👉 ट्रिप्लीकेन चैन्नई - "दीक्षार्थिनी मुमुक्षु आंचल का मंगल भावना कार्यक्रम
👉 दक्षिण हावड़ा ~ "सर्वोत्तम प्रयास खुद पर विश्वास निश्चित सफलता आपके पास" विषय पर कार्यशाला का आयोजन
👉 मध्य कोलकाता ~ कनेक्शन विद् सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 पालघर ~ 217 वें भिक्षु चरमोत्सव पर धम्मजागरणा कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ कन्या सुरक्षा सर्कल का उद्घाटन एवं बेटी बचाओ कार्यक्रम का आयोजन
👉 साहूकारपेट, चेन्नई: दीक्षार्थी मुमुक्षु आँचल का "मंगलभावना समारोह" आयोजित
👉 दिल्ली - स्वस्थ आहार का सेवन श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 साउथ कोलकात्ता - सुप्रसिद्ध व्यक्तियों की सफलता की कहानियों पर एक प्रतियोगिता का आयोजन
👉 वीरगंज(नेपाल) - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 उधना, सूरत - 25 बोल की लिखित परीक्षा का आयोजन
👉 जींद - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्म जागरण का आयोजन
👉 रायपुर - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्म जागरण का आयोजन
👉 सिरसा - विकास महोत्सव व तप अभिनन्दन कार्यक्रम
👉 उधना, सूरत - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 सोलापुर - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्मजागरण का आयोजन
👉 साहुकारपेठ: चैन्नई - मंगलभावना समारोह
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 दक्षिण हावड़ा ~ "सर्वोत्तम प्रयास खुद पर विश्वास निश्चित सफलता आपके पास" विषय पर कार्यशाला का आयोजन
👉 मध्य कोलकाता ~ कनेक्शन विद् सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 पालघर ~ 217 वें भिक्षु चरमोत्सव पर धम्मजागरणा कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ कन्या सुरक्षा सर्कल का उद्घाटन एवं बेटी बचाओ कार्यक्रम का आयोजन
👉 साहूकारपेट, चेन्नई: दीक्षार्थी मुमुक्षु आँचल का "मंगलभावना समारोह" आयोजित
👉 दिल्ली - स्वस्थ आहार का सेवन श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण कार्यशाला का आयोजन
👉 साउथ कोलकात्ता - सुप्रसिद्ध व्यक्तियों की सफलता की कहानियों पर एक प्रतियोगिता का आयोजन
👉 वीरगंज(नेपाल) - रक्तदान शिविर का आयोजन
👉 उधना, सूरत - 25 बोल की लिखित परीक्षा का आयोजन
👉 जींद - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्म जागरण का आयोजन
👉 रायपुर - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्म जागरण का आयोजन
👉 सिरसा - विकास महोत्सव व तप अभिनन्दन कार्यक्रम
👉 उधना, सूरत - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 सोलापुर - भिक्षु चरमोत्सव पर धम्मजागरण का आयोजन
👉 साहुकारपेठ: चैन्नई - मंगलभावना समारोह
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 39* 📜
*अध्याय~~3*
*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*8. स्वकृतं नाम भोक्तव्यं, श्रद्धत्ते नेति यो जनः।*
*श्रद्दधानोपि यो नैव, स्वात्मवीर्यं समुन्नयेत्।।*
*9. स कष्टाद् भयमाप्नोति, कष्टापाते विषीदति।* *आशङ्कां प्राप्य कष्टानां, स्वीकृतं मार्गमुज्झति।।*
*(युग्मम्)*
जो मनुष्य इस बात में श्रद्धा नहीं रखता कि अपना किया हुआ कर्म भुगतना पड़ता है या इसमें श्रद्धा रखता हुआ भी अपनी आत्मशक्ति को सत्कार्य में नहीं लगाता, वह कष्ट से कतराता है। वह कष्ट आ पड़ने पर खिन्न होता है और कष्टों के आने की आशंका से अपने स्वीकृत मार्ग को त्याग देता है।
