12.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 12.09.2019
Updated: 12.09.2019

Updated on 12.09.2019 20:59

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 37* 📜

*अध्याय~~3*

*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*

*॥आमुख॥*

सुख और दुःख जीवन के सहचारी हैं। सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय। दुःख नहीं चाहने पर भी दुःख होता है। कुछ उसमें खिन्न होते हैं और कुछ नहीं। ऐसा क्यों? दुःख कर्म कृत है। वह कर्म का भोग है। जो जानता है, वह न दूसरों इसका आरोपण करता है और न ही खिन्न होता है।

कर्म के बीज हैं— राग और द्वेष। ये दोनों मोह कर्म की शाखाएं हैं। मोह जीत लेने पर दोनों विजित हो जाते हैं। मोह के द्वारा होने वाली आत्म-विमूढ़ता का इस अध्याय में स्पष्ट दिग्दर्शन है। मोह का उन्मूलन करने पर अन्य कर्मों की शक्ति स्वतः ही जर्जर हो जाती है। भगवान महावीर इसीलिए मेघ को उस निर्द्वन्द्व आनंद की प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे कहते हैं कि सारा संसार पौद्गलिक है, भौतिक है। सुख साबाध और क्षणिक है। आत्मा शाश्वत है। उसके लिए शाश्वत सुख ही अभीष्ट है। मोह से मूढ़ मनुष्य उस शाश्वत सुख से मुंह मोड़ बैठा है। वह अपने से अपरिचित है और अपरिचित है वास्तविक सुख से। मोहे दुःख है और मोह-मुक्ति सुख। सुख-दुःख और कुछ नहीं, मोह-आसक्ति का विलय सुख है और उसकी अवस्थिति दुःख है।

💠 *मेघः प्राह*

*1. कस्टानि सहमानोऽपि, घोरं नैको विषीदति।*
*एकस्तल्लेशतो दीनस्तत्त्ववित्! तत्त्वमत्र किम्।।*

मेघ बोला— एक व्यक्ति घोर कष्टों को सहन करता हुआ भी खिन्न नहीं होता और दूसरा व्यक्ति थोड़े से कष्ट में भी अधीर हो जाता है। हे महान् तत्त्ववेत्ता इसका क्या कारण है?

*मेघ की जिज्ञासा का भगवान् द्वारा समाधान में... कृतकर्मों का भोग अवश्यंभावी... कष्टों को आमंत्रण क्यों...? कष्ट-साध्य और अकष्ट-साध्य मार्ग की फलश्रुति... धर्म की आराधना का विवेक... तपस्या की आराधना का विवेक...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 12.09.2019 20:59

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 125* 📖

*बदलाव के नियम को जानें*

गतांक से आगे...

रणपाल के बंधन भी टूट गए। उसने देवी से कहा— हम बाहर कैसे जाएं? सशस्त्र प्रहरी खड़े हैं। देवी ने कहा— चलो, चिंता की कोई बात नहीं है। देवी के आश्रय में वे चल पड़े। वे सबको देख रहे थे, किंतु उनको कोई नहीं देख पा रहा था। अदृश्य होने की भी एक विद्या है। देवी के पास अदृश्य शक्ति थी। एक गुटिका भी ऐसी होती थी, जिसे मुंह में रख लेने पर व्यक्ति अदृश्य हो जाता। जब तक वह गुटिका मुंह में रहती, व्यक्ति अदृश्य बना रहता। जैसे ही उसे निकाल लेता, दृश्य हो जाता। यह भी कोई चमत्कार नहीं है। एक नियम है, वैज्ञानिक प्रयोग है। आसपास सूक्ष्म परमाणुओं का एक वलय बन जाता है। उन सूक्ष्म परमाणुओं को ये चर्म-चक्षु देख नहीं पाते। जब तक हमारा शरीर स्थूल है, दूसरे उसे देख सकते हैं। हम अपने शरीर को सूक्ष्म बना सकें, ऐसी प्रक्रिया हाथ लग जाए तो हमारा यह शरीर भी अदृश्य हो जाएगा। अदृश्य बना रणपाल सुरक्षित अपने किले में पहुंच गया।

