Update
▶ *अभातेयुप के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव सामायिक का आयोजन.........*
✴ इस्लामपुर
✳ सिलीगुड़ी
✡ मानसा
✴ गुलाबबाग
✳ जीन्द
✡ कोकराझार
✴ राऊरकेला
✳ मदुरै
👉 राजगढ़ ~ "नशा मुक्ति अभियान" संगोष्ठी का आयोजन
👉 उदयपुर - महिला मण्डल की डायरेक्टरी का विमोचन
👉 अहमदाबाद - नशामुक्ति जनजागरणा हेतु प्रचार प्रसार
👉 गगांवती ~ हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फेमिली कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
▶ *अभातेयुप के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव सामायिक का आयोजन.........*
✴ इचलकरंजी
✳ बीकानेर
✡ जालना
✴ सोलापुर
✳ फरीदाबाद
✡ भुज
✴ रायपुर
✳ नोहर
✡ हिम्मतनगर
✴ कोटा
✳ औरंगाबाद
👉 अहमदाबाद ~ नशामुक्ति कार्यशाला का आयोजन
👉 विशाखापट्टनम ~ "ज्ञानशाला वार्षिकोत्सव" कार्यक्रम का आयोजन
👉 विशाखापट्टनम ~ सामूहिक आंयबिल तप अनुष्ठान का आयोजन
👉 नोहर - पर्युषण महापर्व आराधना
👉 नोहर - स्वाध्याय दिवस का आयोजन
👉 रायपुर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 26* 📜
*अध्याय~~2*
*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*17. विविक्तशय्यासनयन्त्रितानां,*
*अल्पाशनानां दमितेन्द्रियाणाम्।*
*रागो न वा धर्षयते हि चित्तं,*
*पराजितो व्याधिरिवौषधेन।।*
जो एकांत बस्ती और एकांत आसन से नियंत्रित हैं, जो कम खाते हैं और जो जितेन्द्रिय हैं, उनके मन को राग-शत्रु वैसे ही आक्रांत नहीं कर सकता, जैसे औषध से पराजित रोग देह को।
*18. कामानुगृद्धिप्रभवं हि दुःखं,*
*सर्वस्य लोकस्य सदैवकस्य।*
*यत् कायिकं मानसिकञ्च किञ्चित्,*
*तस्यान्तमाप्नोति च वीतरागः।।*
और जीवों के क्या, देवताओं के भी जो कुछ कायिक और मानसिक दुःख है, वह काम-भोगों की सतत अभिलाषा से उत्पन्न होता है। वीतराग उस दुःख का अंत पा जाता है।
*19. मनोज्ञेष्वमनोज्ञेषु, स्रोतसां विषयेषु यः।*
*न रज्यति न च द्वेष्टि, समाधिं सोऽधिगच्छति।।*
मनोज्ञ और अमनोज्ञ इंद्रिय विषयों में जो राग और द्वेष नहीं करता, वह समाधि— मानसिक स्वास्थ्य को प्राप्त होता है।
*20. अमनोज्ञा द्वेषबीजं, रागबीजं मनोरमाः।*
*द्वयोरपि समो यः स्याद्, वीतरागः उच्यते।।*
अमनोज्ञ विषय द्वेष के बीज हैं और मनोज्ञ विषय राग के बीज हैं। जो दोनों में सम रहता है, राग-द्वेष नहीं करता, वह वीतराग कहलाता है।
*राग और द्वेष के स्रोत... निरोध... इत्यादि के संबंध में मेघ की जिज्ञासा और भगवान् का समाधान…?* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 116* 📖
*रक्षाकवच*
गतांक से आगे...