*10. मार्गोयं वीर्यहीनानां, वत्स! नैष हितावहः।*
*धीरः कष्टमकष्टञ्च, समं कृत्वा हितं व्रजेत्।।*
वत्स! यह वीर्यहीन व्यक्तियों का मार्ग है। यह मुमुक्षु के लिए हितकर नहीं है। धीर पुरुष सुख-दुःख को समान मानकर अपने हित की ओर जाता है।
💠 *मेघः प्राह*
*11. सुखास्वादाः समे जीवाः, सर्वे सन्ति प्रियायुषः।*
*अनिच्छन्तोऽसुखं यान्ति, न यान्ति सुखमीप्सितम्।।*
*12. कः कर्त्ता सुखदुःखानां, को भोक्ता कश्च घातकः।*
*सुखदो दुःखदः कोस्ति स्याद्वादीश! प्रसाधि माम्।।*
*(युग्मम्)*
मेघ बोला— सब जीव सुख चाहते हैं। सबको जीवन प्रिय है। वे दुःख नहीं चाहते, फिर भी वह मिलता है और वे सुख चाहते हैं, फिर भी वह नहीं मिलता। सुख-दुःख का कर्ता कौन है? भोक्ता कौन है? कौन है इनका अंत करने वाला? सुख-दुःख देने वाला कौन है? हे स्याद्वादीश! आप मुझे समाधान दें।
*आत्मा ही सुख-दुःख का कर्ता-भोक्ता... तीन प्रकार की आत्मा और उसका स्वरूप... सकर्मात्मा का स्वरूप और कार्य...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 39* 📜
*अध्याय~~3*
*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*8. स्वकृतं नाम भोक्तव्यं, श्रद्धत्ते नेति यो जनः।*
*श्रद्दधानोपि यो नैव, स्वात्मवीर्यं समुन्नयेत्।।*
*9. स कष्टाद् भयमाप्नोति, कष्टापाते विषीदति।* *आशङ्कां प्राप्य कष्टानां, स्वीकृतं मार्गमुज्झति।।*
*(युग्मम्)*
जो मनुष्य इस बात में श्रद्धा नहीं रखता कि अपना किया हुआ कर्म भुगतना पड़ता है या इसमें श्रद्धा रखता हुआ भी अपनी आत्मशक्ति को सत्कार्य में नहीं लगाता, वह कष्ट से कतराता है। वह कष्ट आ पड़ने पर खिन्न होता है और कष्टों के आने की आशंका से अपने स्वीकृत मार्ग को त्याग देता है।
*10. मार्गोयं वीर्यहीनानां, वत्स! नैष हितावहः।*
*धीरः कष्टमकष्टञ्च, समं कृत्वा हितं व्रजेत्।।*
वत्स! यह वीर्यहीन व्यक्तियों का मार्ग है। यह मुमुक्षु के लिए हितकर नहीं है। धीर पुरुष सुख-दुःख को समान मानकर अपने हित की ओर जाता है।
💠 *मेघः प्राह*
*11. सुखास्वादाः समे जीवाः, सर्वे सन्ति प्रियायुषः।*
*अनिच्छन्तोऽसुखं यान्ति, न यान्ति सुखमीप्सितम्।।*
*12. कः कर्त्ता सुखदुःखानां, को भोक्ता कश्च घातकः।*
*सुखदो दुःखदः कोस्ति स्याद्वादीश! प्रसाधि माम्।।*
*(युग्मम्)*
मेघ बोला— सब जीव सुख चाहते हैं। सबको जीवन प्रिय है। वे दुःख नहीं चाहते, फिर भी वह मिलता है और वे सुख चाहते हैं, फिर भी वह नहीं मिलता। सुख-दुःख का कर्ता कौन है? भोक्ता कौन है? कौन है इनका अंत करने वाला? सुख-दुःख देने वाला कौन है? हे स्याद्वादीश! आप मुझे समाधान दें।
*आत्मा ही सुख-दुःख का कर्ता-भोक्ता... तीन प्रकार की आत्मा और उसका स्वरूप... सकर्मात्मा का स्वरूप और कार्य...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 127* 📖
*गुणों की माला पहनें*
आज अक्षय तृतीया का पर्व है। भगवान् आदिनाथ का संबंध किससे जुड़ा हुआ है। आदिनाथ की स्तुति के साथ सहज ही आज का कार्य प्रारंभ हो रहा है। यह तीन दिन का कार्यक्रम भगवान् ऋषभ से जुड़ा हुआ है। भक्तामर का पाठ चल रहा है बहुत दिनों से। दिल्ली में (सन् 1994) प्रारंभ किया गया और आज (20 अप्रैल 1997) सम्पूर्ति का दिन है। दो परंपराएं हैं— एक चंवालीस श्लोकों की और एक अड़चास श्लोकों की। चंवालीस श्लोक की परंपरा आज संपन्न हो रही है।
