उत्तम मार्दव धर्म नम्रता का पाठ पढ़ाने आया है...
दिनांक 4 सितंबर को श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, तिजारा की पावन धरा पर पर्यूषण पर्वराज की पावन बेला में पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि दशलक्षण धर्म हमारे जीवन में सुख शांति का अनुभव कराते हैं यह पर्यूषण पर्व आंतरिक संपदा का ज्ञान कराने आए हैं। पर्यूषण पर्व न ही कषाय वर्धक पर्व है,न ही इन्द्रिय रमन के पर्व है, यह पर्व तो कषायों को घटाने के पर्व है, यह पर्व तो विषय -भोगों से ऊपर उठने के पर्व है।पर व पर्व शब्द के शब्दो की व्याख्या करते हुए कहा है कि जिस अवसर में व्यक्ति" प"यानी पापो का, "र" यानी रग रग से "व"यानी वमन करता है वह पर्व कहलाते हैं।पर्व यानी मंगल अवसर, ये आत्मविशुद्धि वह क्षण होते है जो व्यक्ति के अंदर की गंदगी को दूर करने में माध्यम बनते हैं।
इस पर्व का दूसरा नाम " *दशलक्षण धर्म "* है धर्म तो शास्वत होता है, धर्म कभी आता जाता नहीं है यह दशलक्षणधर्म तो पर्युषण पर्व के रूप में आकर हमे जगाने का कार्य करते हैं।
प्रथम दिन 'उत्तम क्षमा धर्म' के द्वारा आपने यह समझा कि क्रोध करना हमारा स्वभाव नहीं है। द्वितीय दिन *उत्तम मार्दव धर्म* हमारे अहंकार को मरोड़ने का संदेश देने आया है। यह मार्दव धर्म अहंकार,मान, कषाय के अभाव मैं प्रकट होता है जहाँ मान दुर्गुणों की खान है, वही नर्मता, सद्गुणों की खान है, आज व्यक्ति अहंकार के कारण किसी को कुछ समझता ही नहीं है जो कुछ हूं,सो मैं हूं, ऐसी धारणा मानी व्यक्ति की रहती है। मानी व्यक्ति थोड़ा सा ज्ञान होते ही अपने आप को बहुत बड़ा ज्ञानी समझने लगता है जरा सा सुंदर रूप आते ही आत्मा के स्वरूप को भूल जाता है जबकि संसार में सबसे सुंदर रूप बालक तीर्थंकर का होता है थोड़ी सी शक्ति आते ही सोचता है कि वह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति है मेरे जैसा शक्तिशालीअन्य कोई नही है। थोड़ी सी प्रतिष्ठा मिलते ही फूल जाता है। 2-4 उपवास करने पर सोचता है कि मैं बहुत बड़ा तपस्वी हूं।
आचार्य श्री समनत भद्र स्वामी ने कहा है कि व्यक्ति ज्ञान,पूजा कुल, जाति, बलवृद्धि,तप और शरीर को आधार बनाकर अहंकार करता है। जबकि उत्तम मार्दव धर्म कहता है कि व्यक्ति अगर यह सोच ले कि मुझे कुछ नहीं आताहै, तो सुख -शांति का अनुभव होगा। नथिंग का सिद्धांत अपनाईये। एवरीथिंग का सिद्धांत व्यक्ति को अहंकारी बना देता है ।
आज घरों में हर व्यक्ति इतना अहंकारी हो गया है कि किसी की बात मानने को तैयार नहीं है ।उसने मुझसे ऐसा कह दिया उसकी इतनी हिम्मत हो गई मुझसे कहने की, देख लूंगा उसे सब पता लग जाएगा इस तरह का अहंकार करता है। वह किसी को सम्मान नहीं देता। अहंकारी व्यक्ति को किसी की अच्छाईया नजर नहीं आती वह हमेशा बुराई ही देखता है अहंकार का यह कांटा ही व्यक्ति को जीवन का आनंद नहीं लेने देता। चलते समय अगर पैर में कांटा लग जाता है तो आप चल नहीं पाते, कांटा निकालने के बाद ही आप अच्छी तरह से चल पाते हैं जीवन में भी जब तक अहंकार का कांटा रहेगा।तब तक जीवन में मजा नहीं आएगा।
झुकने कि कला सिखाने यह मार्दव धर्म आया है! झुकना सीखो कुएं में जाकर बाल्टी भी जब तक झुकती नहीं है। तब तक वह खाली रहती है, जब झुकती है तभी भरकर आती है।
हर व्यक्ति अगर आज नम्र हो जाए, झुकने की कला सीख ले तो घर- घर की अशांति दूर हो जाएगी.आज का दिन "ईगो को गो" कराने आया है, अहम यानी अहंकार को छोड़ने के बाद ही अहम यानी आत्मवतत्व की प्राप्ति होगी।
