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उत्तम क्षमा धर्म सहिष्णुता का विकास कराने आया है
आज दिनांक 2 सितंबर को श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, तिजारा की पावन धरा पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज ने कहा कि जिस प्रकार पर्वतों में सुमेरु पर्वत, नदियों में गंगा नदी, धर्मों में अहिंसा धर्म, मंत्रों में णमोकार मंत्र, देवो में वितराग देव का महत्व है, वैसे ही सभी पर्वों में पर्युषण पर्वराज का महत्व है।
ये पर्यूषण पर्वराज हमें वर्ष में, तीन बार जगाने आते हैं। चूंकि पर्व उस पहरेदार के समान होते हैं, जो रात भर जाकर सभी को सावधान करते हैं, भादो, माघ,और चेत्र,के महीनों में अंतिम 10 दिन यह पर्व हमें अपने स्वभाव का भान कराने आते हैं । पर्यूषण पर्व हमारे अंदर शांति का झरना बहाने आते हैं।
पर्यूषण पर्व हमारी डिस्चार्ज बैटरी को चार्ज कराने आते हैं। हमारे नीरस जीवन को सरस बनाने, सूने आंगन में रोशनी बिखेरने आते हैं। भारतीय संस्कृति में पर्वो उत्सवों एवम त्योहारो का बहुत महत्व है। पर्व हमारे अंदर नई चेतना जागृत करते हैं ।अनेक प्रकार के पर्व होते हैं ।कुछ पूर्व घटना विशेष से जुड़े होते हैं, कुछ पर्व शास्वत पर्व होते है,कुछ राष्ट्रीय पर्व होते है।
पर्यूषण पर्व मैत्री का पर्व है पर्यूषण पर्व कषाय शमन का पर्व है। आत्मिक स्वास्थ्य का पर्व है आत्मिक विशुद्ध का पर्व है! यह पर्व हमें संदेश दे रहा है, कि उठो, जागो, अपने स्वभाव को जानो उत्तम क्षमा का प्रथम दिन सभी को पाठ पढ़ा रहा है कि क्रोध करना तुम्हारा स्वभाव नहीं, तुम्हारा स्वभाव तो क्षमा करना है। जब भी कोई प्रतिकूल प्रसंग मिले, उस समय समता भाव रखना, सामर्थ्य होने के बाद भी प्रतिकार नहीं करना उत्तम क्षमा धर्म है।
उत्तम क्षमा धर्म का पालन मुनिराज किया करते हैं क्रोध के निमित्त मिलने के बाद भी किसी के प्रति गुस्सा नहीं आना यह क्षमा धर्म है। यह धर्म सहिष्णुता का विकास कराने आया है ।। आप तो थोड़ा सा प्रतिकूल निमित्त मिलते ही लाल पीले हो जाते हो। आंखें लाल हो जाती है,जबकि हर व्यक्ति यह जानता है कि क्रोध सभी अनर्थो की जड़ है। क्रोध आग है, वह हमें भी जलाती है दूसरों को भी जलाती है।पलभर का क्रोध किस तरह व्यक्ति को अशांत कर देता है। जीवन की हरी-भरी बगिया को किस प्रकार तहस-नहस कर देता है जीवन की खुशियों में किस तरह आग लगा देता है यह सभी को ज्ञात है फिर भी गुस्सा करता है।
आइये खोजे उन कारणों को आखिर क्रोध क्यों आता है यू तो क्रोध की उत्पत्ति के कई कारण है पर कुछ कारण निम्न प्रकार है। मनचाहा नहीं होने पर, अपेक्षा की उपेक्षा होने पर, आग्रह बुद्धि से, उत्तेजित खानपान से,पित्त प्रकृति की बहुलता होने से,नेगेटिव सोच से, रूचि भेद से, असहिष्णुता से, गलतफहमी से, स्वार्थ से चिंतन भेद से क्रोध आ जाता है ।जिन कारणों से क्रोध उत्पन्न होता है उन कारणों से दूर रहकर व्यक्ति को अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। सामने वालों से बहुत अधिक अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए सकारात्मक सोच तथा सहिष्णुता का विकास करना चाहिए। सामने वाला अगर गर्म हो तो नरम रहना चाहिए उस समय मौन धारण कर लेना चाहिए। उस स्थान से हट जाना चाहिए चिंतन शक्ति को परिवर्तित कर लेना चाहिए। जिस समय पत्नी गर्म हो, उस समय पतिदेव को नरम रहना चाहिए, जिस समय पति गर्म हो, उस समय पत्नी को नरम रहना चाहिए!
क्रोध और बैर की चर्चा करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि क्रोध उतना हानिकारक नही है,जितना बैर है, अतः जीवन में कभी भी बैरभाव की ग्रंथि नहीं बांधना चाहिए। क्योंकि क्रोध तो आता है, चला जाता है, परंतु बैरभाव कई भवो तक दुख पहुंचाता है। क्रोध,बैरभाव को जानकर व्यक्ति को क्षमा का आश्रय लेकर अपने जीवन को वीकारी भावो से दूर करने का प्रयास करना चाहिए, तभी यह पर्यूषण पर्व हमारे जीवन में शांति का झरना बहाने में माध्यम बनेंगे।
दोपहर में सरस्वती पूजन, तत्वार्थ सूत्र का वाचन, प्रथम अध्याय की व्याख्या हुई।