यह विचित्र स्थिति है। स्तवना की है, विजय भी दिलाई है, किंतु साथ में मारकाट भी जुड़ी हुई है। हाथ में भाला है, प्रहारक-संहारक शस्त्र हैं। क्या इस स्थिति में की गई स्तुति को स्तुति मानें? यह एक बड़ा विचित्र प्रश्न है। यह बात तो समझ में आती है कि प्रभो! आपकी स्तुति करने वाला व्यक्ति युद्ध को शांत करने वाला होता है। युद्ध बंद हो जाए, मारकाट न हो, हिंसा-हत्या न हो, इस भावना से स्तुति की जाए तो स्तुति का अर्थ समझ में आता है। किंतु स्तुति का यह परिणाम एक प्रश्न पैदा कर रहा है। शत्रु-पक्ष को मारकर, हराकर, विजय दिलाने वाली स्तुति कितनी सार्थक है? क्या स्तुति का यह प्रभाव होना चाहिए? इस प्रश्न पर विचार करें तो यह संगत प्रतीत नहीं होता। यदि ऐसा होता, एक आक्रामक है और दूसरा रक्षक है, रक्षा करने वाला है तो प्रस्तुत स्तुति का अर्थ समझ में आता है। इस बात को कैसे संगत माना जाए? भयंकर युद्ध हो रहा है, हाथ में संहारक शस्त्रास्त्र हैं और यह चिंतन कर रहा है— मेरे हाथ में अमोघ शस्त्र हैं, मैं ऋषभ का स्तवन करूंगा, सबको मारूंगा और युद्ध में विजयी बन जाऊंगा। मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) मानता हूं— इस अर्थ में यह श्लोक बिल्कुल अनर्थकारी बन जाएगा। व्यक्ति आक्रामक नहीं हैं, अपनी रक्षा करने वाला है। किसी ने उस पर आक्रमण कर दिया, एक विघ्न उपस्थित हो गया। उस विघ्न-निवारण के लिए, युद्ध को बचाने के लिए स्तोत्र का पाठ करता है, विजयी बनता है तो स्तुति का हृदय समझ में आता है। वह आक्रांता नहीं है, हिंसा का संकल्प नहीं है, हिंसा करने की भावना नहीं है, इसलिए वह ऋषभ की स्तुति करता है और यह प्रार्थना करता है— प्रभो! मैं अपनी रक्षा कर सकूं, युद्ध को बंद कर सकूं, विघ्न का निवारण कर सकूं। ऐसी स्थिति आक्रमण के लिए नहीं, विघ्न-निवारण के लिए होती है। जीवन में विघ्न आए, संकट का क्षण आए, व्यक्ति संकटमोचन के लिए ऋषभ को हृदय में स्थापित कर स्तुति करे, यह स्वाभाविक है और उसे निर्दोष स्तुति कहा जा सकता है।
मानतुंग सूरि के प्रस्तुत श्लोक ने एक गंभीर प्रश्न को जन्म दिया है। यह स्पष्ट तथ्य है कि जैन तीर्थंकर शस्त्रों से परे रहे हैं, अशस्त्र रहे हैं। उनके हाथ में कभी शस्त्र नहीं रहा। बहुत सारे देव ऐसे हैं, जिनके हाथ में शस्त्र मिलेगा। जैन तीर्थंकर अहिंसा के प्रतिरूप हैं। एक और उन्होंने शस्त्रों का सर्वथा निषेध किया था, दूसरी और शस्त्र का प्रहार और उसमें तीर्थंकर की स्तुति। यह बात बहुत अटपटी लग रही है। इस अटपटेपन को मिटाने के लिए संदर्भ को बदलना होगा। अहिंसा में आस्था रखने वाला व्यक्ति इस श्लोक को इस संदर्भ में मान्य नहीं कर पाएगा। उसे यही संदर्भ मान्य हो सकता है— कोई विघ्न आया, आत्मरक्षा का प्रश्न उपस्थित हो गया। इस स्थिति में आत्मरक्षा के लिए व्यक्ति वीतराग की शरण लेता है, अनंत शक्ति की शरण लेता है तो उसे अवांछनीय नहीं कहा जा सकता। उसका एक औचित्य भी सिद्ध होता है। मानतुंग के प्रस्तुत काव्य का कथ्य यही होना चाहिए। ऋषभ स्तुति के द्वारा वह उस युद्ध में जय प्राप्त करता है, जिसका जेय पक्ष दुर्जय है। कमजोर तो आक्रमण करेगा नहीं। दुर्जय शक्ति ने ही आक्रमण किया है। उसको वह जीत लेता है और उस जीत में आपकी स्तुति का बड़ा सहारा मिल जाता है।
*भय के एक हेतु समुद्र यात्रा...* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 128* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*8. आचार-निष्ठ व्यक्तित्व*
*भीखणजी में सम्भव है*
स्वामीजी की आचारनिष्ठता का लोहा उनके कट्टर विरोधी भी माना करते थे। एक बार अमरसिंहजी के टोले के वृद्ध मुनि बोहतजी से किसी व्यक्ति ने पूछा— 'आप शीतलजी के टोले में साधुता मानते हैं या नहीं?'