आचार्य मानतुंग ने ऋषभ की स्तुति के अंतिम श्लोकों में अभय का पथदर्शन किया। आदमी सबसे ज्यादा परेशान भय से रहता है। एक होता है काल्पनिक भय और एक होता है वास्तविक भय। यदि काल्पनिक भय को निकाल दिया जाए तो शायद पचास प्रतिशत से ज्यादा समस्या का समाधान हो जाए, किंतु भय निकलता नहीं है। आदमी कल्पना के सहारे चलता है, कल्पना के सहारे जीता है। कल्पना कभी सुख देती है तो कभी बहुत ज्यादा दुःख भी देती है। कल्पना और सपना— ये दो ही हैं जो सुख और दुःख का कारण बन जाते हैं। रात में सपना और दिन में कल्पना दोनों एक ही हैं। दिन में जो कल्पना होती है, रात को सपना बन जाती है। सपना ही व्यक्ति का अपना है और सब पराया बन जाता है। सपने में भिखारी ने देखा— 'राजा बन गया हूं, महल में सो रहा हूं। रानियां पगचंपी कर रही हैं।' बड़े सुख का अनुभव किया। जैसे ही सपना टूटा सुख का महल ढह गया। कल्पना में भी आदमी सुख और दुःख का अनुभव करता है। बहुत प्रसिद्ध कहानी है। गाड़ी जा रही थी, रेल के डिब्बे में दो यात्री बैठे थे। एक खड़ा हुआ, उसने खिड़की को खोला और बैठ गया। दूसरा खड़ा हुआ, उसने खिड़की को फिर बंद कर दिया। पहला फिर उठा, उसने खिड़की को पुनः खोल दिया। दूसरे ने पुनः बंद कर दिया। एक नाटक शुरू हो गया। लोग परेशान हो गए। लोगों ने टीटीई से कहा— आपके डिब्बे में क्या चल रहा है? हम तो तंग हो गए हैं। टीटीई उनके पास गया, बोला— भाई साहब! आप क्या करते हैं? खिड़की क्यों खोलते हैं? एक ने कहा— खिड़की खोलू क्यों नहीं, मुझे गर्मी लग रही है। दूसरे ने कहा— खिड़की बंद क्यों नहीं करूं? मुझे ठंड लग रही है। टीटीई ने दोनों को कहा कि मेरे साथ चलो। देखो क्या है? शीशा तो गायब है। कोरा खिड़की का ढांचा है, कहां से हवा आएगी और कहां से हवा रुकेगी? कैसे गर्मी और सर्दी लगेगी?
कल्पना के सहारे आदमी बहुत चलता है। एक होता है वास्तविक भय। यथार्थ में भय का कारण होता है। मानतुंग सूरि ने भय के आठ कारणों का वर्णन किया।
*भय के आठ हेतु और उन सबके उपसंहार में आचार्य मानतुंग क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 127* 📖
*गुणों की माला पहनें*
आज अक्षय तृतीया का पर्व है। भगवान् आदिनाथ का संबंध किससे जुड़ा हुआ है। आदिनाथ की स्तुति के साथ सहज ही आज का कार्य प्रारंभ हो रहा है। यह तीन दिन का कार्यक्रम भगवान् ऋषभ से जुड़ा हुआ है। भक्तामर का पाठ चल रहा है बहुत दिनों से। दिल्ली में (सन् 1994) प्रारंभ किया गया और आज (20 अप्रैल 1997) सम्पूर्ति का दिन है। दो परंपराएं हैं— एक चंवालीस श्लोकों की और एक अड़चास श्लोकों की। चंवालीस श्लोक की परंपरा आज संपन्न हो रही है।
आचार्य मानतुंग ने ऋषभ की स्तुति के अंतिम श्लोकों में अभय का पथदर्शन किया। आदमी सबसे ज्यादा परेशान भय से रहता है। एक होता है काल्पनिक भय और एक होता है वास्तविक भय। यदि काल्पनिक भय को निकाल दिया जाए तो शायद पचास प्रतिशत से ज्यादा समस्या का समाधान हो जाए, किंतु भय निकलता नहीं है। आदमी कल्पना के सहारे चलता है, कल्पना के सहारे जीता है। कल्पना कभी सुख देती है तो कभी बहुत ज्यादा दुःख भी देती है। कल्पना और सपना— ये दो ही हैं जो सुख और दुःख का कारण बन जाते हैं। रात में सपना और दिन में कल्पना दोनों एक ही हैं। दिन में जो कल्पना होती है, रात को सपना बन जाती है। सपना ही व्यक्ति का अपना है