्ती की खीर से मिली। अन्य घरों की खीर खाते समय उसका मन चक्रवर्ती की खीर खाने के लिए ललचा उठता लेकिन वह मिले कैसे?
जिस व्यक्ति ने सदा आटे के धोवन को दूध समझकर पिया, क्या असली दूध मिल जाने पर भी उसका धोवन के प्रति आकर्षण रहेगा? यह कभी संभव नहीं है।
मानतुंग कहते हैं— प्रभो! यही समस्या मेरी हो गई है। आपको देखने के बाद अब कहीं भी ये आँखें संतोष नहीं पा रही हैं। इनके लिए अब कोई आकर्षण शेष नहीं रहा है। अन्य वस्तुओं से रुचि हटकर केवल आप में ही केंद्रित हो गई है। आप ही बताएं, जिसने क्षीर सिंधु में दुग्ध-पान कर लिया, फिर उसे क्या खारे कूप का जल अच्छा लगेगा?
*दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं,*
*नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः।*
*पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः*
*क्षारं जलं जलनिधेः रसितुं कः इच्छेत्॥*
*तीर्थंकरों में ऐसी क्या विशेषता है कि उन्हें देख लेने के बाद और किसी पर दृष्टि नहीं ठहरती...? इस प्रश्न का उत्तर* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 39* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*भाव संयम की भूमिका*
*हृदय-मंथन*
संयोगवश उस घटना के पश्चात् रात्रि के समय स्वामीजी को बड़े जोर से ज्वर का प्रकोप हुआ। शीत से शरीर थर-थर कांपने लगा। ज्वर के उस आकस्मिक आक्रमण ने शरीर के साथ-साथ उनके मन को भी झकझोर डाला। उनकी विचारधारा में गहरी हलचल मच गई। कुछ समय पूर्व उन्होंने जिस मत-पक्ष से प्रेरित होकर श्रावकों की बातों को उलटने का प्रयास किया था, वह उन्हें स्पष्ट ही एक मोह ज्ञात होने लगा। असत्य को सत्य और सत्य को असत्य सिद्ध करने का वह प्रयास स्वयं ही उनकी आत्मा को कचोटने लगा। आत्म-ग्लानि और पश्चात्ताप की अनुभूति करते हुए वे सोचने लगे— 'मैंने जिनेश्वर देव के वचनों को छिपाकर सच्चों को झूठा ठहराया, यह कैसा अनर्थ कर डाला? यदि इस समय मेरी मृत्यु हो जाए तो अवश्य ही मुझे दुर्गति में जाना पड़े। क्या ऐसी स्थिति में यह मत-पक्ष और ये गुरु मेरे लिए शरणभूत हो सकते हैं? इन विचारों ने उनके मन के किसी कोने में छिपे पड़े मताग्रह के कालुष्य को धो डाला।
*एक प्रतिज्ञा*
दुःख के समय जहां पामर प्राणी हाय-तौबा मचाता है, वहां उत्तम पुरुष आत्म-कल्याण की ओर अधिक वेग से प्रवृत्त होता है। दुःख उसके लिए अभिशाप नहीं, वरदान बन जाता है। स्वामीजी को उस ज्वर-वेदना ने मानो झकझोर कर जगा दिया। सहसा उनकी आंतरिक आंखें खुल गईं और अपना कर्तव्य-पथ सामने दिखाई देने लगा। रात्रि के नीरव एकांत में चलने वाली हृदय-मंथन की प्रक्रिया ने उनको अपार बल दिया। उन्होंने साहस और दृढ़ता के साथ प्रतिज्ञा की— 'यदि मैं इस अस्वस्थता से मुक्त हुआ, तो निष्पक्ष-भाव से खोज कर सत्य-मार्ग को अपनाऊंगा, जिन-भाषित आगमों के अनुसार अपनी चर्या बनाऊंगा और साधुओं के लिए निर्दिष्ट मार्ग के अनुरूप आचरण करने में किसी की भी परवाह नहीं करूंगा।'
स्वामीजी का ज्वर प्रतिज्ञा के पश्चात् क्रमशः शांत होता गया और रात्रि के साथ ही उसका अंत हो गया। प्रभात के समय जब कुछ व्यक्ति दर्शनार्थ आए तो स्वामीजी ने उनसे रात्रिकालीन अपने निश्चय का उल्लेख करते हुए कहा— 'मैंने जो बातें कही थीं, उनके विषय में एक बार फिर से विचार कर लेना चाहता हूं। आगमों की कसौटी पर अपने विचारों को कस लेने के पश्चात् जो भी निष्कर्ष निकलेगा, वह मैं आप सबके सामने रख दूंगा।'
श्रावक-वर्ग स्वामीजी की विराग-वृत्ति से पहले ही प्रभावित था, सत्यान्वेषण के प्रति उनकी उदार भावना और तटस्थ वृत्ति को देखकर और भी प्रभावित हुआ। उसने स्वामीजी से जो आशा लगाई थी, वह फलवती होती हुई नजर आने लगी।
*तेरापंथ के आद्य प्रणेता स्वामी भीखणजी द्वारा किये गये आगम-मंथन* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १३१* - *समय प्रबंधन और प्रेक्षाध्यान ११*
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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*Preksha Foundation*
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