बोहतजी बोले— 'उनमें कहां से मानूंगा? मैं तो मेरे में भी नहीं मानता।'
उस व्यक्ति ने फिर पूछा— 'भीखणजी में मानते हैं या नहीं?'
बोहतजी ने कहा— 'वे तो साध्वाचार के प्रति बड़े सावधान हैं, अतः उनमें संभावना की जा सकती है।'
*श्रेष्ठ साधु हैं*
आचार्य जयमलजी पुर में व्याख्यान दे रहे थे। भरी परिषद् में एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा— 'सभा में मिश्र भाषा बोलने वाले को महामोहनीय कर्म का बंध होता है, अतः मेरे प्रश्न को गोलमाल भाषा में टालने का प्रयास न कर स्पष्ट भाषा में बतलाइए कि आप भीखणजी को साधु मानते हैं या असाधु?'
आचार्य जयमलजी एक क्षण के लिए असमंजस में अवश्य पड़े, परंतु दूसरे ही क्षण संभलकर बोले— 'हम भीखणजी को श्रेष्ठ साधु मानते हैं।'
वह व्यक्ति— 'तो फिर इधर से अनेक साधु उन्हें 'निह्नव'–धर्म-द्रोही क्यों कहते हैं?'
जयमलजी— 'वे हमें वेशधारी कहते हैं, तब हम भी उन्हें निह्नव कह देते हैं।'
*यही अन्तर है*
जैतारण में धीरोजी पोकरणा को आचार्य टोडरमलजी ने कहा— 'भीखणजी छोटे-छोटे दोषों में भी साधुत्व का भंग मानते हैं, यह उचित नहीं। यदि इस प्रकार साधुत्व का भंग होता तो भगवान् पार्श्वनाथ की अनेक साध्वियां अंग-विभूषा आदि कार्यों में प्रवृत्त होकर भी मरने पर इंद्राणियां तथा एक भवावतारी कैसे होतीं?'
धीरोजी ने कहा— 'यदि एक भवावतारी होने का यही मार्ग है, तो फिर अपनी साध्वियों को भी विभूषा आदि की आज्ञा दी जानी चाहिए।'
आचार्यजी ने रोष व्यक्त करते हुए कहा— 'ऐसी मूर्खता की बात क्यों करते हो?'
धीरोजी बोले— 'और कैसी बात की जाए? आप तो दोष-सेवन को भी मानो एक भवावतारी होने का कारण मान रहे हैं। भीखणजी में और आप में यही बड़ा अंतर है कि प्रत्येक कार्य में उनका ध्यान आचार-पोषकता की ओर होता है, जबकि आप लोगों का दोष-पोषकता की ओर।'
*आचार्य भिक्षु अध्यात्म-प्रेरणा के एक महान् स्रोत थे...* जानेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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💢 *निमंत्रण* 💢
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*काली घाटी की*
*दुर्गम*
*पहाड़ियों में*
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*आइये!*
*अपने आराध्य को*
*श्रद्धा-भक्ति अर्पण*
*करने चलें।*
🌀
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*अपनी यात्रा*
*सुनिश्चित करें।*
🚸
💢 *217 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
❇ *दिनांक* ❇
*11 सितम्बर 2019*
*सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
🕎 _पर्युषण महापर्व_ ~ *_वाणी संयम (मौन) दिवस_*
⌚ _दिनांक_: *_30 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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News in Hindi
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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*
⏰
*: दिनांक:*
30 अगस्त 2019
💠
*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#चिंतन का #परिणाम *: #श्रंखला २*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४०* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान ९*
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