और सब पराया बन जाता है। सपने में भिखारी ने देखा— 'राजा बन गया हूं, महल में सो रहा हूं। रानियां पगचंपी कर रही हैं।' बड़े सुख का अनुभव किया। जैसे ही सपना टूटा सुख का महल ढह गया। कल्पना में भी आदमी सुख और दुःख का अनुभव करता है। बहुत प्रसिद्ध कहानी है। गाड़ी जा रही थी, रेल के डिब्बे में दो यात्री बैठे थे। एक खड़ा हुआ, उसने खिड़की को खोला और बैठ गया। दूसरा खड़ा हुआ, उसने खिड़की को फिर बंद कर दिया। पहला फिर उठा, उसने खिड़की को पुनः खोल दिया। दूसरे ने पुनः बंद कर दिया। एक नाटक शुरू हो गया। लोग परेशान हो गए। लोगों ने टीटीई से कहा— आपके डिब्बे में क्या चल रहा है? हम तो तंग हो गए हैं। टीटीई उनके पास गया, बोला— भाई साहब! आप क्या करते हैं? खिड़की क्यों खोलते हैं? एक ने कहा— खिड़की खोलू क्यों नहीं, मुझे गर्मी लग रही है। दूसरे ने कहा— खिड़की बंद क्यों नहीं करूं? मुझे ठंड लग रही है। टीटीई ने दोनों को कहा कि मेरे साथ चलो। देखो क्या है? शीशा तो गायब है। कोरा खिड़की का ढांचा है, कहां से हवा आएगी और कहां से हवा रुकेगी? कैसे गर्मी और सर्दी लगेगी?
कल्पना के सहारे आदमी बहुत चलता है। एक होता है वास्तविक भय। यथार्थ में भय का कारण होता है। मानतुंग सूरि ने भय के आठ कारणों का वर्णन किया।
*भय के आठ हेतु और उन सबके उपसंहार में आचार्य मानतुंग क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 139* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*13. तीखे आलोचक*
*शल्य-क्रिया*
स्वामीजी ने आचार-क्रांति की थी, अतः शिथिलाचार तथा कुरूढ़ियों पर उनके द्वारा कठोर प्रहार होना स्वाभाविक ही था। वे मानते थे कि शिथिलाचार इतनी गहराई तक व्याप्त हो गया है कि उसे साधारण उपदेश मिटा नहीं पाते। वे उसे एक प्रकार का फोड़ा मानते थे, जिसका मवाद शल्य-क्रिया द्वारा निकालना अपरिहार्य हो चुका था। वे उस कार्य को तीखी आलोचनाओं के शस्त्र द्वारा संपन्न किया करते थे। उसके पीछे किसी व्यक्ति-विशेष के प्रति उनका दुर्भाव नहीं होता था, अपितु आचार-स्तर पर रुग्ण व्यक्ति को स्वस्थता प्रदान करने की व्यग्रता हुआ करती थी। साध्वाचार-विषयक उनकी निर्भीक और तीखी आलोचनाएं उस युग के अनेक व्यक्तियों के लिए मोह-भंग का हेतु बनी थीं।
*नग्न-नृत्य*
स्वामीजी के व्याख्यान में लोग बहुत आने लगे थे, यह देखकर विरोधियों को बड़ी जलन हुई। उन्होंने निंदात्मक प्रवाद फैलाकर पहले तो लोगों को भ्रांत करना प्रारंभ किया और फिर कदाग्रह करने पर उतर आए। स्वामीजी ने उनकी वृत्ति की आलोचना करते हुए कहा— 'एक व्यक्ति की दुकान पर ग्राहकों की बड़ी भीड़ रहा करती थी। पड़ोसी दुकानदार उससे जलने लगा। उसने भी लोगों को एकत्रित करने की ठानी। कई उपाय किए, परंतु सफलता नहीं मिली। एक दिन उसने अपने वस्त्र उतार फेंके और नग्न होकर नाचने लगा। उसके उस पागलपन को देखने के लिए सैकड़ों व्यक्ति एकत्रित हो गए। दुकानदार तब मन ही मन प्रसन्न हुआ।'
प्रसंग का उपसंहार करते हुए स्वामीजी ने कहा— 'व्यापारिक बुद्धि के अभाव में जैसे उस व्यक्ति ने नग्न होकर लोगों को एकत्रित किया, वैसे ही साधुत्व का बल न होने पर ये लोग कलह उत्पन्न करके लोगों को एकत्रित कर रहे हैं।
*स्वामी भीखणजी द्वारा शिथिलाचार पर किए गए कुछ प्रहारों व उनकी समीक्षा...* को समझेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 139* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*13. तीखे आलोचक*
