15.08.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 15.08.2019
Updated: 15.08.2019

News in Hindi

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 12* 📜

*अध्याय~~1*

*॥स्थिरीकरण॥*

*4. नानासंतापसंतप्ताः तापोन्मूलनतत्पराः।*
*तमाजग्मुर्जना भूयः, सुचिरां शान्तिमिच्छवः।।*

जो विभिन्न प्रकार के शारीरिक, मानसिक और भावात्मक संतापों से संतप्त थे, उनका उन्मूलन करना चाहते थे, चिरशांति के इच्छुक थे, वे मनुष्य बड़ी संख्या में भगवान के पास आए।

*5. श्रेणिकस्यात्मजो मेघो, भव्यात्माल्परजोमलः।*
*श्रुत्वा भगवतो भाषां, विरक्तो दीक्षितः क्रमात्।।*

महाराज श्रेणिक का पुत्र 'मेघ' भगवान के पास आया। उसके कर्म और आस्रव स्वल्प थे। वह भव्य (मोक्षगामी) था। उसने भगवान की वाणी सुनी, विरक्त हुआ और अपने माता-पिता की स्वीकृति पाकर दीक्षित हो गया।

*6. कठोरो भूतलस्पर्शः, स्थान निर्ग्रन्थसंकुलम्।*
*मध्येमार्गं शयानस्य, विक्षेपं निन्यतुर्मनः।।*

पहली रात की घटना है। तीन बातों में उसके मन को चंचल बना दिया। पहली बात— भूमि का स्पर्श कठोर था। दूसरी बात— उस स्थान में बहुत बड़ी संख्या में निर्ग्रंथ थे। तीसरी बात— वह मार्ग के बीच में सो रहा था। इन (कठोर भूमि-स्पर्श व निर्ग्रंथ संकुल स्थान) के कारण उसका मन विक्षेपयुक्त हो गया।

*7. त्रियामा शतयामाऽभूत, नानासंकल्पशालिनः।*
*निःस्पृहत्वं मुनीनां तं, प्रतिक्षणमपीडयत्।।*

उसके मन में भांति-भांति के संकल्प उत्पन्न होने लगे। उसके लिए वह त्रियामा– तीन पहर की रात शतयामा–सौ प्रहर जितनी हो गई। विशेषतः साधुओं का निःस्पृह भाव उसे प्रतिक्षण अखरने लगा।

*सूर्योदय होते ही घर जाने की उत्कंठा से महावीर के पास मेघ कुमार का आगमन और मौन पर्युपासना... महावीर द्वारा मेघकुमार को पूर्वजन्म के कष्टों की स्मृति दिलाना... आदि...* आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 103* 📖

*अभय: प्रकम्पन और परिणमन*

गतांक से आगे...

सूक्ष्मजगत् का सिद्धांत प्रकंपनों का सिद्धांत है। वहां प्रकंपन की भाषा चलती है। जिस व्यक्ति में प्रगाढ़ श्रद्धा है, अटूट आत्मविश्वास है, उस व्यक्ति में शक्तिशाली प्रकंपन पैदा होते हैं। विश्वास के शक्तिशाली प्रकंपन परिणमन को बदल देते हैं। हम इन दोनों सिद्धांतों पर ध्यान दें। प्रकंपन का सिद्धांत और परिणमन का सिद्धांत— दोनों जुड़े हुए हैं। अमुक प्रकार का प्रकंपन है तो अमुक प्रकार का परिणमन होगा। अमुक प्रकार का परिणमन है तो अमुक प्रकार का प्रकंपन होगा। शक्तिशाली प्रकंपन से परिणति बदल जाती है, ऐसा परिवर्तन घटित होता है, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। एक भाई ने बताया— मैं गंभीर रूप से बीमार हो गया। डॉक्टर को दिखाया, परीक्षण कराया। डॉक्टर ने कहा— यह बीमारी असाध्य है। कोई भी चिकित्सा इसमें कारगर नहीं हो सकती। मैंने दवा को बंद कर दिया। *'अरहंते सरणं पवज्जामि'*— इस पद का जाप शुरू कर दिया। दवा और डॉक्टर की शरण छोड़ दी, अर्हत् की शरण स्वीकार कर ली। कुछ दिन बीते। स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। असाध्य रोग से मुक्ति मिल गई। मैंने पुनः उसी डॉक्टर को बुलाया, चेक-अप कराया। डॉक्टर के नयन आश्चर्य से विस्फारित हो उठे। उसने कहा— यह कैसे हुआ? मेडिकल साइंस के अनुसार ऐसा हो नहीं सकता। मैंने कहा— यह अर्हत् की शरण का परिणाम है। आस्थापूर्वक किए गए जप के प्रकंपनों ने अनिष्ट परिणाम को इष्ट परिणमन में बदल दिया।