दिनांक 4 सितंबर को श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, तिजारा की पावन धरा पर पर्यूषण पर्वराज की पावन बेला में पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि दशलक्षण धर्म हमारे जीवन में सुख शांति का अनुभव कराते हैं यह पर्यूषण पर्व आंतरिक संपदा का ज्ञान कराने आए हैं। पर्यूषण पर्व न ही कषाय वर्धक पर्व है,न ही इन्द्रिय रमन के पर्व है, यह पर्व तो कषायों को घटाने के पर्व है, यह पर्व तो विषय -भोगों से ऊपर उठने के पर्व है।पर व पर्व शब्द के शब्दो की व्याख्या करते हुए कहा है कि जिस अवसर में व्यक्ति" प"यानी पापो का, "र" यानी रग रग से "व"यानी वमन करता है वह पर्व कहलाते हैं।पर्व यानी मंगल अवसर, ये आत्मविशुद्धि वह क्षण होते है जो व्यक्ति के अंदर की गंदगी को दूर करने में माध्यम बनते हैं।
इस पर्व का दूसरा नाम " *दशलक्षण धर्म "* है धर्म तो शास्वत होता है, धर्म कभी आता जाता नहीं है यह दशलक्षणधर्म तो पर्युषण पर्व के रूप में आकर हमे जगाने का कार्य करते हैं।
प्रथम दिन 'उत्तम क्षमा धर्म' के द्वारा आपने यह समझा कि क्रोध करना हमारा स्वभाव नहीं है। द्वितीय दिन *उत्तम मार्दव धर्म* हमारे अहंकार को मरोड़ने का संदेश देने आया है। यह मार्दव धर्म अहंकार,मान, कषाय के अभाव मैं प्रकट होता है जहाँ मान दुर्गुणों की खान है, वही नर्मता, सद्गुणों की खान है, आज व्यक्ति अहंकार के कारण किसी को कुछ समझता ही नहीं है जो कुछ हूं,सो मैं हूं, ऐसी धारणा मानी व्यक्ति की रहती है। मानी व्यक्ति थोड़ा सा ज्ञान होते ही अपने आप को बहुत बड़ा ज्ञानी समझने लगता है जरा सा सुंदर रूप आते ही आत्मा के स्वरूप को भूल जाता है जबकि संसार में सबसे सुंदर रूप बालक तीर्थंकर का होता है थोड़ी सी शक्ति आते ही सोचता है कि वह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति है मेरे जैसा शक्तिशालीअन्य कोई नही है। थोड़ी सी प्रतिष्ठा मिलते ही फूल जाता है। 2-4 उपवास करने पर सोचता है कि मैं बहुत बड़ा तपस्वी हूं।
आचार्य श्री समनत भद्र स्वामी ने कहा है कि व्यक्ति ज्ञान,पूजा कुल, जाति, बलवृद्धि,तप और शरीर को आधार बनाकर अहंकार करता है। जबकि उत्तम मार्दव धर्म कहता है कि व्यक्ति अगर यह सोच ले कि मुझे कुछ नहीं आताहै, तो सुख -शांति का अनुभव होगा। नथिंग का सिद्धांत अपनाईये। एवरीथिंग का सिद्धांत व्यक्ति को अहंकारी बना देता है ।
आज घरों में हर व्यक्ति इतना अहंकारी हो गया है कि किसी की बात मानने को तैयार नहीं है ।उसने मुझसे ऐसा कह दिया उसकी इतनी हिम्मत हो गई मुझसे कहने की, देख लूंगा उसे सब पता लग जाएगा इस तरह का अहंकार करता है। वह किसी को सम्मान नहीं देता। अहंकारी व्यक्ति को किसी की अच्छाईया नजर नहीं आती वह हमेशा बुराई ही देखता है अहंकार का यह कांटा ही व्यक्ति को जीवन का आनंद नहीं लेने देता। चलते समय अगर पैर में कांटा लग जाता है तो आप चल नहीं पाते, कांटा निकालने के बाद ही आप अच्छी तरह से चल पाते हैं जीवन में भी जब तक अहंकार का कांटा रहेगा।तब तक जीवन में मजा नहीं आएगा।
झुकने कि कला सिखाने यह मार्दव धर्म आया है! झुकना सीखो कुएं में जाकर बाल्टी भी जब तक झुकती नहीं है। तब तक वह खाली रहती है, जब झुकती है तभी भरकर आती है।
हर व्यक्ति अगर आज नम्र हो जाए, झुकने की कला सीख ले तो घर- घर की अशांति दूर हो जाएगी.आज का दिन "ईगो को गो" कराने आया है, अहम यानी अहंकार को छोड़ने के बाद ही अहम यानी आत्मवतत्व की प्राप्ति होगी।
अहंकार विमोचन हेतु 'अनित्य भावना' का चिंतन करो,म्रत्यु का स्मरण करो,अरे! जिस-वैभव, धन, महल,शरीर का अहंकार करते हो, यह सब कुछ क्षणभंगुर है, यह कभी भी हमसे छीन सकता है ऐसा चिंतन कर जीवन में अक्कड़पने का त्याग कर देता है। मान को विश की संज्ञा दी है। जिव्हा मुलायम होती है इसलिए अंत तक रहती है, दांत कठोर रहते हैं इसलिए पहले चले जाते हैं।