*शल्य-क्रिया*
स्वामीजी ने आचार-क्रांति की थी, अतः शिथिलाचार तथा कुरूढ़ियों पर उनके द्वारा कठोर प्रहार होना स्वाभाविक ही था। वे मानते थे कि शिथिलाचार इतनी गहराई तक व्याप्त हो गया है कि उसे साधारण उपदेश मिटा नहीं पाते। वे उसे एक प्रकार का फोड़ा मानते थे, जिसका मवाद शल्य-क्रिया द्वारा निकालना अपरिहार्य हो चुका था। वे उस कार्य को तीखी आलोचनाओं के शस्त्र द्वारा संपन्न किया करते थे। उसके पीछे किसी व्यक्ति-विशेष के प्रति उनका दुर्भाव नहीं होता था, अपितु आचार-स्तर पर रुग्ण व्यक्ति को स्वस्थता प्रदान करने की व्यग्रता हुआ करती थी। साध्वाचार-विषयक उनकी निर्भीक और तीखी आलोचनाएं उस युग के अनेक व्यक्तियों के लिए मोह-भंग का हेतु बनी थीं।
*नग्न-नृत्य*
स्वामीजी के व्याख्यान में लोग बहुत आने लगे थे, यह देखकर विरोधियों को बड़ी जलन हुई। उन्होंने निंदात्मक प्रवाद फैलाकर पहले तो लोगों को भ्रांत करना प्रारंभ किया और फिर कदाग्रह करने पर उतर आए। स्वामीजी ने उनकी वृत्ति की आलोचना करते हुए कहा— 'एक व्यक्ति की दुकान पर ग्राहकों की बड़ी भीड़ रहा करती थी। पड़ोसी दुकानदार उससे जलने लगा। उसने भी लोगों को एकत्रित करने की ठानी। कई उपाय किए, परंतु सफलता नहीं मिली। एक दिन उसने अपने वस्त्र उतार फेंके और नग्न होकर नाचने लगा। उसके उस पागलपन को देखने के लिए सैकड़ों व्यक्ति एकत्रित हो गए। दुकानदार तब मन ही मन प्रसन्न हुआ।'
प्रसंग का उपसंहार करते हुए स्वामीजी ने कहा— 'व्यापारिक बुद्धि के अभाव में जैसे उस व्यक्ति ने नग्न होकर लोगों को एकत्रित किया, वैसे ही साधुत्व का बल न होने पर ये लोग कलह उत्पन्न करके लोगों को एकत्रित कर रहे हैं।
*स्वामी भीखणजी द्वारा शिथिलाचार पर किए गए कुछ प्रहारों व उनकी समीक्षा...* को समझेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
आज के मुख्य प्रवचन के दृश्य
📮
: दिनांक:
15 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
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कुम्बलगुड़ु,
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आज के मुख्य प्रवचन के दृश्य
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: दिनांक:
15 सितम्बर 2019
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महाश्रमण चरणों में
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: दिनांक:
15 सितम्बर 2019
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महाश्रमण चरणों में
📮
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15 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*सूचना -*
*परम् पूज्य आचार्य श्री* *महाश्रमण जी* ने महत्ती कृपा कर 2021 में अक्षयतृतीया के पश्चात *जन्मोत्सव व पट्टोत्सव* कार्यक्रम *इंदौर* में करने की घोषणा की।
दिनांक 15-9-2019
*परम् पूज्य आचार्य श्री* *महाश्रमण जी* ने महत्ती कृपा कर 2021 में अक्षयतृतीया के पश्चात *जन्मोत्सव व पट्टोत्सव* कार्यक्रम *इंदौर* में करने की घोषणा की।
दिनांक 15-9-2019
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
❇ *पूज्य प्रवर का बैंगलोर से हैदराबाद का संभावित यात्रा पथ 2019-2020*
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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