आचार्य मानतुंग इसी अनुभूत सच्चाई का उद्घाटन कर रहे हैं— प्रभो! आपके नाम-स्मरण से सांकलें और बेड़ियां टूट जाती हैं, पद के बंधन टूट जाते हैं। आदमी स्वस्थ और सुरक्षित बन जाता है। आचार्य ने कुछ विघ्नों का नामोल्लेख कर उनके निवारण के सूत्र दिए हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि एक विघ्न के लिए बताया गया उपाय दूसरे विघ्न में उपयोगी नहीं हो सकता। रोग कोई जलोदर का ही नहीं होता, अनेक प्रकार की व्याधियों होती हैं। उनमें भी यह स्तोत्र प्रभावी हो सकता है। मूल प्रश्न है श्रद्धा और विश्वास का। जो व्यक्ति फेथ हीलिंग की पद्धति को जानते हैं, उनके लिए यह चमत्कार जैसा कुछ नहीं है। विश्वास से अनेक जटिल रोगों की चिकित्सा की जा सकती है।

एक व्यक्ति के कैंसर हो गया। बहुत दवाइयां ली पर ठीक नहीं हुआ। एक समझदार व्यक्ति ने परामर्श दिया— दवाइयां छोड़ो और विश्वास पैदा करो। इस बात का बार-बार अनुचिंतन करो— मैं स्वस्थ हो रहा हूं... मैं स्वस्थ हो रहा हूं...। उस व्यक्ति ने इस वाक्य को दिन में हजार बार दोहराना शुरू कर दिया। चमत्कार घटित हो गया— कैंसर की बीमारी नष्ट हो गई।

एक साध्वीजी के पेट में गांठ थी। डॉक्टर ने कहा— ऑपरेशन कराना होगा। साध्वी ने कहा— जब तक गुरुदेव का संवाद न आए, तब तक ऑपरेशन नहीं करवा सकती। हमारे (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) पास सूचना आई। पुनः संवाद पहुंचने में विलंब हो गया। निर्धारित दिन ऑपरेशन नहीं हो सका। संवाद मिलने के बाद साध्वीजी ने तेला (तीन दिन का उपवास) किया। दूसरे दिन आभास हुआ गांठ को कोई ले जा रहा है। तीसरे दिन डॉक्टर को दिखाया। सोनोग्राफी की गई। डॉक्टर ने विस्मय के साथ कहा— गांठ ही नहीं है तो ऑपरेशन किसका करेंगे?

*सामान्य आदमी के लिए चमत्कार जैसे लगने वाले... आस्था, श्रद्धा, भावना और मनोबल के कुछ और भी प्रयोगों...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 12.09.2019 20:59

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 137* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*12. स्पष्टवादी*

*उत्तर भी सात्पात्र में*

यति हीरजी स्वामीजी से अत्यंत विद्वेष रखा करते थे। वे उनके मंतव्यों तथा कथनों को तोड़-मरोड़कर जनता में इस प्रकार से अन्यथा प्रचार किया करते कि साधारण लोग उसे सुनकर भ्रांत हो जाते। स्वामीजी उन्हें कभी ऐसा अवसर नहीं देते कि जिससे वे अपने दुष्प्रचार में कुछ नई वृद्धि कर सकें।

एक दिन यति हीरजी ने स्वामीजी से कई प्रश्न पूछे और कहने लगे कि इनके उत्तर पाने अति आवश्यक हैं।

स्वामीजी उनकी दुर्नीति को जानते थे, अतः बोले— 'कोई व्यक्ति अशुचि-लिप्त भाजन लाए और कहे कि मुझे इसमें घी तोल दो। अब तुम्हीं बतलाओ कि कौन-सा व्यापारी होगा, जो उस अशुद्ध भाजन में घी तोल दे? मुझे तुम्हारा मन अपवित्र भाजन जैसा लगता है, अतः उत्तर देने में कोई गुण दिखाई नहीं देता। घी और उत्तर सत्पात्र में ही ठीक रहते हैं।'