इस संदर्भ में मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) हरियाणा की एक घटना का और उल्लेख करना चाहता हूं। एक व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त हो गया। सारी पसलियां, फेफड़ा जर्जरित हो गया। डॉक्टर ने कहा— यह छोटा कस्बा है, यहां इलाज नहीं होगा। इसे हिसार ले जाओ। हिसार के डॉक्टर ने भी उस केस को लेने में असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा— यह बहुत खतरनाक एक्सीडेंट है। दिल्ली के किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज हो सकता है। वह व्यक्ति गहरी मूर्च्छा में था। दिल्ली के मुख्यमंत्री से उसका अच्छा संपर्क था। उसे दिल्ली लाया गया, तत्काल हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। इलाज शुरू हो गया। डॉक्टर ने दुर्घटनाग्रस्त अंगों का संवेदनशील कैमरे में चित्र खींचना शुरू किया। पसलियों के चित्र के बीच में आश्चर्यजनक रूप से एक संत का फोटो आ गया। डॉक्टर विस्मय से भर गया— हार्ट में यह चित्र कैसे आ गया? कौन है यह धवलवेशधारी? बीमार गहरी मूर्च्छा में था, डॉक्टर के प्रश्न का उत्तर कौन देता? इलाज से स्वास्थ्य में सुधार आया, मूर्च्छा टूटी। स्वस्थता उपलब्ध हुई। डॉक्टर ने वह चित्र दिखाते हुए कहा— यह कौन है? इसका फोटो हार्ट के भीतर कैसे आया? उस व्यक्ति ने कहा— यह मेरे इष्ट का फोटो है। जिस क्षण दुर्घटना हुई, उसी क्षण मैंने अपने इष्ट का जप और ध्यान शुरू कर दिया। वह जप मूर्च्छा में भी अनवरत चलता रहा और मैं अपने इष्ट का साक्षात् दर्शन करता रहा। इष्ट का जो रूप में देख रहा था, वही छवि इस चित्र में उभरी है।

*परिणमन के सिद्धांत को विस्तार से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 115* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*5. समझाने की उत्तम पद्धति*

*वस्त्र रखने में दोष नहीं*
स्वामीजी ढूंढाड़ में विहार कर रहे थे। एक गांव में दिगंबर श्रावक चर्चा करने के लिए आए। वे स्वामीजी से कहने लगे— 'मुनि को तार मात्र भी वस्त्र रखना नहीं कल्पता। जो परीषह सहने में असमर्थ होते हैं, वे ही वस्त्र रखते हैं।'

स्वामीजी— 'परीषह कितने हैं?'

श्रावक— 'बाईस।'

स्वामीजी— 'पहला परीषह कौन-सा है?'

श्रावक— 'क्षुधा।'

स्वामीजी— 'दिगंबर मुनि आहार करते हैं कि नहीं?'

श्रावक— 'एक समय करते हैं।'

स्वामीजी— 'तुम्हारे हिसाब से वह प्रथम परीषह सहने में असमर्थ हैं।'

श्रावक— 'आहार तो भूख लगने पर करते हैं।'

स्वामीजी ने उन लोगों से फिर पूछा— 'दिगंबर मुनि पानी पीते हैं कि नहीं?'

श्रावक— 'तृषा शांत करने के लिए पीते हैं।'

स्वामीजी— 'हम भी शीत आदि शांत करने के लिए वस्त्र ओढ़ते हैं। अब तुम ही बतलाओ की भूख मिटाने के लिए अन्न और प्यास मिटाने के लिए पानी का प्रयोग करने पर यदि तुम्हारे मुनि परीषह सहने में अक्षम नहीं माने जाते, तब शीतादि मिटाने के लिए वस्त्र का प्रयोग करने पर हमें कैसे अक्षम कहते हो?'

श्रावक जन तुलनात्मक समाधान पाकर निरुत्तर हो गए।

*चौका और मस्तक*

स्वामीजी माधोपुर पधारे, तब अनेक भाइयों ने तत्त्व को समझा और गुरु-धारणा की। स्वामीजी उन घरों में गोचरी जाते, तब भाई तो आग्रहपूर्वक ले जाते, पर उनकी स्त्रियां चौके में आने से रोक देतीं।

भाइयों ने अनेक बार स्वामीजी से कहा— 'महाराज! स्त्रियों को हमने कई प्रकार से समझाया, किंतु चौके में आने देने की बात पर वे सहमत नहीं होतीं। आप कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे यह बात उनके मस्तिष्क में उतरे।'

स्वामीजी ने कहा— 'शरीर में सबसे ऊपर कौन-सा अंग है?'

भाई— 'मस्तक।'

स्वामीजी— 'और सबसे नीचे?'

भाई— 'पैर।'

स्वामीजी ने कहा— 'तुम लोग अपने घर की स्त्रियों को समझाओ कि जब हम अपने सबसे उत्तम अंग मस्तक को उनके सबसे नीचे अंग पैरों में रखते हैं, तब चौका कौन-सी गिनती में आता है? क्या यह हमारे मस्तक से भी अधिक पवित्र है?'

भाइयों ने जब उक्त प्रकार से स्त्रियों को समझाया, तो वह बात तत्काल उनके मस्तिष्क में बैठ गई। फिर कभी उन्होंने संतो को चौके में जाने से नहीं रोका।

*स्वामीजी के समझाने का तरीका उजागर करने वाले कुछ घटना प्रसंगों से...* रूबरू होंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 सूरत - श्री इंद्रमल राठौड़ का 30 वां मासखमण परिसम्पन्न
👉 अहमदाबाद ~ नशा मुक्ति साईकल रैली
👉 सुजानगढ़ - ते.म.म. द्वारा दिव्यांग बच्चों के साथ रक्षाबंधन
👉 उधना, सूरत - दिव्यांग बच्चो के मध्य रक्षाबंधन कार्यक्रम
👉 कांदिवली, मुम्बई- महिला मंडल शपथ ग्रहण समारोह नवउन्मेष व हैप्पी एंड हॉर्मोनियस फैमिली सेमिनार का आयोजन

प्रस्तुति - *🌻 संघ संवाद 🌻*

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की कुछ विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

⌚ _दिनांक_: *_15 अगस्त 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#साधना #स्वास्थ्य और #आहार*: #श्रंखला ३*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २२५* - *चित्त शुद्धि और अनुप्रेक्षा १२*

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