*चोरों की तरह नहीं*

एक व्यक्ति स्वामीजी के पास धर्म-चर्चा करने के लिए आया। दान-दया, व्रत-अव्रत आदि अनेक विषयों पर चर्चा की। प्रत्येक प्रसंग में उसे स्थान-स्थान पर अटकना पड़ा। जब उसके पास कोई उत्तर नहीं होता, तब अंट-संट बोलने लगता। एक बात को छोड़कर दूसरी और फिर दूसरी को छोड़कर तीसरी पूछने लगता। निरुत्तर हो जाने पर भी न उसने किसी न्याय-युक्त कथन को स्वीकार किया और न किसी विषय पर टीका ही रहा।

स्वामीजी ने उसके विचित्र व्यवहार को लक्ष्य कर कहा— 'खेत का स्वामी खेत काटता है, तब व्यवस्थित और संलग्न काटता है, परंतु चोर घुस आता है, वह दो हाथ इधर मारता है और दो उधर। तुम्हें चोर की तरह नहीं, खेत के स्वामी की तरह होना चाहिए। एक विषय को पूरा समझ लेने के पश्चात् ही दूसरा विषय उठाना चाहिए।

*धूर्त चोर*

कई शिथिलाचारी साधु स्वामीजी से चर्चा करने आते, परंतु उनका दृष्टिकोण प्रायः तत्त्व-गवेषणा न होकर लोगों को भ्रांत करने का ही हुआ करता था। वे स्वामीजी द्वारा प्रदत्त शास्त्र-न्याय की कोई परवाह नहीं करते। प्रत्येक बात को विरुद्ध प्रचार का साधन बनाते और कहते कि भीखणजी ने दान व दया को उठा दिया है, भगवान् महावीर में भी चूक बतलाते हैं आदि।

उपर्युक्त प्रकार के व्यक्तियों की समालोचना करते हुए स्वामीजी ने कहा— 'धूर्त चोर केवल चोरी ही नहीं करता, वह जाते समय घर में आग भी लगा जाता है। लोग आग बुझाने में लगते हैं, तब तक वह पार हो जाता है। इन शिथिलाचारियों की वृत्ति भी वैसी ही है। शुद्ध आचार नहीं पाल पाते, तब लोगों का ध्यान उस तरफ से अन्यत्र फेरने के लिए द्वेषाग्नि भड़काते हैं।'

*स्वामी भीखणजी अन्यों को ही नहीं... अपने श्रावकों को भी चूक होने पर उसका स्पष्ट ज्ञान करा देते थे...* जानेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 12.09.2019 20:59

👉 बेंगलुरु - कन्या सुरक्षा परियोजना के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर प्रतियोगिताएं आयोजित
👉 पीलीबंगा ~ मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव का आयोजन
👉 राजाराजेश्वरीनगर (बेंगलुरु) ~ तेयुप द्वारा सेवा कार्य
👉 भुज - मंगल भावना समारोह का आयोजन
👉 हुबली ~ मंगलभावना समारोह का आयोजन
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - तेयुप द्वारा सेवा कार्य
👉 मुम्बई - विकास महोत्सव का आयोजन
👉 टॉलीगज - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 सूरत - जैन जीवन शैली पर प्रतियोगिता का आयोजन
👉 पालघर ~ आचार्य भिक्षु के 217 वें चरमोत्सव का आयोजन
👉 बेहाला ~ भिक्षु चरमोत्सव, कनेक्शन विद् सक्सेस कार्यशाला एवं मैत्री दिवस का आयोजन
👉 इस्लामपुर ~ आचार्य श्री भिक्षु के 217 वें चरमोत्सव कार्यक्रम का आयोजन
👉 ट्रिप्लीकेन: चेन्नई - 217 वाॅ भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ सवाद* 🌻

Updated on 12.09.2019 20:59

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

⌚ _दिनांक_: *_12 सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*


*: दिनांक:*
12 सितंबर 2019

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*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला ४*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २५३* - *विचार क्यों आते है ४*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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